अमर प्रेम
(9)
तुमने शादी की है राहुल मत भूलो की तुमने उसे खरीद नहीं लिया है की अपनी मर्ज़ी और अपनी मनमानी से उसे चलने के लिए मजबूर करो।
तुम आज अगर अपने पैरों पर खड़े हो तो वो भी खड़ी है वह कोई तुम्हारी दासी नहीं है
की अपनी ज़िंदगी के फाइसे तुम से पुछ्पुच कर करे फिर भी वह तुम्हारा मान रखने के लिए तुमको अपना जीवन साथ समझते हुए साथ लेकर चलना चाहती है
तुम अपना यह बेकार का अहम लिए बैठे हो।
अंजलि अंजलि बाहर आओ बेटा...नकुल ज़ोर ज़ोर से आवाज़ लगा रहा है
हाँ जी पापा जी क्या हुआ।
बेटा मेरी इजाज़त है तुमको तुम यदि बाहर रहकर खाना कमाना चाहती हो तो तुम्हें पूरी आज़ादी है
तुम्हें किसी से कुछ पूछने या किसी को कुछ बताते , समझने या सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है।
कहते हुए राहुल को ज़ोर की खांसी आजती है और वह लगभग गिरते गिरते बचता है
पापा जी, आप शांत हो जाइए पापा जी,
नहीं तो आपकी तबियात बिगड़ जाएगी।
दोनों नकुल को संभालते हुए अपने झगड़े को थोड़ी देर के लिए भूल जाते हैं।
दो तीन दिन बाद अंजलि विदेश चली जाती है और राहुल अपने दफ्तर
नकुल का भाऊ के साथ गैपपे मारने और खुद का अकेला पन दूर होने का सपना उसकी आँखों में ही रह जाता है
नकुल की बातयी हुई बातें अंजली के मन में घर कर जाती हैं और वह निर्णय लेती है की वह विदेश का प्रोजेक्ट छोड़ेगी और भारत में रहकर ही काम करेगी
वह इस विषय में अपने बड़े अधिकारी से बात भी करती है लेकिन वह अंजलि को बीच प्रोजेक्ट में जाने से साफ माना कर देते हैं।
उनका कहना होता है की यह प्रोजेक्ट तो अंजलि को पूरा करना ही होगा
आगे भले ही अंजलि कोई दूसरा प्रोजेक्ट भारत में ही चुन ले तो उन्हें कोई समस्या नहीं
लेकिन यह प्रोजेक्ट तो अंजलि को वहाँ रहकर ही पूरा करना होगा।
क्यूंकी कंपनी ने अंजली के उपार और इस प्रोज्क्त पर बहुत पैसा लगाया है उसका वहाँ रहना खाना आना जाना सारा खर्च कंपनी ही उठा रही है।
और अब जब प्रोजेट धीरे-धीरे अपने चरम पर आरहा है तब अंजलि अपने देश लौट जाना चाहती है।
यह सही नहीं होगा।
इतना ही नहीं वह अंजलि को उसके हस्ताक्षर किए हुए दस्तावेज़ भी दिखाते हैं।
जिसमें यह साफ-साफ लिखा था की जब तक यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो जाता तब तक अंजली न तो जॉब छोड़ सकती है और न ही बीच प्रोजेक्ट में से निकल कर कोई दूसरा ही प्रोजेक्ट जॉइन कर सकती है।
अब तो अंजलि अपने आप को बेहद मजबूर महसूस कर रही है।
वह बहुत कोशिश करती है राहुल को समझने की मगर पता नहीं क्यूँ राहुल उसकी बात समझने को राजी नहीं
उसे ऐसा लगता है कि वह जो सोचता है वही सही है।
उसका ऐसा मानना है कि जहां चाह हो वाहन राह निकल ही आती है।
लेकिन अंजलि ही अपनी बात पर ऐसी आदि है कि उसकी चाह ही नहीं है वापस आने कि तो रास्ता कहाँ से निकल सकता है।
एक अजीब से खिचाव में दिन बीत रहे हैं।
कुछ महीने बीत जाने के बाद बीच में दिवाली कि छुट्टी पर अंजलि घर आती है अब उसके प्रोजेक्ट को खत्म होने में और चे महीने बाकी है
वह छुट्टियों में घर आकर राहुल को मनाने कि बहुत कोशिश करती है।
कभी उसकी पसंद का नाश्ता बनती है तो कभी उसकी पसंद का खाना बनाती है।
कभी तंग कपड़े पहनकर उसे रिझाती है।
तो कभी साड़ी पहनकर संस्कारी बहुत का फर्ज़ निभाती है।
किन्तु राहुल है की मानता ही नहीं, शायद उसे अंजलि के आने से ज्यादा हर बार
उसके वापस जाने का भाय सताता है
दीपावली की छुट्टियों के बाद अब फिर से वह दिन निकट आरहा है जब अंजलि को एक बार फिर सबको छोड़कर अकेले विदेश जाना है।
एक रात अंजलि और राहुल रात का खाना हो जाने के पश्चयात अपने कमरे में बिस्तर पर लेटे छत को निहार रहे हैं, दोनों ही चुप है।
अंजलि चुप्पी तोड़े हुए राहुल स कहती है।
इतना नर्ज हो मुझसे बात भी नहीं करोगे, क्या इस दिन के लिए ही हमने शादी की थी।
इसे अच्छी ज़िंदगी तो हमारी पहले थी।
जब तो कोई रूठना मानना भविष्य की चिंताएँ कुछ भी नहीं था
सिर्फ एक ही बात की चिंता हुआ करती थी कि कहीं मेरे या तुम्हारे पापा इस शादी के लिए ना न करदे कहीं।
हाँ मुझे भी ऐसे ही लगता है कभी-कभी राहुल ने अंजलि कि तरफ करवट बदते हुए कहा
देखो अंजलि मैं तुम से नाराज़ नहीं हूँ।
लेकिन तुम्हारा मुझे छोड़कर यूं इतने–इतने दिनों के लिए चले जाना मुझे बहुत अखरता है।
इसलिए अब तो मुझे तुम्हारे करीब आने से ही दर लगता है
क्यूंकि हमारी करीबीयत के यह दिन तुम्हारे चले जाने के बाद बहुत सताते है सच्ची...
ओ तो यह बात है और समझ रही थी कि तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो, पता नहीं अब कब तुम्हारी नारागी समाप्त होगी,
सच तो यह है, कि मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती राहुल
मुझे कोई मजा थोड़ी ना आता है वहाँ यूं विरहा के दिन गुजारने में लेकिन मैं क्या करूँ मेरी भी मजबूरी है।
इसलिए तो मैं तुम से कहती हूँ तुम भी चलो न मेरे साथ विदेश अब तो वैसे भी 6 महीने ही बचे हैं।
फिर हम दोनों एक साथ वपास आजायेंगे
राहुल कुछ देर सोचता है और फिर कहता है नहीं अंजलि यह नहीं हो सकता।
पापा को मैं इतने सारे दिनों के लिए अकेला नहीं छोड़ सकता। माँ के जाने के बाद मैं ही पापा का इकलौता सहारा रहा हूँ।
पहले ही उन्हें हमारी शादी से बहुत सारी उम्मीदें थी। लेकिन तुम्हारे प्रोजेक्ट कि वजह से वह पूरी ना सकीं।
अब बड़ी मुश्किल से दिन गिन-गिनकर उन्होने छे महीने काटे हैं।
उसके बावजूद अभी छे महीने और काटना बाकी हैं
ऐसे में यदि मैं भी तुम्हारे साथ चला गया तो वह तो बिलकुल अकेले हो जायेंगे।
हाँ यह बात भी ठीक है।
तुम सही कह रहे हो लेकिन मैंने न तुम्हें एक बात नहीं बतायी
क्या ? कौन सी बात नहीं बताई
राहुल एकदम से घबरा जाता है कि पाता नहीं ऐसा क्या होगया
जो अंजलि इस तरह से बोल रही है। क्या हुआ है अंजलि बताओ न तुम चुप क्यूँ हो
और तुम ठीक तो हो ना मुझे वैसे ही तुम्हारी बहुत चिंता लगी रहती है।
आब बोलो भी क्या हुआ है जो तुमने मुझे नहीं बताया। राहुल कि आँखों में अपने लिए यूं प्यार देखकर अपने प्रति यूं चिंता देखकर अंजलि राहुल से लिपट कर कहती है “आय लव यू” राहुल
राहुल कि कुछ समझ में नहीं आरहा है। अंजलि उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रही।
वह थोड़ी ऊंची आवाज़ में अंजलि को खुद से अलग करते हुए पूछता है अब बाताओ भी क्या हुआ है जो तुमने मुझे अब तक नहीं बताया, अब क्या जानलेकर ही बताओगी।
अंजलि कि आंखे राहुल का उसके प्रति प्रेम देखर नम है और वह खुशी के मारे लगभग रो रही है।
बोलो अंजलि भगवान के लिए बोलो क्या हुआ।
कुछ नहीं हुआ राहुल मैं तो बस यह कह रही थी कि मैंने तुम से बिना पूछे तुम्हारा और पापा जी के नाम का टुरिस्ट वीसा बनवा लिया है।
बस इतनी सी बात और मैं समझा न जाने क्या हो गया।
जो हुआ अच्छा ही हुआ। वीसा के बहाने ही सही मुझे पता तो चला कि तुम्हारे अंदर भी मुझसे दूर रहकर वही आग धधक रही है जो मेरे अंदर तुम से दूर रहकर धधकती है।
मैं देखना चाहती थी कि जितना तुम्हें खो देने का डर मुझ में है
उतना ही तुम में भी मेरे प्रति वही डर है या नहीं।
अंजलि तुम पागल हो बिलकुल,
हाँ सो तो मैं हूँ, तुम्हें आज पता चला कहते हुए अंजलि खिलखिलाकर हँस देती है।
अच्छा यह बताओ तुमने यह सारी तयारी मुझसे और पापा से पूछे बिना कि कैसे
कैसे मतलब बस करली।
तुम आम खाओ रमेश बाबू गुठलियाँ न गिना करो
करना ही क्या था सिर्फ एक फार्म पर तुम्हारे और पापजी के हस्ताक्षर ही तो लेने थे और सारे कागजात दूतावास को ही तो बेजने थे।
मैंने ऐसा इसलिए किया क्यूंकि आने वाले छे महीनो में हमारी शादी को एक साल हो जाएगा
कौन कहेगा हमें देखकर कि हमारी नयी नयी शादी हुई है।
सब कुछ इतना जल्दी हो रहा है, मेरे कहने का मतलब जिंदगी जैसे भागी जा रही है।
कब छे महीने बीत गए पता ही नहीं चला।
तो मैंने सोचा वीसा लेकर तो रख ही लेती हूँ। यदि तुम्हें और पापा जी को मनाने में कामयाब हो गयी तो उस वक़्त यह सारी समस्याओं का सामना तो नहीं करना पड़ेगा।
हाँ वही तो अब देखो फिर तुम्हारे जाने का समय आगया। ऐसा कहते कहते राहुल अंजलि के ज़रा नजदीक सरक जाता है।
अभी तो मैं तुम्हें ठीक तरह से देख भी नहीं पाया और तुम्हारे जाने का समय भी आगया
दोनों थोड़ा ओर निकट आजाते है और राहुल दूसरे हाथ से कमरे में जल रहे लेंप को बंद कर देता है।
अगली सुबहा दोनों ही खुश हाल नज़र आरहे होते हैं
उन्हें खुश देखकर नकुल भी चैन कि सांस लेता है और अंजलि अपने पापा के घर जाने के लिए
नकुल के चरणस्पर्श कर अपने पापा के घर जाने कि अनुमति लेती है
नकुल भी मुसुकरा कर हाँ कह देता है।
राहुल हेलमेट लेता हुआ घर के बाहर जाते हुए कहता है
पापा मैं आता हूँ अंजलि को छोड़कर
हाँ हाँ बेटा तुम लोग आराम से आना कोई जल्दी नहीं है
और सुनो आराम से ही जाना गली भगाना मत
हाँ पापा आप चिंता ना करें।
कहते हुए दोनों फुर से गायब हो जाते है
उनदोनों के घर से चले जाने के बाद घर जैसे बिलकुल खाली हो जाता है।
यूं तो अंजलि के ना रहने और नकुल के काम पर चले जाने के बाद रोज़ ही घर खाली हो जाता है
किन्तु तब वह काटने को नहीं दौड़ता क्यूँ तब नकुल को आदात रहती है यूं अकेले समय गुजारने कि
परंतु छुट्टियों के बाद घर का खाली पन बिलकुल किसी सव के जैसा होता है
जैसे किसी शरीर में से उसके प्राण जाने पर वह मुर्दा हो जाता है
वैसे ही छुट्टियों के बाद बच्चों के चले जाने से घर हो जाता है
आकार ऐसे मैं नकुल सुधा कि तस्वीर को अपने सिने से लगाए अपनी आराम कुर्सी पर बैठा बस यही सोचता रहता है कि यदि अभी सुधा होती तो कैसा होता।
उस दिन ठीक ऐसा ही हुआ नकुल सुधा कि तस्वीर अपने सिने से लगाये लगाए अपनी आराम कुर्सी पर ही सो गया
और उसने सपने में सुधा को देखा, सुधा नकुल से पूछ रही है
क्यूँ जी तुम तो अभी से बूढ़ा गए
ईतने भी बुजुर्ग नहीं हुए हो अभी जो यूं हिन्दी फिल्मों के बाढ़ों कि तरह आराम कुर्सी पर बैठे बैठे झूले जा रहे हो
मुझे देखो मैं तो अब भी जवान और उतनी ही खूबसूरत हूँ जैसी पहले थी और ज़रा अपने आप को देखो मेरे बुढ़ऊ।
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