दहन
बच्चे खिलखिला रहे थे। उनके लिए अपनी ख़ुशी को संभालना मुश्किल था । ऊपर-नीचे सतत दौड़ लगा रहे थे । उन्होंने पूरे घर को आसमान पर उठा रखा था । वे सब उमंग, उत्साह और शरारत से लबालब थे । इस हुड़दंग में राहुल, प्रियंका, प्रकाश और बंटी सभी शामिल थे ।
रावण दहन होने वाला था । उनके मम्मी-पापाओं ने उन्हें दशहरा मैदान में रावण दिखाने की स्वीकृति दे दी थी । इस तमाशे में उन्हें खूब मजा आने वाला था । इसीलिए वे सब बेहद खुश थे । उन्हें शाम होने की बेसब्री से प्रतीक्षा थी । वे सुबह से ही दशहरा मैदान जाने के लिए लालायित थे ।
लेकिन इस शोरगुल से अबोध सोनू कुछ दूर था । चुपचाप । शायद उसके भीतर कुछ और ही चल रहा था । सब उससे पूछे जा रहे थे-‘तू चलेगा, रावण देखने । तेरे को तेरे मम्मी-पापा ले जायेंगे कि नहीं चलना रे, खूब मजा आएगा । होय! होय! होय! होय!’ सब ख़ुशी से उछलते हुए सोनू को उकसा रहे थे ।
सोनू असमंजस में पड़ा था । ये सब कोई मजेदार चीज देखने जा रहे हैं । वह क्या करे! क्या पापा उसे ले जायेंगे । वहाँ बड़ा मजा आएगा । तभी तो सभी उछले जा रहे हैं । पहले मम्मी से कहूँ तो बात बने । मम्मी के जरिये सोनू की मंशा पापा तक पहुँची । पापा ने स्वीकृति दे दी । रावण को देखना तय हो गया । उसके मन में भी ख़ुशी हिलोरे लेने लगी । सोनू भी ख़ुशी के घोड़े पर सवार हो टोली में जा मिला । सबको अवगत कराया कि वह भी जायेगा ।
सोनू अपने मम्मी पापा के साथ इस मकान के पिछले हिस्से में एक डिबियानुमा कमरे में रहता है । उस कमरे के पास ही राहुल, प्रियंका भी अपने मम्मी-पापा के साथ किराये से रहते हैं । बंटी और प्रकाश मकान मालिक के बच्चे हैं जो नीचे रहते हैं ।
सोनू एक संवेदनशील और मासूम सा बालक है । अल्पभाषी और सीधा-सादा । राहुल और प्रियंका की तरह कतर-कतर नहीं करता । न ही बंटी और प्रकाश की तरह धमा-चौकड़ी मचाता है । उस पर छोटी-छोटी बातों का गहरा असर होता है । उसके पापा उसको लेकर कभी-कभी परेशान हो उठते हैं । सोनू के कारण उनका अख़बार पढ़ना मुश्किल हो जाता है ।
सोनू जब भी अख़बार में जले हुए वाहन, दुकानों और घरों को देखता है तो वह दहशत से भर जाता है । अख़बार पढ़ते हुए पापा के चेहरे को अपने कोमल हाथों से बार-बार अपनी ओर मोड़ पूछता- ‘पापा बस क्यों जलाते हैं... ?... पापा घर क्यों जलाते हैं ?..बताओ पापा क्यों ?...क्यों ?’ -उसके डरावने सवाल पापा को बेचैन कर देते । देर तक सोनू का आतंकित चेहरा उनका पीछा करता रहता । क्रूर, हिंसक और अमानवीय दुनिया में इस मासूमियत का क्या हश्र होगा ! वह जितना मासूम है दुनिया उतनी ही क्रूर-कठोर । वे सोनू को समझाने की कोशिश करते किन्तु उसके चेहरे से खौफ़ को पोंछ नहीं पाते । उसकी मासूमियत से उन्हें चिंता होने लगती । वे अपनी लाचारी पर खीज उठते ।
देश के एक हिस्से में भूकंप आया था । भयानक तबाही हुई थी । टी.वी. पर भूकंप से हुई तबाही को दिखाया जा रहा था । गिरे हुए मकान, लाशें, रोते-बिलखते लोग । डरते-डरते सोनू उन दृश्यों को देख रहा था । बाद में वह लगातार आतंकित और आशंकित रहता । वह पूछता-‘पापा, क्या यहाँ भी भूकंप आएगा । ये मकान गिर जायेगा! अपन दब कर मर जायेंगे!’ उसकी आशंकाओं का कोई अंत नहीं था । मम्मी-पापा चाहकर भी उसके मन की दहशत को बुहार नहीं पाते । उसे किसी तरह तसल्ली नहीं दे पाते । कई बार वह नींद में डर कर उठ बैठता-‘पापा कमरा हिल रहा है...पापा कमरा हिल रहा है ।’ वे किसी तरह उसको फिर से सुलाने की कोशिश करते । जब दूसरे बच्चे भूकंप से बेखबर खेलकूद में डूबे रहते, तब वह डरा-सहमा काल्पनिक आशंकाओं से घिरा रहता । उसे लगता कि अभी जमीन हिलने लगेगी । मकान गिर पड़ेगा और हम सब दबकर मर जायेंगे । उसकी यह मनोदशा दोनों को चिंतित करती । कैसे जी पायेगा यह बच्चा इस क्रूर दुनिया में ! कहीं भीतर से वे बच्चे के असंवेदनशील होने की कामना करते ताकि वह इस दुनिया में महफूज रह सके ।
राहुल, प्रियंका, प्रकाश और बंटी अपने अपने मम्मी-पापा के साथ रावण देखने के लिए रवाना हो चुके थे । अब सोनू भी अपने मम्मी-पापा के पीछे पड़ गया । उसे देरी खल रही थी । उसके मम्मी-पापा को तुरंत तैयार होना पड़ा । सोनू ने ख़ुशी से पापा का हाथ थाम लिया । वह उन्हें खींचे लिए जा रहा था । उसे उनकी चाल धीमी लग रही थी ।
नगर की सड़कों और गलियों से भीड़ के रेले दशहरा मैदान की तरफ बह निकले थे । बच्चे, जवान, औरतें, बूढ़े सभी दशहरा जीतने के लिए बन-ठन कर निकल पड़े थे ।
दशहरा मैदान में रावण बड़े-बड़े दस सिर लिए रस्सियों से तना खड़ा था । सिर पर चमकीले मुकुट । मूँछों से आच्छादित डरावने चेहरे । मैदान में जन-सैलाब उमड़ पड़ा था । फुग्गे, पुंगी और अन्य खिलौने वालों की आवाजें चतुर्दिक गूँज रही थी ।
सोनू की नजर जैसे ही रावण पर पड़ी, उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया । यदि उसे पता होता कि रावण ऐसा डरावना होता है तो वह कतई नहीं आता । वह पाँव पीछे खींचने लगा । वापस घर चलने की ज़िद करने लगा । दोनों हैरान । लगभग ज़िद करके सोनू ही उन्हें यहाँ लाया था और अब वापस चलने की ज़िद । समझाने-बुझाने की कोशिश की । फुग्गा ले देने का प्रलोभन भी दिया । लेकिन सब बेकार । पापा खीज़ उठे, उन्होंने आँखें दिखाई । सोनू सहम गया । वह मम्मी से जा चिपटा । उसने कसकर आँखें मींच ली । विवश हो पापा-मम्मी को वहीं एक कोने में खड़े होकर रावण के जलने का इंतजार करना पड़ा । किसी तरह सोनू को रोके रखना पड़ा । भीड़ में इस वक्त लौटना मुश्किल था । सोनू की साँसे धौंकनी की तरह चलने लगी । चेहरे पर पसीना छलकने लगा । दोनों उसके डर को दूर करने का असफल प्रयास करते रहे । लोग उनकी इस विचित्र स्थिति पर मुस्कुरा रहे थे । यदि वे बीच में ही बच्चे को लेकर वापस लौटते तो यह और भी हास्यास्पद लगता । डरा हुआ सोनू कभी थोड़ी सी आँखें खोलता और फिर बंद कर लेता ।
गुब्बारे छोड़े जा चुके थे । राम-लक्ष्मण का रथ आ चुका था । फटाक...धड़ाम...ठों...ठों...धूँ...धूँ... रावण जलने लगा । बांस की खप्पचियाँ दिखने लगीं जो कंकाल जैसी लग रहीं थीं । सोनू डरकर मम्मी से और जोर से चिपट गया । साँसें और तेज हो गयीं । वह पसीने से तरबतर हो गया ।
पापा-मम्मी ने घर आकर राहत की साँस ली । किन्तु सोनू अभी भी भय मुक्त नहीं हो पाया था ।
पापा पत्रिका लेकर पलंग पर लेट गए । मम्मी घरेलू कामों में जुट गई । सहमे हुए सोनू ने पट्टी-पेम निकली और पलंग के पास बैठ गया । पापा ने कनखियों से देखा, सोनू की पट्टी पर रावण बन रहा था । मूँछों से आच्छादित चेहरा । रस्सियों से बँधा रावण । सोनू को अपने काम में डूबा देख वे भी पत्रिका पढने में रम गए । ताकि उसके कार्य में बाधा उपस्थित न हो । फटाक… धड़ाम… ठों...ठों...धूँ...धूँ.... सहसा सोनू के मुँह से ऐसी ध्वनियाँ सुन दोनों चौंक पड़े । पापा पढ़ना भूल गए और मम्मी के हाथ का कम छूट गया । किन्तु सोनू दीन-दुनिया से बेखबर पेम से पट्टी पर बने रावण पर पूरी ताकत से चिरकट्टे खींचे जा रहा था । फटाक...धड़ाम...ठों...ठों...धूँ...धूँ... की आवाज के साथ वह तेजी से पेम को घिसे जा रहा था । लगता था उसके भीतर एक तूफ़ान उठा है जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था । उसकी साँसें धौंकनी हो रही थीं । वह पसीने से तरबतर हो रहा था । मम्मी पापा दोनों बच्चे के कार्य में बिना खलल डाले, भौंचके हो उसे देख रहे थे ।
आखिर तूफ़ान थमा । अब पट्टी पर चिरकट्टों के सफ़ेद घेरे दिखाई दे रहे थे । भयावह रावण जिसने उसे भयभीत कर रखा था, अब लुप्त हो चुका था ।
***
गोविन्द सेन