Sabreena - 13 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 13

Featured Books
Categories
Share

सबरीना - 13

सबरीना

(13)

देशद्रोही सैन्य कमांडर ताशीद करीमोव!

‘आप चिंता न करो। हमारे प्रोफेसर तारीकबी ने दुनिया देखी है। वे हिन्दुस्तानी रहन-सहन और खाने-पीने को बहुत अच्छी तरह जानते हैं। आपको सब कुछ तैयार मिलेगा। वो माहिर कुक हैं। वे सोवियत राज की आखिरी इंसानी पीढ़ी के नुमाइंदे हैं। हर चीज में परफेक्ट। अब, देखना आप चलकर।’ सबरीना की इन बातों से भूख के अहसास में कोई कमी नहीं आई। पर, सुशांत के दिमाग में जो घूम रहा था, वो उसका जवाब चाहता था।

‘ तुमने अपनी बहन का पता लगाने और उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया सबरीना ?’

‘ जो कर सकती थी, वो सब किया। पर, कुछ हासिल नहीं हुआ। रूस में ब्लादीमीर पुतिन के सत्ता में आने के बाद उन महिला कैदियों को छोड़ने का ऐलान हुआ जिन्होंने सोवियत संघ में बगावत की थी या किसी विद्रोह में शामिल हुई थी। स्तालिनोवा को भी छोड़ा गया। लेकिन, मास्को में उसके पास कोई ठिकाना नहीं था, जहां वो जा सके और मेरे पिता की कोई निजी संपत्ति नहीं थी। सोवियत संघ में उन्हें जो घर मिला था, उसे सरकार वापस ले चुकी थी। यूक्रेन में पैदा होने के नाते वो वहां की नागरिक बन सकती थी, लेकिन सैन्य बगावत में शामिल होने के कारण स्तालिनोवा के लिए यूक्रेन के दरवाजे भी बंद थे। इसके बाद उनकी जिंदगी मास्को की सड़कों पर ही कटी। वे वेश्यावृत्ति करने लगीं। पेट की आग और सिर पर छत की चाहत उनकी सारी मिलिट्री ट्रैनिंग पर भारी पड़ी। एक ऐसी लड़की मास्को की सड़कों पर शरीर बेच रही थी जिसने चेचेन बागियों के खिलाफ सोवियत सेना का झंडा ऊंचा रखा था। ऐसी लड़की देह के धंधे में थी, जिसके पिता उस देश की चार लड़ाइयों में शामिल हो चुके थे और उनके मेडलों की संख्या उनके सीने की चैड़ाई से कहीं अधिक थी।‘ ये सब बताते-बताते सबरीना भावुक हो गई। सुशांत को लगा कि उसने स्तालिनोवा के बारे में पूछकर गलती कर दी। सबरीना को दोबारा उसके अतीत में धक्का दे दिया। सुशांत हमेशा अपने संघर्षाें को याद रखता है, अपने दुखों की गठरी को जरा भी यहां-वहां नहीं खिसकने देता। लेकिन, सबरीना के सामने उसके दुख कितने नाकुछ और बौने हैं!

‘ अब कुछ मत बताओ सबरीना!, कुछ मत बताओ। ये सब कुछ मेरी कल्पना से बाहर है, सुनकर सहने और समझने की सीमा से बाहर है। मेरे पास कुछ भी ऐसा नहीं, जिसके बल पर मैं कह सकूं कि जिंदगी में ऐसा भी होता है। नहीं, प्लीज अब कुछ मत बताओ!’

‘ सुन लो प्रोफेसर, न जाने क्यूं आप पर भरोसा जग गया। सुन लो!‘ सबरीना ने बहुत भावुक ढंग से कहा। ऐसे में सुशांत की हिम्मत नहीं हुई कि वो उसे फिर मना कर दे।

‘ स्तालिनोवा ऐसे देश में वेश्या थी, जिसके लिए उसने अपनी जिंदगी को दांव पर लगाया था, जिंदगी को कुर्बान किया था। फिर एक दिन वो इसी अपराध में पकड़ी गई और उसे जेल भेज दिया गया। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मुझे मिलने नहीं दिया गया। बाद में पता चला, वो भी जेल में मर गई। किसी अज्ञात जेल में।’

‘ओह’ सुशांत ने गहरी सांस ली। सबरीना बोलती रही, कटु-स्मृतियों का भार वो सह नहीं पा रही थी।

‘ सब कुछ खत्म हो गया था। पर, मैं अपने पिता से मिलना चाहती थी। प्रोफेसर तारीकबी की कोशिश पर मुझे अपने पिता की कब्र पर जाने की अनुमति दी गई। मैं प्रोफेसर तारीकबी को लेकर साइबेरिया गई। हजारों वर्ग किलोमीटर में फैली जेल के एक हिस्से में इतनी कब्रे थीं कि उन्हें गिना नहीं जा सकता था। उन पर कोई नाम नहीं लिखा था, वो सब अनाम थे। बस इतनी ही राहत की बात थी कि सोवियत सत्ता से बगावत करने वाले सैनिकों और अधिकारियों की कब्रों पर नंबर लिखे गए थे। मैं अपने पिता की कब्र को उनके नंबर से पहचान पाई। उस नंबर के रजिस्टर में लिखा था-रूस की महान जनता के प्रजातांत्रिक अधिकारी को कुचलने में शामिल देशद्रोही, पूर्व सैन्य कमांडर ताशीद करीमोव!’ सबरीना चुप हो गई और उसने दूसरी ओर मुंह घुमा लिया, वो रोना नहीं चाहती थी। उसने दुखों के पहाड़ को ढोते-ढोते भावनाआंे को काबू करना भी सीख लिया है। सुशांत उसके पिता के प्रति श्रद्धाभाव से भर गया।

‘ प्रोफेसर, मैं अपने पिता की कब्र से लिपट गई। मेरा मन किया कि उसे खोदकर पिता को बाहर निकाल लूं। उनसे ढेर सारी बातें करूं। रूसी सत्ता को चीख-चीखकर बताऊं कि सोवियत सेनाओं का फोर स्टारर कमांडर यहां सोया हुआ है और कमीनों तुम कहते हो- देशद्रोही, पूर्व सैन्य कमांडर ताशीद करीमोव! मेरे पिता देशद्रोही नहीं थे, बिल्कुल नहीं थे।‘ सुशांत ने मन से महसूस किया कि कमांडर ताशीद करीमोव देशद्रोही नहीं थे। वे तो अपने देश को संक्रमण-काल से बचाना चाह रहे थे। वे उस लड़ाई में हार गए, पर वे देशद्रोही नहीं हो सकते।

‘सबरीना, तुम सच में उस महान इंसान ताशीद करीमोव की बेटी हो। सच में तुम उन्हीं की बेटी हो।‘

‘ प्रोफेसर, बीते सालों में कोई रात ऐसी नहीं होगी जब मैं सपने में अपने पिता को न देखती हूं। उस कब्र को न देखती हूं। मुझे लगता है, मैं साइबेरिया की उसी जेल में कैद हूं। जहां कोई दीवार नहीं है, पर आप कभी उस कैद से आजाद नहीं हो सकते। हर तरफ मौत है, जिन्होंने साइबेरिया लाकर छोड़ा है, वे ही जिंदगी को बचाने का रास्ता जानते हैं, लेकिन उन्हें कब्रोें से प्यार है, उन्हें जिंदा इंसानों से नहीं, लाशों से मुहब्बत है! प्रोफेसर! मैं चाहती हूं, अपने पिता को उस कब्र से आजाद कर दूं, बिना दिवारों की उस जेल से मुक्त कर दूं। उन्हें यूक्रेन में उनके बचपन के गांव लेकर जाउं, जहां उन्होंने अपने जीवन की पहली सांस ली थी, जहां हम तीनों बहनों का बचपन बीता, उसी मिट्टी को उन्हें सौंप दूं। पर.....’ सबरीना फिर चुप हो गई और अपनी हथेलियों से चेहरे को ढक लिया। सुशांत ने अपने भीतर भावनाआंे के बोझ को तैरता हुआ महसूस किया। उसने बिना कुछ सोचे, खुद को सबरीना के निकट पाया और उसका सिर अपने कंधे पर रख लिया। एक भी शब्द बोले बिना दोनांे शून्य में देखते रहे और गाड़ी ताशकंद की सड़कों पर बिछी बर्फ को रगड़ती हुई दौड़ती रही।

***