मम्मी पढ़ रही हैं
प्रदीप श्रीवास्तव
भाग-4
उसकी इस बात से मैं एकदम से हार गई खुद से। और नमन पर एक नज़र डाल कर कहा बेटा मन लगाकर पढ़ना नहीं टीचर जी डांटेंगे। मैं ऊपर हूं। अब तक मेरी साँसें धौंकनी सी चलने लगी थीं। गहरी साँसे, और शरीर में जगह-जगह बढ़ते जा रहे तनाव को लिए मैं ऊपर कमरे के दरवाजे के बीच पहुंची ही थी कि उसने बेहिचक मेरा हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया। मैं कुछ समझती कि इसके पहले ही उसने झुक कर मुझे काफी नीचे से पकड़ कर ऊपर उठा लिया। मेरा चेहरा एकदम उसके चेहरे के सामने था। मैं एकदम जैसे संज्ञाशून्य सी उसे देखे जा रही थी। मेरे दोनों हाथ उसके कंधों पर थे। मेरी आंखें देखते हुए उसने कहा ,मैं जानता था तुम मना नहीं कर सकती थी, क्योंकि तुम्हें भी मेरी उतनी ही जरूरत है जितनी मुझे तुम्हारी। हम दोनों किसी रिश्ते का कोई बोझ नहीं ढोएंगे, बस एक दूसरे को जीवन का मजा देंगे, लेंगे।
-तुमको वो ऐसे उठाए हुए था और तुमने उसे एक बार भी नीचे उतारने के लिए नहीं कहा।
-सुनो तो पहले, मैं उस समय अजीब सी हालत में थी। बस गहरी-गहरी सांसें लिए जा रही थी, फिर अचानक ही उसने मेरा निचला होंठ अपने होठों के बीच में लेकर कसके चूस लिया। मैं एकदम गनगना उठी ऊपर से नीचे तक। फिर कंधे पर रखे अपने दोनों हाथों से उस पर दबाव डालने लगी नीचे उतारने के लिए। इस पर उसने जानबूझ कर इस तरह नीचे उतारा धीरे-धीरे कि मेरी साड़ी सिकुड़ती हुई उसके ही हाथ में फंसी रह गई। मैं एकदम बेपर्दा हो जाने के कारण एकदम से कसमसा उठी तो उसने मुझे बिना कोई मौका दिए एकदम गोद में उठा लिया जैसे बच्चे को दोनों हाथों से गोद में उठाया जाता है। फिर लेकर बेड पर आ गया।
-वह यह सब करता रहा और तुम कुछ बोल नहीं पा रही थी या कुछ कर नहीं रही थी।
-मैं कर तो रही थी, वह जैसे जो कर रहा था मैं करने दे रही थी तभी तो वह कर रहा था।
-फिर इसके बाद तुम दोनों ने खूब पढ़ाई की तनमन की। नहीं ये कहें कि सिर्फ़ तन की।
-हाँ सिर्फ़ तन की। उसने पहले ही कह दिया था कि हम किसी रिश्ते का बोझ नहीं ढोते।
-वाकई मस्त कर देने वाली है तुम्हारी पढ़ाई। जब तुमसे सुनकर इतना सुरूर पैदा हो जा रहा है तो यह सब करते हुए तुमने तो सारे जहां का मजा लूट लिया होगा यार, क्यों है न।
-अब जो चाहो कह सकती हो।
-खैर उसकी इस बात में कितना दम है कि तुम्हें सेक्स का जो मजा पति नहीं दे सकते वह वो दे सकता है।
-पति-वो दोनों की अपनी-अपनी बात है। दोनों अपनी जगह एक-दूसरे से अलग हैं।
-मैं मतलब नहीं समझी।
-मतलब पति में कोई जल्दबाजी नहीं होती। घर में आराम से अपने मन पसंद खाने का निश्चिंत होकर मजा लेने जैसा अनुभव होता है। जबकि उसके साथ अनुभव कुछ ऐसा जैसे किसी शानदार-शादी पार्टी में तरह-तरह के पकवानों का जल्दी-जल्दी मजा लेना। बस कह सकते हैं दोनों का अपना ही मजा है। एक घर का खाना है, दूसरा बाहर का फास्ट फूड
-वाह यार क्या बात कही है। ये सुनकर तो मेरा भी मन ललचाने लगा है। खैर ये पढ़ाई कितनी देर तक चली। जो नए-नए व्यंजन चखे उनके बारे में बताओगी कुछ।
-लगता है मन तुम्हारा भी बल्लियों उछल रहा है, क्यों?
-क्यों नहीं उछलना चाहिए। दुनिया में दावतें कौन नहीं उड़ाना चाहता।
-बिल्कुल, तुम भी उड़ाओ, ढूंढों कोई पार्टी।
-खैर बताओ आगे क्या हुआ?
-बताना क्या यार जो बातें हम लोग सुनते हैं न कि टी.वी., इंटरनेट ने नई जेनरेशन को अपनी पिछली जेनरेशन से मीलों आगे कर दिया है, मैं तो कहती हूं मीलों नहीं सैकड़ों मील आगे कर दिया है। पोर्न साइट्स, लिटरेचर जो भी हैं दुनिया में वह उन सब से जुड़कर पुरा मास्टर हो गया है सेक्स में। खुद के साथ-साथ अपने पार्टनर को भी कैसे पूरा मजा दिया जाए इसका उसे पूरा ज्ञान है। जिसका अमूमन हमारे पतियों को नहीं होता।
-क्या कह रही हो? ऐसा क्या किया उसने।
-उसने जो भी किया, जैसा भी किया, पति की किताब में उसका ज़िक्र ही नहीं है। इसलिए उस तरह के अनुभव की उनके साथ कल्पना ही नहीं की जा सकती। उसने उस एक घंटे में ही हर बार एक नयापन एक नई ताज़गी से भरा अनुभव दिया। पति की तरह हर अध्याय एक सा नहीं था।
-अरे यार साफ-साफ बताओ न कि हर बार वो क्या नया करता था कि तुम एकदम उसकी दिवानी हो गई हो। पति भी मर्द है, वो भी मर्द है। आज के ही युग के हैं दोनों फिर ऐसा क्या कि वो बिल्कुल अलग है, दिवाना कर देने वाला है।
-नहीं हिमानी यह गलत है कि दोनों आज के मर्द हैं। पति उस समय की सोच रखने वाला है जब इंटरनेट, फेसबुक, चैटिंग, ट्विटर जैसी चीजों की पैठ हमारे जीवन में नहीं थी। हम घर में पकौड़ी बना के खा लिया करते थे। पिज्जा, के.एफ.सी. के चिकन, मॅकडोनल्ड्स का मजा नहीं जानते थे और टीचर इंटरनेट, फेसबुक, चैटिंग, ट्विटर के जमाने का है। वह पकौड़ी नहीं पिज़्जा, चिकन, मॅकडोनल्ड्स की जेनरेसन का है। हर क्षण एक बदलाव भरा अनुभव, खुलापन उसकी ज़िंदगी है। उसने इन चंद दिनों में ही बता दिया, करके दिखा दिया कि हमारे पति ही थकाऊ, एकरस ज़िन्दगी के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं बल्कि हम भी इसके लिए बराबर के ज़िम्मेदार हैं, बल्कि हम लोग ज़्यादा हैं।
-क्या?
-हां, जरा सोचो न हम लोग क्या करते हैं, अपने पतियों के साथ एकांत क्षणों में। अभी शादी के दस साल भी नहीं हुए लेकिन जरा बताओ तो कितनी बार खुलकर बिस्तर पर उनके साथ होते हैं। अपने मन की करते हैं या वो जो कहते हैं वो करते हैं। बस एक ही रटी-रटाई ज़िंदगी रोज जीते हैं। परिणाम यह होता है कि चंद बरसों में ही हम बोर हो जाते हैं। चीखते चिल्लाते हैं बच्चों पर। एक चिड़-चिड़ी ज़िंदगी जीते हैं। उस दिन मैं तुमसे बोल रही थी न कि नमन जब तक सोता नहीं परेशान किए रहता है। लेकिन इसने जब से ज़िन्दगी के कुछ पन्ने नए अंदाज में पढ़ाए तबसे अब उसी नमन की शैतानियां खिजाती नहीं, चिड़-चिड़ा नहीं बनातीं।
मैं उसके बेबाक अंदाज, खुलेपन, बिंदास आदत और इस आदत में छिपे मौज मस्ती के हिलोरें मारते सागर को देखकर एक दम अचंभित हूं। और उसी से इतनी हिम्मत मिली है कि ये कह पा रही हूँ कि इस मस्ती भरे सागर में डूबते-उतराते रहना चाहती हूँ। मैं जी भर के ज़िंदगी जीना चाहती हूं। और तुमसे भी कहती हूँ बड़ी अनमोल है ज़िंदगी और साथ ही बहुत थोड़ी भी। यूं बर्बाद मत करो। वक़्त निकल जाने के बाद आंसू बहाने की मूर्खता करके ज़िन्दगी को क्यों बर्बाद करना चाहती हो।
-तुम कहना क्या चाहती हो शिवा?
हिमानी ने अर्थभरी नज़र से शिवा की आँखों में झांकते हुए पूछा तो शिवा ने उसके चेहरे की ओर करीब जाते हुए कहा -
-तुम भी मेरी तरह इस मौज-मस्ती के सागर में डूबो। खूब गहरे डूबकर पूरा मजा लो। देखो कितनी शानदार है ये ज़िंदगी। जिसे हम लोग अपने हाथों से उबाऊ-थकाऊ बना कर दिन भर हाय-हाय कर रही हैं।
-ये तुम क्या कह रही हो, इस क्षण भर की मौज-मस्ती में कहीं बात पति तक पहुंच गई तो ज़िंदगी के नर्क बनते भी देर नहीं लगेगी। हमारा अच्छा खासा खुशहाल परिवार इस नर्क की आग में जलकर क्षण में राख हो जाएगा।
-ओफ्फ इतनी देर में तुम कुछ नहीं समझ पाई। ज़िंदगी नर्क तब बन जाती है जब हम पति के रहते किसी और से भी इश्क लड़ाने लगते हैं। पति के हिस्से का टाइम प्रेमी के बारे में सोचने, उससे मिलने की जुगत में लगा देते हैं। बच्चों की तरफ ध्यान नहीं देते। जब कि मैं जिस बारे में कह रही हूं वह इश्क है ही नहीं। इसके उलट एक ऐसी चीज है जिसमें किसी चीज़ की चिंता नहीं है। बल्कि बेफ़िक्री है। जिस में कुछ देर की मौज मस्ती के बाद ज़िंदगी खिल-खिला उठती है। हम एक नई ऊर्जा के साथ अपने पति-बच्चों के काम में लग जाते हैं। हमारा घर और खुशहाल हो जाता है। सोचो इस बात के बारे में जल्दी सोचो। कहां इससे हमारी ज़िंदगी नर्क बनेगी। हमारी ज़िंदगी में सिर्फ मज़ा ही मज़ा होगा। बोलो होगा कि नहीं।
यह कहते-कहते शिवा ने हिमानी को दोनों हाथों से पकड़कर हल्के से हिला दिया और आंखों में बराबर देखती रही। इसपर हिमानी के भी दोनों हाथ बरबस ही शिवा के दोनों कंधों पर पहुंच गए। कुछ क्षण दोनों एक दूसरे को देखती रहीं फिर हिमानी ने गंभीर स्वर में कहा -
-शिवा तुम्हारी बातों, तुम्हारे काम से मुझे बड़ा डर लग रहा है।
-पहले मैं भी तुम्हारी तरह डर रही थी। मगर कल के उस छोकरे ने दो-चार दिन में ही जीवन की एक नई, एकदम अनोखी फिलॉस्फी सामने रखकर पलभर में डर छू-मंतर कर दिया। वो इतना सुलझा हुआ है कि साफ कहता है कि तुम अभी कहो तो मैं अभी चला जाऊंगा, दुबारा छाया भी नहीं देखूंगा तुम्हारी। मैंने कहा इतना आसान है तो बोला कितनी बार कह चुका हूं कि छोड़ना वहां मुश्किल होता है जहां इमोशनली अटैचमेंट होता है। यहां इमोशन की बात छोड़ो सच यह है कि फिजिकल रिश्ता भी नहीं है। यहां बस एक ही फंडा है कि जहां ज़िंदगी का मजा मिल जाए लो और अगली बार मिले इसके लिए आगे बढ़ चलो।
-शिवा ऐसा आदमी हमें यूज भी तो कर सकता है। कल को ब्लैकमेल करके न जाने क्या-क्या कराने लगे।
-ओफ्फ हिमानी अब इतना भी क्या डरना। किस्मत में यदि यही सब लिखा होगा तो पति भी यही सब कर सकता है। हम इंसान है, हम क़दम आगे बढ़ाएंगे नहीं तो जीवन में आगे बढ़ेंगे कैसे? एक जगह ठहरे रह जाएंगे मकान की इन दीवारों की तरह। जिसमें चाहे जितना रंग रोगन करा लो एक वक्त के बाद लोना लगने ही लगता है। कहते हैं न कि चलता पानी कभी नहीं सड़ता। ठहरा पानी चंद दिनों में ही सड़ने लगता है। इसलिए कहती हूं कि एक बार ही सही कोशिश तो करो, क़दम तो बढ़ाओ हिमानी क़दम तो बढ़ाओ।
-अरे शिवा क्या क़दम बढ़ाऊँ। एक बार को तुम्हारी बात मान भी लूं तो तुम्हें तो संयोग से मिल गया है विवेक ओबरॉय। मैं कहां ढूढ़ने जाऊं? कहीं अनाड़ी का खेल खेल का सत्यानाश न हो जाए।
-तुम्हें भी ढूंढ़ने की ज़रूरत कहां?
-क्यों?
-क्योंकि वह विवेक ओबरॉय उतना ही तुम्हारे लिए भी तैयार है जितना मेरे लिए रहता है।
-मतलब... मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझ पा रही।
-देखो बात ध्यान से सुनना-समझना, उतावलापन, गुस्सा वगैरह कुछ नहीं करना।
-मुझमें न कोई गुस्सा है और न ही कोई उतावलापन। मगर बात साफ-साफ करो। साफ कहूं तो मैं अभी तक तुम्हारी कुछ बातों
से हैरान ज़रूर हो जा रही हूं क्योंकि आज के पहले मैं तुम्हें जो समझती थी उससे उलट इस समय मैं तुम्हारी बिल्कुल उलट
दूसरी तस्वीर देख रही हूं।
-पहले तुम जो तस्वीर देख रही थी मेरी वही तस्वीर थी। आज जो देख रही हो वह तब थी ही नहीं। और मैं साफ-साफ ही कह रही हूं कि तुम्हें कुछ ढूढ़ने-ढाँढ़ने की जरूरत ही नहीं। जो विवेक मेरा है वही तुम्हारा भी है। वह तुम्हारे फिगर का भी दिवाना है। बस तुम्हें अपने क़दम बढ़ाने हैं। वो तो तुम्हें बांहों में भरने को न जाने कब से तैयार है।
-अरे , तुम ये क्या कह रही हो। मैंने तो कभी उससे बात ही नहीं की। तुमसे किसने बताया यह सब।
-उसी ने। मैंने कहा न कि वो एकदम अलग तरह का इंसान है। भीड़ से एकदम अलग।
-क्या कहा उसने?
-दो दिन पहले रात में फ़ोन पर वह बात कर रहा था। असल में पहले मिलन के बाद से रात में इनसे बात करने के बाद उससे रोज सोने जाने तक बात होती रहती है। वह तरह-तरह की बड़ी दिलचस्प बातें करता है। उस दिन मैंने उससे पूछा कि ये बताओ कि मैं तुम्हारे जीवन में आने वाली पहली औरत हूं या पहले भी कोई आ चुका है। तो वह हंसकर बोला -
-कोई नहीं, कई और आ चुकी हैं।
-मैंने नाम पूछा तो वह नहीं बताया। सिर्फ़ इतना बताया कि तीन औरतों से मिला। लेकिन कब तक मिला, कब तक मिलता रहा याद नहीं। मैंने कहा तुमने अपने से बड़ी उम्र की औरतों से ही संबंध क्यों बनाए। तुम्हें कोई हम उम्र लड़की नहीं मिलती क्या? तो उसने तमाम बातें बताते हुए कहा कि यह महज एक संयोग है। फिर उसने तुम्हारी बात शुरू कर दी। मुझसे कहा कि तुम्हारा कुछ ज़्यादा ही गदराया बदन मुझे बहुत मजा देते हैं। फिर तुम्हारा नाम लेता हुआ बोला कि वो मुझे बेहद अच्छी लगती है। दुबली-पतली, इनका अपना एक ख़ास मजा होता है। सोचो एक ही बेड तुम दोनों और मैं कितना मजा आएगा। एक अमेजिंग वर्ल्ड में होंगे हम लोग, इसके बाद हम तीनों के बीच सेक्स की क्या-क्या स्थिति हो सकती है। उसने ऐसी अकल्पनीय दुनिया सामने रखी कि मैं अजीब सी दुनिया में पहुंच गई। उसकी बातों ने मुझे अकल्पनीय दुनिया की सैर करा दी थी।
-शिवा-शिवा, क्या हो गया है तुझे। उस एक तक तुम्हारे संबंध किसी तरह समझ पा रही हूं। मगर अब आगे तुम दोनों और जो करने को उतावले हो उसे मैं समझ नहीं पा रही इसे क्या नाम दूं। ग्रुप सेक्स के बारे में पढ़ती सुनती हूं मगर जो कह रही हो वह तो समलिंगी, विपरीत लिंगी, उभयलिंगी, सामूहिक सेक्स सब है जिसमें तुम तैरना डुपकी लगाना चाहती हो।
यह कहते हुए हिमानी के चेहरे पर अच्छा खासा तनाव उभर आया था। जिसे शिवा तुरंत भांप गई। बात कहीं हाथ से निकल न जाए इसलिए अपनी आवाज़ में और नम्रता लाते हुए बोली।
-मैं और वह सिर्फ़ जीवन को जीने की बात कर रहे हैं। वो जो कहता है उसके हिसाब से यदि तुम जीवन को इतने टुकड़ों में बांटोगी तो सिवाय कष्ट परेशानी के कुछ नहीं पाओगी।
-तो तुम क्या चाहती हो कि मैं तुम दोनों के साथ हो जाऊं।
-नहीं हम दोनों यह कुछ नहीं कहते। हम सिर्फ़ यह चाहते हैं कि यदि तुम ठीक समझो तो ही हमारे साथ आओ। हम दोनों के बीच तुमको लेकर बातें अक्सर होती हैं। लेकिन कभी यह नहीं सोचा कि तुमसे इस बारे में बात भी करूंगी। तुम अचानक ही हम दोनों के बीच उस स्थिति में आ पहुंची। और बातचीत में मैंने देखा कि तुम पूरा रस लेकर सुन रही हो बल्कि मुझे लगा कि तुम भी कहीं कुछ ऐसा ही मजा लेना चाहती हो तो बात कहने की हिम्मत जुटा पाई। और सच कहना कि तुम्हारे मन में क्या ऐसा कुछ एकदम नहीं उठा, बोलो, बोलो हिमानी तुम्हें मेरी कसम है।
हिमानी चुप उसे देखती रही तो शिवा ने उसे कंधों पर फिर से पकड़ लिया और दबाव देकर पूछने लगी।
-हिमानी जवाब दो। क्या तुममें ऐसी कोई भावना कभी पनपी नहीं या मैं जो कर रही हूं उसे तुम गुनाह मान रही हो। मुझे जब तक जवाब नहीं दोगी तब तक मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं।
शिवा के जिद के आगे अंततः हिमानी झुकी और कहा -
-तुम कोई गुनाह नहीं कर रही हो। रही बात मेरी तो मैं भी इंसान हूं एक औरत हूं। मेरे पति ने एक मुकदमे का जिक्र करते हुए एक बार कहा था सेक्स के बारे में कि यह ह्यूमन नेचर है। इंसान ने इसे टैबू का रूप देकर इसे एक गंदी चीज का रूप दे दिया है। यह भी तो ईश्वर की बनाई चीज है। फिर गंदी कैसे हो गई? इसे नैसर्गिक रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। हां इतना भी इसके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए कि यह लत या बीमारी बन जाए।
-वाह हिमानी, वाह मुझे मेरा जवाब मिल गया और नसीहत भी कि इसे बीमारी नहीं बनने देना है। सब कुछ लिमिट में होना चाहिए।
कहते-कहते अचानक ही शिवा ने हिमानी को बांहों में जकड़ लिया। हिमानी की तरफ से भी कुछ अनमना सा पल भर का ही प्रतिरोध था। कुछ देर बाद दोनों अलग हुईं तो शिवा बोली -
-तुम्हारे होंठों को कुछ नहीं हुआ है हिमानी, यह उस सुख की छाया मात्र है। तुम्हारे चेहरे पर छायी सुर्खी, यह फूलती सांसें साफ कह रही हैं कि तुम भी इस अनजान सुख को पाकर आश्चर्य में हो। कल जब दिव्यांश, नमन स्कूल में रहेंगे तब तुम यहां आ जाना। फिर हम तीनों मजे की उस दुनिया की सैर करेंगे। जिसकी अभी हम सिर्फ़ कल्पना ही कर पाएंगे। एक बात और कहूंगी कि कल जब तक तुम आओगी नहीं तब तक तुम खोई-खोई सी रहोगी। रात भर सो न सकोगी। पति की बांहों में होगी तो भी कल जल्दी आए इसके लिए तड़पती रहोगी। तुम्हारा चेहरा यही सब कह रहा है।
शिवा के चुप होने पर हिमानी ने एक भरपूर नजर उसके चेहरे पर डाली। फिर अस्त-व्यस्त हुए कपड़ों को एक बार फिर ठीक किया और कमरे से बाहर निकलने को मुड़ चली, तभी शिवा ने कहा रुको। वह रुक कर जैसे ही मुड़ी शिवा ने फुर्ती से उसके होठों को एक पल को अपने होंठो के बीच लेकर भरपूर रस पान किया। फिर छोड़ते हुए बोली,
-मुझे चिंता थी कि कल आने तक तुम कैसे अपना समय काटोगी। अब मैं निश्चिंत रहूंगी, क्योंकि यह ‘किस’ तुम्हें कल तक सम्हाले रहेगा।
हिमानी चेहरे पर अब तक कायम सुर्खी को लिए घर के लिए मुड़ चली। उसके दिलो-दिमाग में इस अप्रत्याशित अनुभव ने एक अंधड़ चला रखा था। तरह-तरह के प्रश्नों के थपेड़ों से वह चोटिल होती सी महसूस कर रही थी। यह क्या किया मैंने, कल आऊं कि न आऊं, मुझमें क्या है कि वह मुझ पर मरा जा रहा है? शिवा जैसा बता रही है क्या वह वाकई ऐसा अद्भुत अनुभव देता है। ऐसे अनगिनत क्यों के उत्तर ढूंढती वह बढ़ी जा रही थी। क़दम घर की ओर कुछ ऐसे बढ़ रहे थे मानो पीछे से खूब तेज़ हवा के झोंके धकेल रहे हों ।
समाप्त