Sabreena - 12 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 12

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सबरीना - 12

सबरीना

(12)

कंबल भी ओढ़ लो प्रोफेसर

सुशांत सोफे से उठा और फिर बैठ गया। जैसे सबरीना द्वारा दी गई आधे घंटे की डेडलाइन को चुनौती देना चाहता हो। पर, क्या फायदा! दरवाजा तो खोलना ही था। न जाने क्या कर बैठे! मरे मन से सुशांत उठा और रूम की तरफ बढ़ गया्र। दरवाजा खोला तो सबरीना तैयार बैठी थी। सुशांत ने पूछा-‘तुम जा रही हो ?’

‘ मैं नहीं, हम जा रहे हैं। मैंने शाम को जब प्रोफेसर तारीकबी को फोन किया तो तभी उनसे घर आने के लिए पूछ लिया था। अब वहीं चलेंगे ओर सुबह प्रोफेसर तारीकबी के साथ अलीतेत के लिए निकलेंगे। डाॅ. साकिब मिर्जाएव भी स्टूडेंट्स को लेकर वहीं आएंगे।’

‘ अब मेरा मुंह क्या ताक रहे हैं! जल्दी से तैयार होइये, फिर निकलते हैं।‘ सबरीना ने अपनी बात का पुछल्ला मेरी ओर उछाला। सुशांत सबरीना को देख रहा था। अपनी मां की कलात्मक अभिरुचि उसमें साफ-साफ दिखती थी। और पिता की संगत में उसने जो कुछ सीखा था वो उसके त्वरित निर्णय लेने में झलकता था। वो हमेशा अपने दुखभरे अतीत पर आवरण डालकर रखती थी। उसके खिलंदड स्वभाव को लेकर उसके बीते दौर के बारे में अंदाज लगाना मुमकिन नहीं है। सुशांत उसे कहना चाह रहा था कि तुम सुंदर लग रही हो, पर उसने कहा-‘तुम हमेशा से ही ऐसी हो क्या ? हवा के घोड़े पर सवार! कम से कम मुझ से तो पूछ लेते कि मेरा प्रोग्राम क्या है?

‘ इसमे पूछने की कौन-सी बात है, आप मेहमान हैं और हम मेजबान। प्रोग्राम तो मेजबान को ही तय करना है। अब देर मत कीजिए। रास्ते में आपको गहरी नींद सोता हुआ ताशकंद भी दिखाती चलूंगी।’

रात में ताशकंद देखने की बात सुशांत को अच्छी लगी और उसने बाहर की ठंड का मुकाबला करने के लिए जितने कपड़े संभव थे वो सब लपेट लिए। गर्म शर्ट के साथ अपना पसंदीदा बंद गले का कोट पहना, फिर मफसर को गले के चारों ओर कसा। लेकिन इतना कुछ काफी नहीं था, इसके ऊपर ओवरकोट भी डाल लिया। फिर उसने शाॅल के बारे में भी सोचा। शायद, सबरीना उसकी बात को ताड़ गई-‘ प्रोफेसर, ये जो रात में ओढ़ने के लिए कंबल है, इसे भी ओढ़ लो। तब उम्मीद है, ठंड का मुकाबला कर पाओगे!‘ सबरीना के इस कटाक्ष के बाद सुशांत ने ओवरकोट के साथ शाॅल डालने के इरादे को छोड़ दिया। वैसे भी सबरीना ने लंबी स्कर्ट के ऊपर एक ऊनी कोट और स्ट्राल ही डाला हुआ था। हालांकि, उसके गम बूट घुटनों तक के थे जो देखने में स्पोट्र्स शू जैसे लग रहे थे। उसने एक बार फिर छेड़ने के अंदाज में कहा, ’ चाहें तो एक बार शीशे में शक्ल भी देख सकते हैं।’ सुशांत ने कोई जवाब नहीं दिया और दोनों होटल से बाहर निकल गए।

शहर खामोश था। ठंड में दुबका हुआ, इक्की-दुक्की गाड़ियां सड़कों पर थी। जानकार तो यही कहते हैं किसी पराये देश में रात में बेवजह सड़कों पर नहीं निकलना चाहिए। पर, सबरीना साथ है तो सुशांत को यकीन है कि वो किसी भी हालात को संभाल सकती है, संभाल लेगी। सड़क के दोनों ओर लाइटें बमुश्किल अंधेरे का सामना कर पा रही हैं। हिन्दुस्तान के शहरों में कुत्तों के भौंकने से लेकर कहीं दूर से आती हुई ट्रेन की आवाज तक शहर के चरित्र का हिस्सा होती है, लेकिन यहां कुछ नहीं है। बांझ सन्नाटा चारों तरफ गूंज रहा है और गाड़ी की आवाज उसमें कहीं गुम होती दिखती है। दोनों ने ही सुबह से कुछ खाया-पीया भी नहीं है। सुशांत को उम्मीद है कि शायद प्रोफेसर तारीकबी के यहां कुछ खाने को मिलेगा। हालांकि, खाने को लेकर उसके सामने हमेशा संकट बना रहता है।

मां ने बचपन में बताया, ‘मांस खाने वाला नर्क में जाता है, अंडे नहीं खाने चाहिए, इनसे बच्चे निकलते हैं। और लहसुन, प्याज, हींग....ये तो राक्षसों के खाद्य हैं! इन्हें छूना भी पाप है।’ इन सबको लेकर सुशांत के मन में जो डर बैठा, वो आज तक नहीं निकल पाया। उसने कई बार कोशिश की, लेकिन पेट ने हर बार बगावत कर दी। अब वो चाहे देश में रहे या विदेश में, उसके पास उबले हुए चावल और उबली हुई दाल-सब्जी का विकल्प ही बचता है। और जब सुशांत उबली हुई दाल-सब्जी के बारे में सोचता है तो वो सब कुछ भारत की तरह नहीं होता। उसे शंघाई की फूडान यूनिवर्सिटी का वाकया याद आ गया। उसने अपने मेजबानों को खासतौर से बताया हुआ था कि वो वेजीटेरियन है। अंडा भी नहीं लेता। आयोजकों ने अक्षरशः उसकी इच्छा का पालन किया और फिर जो कुछ खाने में सामने आया उसे देखकर सुशांत का मन जार-जार रो देने को करने लगा। एक बड़े कटोरे में उबली हुई सब्जियां लाई गई। इसमें सब कुछ था, आलू, मूली, गाजर, पालक और कद्दू भी। जो सब्जियां चीन में मिलती थीं, वो सब लेकर उन्हें पानी में उबाल दिया गया था। कद्दू के साथ मूली पानी में तैर रही थी और गाजर के साथ पालक लिपटा हुआ था। सुशांत अपने मेजबानांे को ये नहीं समझा पाया कि कौन-सी सब्जी को एक साथ और कौन-सी को अलग पकाया जाता था। वो नहीं समझा पाया कि उबले होने का अर्थ पानी में तैरता होना नहीं है। खैर, उसने बेजबानांे का दिल रखने के लिए उस कटोरे से कद्दू और आलू के पीस निकाले और उन्हें चावल के साथ खा लिया, नमक और काली मिर्च छिड़ककर। इस वाकये को सुनकर सबरीना खूब हंसी।

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