YOU ARE NOT WITHIN MY REACH in Hindi Poems by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | प्रभु तू मेरे बस की बात नहीं है

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प्रभु तू मेरे बस की बात नहीं है

मैं यहाँ पे तीन कविताओं को प्रस्तुत कर रहा हूँ (1) प्रभु तू मेरे बस की बात नहीं हैं (2) जग में डग का डगमग होना ,जग से है अवकाश नहीं और (3) मैंने भी देखा एक कुत्ता.

(1)

प्रभु तू मेरे बस की बात नहीं हैं

प्रातः काल उठ उठ कर नित दिन,
धरूँ ध्यान स्वांसों पर प्रति दिन,
अटल रहूँ अभ्यास करूँ मैं,
प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,
तू मेरे बस की बात नहीं है।

ध्यान उतर कर जब आता है,
किसक्षण मन ये खो जाता है,
होश ध्यान में पकड़ूँ कैसे?
प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,
तू मेरे बस की बात नहीं है।

अंतस्तल आवाज सुनाती,
झिंगुर सी जब साज बताती,
सोते जगते ना मैं झुँझलाऊँ,
प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,
तू मेरे बस की बात नहीं है।

बंद आँखों में दिप जले जब,
जो सोचूँ वो स्वप्न फले जब,
बिना नींद के मैं रह पाऊँ,
प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,
तू मेरे बस की बात नहीं है।

स्वप्न जगत लगने लगता है,
जब अंतर जगने लगता है,
मैं मुझसे फिर ना ललचाऊँ,
प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,
तू मेरे बस की बात नहीं है।

तू माँगे आजनम प्रतिक्षा,
सहनशीलता और तितिक्षा,
कर पाऊँ ना सम्बल संचय,
प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,
तू मेरे बस की बात नहीं है।

(2)

जग में डग का डगमग होना ,जग से है अवकाश नहीं

जग में डग का डगमग होना ,

जग से है अवकाश नहीं ,
जग जाता डग जिसका जग में,

जग में है सन्यास वहीं ।

है आज अंधेरा घटाटोप ,

सच है पर सूरज आएगा,
बादल श्यामल जो छाया है,

एक दिन पानी बरसायेगा।
तिमिर घनेरा छाया तो क्या ,

है विस्मित प्रकाश नहीं,
जग में डग का डगमग होना

जग से है अवकाश नहीं।

कभी दीप जलाते हाथों में,

जलते छाले पड़ जाते हैं,
कभी मरुभूमि में आँखों से,

भूखे प्यासे छले जाते हैं।
पर कई बार छलते जाने से,

मिट जाता विश्वास कहीं?
जग में डग का डगमग होना,

जग से है अवकाश नहीं।

सागर में जो नाव चलाये,

लहरों से भिड़ना तय उसका,
जो धावक बनने को ईक्षुक,

राहों पे गिरना तय उसका।
एक बार गिर कर उठ जाना

पर होता है प्रयास नहीं,
जग में डग का डगमग होना

जग से है अवकाश नहीं।

साँसों का क्या आना जाना

एक दिन रुक हीं जाता है,
पर जो अच्छा कर जाते हो,

वो जग में रह जाता है।
इस देह का मिटना केवल,

किंचित है विनाश नहीं।
जग में डग का डगमग होना,

जग से है अवकाश नहीं।

जग में डग का डगमग होना ,

जग से है अवकाश नहीं ,
जग जाता डग जिसका जग में,

जग में है सन्यास वहीं ।

(3)

मैंने भी देखा एक कुत्ता

मैंने भी देखा एक कुत्ता,
यदा कदा हीं सीधा होता।
इसपे उसपे धौंस जमा के,
जब भी चलता पूँछ उठा के।

ना जाने क्या सनक चढ़ी है,
दो तीन बोतल भाँग चढ़ी है।
आँख दिखाकर करता बातें,
क्या हो दिन कि क्या हो रातें।

नाहक हीं सब पे गुर्राये,
बिना बात के हीं चिल्लाये।
जब कानों पे फ़ोन लगाए,
सी.एम.से बातें कर जाए।

जैसे पॉकेट में सब इसके,
पी.एम.घर आते हों इसके।
पर कुत्ते का अजब उपाए,
कानों पे कोई चपत लगाए।

सनक चढ़ी जो फु हो जाए,
अकल ठिकाने इसके आए।
पिछवाड़े कोई धर दे जूता,
मैंने भी देखा एक कुत्ता।