मम्मी पढ़ रही हैं
प्रदीप श्रीवास्तव
भाग-3
रिसीव करूं न करूं यही सोचते-सोचते रिंग खत्म हो गई। इसके बाद ऐसा तीन बार हुआ।कॉल रिसीव न करने पर उसने एस.एम.एस. किया कि फ़ोन नहीं उठाएंगी तो मैं अभी घर आ जाऊंगा। मैं जानता हूं कि आप जाग रही हैं और यह भी जानता हूं कि आप मुझे रोक भी नहीं पाएंगी। यह पढ़कर मैं बेहद पशोपेश में पड़ गई। उसकी यह बात सच थी कि मैं उसी के कारण सो नहीं पा रही थी। यह उधेड़बुन और बढ़ती कि इसी बीच फिर उसकी कॉल आ गई। रिंग सुनते ही मुझे न जाने क्या हो गया कि मैंने एक झटके में कॉल रिसीव कर बोल दिया हैलो तो उसने तुरंत ही करीब करीब हंसते हुए कहा।
मेरा अनुमान सही था कि तुम जाग रही हो, मेरे लिए जाग रही हो। उसकी इन बातों से मैं समझ गई कि वह बेहद तेज़ तर्रार और बिंदास किस्म का है। वह बहुत अच्छी तरह जानता है कि कब क्या कितना कहना है। इसे आधे अधूरे मन से रोकना संभव नहीं और मैं पूरे मन से कोशिश कहां कर रही हूं। कुछ सेकेंड चुप रहकर मैंने कहा ,क्या बकवास कर रहे हो तुम! आखिर तुम चाहते क्या हो? इस पर वह कुछ गंभीर आवाज़ में बोला। ‘हां।’ तुम्हारी ‘हां’ चाहता हूं।
उसकी इस बात पर मैं कुछ असहज सी हो गई और थोड़ा अटपटाते हुए कहा ‘किस बात की ‘हां’ चाहते हो’ इस पर वह बोला ‘जानते हुए क्यों अनजान बन रही हो।’ सच यही था कि मैं जान रही थी कि वह किस बात की हां चाह रहा था, मैं जानबूझकर अनजान बन रही थी।
-तो वो जो चाह रहा था उसके लिए तुमने हां कर दी।
-नहीं... सुनो तो पहले लेकिन पहले यह बताओ कि क्या तुम समझ गई कि वह किस बात के लिए हां चाहता था।
-हां जितना तुमने बताया उससे एकदम साफ है कि वह तुम्हारे साथ सेक्स के लिए ही हां चाहता था। जिस तरह दिन में उसने तुम्हारे साथ व्यवहार किया। कमरे में तुम्हारी साड़ी उलट कर तुम्हें बेपर्दा कर दिया और फिर तुम नमन के चलते वहां से किसी तरह भागी। लेकिन इस सबके बावजूद उसे घर से डांट-डपट पर बाहर नहीं खदेड़ा। इससे वह यह यकीन कर बैठा कि तुम स्वयं तैयार हो, केवल घर में बेटे के चलते ही भागी। इसीलिए उसकी हिम्मत सातवें आसमान पर थी। वो तो केवल बात बिल्कुल पक्की करने के लिए तुमसे हां कहलवा रहा था। और जैसा तुम बता रही हो उससे यह तो साफ है कि वो पहल करे इसके लिए रास्ता तुम्हीं ने तैयार किया। मैं गलत तो नहीं कर रही?
-सुनो हिमानी... देखो मैं बहुत कन्फ्यूज हूं... मैंने सोच समझ कर कुछ नहीं किया। वास्तव में मैंने कुछ किया ही नहीं समझी, ना जाने सब कैसे हो गया। सब अपने आप होता चला गया। मेरा यह भी कहने का मन होता है कि मेरी कोई गलती नहीं। पता नहीं मैं क्या कह रही हूं। मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
-इतना टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है। दुनिया में यह सब जमाने से होता आ रहा है। फ़र्क इतना है कि कभी कम कभी ज़्यादा। खैर फिर तुमने उसको क्या जवाब दिया। सेक्स के लिए तुमसे हां कहलाना चाह रहा था तुमने हां कर दी।
-नहीं... मैं अनजान बनी रही कि किस बात के लिए वह हां कहलाना चाह रहा। इस पर वह खीझ कर बड़े फूहड़ शब्दों में बोला। तुम ड्रॉमा अच्छा कर लेती हो। लेकिन मैं तुम्हारी तरह एक्टर नहीं हूं। सीधे बात कह रहा हूं, इसलिए साफ-साफ कह रहा हूं कि दिन में तुम्हारे साथ सेक्स की मैंने जो कहानी अधूरी छोड़ी थी, बल्कि सिर्फ़ मैंने नहीं तुमने भी। यानी तुमने और हमने दिन में तुम्हारे बेटे के कारण जो कहानी अधूरी छोड़ी थी उसे पूरा करने के लिए तुम्हारी 'हाँ ', साफ-साफ 'हाँ' सुनना चाहता हूं। अब ये नहीं कहना कि मैं समझी नहीं। क्योंकि समझ तो तुम मुझसे ज़्यादा रही हो। जितना मैं तुम्हारे तन-बदन को छूकर-देखकर एक्साइटेड हूं उससे कहीं ज़्यादा तुम भी मेरे तन-बदन को देख कर तड़प रही हो।
ऐसा नहीं होता तो इतनी रात गए मुझसे बात नहीं करती और दिन में ही मुझे मार कर भगाती, समझीं। एकदम साफ बात ये है कि हम दोनों एक दूसरे के साथ सेक्स करने को बेताब हैं। इसीलिए अभी तक जाग रहे हैं और उसी के बारे में बात भी कर रहे हैं, और कल मैं तुम्हारे साथ किसी भी सूरत में सेक्स करना चाहता हूं।
इसी के लिए तुमसे अभी के अभी ‘हां’ सुनना चाहता हूं.... इतनी देर से मैं बोले जा रहा हूं तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?
उसकी यह बेखौफ होकर कही गईं बातें मेरे तन-बदन में सनसनी सी पैदा कर चुकी थीं। कुछ बोलती क्यों नहीं? उसकी यह बात सुनकर मैं जैसे नींद से जागी और झटके में बोल दिया, देखो मैं तुम्हारी कोई बात नहीं समझ रही, फ़ोन रखो समझे। इस पर वह भड़कते हुए बोला ‘देखो ये खंड-खंड पाखंड का अखंड पाठ बंद करो। फ़ोन अब मैं तब बंद करूंगा जब तुम एक शानदार किस करोगी। उतना ही शानदार जितना शानदार तुम्हारा बदन है और इतना तेज़ कि यहां तक आवाज़ सुनाई दे। जल्दी - जल्दी करो।’
हिमानी शिवा के चेहरे को बड़े ध्यान से देख रही थी मानो उसे पढ़ने की कोशिश में लगी हो। शिवा के चुप होते ही उसने फिर कुरेदा।
-तो तुमने उसे किस कर लिया।
-अं... नहीं उसकी इस बात पर मैंने फ़ोन काट दिया। इस पर उसने फिर तुरंत फ़ोन किया। मैंने रिसीव नहीं किया तो तुरंत एस.एम.एस. आया कि बात करो नहीं तो अभी आता हूं। एस.एम.एस. पढ़ ही पाई थी कि फिर फ़ोन आ गया। मैंने जैसे ही रिसीव किया वह तुरंत बोला चलो मैं ही शुरुआत करता हूं। फिर फ़ोन पर इतनी तेज़ किस किया कि मानों फ़ोन पर ही खींच लेगा अपने पास। फिर हालात ऐसे पैदा किये कि मुझे भी वैसा ही करना पड़ा। जैसे ही मैंने यह किया तो वह हंसते हुए बोला, आखिर तुमने ‘हां’ कर दी। मैंने छूटते ही कहा क्या? तो वह हंसते हुए बोला इससे ज़्यादा साफ,स्पष्ट ‘हां’ और कैसे कहोगी कि बजाए जुबान से बोलने के तुमने किस करके हां की। अब कल नमन नीचे पढ़ेगा। हम-तुम ऊपर कमरे में तन-बदन की पढ़ाई करेंगे। इस पर मैं तिलमिला कर बोली कि कल से पढ़ाने मत आना। तो फिर वह हंसते हुए बोला ,
मैं कल ज़रूर आऊंगा। अगर तुम वाकई तन-बदन की पढ़ाई मेरे साथ नहीं करना चाहती तो मुझे गेट से ही डांट कर भगा देना मैं कुछ नहीं बोलूंगा। चुपचाप चला आऊंगा फिर कभी नहीं मिलूंगा। यदि ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हारे साथ पढ़ाई करूंगा। फिलहाल मैं बाकी की रात तुम्हारे इस हॉट-हॉट किस और उससे भी ज़्यादा दिन में जो तुम्हारे तपते बदन की तपिस मिली है उसी तपिस के साथ बिताऊंगा और निश्चित ही तुम भी यही करोगी। मेरे हॉट किस, जलते बदन की तपिस से तुम भी करवटें बदलोगी। सचाई कल हमारी-तुम्हारी आँखें बता देंगी। इतना कह कर उसने एक बार फिर किस किया और गुडनाइट कह कर फ़ोन काट दिया।
शिवा इतना कह कर चुप हो गई। चेहरे पर कुछ राहत सी दिख रही थी मानो कोई बड़ा काम अंततः किसी तरह पुरा कर ही लिया। चेहरे पर पसीने की चमक दिख रही थी। मगर हिमानी सब कुछ जान लेने से कम पर तैयार नही थी। वह उसके और करीब जा कर बोली-
-हूं... बेहद सनसनी पूर्ण हैं तुम्हारी बातें। तो इसके बाद तुम सो गई या जागती रही उसके किस और उसको किस करके।
-हूं... अब तुम बताओ मेरी जगह तुम होती तो क्या करती। तुरंत सो जाती या करवटें बदलती या उसकी ही कल्पना में बेड पर उलटती-पलटती रहती।
-मैं...
-हां तुम, तुम क्या करती?
-तुमने तो बड़ा असमंजस में डाल दिया।
-असमंजस नहीं हिमानी। बहुत साफ-साफ और सही-सही जवाब देना क्योंकि तुम्हारे जवाब पर मेरे भविष्य की एक नई राह या तो रोशन होगी या अंधकारमय हो जाएगी या फिर समाप्त हो जाएगी। इसलिए जो कहना सही कहना।
-ठीक है सही ही कहूंगी। शायद कुछ देर उसकी बातों, उसकी किस और क्योंकि खुद भी किस किया हुआ है तो ऐसे में करवटें बदलती, इधर-उधर टहलती और शायद ख़यालों में उसे ही लिए-लिए सो जाती।
-यह सब शायद करती।
-अब शायद ही कह सकती हूं। जब उस हालात से गुजरी नहीं तो साफ-साफ कैसे कह सकती हूं।
-देखो कुछ हालात ऐसे होते हैं जिनके परिणाम तय होते हैं। बेड पर दिन भर के काम-धाम के बाद पति-पत्नी मिलते हैं आपस में चिपटते हैं तो उनमें उत्तेजना पैदा ही होगी और मैंने जिस हालात की बात की है उसमें भी चाहे आदमी हो या औरत उत्तेजना में वह भी जल्दी सो नहीं पाएगा। सेक्स की भावना में खोया देर तक जागेगा।
-क्या शिवा पूरी दुनिया की कहानी बता रही हो लेकिन खुद क्या किया उस बारे में नहीं बोल रही हो।
- बता तो रही हूं बड़ी देर तक उसी में खोई इधर-उधर टहलती रही, करवटें बदलती रही, बहुत देर बाद नींद आई। सुबह अलार्म नहीं बजता तो नमन को टाइम से स्कूल नहीं भेज पाती।
-हां जब देर से सोओ तो सुबह नींद कहां खुल पाती है। खैर फिर शाम को क्या हुआ? उसको रोका या क्या किया?
हिमानी के इस प्रश्न से शिवा कुछ देर चुप रही फिर बिना किसी हिचक के बोली
-शाम को जब वह पढ़ाने आया तो रोज की तरह गेट खोलने मैं नहीं गई। नमन ने गेट खोला। मैं उस कमरे में भी नहीं गई जहां वह उसको पढ़ाता है। दूसरे कमरे में रही कि उससे नजरें ही न मिलाऊं, दूर बनी रहूं। वह चला जाएगा पढ़ा कर।
-लेकिन उसने तो तुमसे रात में ही कह दिया था कि यदि तुमने उसे गेट से ही मना नहीं किया तो वह यही समझेगा कि तुमने उसके साथ सेक्स के लिए ‘हां’ कर दी है। और तुमने यही किया नमन से गेट खुलवा कर उसे अपनी ‘हां’ बता दी थी।
-मैं उसके सामने नहीं पड़ना चाहती जिससे कि उसे देखकर कहीं कमजोर न पड़ जाऊं। इसलिए दूसरे कमरे में बनी रही कि वह बेरुखी से नाराज होकर चला जाएगा।
-लेकिन इसे उसने तुम्हारी ‘हां’ मान ली और तुम जिस कमरे में थी वहां पहुंच गया।
-नहीं वो बहुत चालाक है। नमन को जल्दी-जल्दी काम देकर इतनी तेज़ आवाज़ में बोलना शुरू किया कि मैं सब सुन सकूं। नमन से कहा आप यह सब काम पूरा करो तब तक मैं तुम्हारी मम्मी को इंगलिश बताता हूं जिससे वो तुम्हें मेरे न आने पर भी ठीक से पढ़ा सकें। तुमको डिस्टर्ब न हो इस लिए उन्हें मैं ऊपर कमरे में पढ़ाऊंगा। इतना कह कर वह तेज़ आवाज में ही एक सख्त टीचर की तरह बोला आइए आप भी आइए, टाइम वेस्ट मत करिए। जल्दी करिए।
यह कहकर वह उसी कमरे में आने लगा जिसमें मैं थी। शायद वह सटीक अनुमान लगा चुका था कि मैं किस कमरे में हू। अंततः मैं उसके सामने आ गई। पहले से ही उसकी आवाज़ सुन-सुन कर कमजोर पड़ रही मैं उसके सामने पड़ कर एकदम आज्ञाकारी स्टूडेंट बन गई। बदन पर चींटियां सी रेंग रही थीं। मैं टालने के लिए उससे यह भी नहीं कह सकी कि नमन डिस्टर्ब नहीं होगा इसी कमरे में पढ़ाइए।
-कह भी तो नहीं सकती थी क्योंकि जो पढ़ाई तुम दोनों करने वाले थे वह तो सबकी नज़र बचाकर अलग कमरे में ही हो सकती थी। खैर तुम मना भी तो कर सकती थी कि तुम्हें पढ़ना ही नहीं। उसे लेकर ऊपर जाती ही न।
-सब कर सकती थी मगर वह कुछ करने ही नहीं दे रहा था। मैं उसे ऊपर लेकर जाऊं उसके पहले ही वह ऊपर जीने की तरफ बढ़ता हुआ बोला, आइए जल्दी आइए मेरे पास टाइम कम है। अभी नमन को भी देखना है।
वह लंबे कदमों से जीने पर चढ़ने लगा। अपनी लंबाई का वह पूरा फायदा उठा रहा था। वह ऊपर चढ़ गया तब तक मैं नीचे ही खड़ी रही असमंजस में खुद से लड़ती हुई। एक नज़र नमन पर डालती फिर ऊपर सीढ़ियों के दूसरे सिरे पर। तभी उसने फिर बड़े अधिकार से कहा प्लीज जल्दी आइए मेरे पास फालतू टाइम नहीं है।
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