Sabreena - 11 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 11

Featured Books
Categories
Share

सबरीना - 11

सबरीना

(11)

दरवाजा तोड़ दूंगी प्रोफेसर!

सबरीना चुप हो गई और सुशांत गाड़ी से बाहर देखने लगा। सूरज ढले हुए काफी देर हो गई थी। कब चारों तरफ धुंधलका सा छा गया, पता ही नहीं चला। बर्फ फाहों के रूप में बरस रही थी। गाड़ी के बोनट को बर्फ से बचाने के लिए इंजन को भी अतिरिक्त कोशिश करनी पड़ रही थी। जिस रास्ते से गाड़ी होटल की ओर जा रही थी, ये सुबह से अलग रास्ता था। सबरीना ने शीशा नीचे करके बाहर देखने की कोशिश। चुभती हुई ठंडी हवा के झौंके ने सुशांत को सिहरन का अहसास करा दिया। कुछ देर सबरीना बाहर देखती रही। उसने सुशांत का ध्यान खींचा-

‘ये इंडीपेंडेंस स्क्वायर है, देखो प्रोफेसर आपको कुछ और दिख रहा है यहां पर ?‘ जैसे उसने बातचीत का रुख बदलने और माहौल को हल्का करने के लिए ये सब कहा हो।

‘ नहीं, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा‘, सुशांत ने जवाब दिया।

‘ वो देखो, लेनिन वहां जीमन पर औंधे मुंह पड़े हैं। अब ये इनका चैक नहीं रहा। इन्हें उतारकर किनारे डाल दिया गया है।’

‘ हां, हां दिख गया। लेकिन का स्टेच्यू भी दिख गया। अब इस स्टेच्यू का क्या होगा ? क्या इसे तोड़ दिया जाएगा ?’

‘ नहीं, देश में अभी ऐसे बहुत-से लोग हैं जो लेनिन को याद करते हैं, उन्हें अपना मसीहा मानते हैं। इसलिए इसे तोड़ा नहीं जाएगा। शहर से बाहर किसी खाली जगह पर लगाया जाएगा। और भी ऐसे ही कई स्टेच्यू हैं, उन्हें भी शहर से बाहर ले जाया जा रहा है। उज्बेकिस्तान में जो लोकतंत्र और आजादी के समर्थक हैं वे अपने नायकों और प्रतीकों को ढूंढ रहे हैं। अभी तो हर जगह साम्यवादी प्रतीकों को हटाने का दौर चल रहा है।’

सबरीना एक खास रौ में बहती हुई बोलती रही, जैसे कोई बच्चा अपने रटे हुए पाठ को कक्षा में सुनाता जाता है। सुशांत को लगता है कि साम्यवाद भी एक रटे हुए पाठ की तरह ही है। उसकी जरूरत एक वक्त के बाद खत्म हो गई क्यांेकि इस पाठ के आधार पर परीक्षा दे दी गई और परिणाम भी जो होना था वो हो गया इसलिए अब ये पाठ अतीत का हिस्सा है। हालांकि, पूरी तरह भुलाया नहीं जा सका है। अक्सर बचपन की यादों की तरह बार-बार याद आता रहता है।

सामने टाशकैंट होटल रोशनी में नहाया हुआ दिख रहा था। होटल तक पहुंच जाना जैसे सबरीना को अच्छा नहीं लगा। वो अकस्मात बोली-‘ लीजिए, आपका होटल आ गया प्रोफेसर।‘

सबरीना जब भी ‘प्रोफेसर’ शब्द बोलती है तो इसे व्यक्तिवाचक संज्ञा की तरह इस्तेमाल करती है। जैसे इस शब्द के विस्तार में कोई अजनबी, अनजाना प्रति़द्वंद्वी और गहरा दोस्त भी छिपा हुआ है। सुशांत को लग रहा है कि सबरीना की बहुत-सी बातें अधूरी हैं। उसे इन बातों को पूरा करना चाहिए। पता नहीं, फिर कब ऐसी स्थिति हों कि जब वो खुलकर कह सके और कोई उन बातों को उसके धरातल पर जाकर सुन सके। दोपहर तक के घटनाक्रम के बाद सुशांत सबरीना को जिस तरह और जिस रूप में देख रहा था, अब वो बदल चुका था। कुछ घंटे पहले तक वो एक अपराधी थी, जिसने पाकिस्तान में अपने कांट्रैक्ट-हसबैंड की हत्या की थी। लेकिन, अब वो ऐसी लड़की थी, जिसने एक ही जिंदगी में कई जिंदगी जितना दुख झेल लिया था और दुख से हारने या भागने की बजाय उसका डटकर मुकाबला कर रही थी।

उनकी गाड़ी होटल के पोर्च में रुक गई। दरबान ठंड से ठिठुरा दिख रहा था। मोटा लबादा और फर वाली टोपी बर्फ और हवा के सामने बेदम साबित हो रही थी। फिर भी उसने आगे गढ़कर गाड़ी का दरवाजा खोला और सबरीना-सुशांत नीचे उतर गए। सबरीना ने ड्राइवर को रुकने के लिए कहा ताकि वो सुशांत को छोड़कर लौट सके। हालांकि, सुशांत चाह रहा था कि वो आज रात रुक जाए और अधूरी बातों को पूरा करने का वक्त मिल जाए। दोनों ने एक-दूसरे से कुछ भी नहीं कहा, लेकिन वे एक साथ होटल के गेस्ट-वेटिंग एरिया में पड़े सोफे पर बैठ गए।

सबरीना ने सुशांत से पूछे बिना ही प्रोफेसर तारीकबी को फोन मिलाया और बिना कोई भूमिका बांधे उनसे सपाट ढंग से पूछा कि क्या वो आज सुशांत के साथ होटल में रुक जाएं। सुशांत को पता नहीं लगा कि प्रोफेसर तारीकबी ने क्या जवाब दिया, पर सबरीना सीधे रिसेप्शन पर गई और कुछ देर वहां बात की। शायद, पैसे को लेकर कुछ मोल-भाव जैसा हुआ और कुल 20 डाॅलर में मामला निपट गया। सबरीना के चेहरे पर हल्की-सी मुसकुराहट थी।

‘ चलो, प्रोफेसर, सेटल हो गया मामला, आज मैं रुकूंगी होटल में।’

‘ पर, पुलिस ! तुम पर रोक लगाई गई है.....ये कहते हुए सुशांत को थोड़ा सा डर लगा कि फिर कहीं कोई नया मामला खड़ा न हो जाए। पर, जब तक वो सोचता, सबरीना उठ खड़ी हुई और सुशांत को उठने को कहा। सुशांत सोच रहा था कि अक्सर हम जिन बातों के होने की कामना करते हैं, जब वे बातें पूरी हो जाती हैं तो डर लगने लगता है। असल में, हम उनकी केवल कामना करते हैं, उनके लिए तैयार नहीं होते। सुशांत लिफ्ट की ओर बढ़ा, लेकिन सबरीना सीढ़िया चढ़ने लगी।

‘प्रोफेसर, सुबह इतनी प्रैक्टिस करवा दी थी आपने, अब लिफ्ट से जाने का मन नहीं है।’ सुशांत मुस्कुराया और उसके पीछे चल पड़ा।

‘ और हां, पुलिस वाले मामले को लेकर मत डरना। हर किसी की कीमत होती है, वो कीमत अदा कर दी है। अब न पुलिस पूछेगी और न होटल वाले बताएंगें। अब देखना, होटल में आपकी कितनी आव-भगत होगी। वैसे भी, आपको तो पता नहीं होगा कि ताशकंद में हर तीसरी लड़की पुलिस-आॅब्जर्वेशन में है!’

सुशांत ने आश्चर्य जताया, ‘ऐसा क्यों!’

‘वो इसलिए ताकि कांट्रैक्ट-मैरिज करने वाली लड़कियों को मुसीबत से बचाया जा सके। हालांकि, मुसीबत से कोई बचाता नहीं है। पर, पुलिस का धंधा खूब चल निकलता है। खैर, छोड़ो.....’

उसने बात बदली-‘अब हमारे पास दो विकल्प हैं प्रोफेसर। पहला, बाहर घूमने चलें और दूसरा अगर आपको मुझ से डर न लग रहा तो एक बैड पर, एक ही कंबल में सो जाएं!!!’

‘दोनों ही विकल्प चिंताजनक हैं! पर, मेरे पास तीसरा विकल्प भी है।’ सुशांत उठा, कमरे की चाबी उठाई, अपना लबादा समेटा और जब तक सबरीना समझ पाती उसने दरवाजा बाहर से लाॅक किया और गेस्ट-वेटिंग एरिया में कोने में पड़े उसी सोफे पर जाकर बैठ गया, जिस पर कुछ देर पहले वे दोनों बैठे हुए थे। वो आते वक्त सबरीना का फोन भी उठाता लाया। उसने रिसेप्शन से रूम में फोन किया-

‘अगर किसी चीज की जरूरत हो या कुछ कहना हो तो इसी नंबर पर फोन करना!’

‘ मैं दरवाजा तोड़ दूंगी प्रोफेसर! और आपको अभी पता लग जाएगा कि रूम में इमरजेंसी नंबर होता है। सीधे पुलिस को काॅल जाएगी। तब देखना क्या होगा! और अगर आपने आधे घंटे के भीतर दरवाजा ने खोला तो फिर पुलिस ही खुलवाएगी। मैं आप पर आरोप लगाउंगी कि मुझे जबरन होटल में लेकर आए और फिर कमरे में बंद कर दिया.......’ सबरीना के पास इतने सारे उपाय होंगे, ये जानकर सुशांत का दिल बैठ गया।

***