Chintan in Hindi Motivational Stories by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | चिंतन

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चिंतन





डर और संशय यदि है तो अभियान के पूरा होने की संभावना कम रहती है । संशय वर्तमान में जीने नही देता । संशय वर्तमान के सुख से वंचित कर देता है और भविष्य को भी भयावह बनाए रखता है । संशयात्मक वृत्ति के नकारात्मक परिणाम कितना दुःखी करते हैं इसे अपने साथ हुए एक वाकये से समझाना चाहॅूंगा ।

हुआ ऐसा कि हम कुछ मित्र लंबे सफर पर निकले, सफर दुर्गम स्थानों का था, जहॉं हुए भयानक हादसों के किस्से पढ़-पढ़ हमने वहॅां की बहुत सी जानकारी हासिल कर ली थी । सो वहॉं जाने से पहले ही हम उसके खतरनाक पहाड़ी रास्तों,और वहॉं पर अचानक मौसम खराब होने से भूस्खलन और बाढ़ आदि के बारे में मानसिक रूप से तैयार थे, किन्तु हमारे साथ ऐसा नही होगा इस बात का भरोसा भी बनाए हुए थे । अब जब हम वहॉं पहुॅंचे तो हर जगह हमे उस स्थान के मोहक नजारों के साथ-साथ अचानक हुए हादसों की भी याद आती और हम भयभीत होकर वहॉं से जल्दी से जल्दी निकलने की फिराक में रहते । उन पहाड़ी रास्तों पर हम पूरे सफर के दौरान भय और संशय को साथ लेकर चलते रहे, जिससे सफर का आनंद और बहुत सी जगहों पर जाकर उसकी अति सुन्दर प्राकृतिक छटा का मजा लेने का मौका भी हाथ से जाता रहा । हम सकुशल तो लौट आए किन्तु हमारी संशयात्मक वृत्ति ने हमे वहॉं के आनंद से वंचित कर दिया । इस संशयात्मक वृत्ति से कितनी तकलीफ होती है कि पानी की हर बूंद प्रलयकारी लगने लगती है, हवा का झोंका चक्रवात से कम नही लगता । -- कहीं ऐसा मेरे साथ हो गया तो.... ?--- बस ये खयाल आपको वर्तमान से गायबकर देता है और आपकी कल्पना भविष्य का भयावह चित्र प्रस्तुत करने लगती है और आप घबरा कर और भी ज्यादा चिंतित होकर परेशान रहते हैं । ऐसे डर पर काबू पाने के उपाय पर विचार करना चाहिए । बहुत से तरीके हो सकते हैं इस संशय से मुक्तिपाने के किन्तु कुछ साधारण ढंग से अपनी विचारशक्ति को मजबूत किया जा सकता है और संसार समुद्र के बहुत से भय पर नियंत्रण पाया जा सकता है । इस पर ब्रह्मलीन स्वामी आत्मानंद जी जो रायपुर में रामकृष्ण मिशन विवेकानंद आश्रम के संस्थापक रहे, वे अपने जीवन की एक घटना बताते थे, जिससे उन्हें भय और संशय पर विजय पाने में सफलता मिली ।जब साधनाकाल में एक बार उन्हें हिमालय की यात्रा में जाना पड़ा वहाँ उन्हें एक साधु मिले जो अपने कुछ शिष्यों के साथ उस निर्जन गुफा में बहुत अल्प साधनों के साथ रहते थे । उन्हें उनके साथ कुछ दिन रहना था । कहीं कोई सुरक्षा का इंतजाम नही था । रात को जंगली जानवर उस गुफा के अंदर तक आ जाते थे । उस स्थान पर रहते हुए उन्हें बड़ा भय लगता । वे रात भर सो नही पाते थे । उनका डर देखकर वे उन्हें समझाते पर उनका डर जाता न था । एक रात उन्होंने उनसे कहा , कि पास के गांव में मास्टर जी रहते हैं , उन्हें यह पत्र देना बहुत जरूरी है और आज ही पँहुचाना जरूरी है और इसे तुम्हे ही लेकर जाना है । उनका आदेश था सो पालन करना ही था ,उन्हें एक लालटेन ओर लाठी दे दी गयी । गुफा के बाहर भयावह घना जंगल था हाथ को हाथ नही सूझता था । वे रास्ते भर भय से काँपते काँपते किसी तरह मास्टर जी के घर पहुँचे, उन्हें वो पत्र दिया । मास्टर जी ने उसे देख कर कहा कि यह इतना जरूरी तो नही था। कल भी दिया जा सकता था। इतनी रात में इतने खतरनाक जंगल पार कर आप क्यो आये ?
स्वामी जी समझ गए कि गुरुदेव ने किसी खास वजह से उन्हें भेजा है । वे वापस लौटे रात और भी ज्यादा गहरा गई थी । जंगली जानवरों की आवाजें आसपास से आने लगीं थीं । वे थर थर काँपते आगे बढ़ते रहे । एक एक कदम चलना भारी पड़ रहा था। फर्लांग भर का रास्ता भी मिलों जान पड़ता था। वे आगे बढ़ते रहे और गुफा के नजदीक पँहुचते पहुँचते जैसे बुखार शरीर से उतरता है उसी तरह भय उनके भीतर से जाता रहा । वे डर से मुक्त गए और उनके आनंद की सीमा न रही ।

गुफा में उनके गुरु उनका इंतजार कर रहे थे । उन्हें भयमुक्त देखकर ओर सकुशल वापस आने पर उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया और स्नेह से उनके सिर पर हाथ फेरकर कहा कि, तुम्हारे भीतर बैठे भय को दूर करने का यही ईलाज था । डर और संशय से जीतना है तो एक बात ध्यान रखना कि होनी होकर रहेगी और अनहोनी कभी नही होगी ईश्वर पर विश्वास रखो और हर हालात का सामना करने के लिए तैयार रहो । उसके बाद से स्वामी जी के डर हमेशा के लिए जाता रहा । उस गुफा के बाहर जहाँ दिन में जाना खतरनाक था वहां वे रात में जाकर आनंद से झूमते । उन्होंने सबको यही संदेश दिया कि,पहली बात तो ये कि जब भी ऐसा लगे तो खुद को समझाएॅं कि होनी होकर रहती है और अनहोनी लाख उपाय के बाद भी नही होती । यदि यहॉं ऐसा मेरे साथ होना है तो होकर रहेगा और यदि नही होना है तो कोई लाख कोशिश करे नही हो सकता । यदि काल के हाथों यहीं मरना लिखा है, तो उसे कौन टाल सकता है और यदि ऐसा नही है तो किसकी मजाल कि वो मेरा बाल भी बांका कर सके । बस इसी विश्वास के सहारे दुनिया के झंझावात में खुद को संघर्ष के लिए सौंप दो और एक पर भरोसा रखो कि वो बचाए तो कौन मारे और वो मारे तो कौन बचाए ?