Domnik ki Vapsi - 32 in Hindi Love Stories by Vivek Mishra books and stories PDF | डॉमनिक की वापसी - 32

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डॉमनिक की वापसी - 32

डॉमनिक की वापसी

(32)

शिमोर्ग को आज अपने चारों ओर पहाड़ों का हरा रंग देखकर बचपन की होली याद आ रही थी, ऐसा ही गहरा रंग पोत देते थे, एक दूसरे के मुँह पे, कई-कई बार धोने पर भी नहीं उतरता, लगा रह जाता था, कानों और नथुनों के किनारों पर। शिमोर्ग के सोने की आभा लिए गोरे रंग पर वह कई दिनों तक चढ़ा रहता। जब तक रंग पूरी तरह उतर नहीं जाता, माँ उससे बात तक नहीं करती और पिताजी हमेशा माँ के लाख मना करने पर भी वही रंग लाकर देते। गहरा हरा रंग। बहुत पक्का रंग होता था, तब। बिलकुल हिमाचल के पहाड़ों पर फैली इस हरियाली की तरह। पिता कहते थे इन पहाड़ों का रंग एक बार चढ़ जाए, तो फिर आसानी से नहीं उतरता, गहरे तक मन-साँस में बैठा रहता है. उनकी पंक्तियाँ- ‘बस साँस/ एक गहरी साँस/ अपने मन की/ एक पूरी साँस/ हरियाली की हरी साँस/ अपनी माटी में सनी साँस’ जैसे आसपास की हवा में तैर रही थीं..

शिमोर्ग को लग रहा था उसने इन पहाड़ों को पहले कभी इस तरह नहीं देखा था। आज उसे वे दीपांश और अपने पिता की तरह जिद्दी लग रहे थे। आज वे बार-बार उसका रास्ता रोक रहे थे। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्यूँ उसे दीपांश का चेहरा अपने पिता के चेहरे से मिलता हुआ लग रहा है। पिता, दीपांश और इन पहाड़ों का रंग आपस में घुलमिल कर उसके मन को रंग रहा था। पहले भी इन तीनों का रंग वह बार-बार अपने मन से छुटाती रही पर वह कभी पूरी तरह छूटा नहीं था।

आज वह मण्डी में उसी क्म्युनिटी थिएटर ग्रुप के ऑडिटोरियम में बैठी थी, जिससे उसने अपने अभिनय की शुरूआत की थी, जहाँ आते ही बचपन की तमाम स्मृतियाँ उसे घेर लेती थीं, पर वहाँ आज उसका मन नहीं लग रहा था। वह पिछले आधे घण्टे से बैठी, विश्वमोहन का इन्तज़ार कर रही थी। इस जगह आकर अक्सर उसे यहाँ से निकलकर कुछ हासिल करने की अनुभूति हुआ करती थी पर आज जैसे सब कुछ रीता हुआ और खोखला लग रहा था। वह खाली बैठी मुट्ठियों को ऐसे खोल और बंद कर रही थी मानो अब हाथों में कुछ शेष न हो..

नदी के किनारे पहाड़ी पर बत्तियाँ चमकने लगी थीं। शिमोर्ग ने एक नज़र घड़ी पर डाली, शाम के छ: बजने को थे। वह उठी और विश्वमोहन के नाम रिसेप्शन पर एक पर्ची देकर बाहर आ गई।

इस बीच माँ ने नई कार खरीद ली थी. आज वह उसी से यहाँ आई थी. स्टार्ट करते हुए याद आया पिछली बार वह दीपांश को लेके मंडी घुमाने निकली थी तो वह माँ की पचास साल पुरानी गाड़ी से यहाँ आई थी, उसके स्टार्ट न होने, या रस्ते में बंद होने का डर लगातार मन में बना रहा था. आज नई कार ने फर्राटे से शहर पीछे छोड़ दिया था.

वह आज भी उसी रेस्त्रां ‘मैन्डी हिल्स’ के सामने आकर रुकी थी। बाहर कोहरा घना हो चला था। लॉन में लगा लेम्प पोस्ट बादलों पर रखा हुआ लग रहा था। यह जगह उसे हमेशा से ही बहुत पसंद थी। सोच रही थी कुछ जगहें कभी नहीं बदलतीं। वे कभी अपनी पहचान नहीं खोतीं। वे खड़ी रहती हैं किसी के इन्तज़ार में, किसी भटके हुए की स्मृति में वे अचानक से उभर आती हैं, उन्हें देखकर कोई खोने से बच जाता है। कोई भूला हुआ रास्ता पा जाता है। यह रेस्त्रां भी वैसा ही था...

आम तौर पर शाम के समय चहल-पहल रहती थी पर आज बहुत सन्नाटा था। छत पर पड़ी टेबिलें कोहरे में डूब गई थीं... इसलिए शिमोर्ग सीधी अन्दर ही चली आई थी.

वह अतीत में लौटना चाहती या उसे एक बार गले लगा के हमेशा के लिए उससे विदा ले लेना चाहती थी. तय नहीं हो पा रहा था.. पर भीतर कुछ था जो आगे बढ़ने से पहले पीछे मुड़के देख रहा था. पहले कभी कोई निर्णय लेते हुए मन इतनी दुविधा में रहा हो उसे याद नहीं आ रहा था. शायद इसी असमंजस में वह यहाँ आ गई थी. आज भी वही टेबिल चुनी थी जिसपर दीपांश के साथ बैठी थी...

वैसे केवल बार कॉउन्टर के पास की टेबल को छोड़ के जिसपर लाल जैकिट पहिने एक आदमी बैठा था, लगभग सभी टेबलें खाली थीं. शिमोर्ग आज जल्दी में घर से निकलते हुए, अपना चश्मा लेना भूल गई थी। निश्चय ही उसे बिना चश्मे के, इस घने कोहरे में, ड्राइव करके घर पहुँचने में बहुत कठिनाई होने वाली थी, पर इस समय वह इस बारे में नहीं सोच रही थी बल्कि वह चश्मा लाना भूल गई है, इसका ख्याल उसको तब आया, जब बहुत ध्यान से देखने पर भी, वह उस लाल जैकिट पहिने, कोने की टेबल पर अकेले बैठे, आदमी का चेहरा साफ़-साफ़ नहीं देख पाई थी। वह इतना ही देख पा रही थी कि उसका रंग गोरा था और उसकी दाड़ी हल्की-सी बड़ी हुई थी। वह बाँएं हाथ से विह्स्की का गिलास पकड़े था और अपने दाहिने हाथ से टेबिल पर रखी एक मैग्ज़ीन के पन्ने पलट रहा था।

शिमोर्ग अभी ठीक से उसे देख भी नहीं पाई थी कि उस आदमी ने एक साथ ही मैग्ज़ीन बंद करके, उसे उलट कर टेबिल पर रखा और गिलास से एक बड़ा घूँट भर कर, खड़ा हो गया। शिमोर्ग को उसका इस तरह उठना अच्छा नहीं लगा, उसे लगा बार में बैठा आखिरी आदमी भी जा रहा है और इसके साथ ही वह वहाँ अकेली रह जाएगी, पर वह यह देख कर हैरान हुई कि वह उसी की टेबिल की ओर बढ़ रहा था।

शिमोर्ग संभलकर बैठ गई।

शिमोर्ग के सामने पहुँच कर उसने बड़ी विनम्रता से पूछा, ‘क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?’

शिमोर्ग अनिश्चय की स्थिति में थी, फिर भी उसने कहा, ‘हाँ, प्लीज़ बैठिए न’

‘मैं सैम्युल हूँ। आप शिमोर्ग हैं न?’

शिमोर्ग ने उसे ध्यान से देखा। उसका संशय भांपते हुए उसने कहा, ‘मैंने आपके कई नाटक देखे हैं,…मुझे ‘डॉमनिक की वापसी’ में आपका अभिनय बहुत अच्छा लगा था, वो जिसमें आपने एक व्यापारी की पत्नी की भूमिका की थी, पर आप तो उससे बहुत अलग दिखती हैं, मेरा मतलब है उस किरदार के मुक़ाबले, पर उस लेडी के गेट-अप में भी अपना ही ग्रेस था’

‘शुक्रिया…’

उसने कुर्सी खींचकर बैठते हुए कहा, ‘ अगर आप इज़ाजत दें तो उस नाटक के बारे में कुछ पूछना चाहता हूँ’।

‘पूछिए’ शिमोर्ग ने चेहरे पर थोड़ा इत्मीनान लाते हुए कहा।

‘उस नाटक की एक बात मुझे हमेशा परेशान करती है’

‘वो क्या?’

‘यही कि नाटक के अन्त में, मुझे आपके उस किरदार का,…हाँ वो, एलिना का अपने पति के पास लौटना अच्छा नहीं लगा, जबकि डॉमनिक ने भी, वह सब कुछ हासिल कर लिया था, जो उसके पति के पास था,…उसने ऐसा क्यूँ किया?’

शिमोर्ग ने टालने के अंदाज़ में कहा, ‘आपने नाटक इतने ध्यान से देखा है, आप ही बताइए, आपको क्या लगता है, उसने ऐसा क्यूँ किया?’

सैम्युअल ने अपनी भौंहे ऊपर उठाते हुए कहा, ‘वही तो पहेली है, जब वह अपने पति से खुश नहीं थी और उसे डॉमनिक मिला, तो लगा जैसे उसे सब कुछ मिल गया, पर फिर वह डॉमनिक से वही सब कुछ हासिल करने को कहती है, जो उसके पति के पास था और जब डॉमनिक वह सब कुछ हासिल करके लौटता है, तो वह उसके साथ रहने से इन्कार कर देती है और हमेशा के लिए विदा लेकर अपने पति के पास लौट जाती है, ये थोड़ा अजीब नहीं है’।

‘उसका पति के पास लौट जाना आपको शायद इसलिए बुरा लगा क्योंकि आप पुरुष हैं और आपकी सिम्पैथी डॉमनिक के साथ है’

‘नहीं मेरी सिम्पैथी प्रेम के साथ है, मैं चाहता था उसे डॉमनिक का प्यार मिले’

‘और डॉमनिक को?’

‘मेरा मतलब है एलिना और डॉमनिक दोनो को एक-दूसरे का प्यार मिल पाता’

‘पर हुआ तो बिलकुल उल्टा’

‘हाँ वही तो चौंकाता है, वह तो लम्बे समय तक अपने पति से, उसके एशोआराम से दूर रहकर डॉमनिक का इन्तज़ार करती है और फिर उसके लौटने पर उसको छोड़ देती है, वो भी किसी मामूली-सी बात पे, वो क्या बात थी, अब याद भी नहीं है’

सैम्युल की बात सुनकर, शिमोर्ग मुस्करा दी।

सैम्युल अपनी झैंप छुपाते हुए, ‘आपको यह अजीब नहीं लगता?’

‘लगता है, बहुत अजीब लगता है. लेकिन जिंदगी ऐसी ही है...’

‘लेकिन नाटक में ऐसा क्यूँ होता है, क्या सिर्फ़ उसे दुखान्त बनाने के लिए?’

‘मेरी समझ में वह एक सुखान्त है, हैप्पी एन्डिंग। वह स्त्री जिसकी पत्नी थी, अन्त में उसी के पास लौट जाती है’

‘पर डॉमनिक! उसका अकेला रह जाना आपको दुखद नहीं लगता? उसका नशे में अकेले बैठे हुए वॉयलिन बजाते हुए अंधेरे में डूब जाने वाला दृश्य... मुझे तो बड़े दिनो तक सालता रहा।’

‘नहीं, मुझे वह दृश्य दुखद नहीं लगता।’

‘पर मुझे लगता है डॉमनिक के साथ बुरा हुआ, आखिर उसे इससे क्या मिला?’

‘किससे?’

‘मेरा मतलब है प्रेम से, एलिना के प्रेम से।’

‘उसने उसे मांझ दिया। वह अधकचरे संगीतज्ञ से निखर कर इज़्जतदार शहरी बन गया, एक पूरा मर्द। चाल-ढाल, रंग-रूप, धन-दौलत हर तरह से’ बोलते हुए शिमोर्ग का गला सूखने लगा।

सैम्युल की आवाज़ में हल्की-सी खीज उभर आई, जिसे दबाते हुए उसने कहा, ‘पर प्रश्न तो अब भी वही है, अगर उसने सब कुछ पा लिया तो वह उसे छोड़कर क्यूँ चली गई?’

शिमोर्ग ने मुस्कुराने की पूरी कोशिश की पर मुस्कान नहीं उभरी। दीपांश का चेहरा उसकी आँखों के आगे घूम गया। उसे लगा दीपांश, डॉमनिक, उसके पिता सब एक हो गए हैं। बहुत तेज़ वॉयलिन बज रही है। सब मिलकर गा रहे हैं- ‘‘बस साँस/ एक गहरी साँस/ अपने मन की/ एक पूरी साँस/ हरियाली की हरी साँस/ अपनी माटी में सनी साँस’’

टेबल के पास आकर खड़े हुए वेटर ने दोबारा पूछा, ‘मेम ऑर्डर’

सैम्युल ने कहा, ‘एक ड्रिंक मेरी तरफ से. मैं वही रिपीट करूँगा वन लार्ज विह्स्की,…आप क्या लेंगी?’

शिमोर्ग ने गहरी साँस ली, उसके मुँह से निकला, ‘हरी साँस’

‘…………?’

‘मेरा मतलब, वही जो आप लेंगे, वन लार्ज विहस्की’

ऑर्डर पूरा होते ही वेटर टेबल से दूर चला गया।

‘आप एलिना के वापस लौटने के बारे में कुछ बता रही थीं’

शिमोर्ग ने खुद को अपने कोट में समेटते हुए कहा, ‘यह तो लेखक ही आपको बता सकता है.’

‘पर वह किरदार आपने कई बार निभाया है, आपको क्या लगता है?’

‘मुझे लगता है जब डॉमनिक सफल होकर वापस लौटा तो उसमें और एलिना के पति में कोई फ़र्क नहीं रह गया था, नाटक में वे दोनो एक जैसे ही हो गए थे.’

सैम्युल अपने प्रश्नों से शिमोर्ग के चेहरे पर उभरी असहजता को भाँप गया था। फिर भी उससे अन्जान बनते हुए उसने फिर कुरेदा, ‘पर डॉमनिक उसे प्रेम करता था!’

‘पर तब तक वह अपने पैसे और अपनी नई छवि से भी प्रेम करने लगा था.’

‘पर ऐसे में क्या एलिना का उसके पति के पास लौटना ही एक विकल्प था?’

‘उसके पति ने तब तक उसे तलाक़ भी नहीं दिया था’

‘पर वह तलाक़ लेकर डॉमनिक से शादी कर सकती थी!’

‘हाँ, पर तब तक हुई तो नहीं थी,… और एक बात जो प्ले में अस्पष्ट है- वह यह कि उसकी वजह से डॉमनिक एक सफल आदमी बना तो साथ ही साथ, शायद उससे दूर होकर उसके पति ने प्रेम का महत्व समझा हो, वह एक प्रेमी बन गया हो, उसे लौटते हुए ऐसी उम्मीद भी रही होगी।’

‘पर संभव है ऐसा न ही हुआ हो?’

‘हाँ, क्यूँ नहीं, हो सकता है ऐसा न ही हुआ हो,…पर यह भी सच है कि हम सब संबंधों को नहीं उनकी संभावनाओं को जीते हैं.’

‘पर कई बार अपनी और दूसरों की आदतों को जीते हैं, प्रेम और संबंधों के नाम पर।… शायद एलिना जो अपने पति से अलग होते हुए जो बात कहती है कि वह उसका प्रेम नहीं आदत बन चुकी है, वही बात स्वयं उस पर भी लागू होती है, जब वह डॉमनिक से हमेशा के लिए जुड़ने के लिए जाती है पर अनायास ही छिटक कर दूर हो जाती है और अपनी पुरानी आदत,…मेरा मतलब अपने पति के पास लौट जाती है’

‘हाँ, हो सकता है’ शिमोर्ग ने बात को खत्म करने की गरज से संक्षिप्त उत्तर दिया।

सैम्युल कुछ और कहता उससे पहले ही वेटर ने उनका ऑर्डर लाकर टेबल पर रख दिया। दोनों ने गिलास उठाकर टकराए और खिड़की से बाहर लॉन में देखने लगे। लैम्प पोस्ट धुंध में खो गया था। अब उसकी जगह कोहरे के बीच धुंधला प्रकाश पुंज, एक तिलिस्म रच रहा था। कुछ पल की चुप्पी और दो चार घूँट विह्स्की के बाद सैम्युअल ने कहा, ‘एक बात और…’

शिमोर्ग ने अपने गिलास से घूँट भरते हुए उसकी ओर ध्यान से देखा।

सैम्युअल ने जैसे उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘यह उस प्ले को लेकर आखरी बात होगी.’

शिमोर्ग मुस्करा दी।

‘डॉमनिक के एलिना के कहे अनुसार अपनी जगह बनाने के बाद भी अगर वह उसके पति की तरह दुनियादार न हुआ होता, उसे अपनी सफलता से, अपने पैसे से प्यार न हुआ होता, वह तब भी पहले-सा ही सच्चा रहा होता, तब भी क्या एलिना डॉमनिक को छोड़कर चली जाती?’

शिमोर्ग असहज हो उठी, ‘मुझे नहीं पता..’

सैम्युअल उसे घेरते हुए बोला ‘मुझे पता है, वह तब भी उसे छोड़कर चली जाती, वह प्रेम की तलाश में निकली ही नहीं थी, वह अपने जीवन की ऊब से भाग रही थी पर उसे कहाँ जाना है और क्या चाहिए पता ही नहीं था, डॉमनिक के सामने रखी शर्तें पूरी हो जाने के बाद शादी की बात सुन कर फिर उसी ऊब से घिर जाने के भय से वह छिटक कर अलग हो गई.’

शिमोर्ग झुंझला उठी ‘ऐसा नहीं है। प्रेम कई बार किसी का किसी से न होकर केवल प्रेम होता है, अपने उदात्त रूप में, मेरा मानना है कि इसकी कई अवस्थाएं होती हैं। कई बार एक समय में, एक ही संबंध में दो लोग प्रेम की अलग-अलग अवस्थाओं को जी रहे होते हैं। यही इस नाटक में भी है- एलिना का पति रॉबर्ट उससे प्रेम करता था पर वह उसे और अपने प्रेम को भूला हुआ है। वह स्त्री, एलिना जान गई है कि प्रेम क्या है। वह समझ गई है। वह उसके साथ रहना सीख गई है। किसी भी हाल में। पर प्ले में डॉमनिक शुरु से लेकर आखिर तक बिना कुछ जाने-समझे ही प्रेम में है, जीवन के प्रेम में। इसलिए एलिना के उसे छोड़ के जाने के बाद उसका अंधेरे में डूबते जाना उसका गहरे प्रेम में डूबते जाना है.’

‘कमाल की व्याख्या है, नाटक की तमाम आलोचनाओं से बिलकुल अलग। अब में उस स्त्री के पति के एश्वर्य से अलग करके उस स्त्री के चेहरे के दर्प को समझ पा रहा हूँ। दरसल में नाटक से इतर भी आपको जानता हूँ और और इसीलिए नाटक के आपके किरदार की बात करके थोड़ा और जानने की कोशिश कर रहा था।’

शिमोर्ग ने आश्चर्य से उसे देखा। उसे याद नहीं पड़ता वह उस आदमी से कभी मिली है। वह इस नाम के किसी आदमी को नहीं जानती. उसके चेहरे पर एक प्रश्न टंग गया पर वह कुछ पूछ पाती कि उससे पहले ही उसकी दृष्टि सैम्युअल के पीछे खड़े विश्वमोहन पर पड़ी। उन्होंने टेबल से लगी तीसरी कुर्सी खींची और बैठ गए.

शिमोर्ग ने परिचय कराते हुए कहा, ‘ये विश्वमोहन, उस प्ले के डायरेक्टर.’

विश्वमोहन और सैम्युल दोनों मुस्करा दिए. विश्वमोहन ने हाथ सैम्युअल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘मैं इन्हें जानता हूँ- आप नाटकों के बहुत अच्छे आलोचक हैं, ... पर माफ़ कीजिए मैंने आप लोगों की बातें सुनी, बहुत इन्टेरेस्टिंग थीं, लग रहा था मैं नाटक का लेखक और निर्देशक न होकर उसका ही कोई करेक्टर हूँ। सैम्युल जी..., आप मुझे ‘डॉमनिक की वापसी’ का व्यापारी, एलिना के पति रॉबर्ट के जैसा इन्सान भी समझ सकते हैं जो प्रेम के नाटक को निर्देशित करते हुए प्रेम को ही भूला हुआ है.’

सैम्युअल कुछ कहना चाहता था पर विश्वमोहन ने बीच में ही रोकते हुए कहा, ‘दरसल हम सभी में एक साथ ही डॉमनिक, एलिना और उसका पति तीनों रहते हैं। कभी कोई हम पर हावी हो जाता है, कभी कोई। हम कभी डॉमनिक हैं-केवल प्रेम, कभी एलिना-प्रेम को समझते उसकी चाह में भटकते हुए और कभी एक व्यापारी- दुनिया के व्यापार में अपना प्रेम भूले हुए। खैर आज इतना ही, हम दोनों को आज ही दिल्ली निकलना है। हम कल वर्ल्ड टूर पर जा रहे हैं। आपका प्रिय नाटक पूरी दुनिया देखेगी.’

विश्वमोहन ने विदा लेने के अंदाज में सैम्युअल की ओर हाथ बढ़ाया। तभी शिमोर्ग की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, ‘मैं तुम्हारे साथ नहीं आ रही हूँ.’

विश्वमोहन की पकड़ सैम्युअल के हाथ पर ढीली हो गई। उन्होने शिमोर्ग की ओर मुड़ते हुए आश्चर्य से पूछा, ‘मतलब?’

शिमोर्ग ने अपनी आवाज़ को दृड़ करते हुए कहा, ‘मतलब मैं इस टूर में नहीं हूँ। मैं यही कहने कम्युनिटी सेन्टर गई थी पर तुम वहाँ नहीं थे इसीलिए यहाँ आकर तुम्हारा इन्तज़ार कर रही थी.’

सैम्युअल अपनी कुर्सी से उठने लगा।

शिमोर्ग ने उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, ‘आप बैठे रहिए, आपके प्रिय नाटक के बारे में ही बात हो रही है।’

सैम्युअल नाटक के बाहर, एक नाटक देख रहा था पर इसका अन्त उससे अलग होने वाला था।

शिमोर्ग ने अपनी बात को और साफ करते हुए कहा, ‘मैं अब दीपांश के बिना ‘डॉमनिक की वापसी’ का एक भी शो नहीं कर सकती.’

विश्वमोहन के माथे पर गहरी लकीरें खिंच गईं, इतनी ठंड में भी उन लकीरों में पसीना चमकने लगा। अब उनके चेहरे पर पहले-सा आत्मविश्वास नहीं था, ‘शिमोर्ग.., ऋषभ कोशिश कर रहा है, कुछ समय में वो दीपांश से भी अच्छा कर पाएगा।’

‘ये तुम कह रहे हो, जो हमेशा यह कहते रहे कि सब कुछ सीखा नहीं जा सकता, मैं मानती हूँ वो बेहतर कर सकता है पर वो दीपांश नहीं है, वो ‘डॉमनिक’ नहीं हो सकता.’

विश्वमोहन की पीठ झुक गई। उन्होंने टेबिल पर कोहनियाँ टेक दीं।

सैम्युअल को शिमोर्ग अब ‘एलिना’ के जैसी लग रही थी और विश्व मोहन ‘रॉबर्ट’ की तरह। वह नाटक में अधूरे रहे आए अन्त को पूरा होते देख रहा था। वह अपने सामने- शिमोर्ग के मन में, एलिना के किरदार के दर्प को प्रेम में बदलते हुए देख रहा था। वह उसे डॉमनिक के पास जाते देख रहा था, उसकी डॉमनिक के प्रेम में वापसी देख रहा था। निश्चय ही यह अंत लेखक का नहीं जिंदगी का लिखा था, किसी निर्देशक का बताया हुआ नहीं, शिमोर्ग का अपना चुना हुआ..

शिमोर्ग खड़ी हो गई थी। उसके साथ सैम्युअल भी उठ खड़ा हुआ। उसने जेब से अपना विसिटिंग कार्ड निकाल कर शिमोर्ग की ओर बढ़ा दिया फिर थोड़ा रुक कर कहा, ‘मैं दीपांश का दोस्त हूँ। मैंने उसके इस नाटक को कई बार देखा और उसपर लिखा भी. पिछले एक साल बाहर रहा इसलिए उससे कोई सम्पर्क नहीं हुआ। आजकल कहाँ है..?

शिमोर्ग ने अपने कोट की जेब से एक पर्ची निकाल कर सैम्युअल की ओर बढ़ा दी और बहार निकल गई। उस पर्ची पर शिवपुरी के एक सरकारी अस्पताल का नाम और उसके नीचे एक फोन नम्बर लिखा था...

विश्वमोहन रेस्त्रां में अकेले बैठे थे।

***