fareb - 6 in Hindi Love Stories by Raje. books and stories PDF | फरेब - 6

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फरेब - 6


राजभा- घर पर कोई भी फोन का जवाब नहीं दे रहा। इससे पहले कुछ अनहोनी हो। हमें अभी घर के लिए नीकलना होगा, राजवीर।
राजवीर- आप बिलकुल ठिक कह रहे है, बाबासा। मैं गाड़ी निकालता हु। आप अपने मीत्रसे वीदा ले लीजिए।
राजभा- ठिक है। मगर हम पुलिस स्टेशन होकर घर जाएंगे। ताकी पुलिस भी साथ हो।
राजवीर- ठिक है बाबासा। कहकर गाड़ी निकालने चला गया और राजभा अपने मीत्रके पास।

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तरु लतासे कह रही थी। ये लड़की क्या बकवास किए जा रही है। (वो चहेरे से एकदम कनफ्युझ लग रही थी।)
मगर लता क्या बताती। वह भी यह सब समझने में असमर्थ थी।
इसी बीच वृंदा ने समीरको अपने पास बुलाया और उसके कानों में कुछ कहा। वह सुनते ही वह सीडीयो की तरफ भागा।
सारे साधु-शिष्य तो अपने काम में लगे हुए थें। मगर वीलाश ऋषभको कह रहा था। तुमने गौर किया उसकी बातों पर। वह सारे चीन्ह जो उस लड़की ने बताए ?
ऋषभ- हां। मुझे पता है। मगर ये उसे कैसे पता ?
फिर एक सवाल।
तभी समीर सीढीयो से दौड़ता हुआ उतारा और वृंदा के पास आकर रुका। उसके हाथों में कोई लंबचोरस आकार की चीज थी। जो कि कपड़े से ढकी हुई थी।
उसे वृदाने बड़ी सलामती के साथ अपने हाथों में लिया। और इस काम के इनाम के रुप में समीरको गाल पर एक प्यारीसी पप्पी मीली।
फिर ऐलान करते हुए कहा।
सुनील, सुनील, सुनीए।।।
मेरे दीलोजान, पेसे खीदमत है। मेरे प्यारकी नीशानी, मेरे यार की तसवीर। मेरे किशन की तसवीर। पेईन्टेड बाय- वृंदा।
उस केनवास को सबके सामने रखा।
( ये वही कैनवास है जीसकी तसवीर वृंदा ने अपनी मां को तक नहीं दीखाई थी। और इसी के कारण समीर पर भी गुस्सा हो गई थी।)
फिर धीरे से उसका कपड़ा हटा दिया।
तसवीर में एक इन्सान दीख रहा था। वह बड़ा ही रुआबदार और प्रभावशाली था। उपर से उसकी मुछे उसे किसी क्षत्रीय का दर्जा दे रही थी।
और, हां। वो बिलकुल वैसा लग रहा था। जैसा वृदाने अपनी बातो में बयां किया था। वही आंख पर बड़ा सा कट, छाती पर सापका चीन्ह और इत्यादी। अंत में चीत्र के एक कोने में सीग्नेचर थी- वृंदा।
तरु, लता और बाकियों का तो पता नहीं, लेकिन ऋषभ और वीलाश उसे पुरी तरह पहचान गये।
हां। वह ऋषभका चीत्र था। लेकिन उस चीत्र मे उसकी बड़ी डाढी और चहेरे परा लगा मेकअप न होने के कारणा, ओर कोई उसे पहचानने में मात खा रहा था।
मगर वीलाश और ऋषभ उसे देखकर भौचक्के रह गये। क्योंकि किसीका भी चीत्र, उसे बीना सामने देखकर बनाना। वो काफी मुश्किल काम है।
ऋषभ वीलाश से- ये मुमकिन नहीं है। मैंने आज तक कोई चीत्र नहीं बनवाया। तो फिर ये कहा से आया ?
वैसे भी इस समय में हमारे देश में कुछ गीने चुने ही चीत्रकार है, जो ऐसा कमाल कर सकते हैं। और उनमें से कोई भी राजस्थान का नहीं है।
वैसे भी ये चीत्र लगभग तबका है, जब मेरी उम्र १८-१९ रही होगी।
वीलाश- ये मुमकिन हो सकाता है।
हां। अगर कोई व्यक्ति प्रेममे है। तो वह जरुर ये कर सकता है।
तो क्या, ये लड़की सच तो नहीं बोल रही ?
ऋषभ- इसका भी पता लगा लेंगे। एक काम करो सब परीवारको कमरे में भेजो और इस लड़की को संमोहन की पुडीया खीलाओ। सच क्या है ?
अपने आप मालुम लग जाएगा।

वीलाशने बिलकुल वैसा ही किया। सबको बताया गया की गुरुजी अकेले में वृदासे बात करेंगे। जो भी बात है, पता लग जाएगी। इसीलिए सब कमरे में इंतज़ार करो। सभी ने ठिक वैसा ही किया।
सभी शीष्योको भी दुर रखा गया। अग्नीकुंड जलाकर सारा इंतजाम कर। वृदाको सामने बीठाया। वहां केवल वृंदा, वीलाश और ऋषभ थे।
प्रपंच के नाम पर वृदाके सर पर तीलक लगाकर दाएं हाथ की कलाई पर धागा बांधा गया। फिर गंगाजल बताकर उस पानी में संमोहनकी पुडीया दी गई।

वृदाने हिचकते हुए, मगर उस घोलको पी गई। उसे पीते ही वृंदा की आंखें सुस्ताने लगी। वह किसी बेहोसी की दशा में खो गई।

वीलाश- तो ऋषभ अब तुम्हारा काम शुरू होता है। पुछो जो पुछना है। अब ये सीर्फ सच और सच ही बोलेगी।
ऋषभने वृदाकी ओर देखा। उसकी गर्दन कुछ नीचे की ओर झुक रही थी। आंखें बंध होने का प्रयास कर रही थी। मगर उसकी चेतना उसे ये करने से रोक रही थी। इसीलिए आंखें आधी खुली-बंध हो रही थी।


तभी उसने कहा, वृदा।
मगर उसका कोई जवाब नहीं आया। फिर उसने जोर से आवाज लगाई, वृंदा सुनो।
वृंदा- उसने अपना सर झटके से ऊपर उठाया। मानो किसीने उसका सर पानी में डुबो रखा हो, और छुटने पर सांस लेने के लिए जिस तरह सीर उठता है। बिलकुल वैसे ही। उसने उठाया।
और बोली को...कौन है ?
वो बोला, मैं हु वृंदा। ऋषभ
वृंदा- ( नशे के लहेजे में) चल झुठे। तु तो मीत है। मेरा मन मीत।
वह, हां ठिक है। मैं मीत हु।
अब एक बात बताओ। ये बालों का बंध तुम्हारे पास कहा से आया ?
वृंदा- बताया तो था अभी। हमारा खानदानी बंध है। मां ने दीया था। लेकिन पता है मुझे क्या लगता है। ये वही बंध है, जो धरा के पास था। यानी मेरे पास और तुमने मुझे पहनाया था।
ऋषभ- तो ये बताओ, उस दीन मंदीर में तुम ही थी न। वो लड्डु और पायल।
वृंदा- हा, मैं ही तो थी।
ऋषभ- तुम वहां क्यु आयी थी ?
वृंदा- मैने तुम्हे नदी किनारे नहाते हुए देखा था। और जब मुझे सपने से पता चला की, तुम ही मेरे किशन हो और इस जनम के मीत। तो देखने चली आती की तुम्हे मेरे बारे कुछ याद है, या नहीं।
जैसा गुरुदेव ने कहा था। तुम्हे कुछ भी याद नहीं है। सब मुझे ही तुम्हे बताना पड़ेगा। लेकिन उस बक्त बताती, तो तुम विश्वाष नहीं करते। इसीलिए घर पर बुलवाया। भागने के चक्कर में मेरी पायल भी गीर गई। देखो एक ही पहनकर घुम रही हु।
लाओ दो मुझे। तुम्हारे पास है ना।
ऋषभ, देता हु मगर एक शर्त पर। तुम मुझे ये सच-सच बताओ की, जो कहानी तुमने सबके सामने सुनाई। वह मनघड़ंत थी ना ?
उसमें कोई भी सच्चाई नहीं थी ?
वृंदा, अरे क्या कह रहे हो ! मीत।
वो कहानी एकदम सच्ची थी और हमारी थी। तुम्हे समझना पड़ेगा, हमारा प्यार। तुम्हे अंदाजा ही नहीं की तुम मुझसे कितना प्यार करते थै। ऐसा प्यार तुम किसी से नहीं कर सकते। यहां तक की तुम खुदसे भी इतना प्यार नहीं कर सकते।

ऋषभ- मनमे सोचते हुए, फिर वही बात।
इसे वो बातें कैसे पता ?
जो पांखी मुझसे कहा करती थी। वो भी यही कहती थी की, अगर आप किसीसे प्यार करते हैं। तो आप खुदसे उतना प्यार नहीं करते। जीतना अपने प्रेमी से करते हो।
फिर धीरे से बोला। ये तुमने बालों में,
और वृंदा बोली पड़ी, अच्छा है ना। मुझे पता था। तुम्हे ये परफ्युम पसंद आयेगा।
तुम्हे पता है ?
जंगल में भी मैं वैसा ही करती थी। मोगरे के फुलके साथ गुलाब की खुशबू।
अभीभी वैसा ही है। दो अलग परफ्युम एक साथ। मोगरा वीथ रोस कोम्बीनेसन । किसी भी दुकान पर चले जाओ नहीं मीलेगा।
ऋषभ दंग रह गया। फिर बोला, इसीलिए मुझे कहीं पर मीलता नहीं था।
वृंदा- ओके हनी, वो सब छोडो। गीली मी माय पायल बेक।
ऋषभ- एक आखरी सवाल, तुम किसी पांखी नामकी लड़की को जानती हो ?
वृदा- पांखी, कौन पांखी ?
देखो, में पहले ही कह देती हु। अगर किसी लड़की के पीछे हो, तो भुल जाना वरना मार डालुगी।

वीलाश- लगता है, तेरे सारे सवाल खत्म हो गये। और मुझे नहीं लगता की कोई संम्मोहित व्यक्ती झुठ बोल सकता। इसीलिए तुझे इसके यही सचके साथ रहना होगा।
और उसकी नजर बाहर की ओर गई तो देखा। खीडकी पर कोई खड़ा है। वीलाशने अपने एक शिष्य को पास बुलाया और कानमे कुछ कहा।
ऋषभ- हां, अभी काफी वक्त हो गया है। हमें चलना चाहिए। बाकी का बादमें सोचेंगे।
( वीलाशकी ओर देखकर) तु घर वालो को कोई सी भी कहानी सुना दे। बादमें नीकल, कहना फिर आयेंगे।
वीलाशने वृदाके मुंह पर पानी मारा और होशमे लाया। फिर घरवालों को लंबीचोडी कथा सुनाई की, वृंदा पर इसका सारा है और ये वो सब।
और अंत में हम फिर बड़ी पुजा करेगै। अभी चलते हैं।

घर के बाहर। शिष्य वीलाश और ऋषभ से कहता है। खिड़की पर कोई तो था। मगर मुझे देखकर भाग गया। कोई तो लड़का था। तकरीबन २२-२४ साल का रहा होगा। और हां। उसके हाथ में एक राजस्थानी कड़ा था। जिसके छेड़ो पर दो हंसकी आकृती थी।
वीलाश ऋषभकी ओर देखकर, कौन हो सकता है ?
ऋषभ- कोई नी, उसका भी पता चल जाएगा। वैसे कौन हो सकता है ?
जो हमारी जासूसी करेगा। खैर छोड़ो आज बहुत झटके मीले है और नही चाहिए।
और गाड़ी में बैठ अपने ठिकाने को रवाना हो गये।

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अभी साधुको विदाकर तरु और सब वृंदा की ओर जा ही रहे थै। लेकिन वृंदा किसी से भी बात किए बिना, अपने कमरे में जा घुसी।
तरु अभी वृंदा को रुकने के लिए आवाज लगाने वाली ही थी, की दरवाजे पर किसी के आनेकी आवाज सुनाई पडी। सब मुडे तो देखा ७-८ लोग घर में घुसे आरहे थै।
तरु ने उनमें से एक को पहचाना वो राजभा था। फिर दुसरा राजवीरभा। और बाकी कौन पता नहीं। मगर कपड़े साफ बता कर रहे थै। कि वो पुलीस है।
उन्होंने आते ही कहा, कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा। बिलकुल फिल्मों की तरह।
सब अपनी जगह पर खड़े रह गये। और राजभा का सवाल आया- वो कहां है ?
तरु- कौन ?
राजभा- अरे, वही साधु बाबा। जो पुजा के लिए आने वाले थै। नहीं आये क्या ?
वह बोली, आये थै और पुजा करके चले भी गये।
राजभा- क्या, चले गए ?
घर का सामान देखो, क्या कुछ चोरी हुआ है।
राजवीर की ओर देखकर, हमें आने में देरी हो गयी। अब तक तो सब कुछ चुरा लिया होगा।
तरु, ( असमंजस में) क्या बोल रहे हो ?
कौन चोरी करेगा हमारे घर में , वो भी दीन के समय में। यह कहते हुए चंपाको इशारा किया, जा ऊपर जाकर देख। सबकुछ ठीक है या नहीं। और चंपा ऊपर चल दी।
राजभा- वो साधु की टोली। वही तो चोर है।
तरु- साधु, वो क्यु चोरी करेंगे ?
वह बोला, क्योंकि वे कोई साधु नहीं बल्कि चोरों की टोली है। जो साधु का वेश लेकर आते है।
तभी चंपा ऊपर के कमरे देखकर आयी। और कहने लगी। मालिक- मालकीन, चोरी तो कुछ भी नहीं हुआ। सारा सामान ज्यो का त्यो है।
ये सुनकर दरोगा बोला, हा। चोरी नहीं हुई। क्योंकि वो लोग रात को लुटते हैं। अभी तो केवल देखने आये होंगे, कि कौनसी चीज कहा रखी है।
मगर एक बात मैं साफ करदु। मैं ये बिलकुल भी नहीं कह सकता कि, जो आपके घर पुजा करने के लिए आये थै। वह चोर थै। क्योंकि हमें सीर्फ इतना ही पता है की, राजस्थान में एक साधुओ की गीरोह घुम रही है। जो चोरीया करती है। तो इस हिसाब से ये लोग बेगुनाह भी हो सकते हैं।
अगर कोई और मुझे कहता, तो मैं आता भी नहीं, लेकीन जमीनदार जी ने कहा, तो मैं मना नहीं कर पाया। क्योंकि यहां तो यह घर पुजा-हवन होते रहते हैं। तो मैं हरेक जगह तो नहीं जा सकता ना।
तरु- हां। आप बिलकुल ठिक कह रहे है। मुझे तो वे सीध्ध साधु लगे। उन्होंने वृंदा के बारे में काफी कुछ बताया है। मगर उलझाया भी बहुत है।
राजभा- ( ऊंचे आवाज में) वो मैं नहीं जानता। वैसे भी मैं इन साधु-संत को नहीं मानता। मैं तुम्हारी बात मानकर, अपने घर को किसी मुसीबत में नहीं डालूंगा। इसीलिए मेरा ये फैसला है कि, आज के बाद घर में कोई साधु नहीं आयेगा।
तरु- लेकिन।
वह बोला, लेकिन, अगर, मगर कुछ नहीं तरु। ये मेरा आखरी फैसला है।
उसके बाद तरु चुप हो गयी। क्योंकि आगे बोलना, खुदके लिए परेशानी खड़ा करना हो सकता है। ये तरु जानती थी।
फिर दरोगा की ओर देखकर राजभा बोला, आप एक काम किजीए। दो- तीन हवलदार को यही छोड़ जाइए। क्या पता सचमे वह चोरी करने आजाए।
दरोगा के पास राजभा की बात मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। इसीलिए उसने ठिक वैसा ही किया। फिर राजभा की आग्या लेकर वहां से रवाना हुआ।
राजभा का आदेश पाते ही। राजवीर और लता अपने कमरे की ओर हो लिए। मगर तरु उसके फैसले से बिलकुल खुश नहीं थी। उसे अभी भी ऋषभ पर भरोसा था। मगर वो राजभा के सामने बोल नहीं सकती थी। इसीलिए ओर पत्नीयो कि तरह अपना गुस्सा दीखाने के लिए। अपने पैर ठोकती हुई अपने कमरे में चली गई।
राजभा तरुकी यह आम आदत को देखकर, मुस्कुराने लगा। और फिर सोफे पर बैठ कर, उसे जाता देखने लगा।


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- जारी