दो सदियों के पश्चात ये चिराग़ एक चरवाहे के हाथ लगा ये चरवहा नगर के लोगों की भेड़ बकरियों को जंगल में चरवता और दिन भर की कड़ी मशकत कर दो पैसे कमाता उसको मिलने वाली राशि से वो अपने परिवार का पेट भर पोषण करवाने में भी असफल रहता किंतु इतनी कठिन परिस्थितियों में भी वो धेर्ये और संतोष के साथ ईश्वर का आभार व्यक्त करता यहाँ तक कि उसकी निष्ठा लग्न और आस्था का लोग उधारण देते
ऐसे व्यक्ति को ऐसा तिलिस्मि चिराग़ मिलना किसी इश्वरिये चमत्कार से कम नहीं था चरवाहे को लगा जैसे उसकी कठिन तपस्या और भक्ति से प्रसन्न हो कर उसको ईश्वर की और से ये अद्भुत वरदान मिला है।
उसके परिवार में उसके अतिरिक्त उसकी विधवा माँ उसकी प्राण प्रिय पत्नी और एक कोमल सा बालक था
माँ अनुभवी महिला थी वो जानती थी के जीस प्रकार मधुमखि मधुर शहद की ओर उसे लूटने के लिये खिंची चली आती है।
ठीक उसी प्रकार से अचानक प्राप्त धन सम्पत्ति की ओर नीच लोभी व्यक्ति अहित के उद्देश्य से खिंचे चले आते है
इसलिए चरवाहे की माँ ने एसी सांसारिक समस्याओं से बचने के लिए लोगों से दूर एकांत में अपना हीरे मोतियों से भरा भवन निर्मित करवाया
कहते हैं। आग लगने पर जो धुआँ निकलता है उसको लाख छुपाओ वो छुपता नहीं
उन्होंने भवन तो छुपा लिया मगर दिन प्रति दिन पड़ने वाली साधारण आवशक्ताओ का क्या करते कपड़ा भोजन और अन्य व्यवस्था के चलते उनको लोगों के बीच आना ही पड़ा और धनवान बनने के बाद चरवाहे के परिवार का खर्चा भी अधिक हो गया उन्होंने दान धर्म मे भी खूब बड़चढ़ कर भाग लिया
कल तक जो लोग दाने दाने को तरसते थे आज अचानक कैसे इतने बड़े दानी हो गए?
इस प्रकार की चर्चा नगर के चारो और होने लगी
जिसके कारण कुछ निर्दय आभद्र डाकुओं की संदेहदृष्टि उन आभागो पर पड़ गई
और चरवाहे को मिला तिलिस्मी चिराग का वरदान अब उसके लिए श्राप में परिवर्तित हो गया
वो ग्यारह आक्रामक क्रूर और हिंसक डाकुओं का ग्रोह था वो चरवाहे के घर पर घात लगाएँ बेठने लगे और एकदिन उचित अवसर पा कर उन वहशी डाकुओं ने चरवाहे के घर पर हमला कर वो जादुई चिराग़ और सारा धन लूट लिया
यूँ तो चरवाहा उन दुष्टो को चिराग का रहस्य कभी ना बताता किन्तु अपने परिवार के प्राणो को संकट मे देख उसने विवशता पूर्ण चिराग का रहस्य बता दिया और उन पापियों ने रहस्य जानने के पश्चात् भी चरवाहे के परिवार को जीता ना छोड़ा उन्होने चरवाहे समेत पूरे निर्दोष परिवार की बड़ी दुष्टता से हत्या कर दी
लोभ एक ऐसी बीमारी है। जिसके प्रभाव से रोगी बड़े से बड़ा दुष्कर्म अधर्म और अनर्थ करने में भी रत्ती भर संकोच नहीं करता
लोभ और रक्त की अपनी वासना को संतुष्ट कर अपने गुप्त रूप से बनाए बीहड़ ठिकाने पर सभी डाकू पहुँच गए
सबसे प्रथम उनके मुखिया ने उस चिराग़ की परीक्षा ली उसने जिनी द्वारा एक तिलिस्मि गुफा का निर्माण करवाया वो गुफा केवल दो गुप्त शब्दों से खुलती
निर्माण पश्चात् डाकूओ ने देखा के जीनी द्वारा बताय दोनों शब्दों को बोलने पर सामने के पर्वत मे हलचल होने लगी और पर्वत के भीतर से बेहद त्रिव धवनिया उत्पन्न होने लगी सुनने में वो ऐसी थी जैसे कोई विशालकाय आटे की चक्की चल रही हो पर्वत दो भागो में विभाजित हो जाता हैँ और उसके भीतर एक विशालकाय गुफा प्रकट हो जाती हैँ अबतक डाकुओं को जिनी पर अटल विश्वास हो गया था
अर्थात सभी डाकुओं ने एक एक कर अपनी तीनो इच्छाओं का वर्णन किया सभी ने एक से बड़कर एक चीज़ माँगी जैसे की हीरे मोतियों का भण्डार ,जादुई क़ालीन ,चमत्कारी छड़ी ,तिलिस्मि ख़ंजर इत्यादि प्रकार की कई अदृभुत रहस्यमइ और जादुई वस्तुओं से वो गुफा भर गई
फिर चिराग़ अंतिम शेष रहे डाकू के पास आया
इस समय तक अंतिम अवसर मिलने वाले डाकू का कण कण लोभ में मिश्रित हो चुका था
जिस कारण उसने अपनी प्रथम इच्छा पर ही अपने साथियों का वध करने का जिनी को आदेश दे दिया वो सभी डाकू सन्न रह गए उन्मे से दो डाकू क्रोध में छल करने वाले डाकू की ओर लपके और अन्य अपने प्राणो की रक्षा हेतु जंगल की शरण में चले गए
किंतु अब कुछ नहीं हो सकता था शब्दों के बाण चल चुके थे जिनी ने प्रलय की भाँति मोके पर उपस्थित उन दोनो डाकुओं को सूखे कपड़े की तरह चिर कर पटक दिया उसके पश्चात
एक एक कर अन्य डाकुओं का बड़ी ही निर्दयता से शिकार करने लगा सभी डाकू अपनी प्राण रक्षा हेतु पास के एक जंगल की शरण मे जा छुपे थे जो की व्यर्थ सिद्ध हुआ उस शांत जंगल में उनकी चीख़ पुकार चारों ओर के वातावरण को चिरती हुईं भयंकर रूप में दूर दूर तक जाती
मनुष्य मन भी बड़ा विचित्र होता है। प्रेम ,पश्च्य्ताप, और आत्मग्लानि जैसे भाव ना होने को तो पूरे जीवन नहीं होते पर कई बार एक ही घटना भर से हमारा मन इन भाँवो से आघात हो जाता हैं।
अपने साथियों की कष्ट पूर्ण चितकार ने उस घाती के मन का लोभ भस्म कर करुणा और ग्लानि से भर दिया
ख़ूँख़ार नरसंहार कर जिनी अपने स्वामी के समक्ष आ गया तो अंतिम डाकू ने । अपने साथियों को पूर्ण जीवित करने का निर्णय लिया
मगर अबकी बार उसे जिनी द्वारा केवल र्निआशा ही मिली कियोकि कोई भी जिनी किसिको पूर्ण जीवित नहीं कर सकता
इन बातों को सुन उसको अपनी दुर्भावनाओ पर क्रोध आने लगा उसका मन प्रश्चित करने के लिये व्याकुल हो उठा
उसने अपनी मोह माया को त्याग कर तपस्वी बन्ने का उचित निर्णय लिया
परन्तु उससे पहले उसको चिराग़ के प्रति कुछ ऐसा करने का विचार आया के आगे कभी भी वो चिराग़ किसी भी अन्य लोभी दूषित आत्मा के हाथ ना लग पाये