शौकीलाल जी के बढ़ते कदम में मैंने बेड़ी डाल दी। ज्योंही वे मेरे क्वाटर के सामने से गुजरने लगे, मैं उन्हें घेर कर खड़ा हो गया।
शाम के आठ बजने वाले थे। मैं फुर्सत में था। टाइम पास करने के लिए मुझे किसी बैठे-ठाले की तलाश थी। तभी लपकते-झपकते चले आ रहे शौकीलाल जी पर मेरी नजर पड़ गई। आरे वाह, इसी को कहते हैं- जहाँ चाह, वहाँ राह। गप्पें मारने के लिए भला शौकीलाल जी से अधिक उपयुक्त पात्र और कहाँ उपलब्ध हो सकता है! बहत दिनों से उनसे मिला भी नहीं था। यह भी पता नहीं था कि जनाब आजकल किस शौक के चपेट में हैं।
-' रुकिये, रुकिये शौकीलाल जी, इतनी तेजी के साथ आप कहाँ भागे जा रहे हैं? देखते नहीं, आज कल सारा कुछ कितना मंद गति से चल रहा है। हमारी सरकार मंद गति से चल रही है, विकास की योजनायें मंद गति से चल रही हैं, उद्योग धंधे मंद गति से चल रहे हैं। और आप हैं कि तूफान बने जा रहे हैं। आइए, आज आप को अदरक वाली चाय पिलाता हूँ। याद है, पिछली बार आप को अदरक वाली चाय पिलाई थी जब भाभी जी ने आप को चाय पिलाने से मना कर दिया था। शायद स्ट्राइक कर दी थीं। याद आया?
-' नहीं आज नहीं, फिर कभी। आज मैं जरा जल्दी में हूँ।' कन्नी काटते हुए शौकीलाल जी ने कहा। और मेरे बगल से खिसकने की कोशिश करने लगे। मैं आज के उनका व्यवहार देखकर घोर आश्चर्य में पड़ गया। अदरक वाली चाय पर जान छिड़कने वाले शौकीलाल जी आज साफ इनकार कर रहे थे। जरूर दाल में काला है। कारण जानने की उत्सुकता जाग गई। मैंने पूछ लिया-' क्या हुआ शौकीलाल जी, आज कौन सी ऐसी बात है ?'
-' अरे, आज 26 जनवरी है भाई, तुम्हें नहीं मालूम?'
-' 26 जनवरी को चाय नहीं पीने का कोई नया विधान बन गया है क्या? चलिए मान लिया कि चाय पीने की मनाही है आज, फिर भी झण्डा तो सुबह फहर गया। आप आठ बजे शाम को इतना बेचैन क्यों हैं? कहीं कवि सम्मेलन है क्या ? क्या आप फिर से कविताई के शौक से ग्रसित हो गये?
शौकीलाल जी ने झट से बात काट दी-' ओह, नहीं भाई, कविता-वविता लिखने से तो मैं कब की तौबा कर ली ।
- यार, मैं आज जरा जल्दी में हूँ।' व्यग्र होकर उन्होंने कलाई घड़ी देखी और जल्दी- जल्दी कभी दायीं टांग पर कभी बायीं टांग पर शरीर का भार देकर खड़ा होने लगे। इतनी व्यग्रता से इस तरह की हरकत बस एक ही तलब के लिए हो सकता है। मैंने सोचा, कहीं शौकीलाल जी का प्रेशर बढ़ तो नहीं गया। शाम का समय भी था। इंसानियत के नाते मैंने प्रस्ताव रखा-' शौकीलाल जी, आप का क्वाटर अभी दूर है। पाँच मिनट तो लग ही जाएंगे। ऐसा कीजिए न, मेरा बाथरूम यूज कर लीजिए। आइए, संकोच मत कीजिए। '
-' ऐसा वैसा कुछ नहीं है भाई। तुम खामख्वाह परेशान हो रहे हो।' कुछ-कुछ चिढे-से उन्होंने कहा।
मैं चेहरे का भाव पढ़ कर जान गया, शौकीलाल जी कहना कुछ चाहते हैं, कह कुछ और रहे हैं। दरअसल वे कहना चाहते थे- तुम खामखाह मेरे पीछे पड़े हो। उनके असामान्य व्यवहार के कारण मेरी उत्सुकता चरम बिन्दु पर पहुँच गई। निश्चय कर लिया- छोडूंगा नहीं। आज शौकीलाल जी के बदले तेवर का राज जानकर रहूँगा।
मैंने दोबारा जानना चाहा-' शौकीलाल जी, आप इतना बेचैन क्यों हैं? आखिर 26 तारीख को ऐसा क्या होनेवाला है? कुछ तो बताइए। '
-' छप्पर फाड़ के।' उन्होंने बे-लाग कहा। मैं संसय में पड़ गया। कहीं बेरोजगारी के थप्पड़ ने शौकीलाल जी को छप्पर की याद तो नहीं दिला दिया। आज बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहे हैं। सही जवाब क्यों नहीं दे रहे। यहाँ 'छप्पर फाड़ कर' मुहावरा सुनाने की क्या जरूरत थी? मैं उनका चेहरा गौर से देखने लगा। अंदर से भयभीत भी था। गली में सन्नाटा पसरा था। अंधेरे के आगोश में भी मुहल्ला आ गया था। सिरफिरे का क्या भरोसा कब ईंट, पत्थर चलाने लगे। शौकीलाल जी का तेवर ठीक नहीं लग रहा था। मैंने डरते हुए पूछा-' आप की तबियत तो ठीक है न शौकीलाल जी।'
-' मेरी तबियत तो ठीक है, तुम्हारी तबियत को क्या हुआ? तुम्हारा जेनरल नालेज तो एकदम सिफ़र है।'
-' कैसे?'
-' तुम्हें नहीं पता आज टी वी पर क्या आनेवाला है ? नहीं पता तो सुनो, आज अनहोनी चैनल से एक धाँसू प्रोग्राम आनेवाला है- जीतो छप्पर फाड़ के ।
मैं मन ही मन हंसा। दाद देनी पड़ेगी शौकीलाल जी को और उनके जेनरल नालेज को। बोला-' अच्छा ऐसी बात है। बड़ी उम्दा किस्म की जानकारी दी आपने। चलिए फिर, आपके साथ आपके क्वार्टर में ही धाँसू कार्यक्रम का लुप्त उठाया जाए।'
मैं शौकीलाल जी के नये शौक के तह तक जाना चाहता था। मेरा टाइम पास भी हो जाता। मेरा प्रस्ताव उन्हें कबाब में हड्डी की तरह लगा। वे शायद एकाग्रचित्त होकर प्रोग्राम देखना चाहते थे। बिना किसी बिघ्न-बाधा के। लेकिन मैं जबरन उनके गले पड़ रहा था। वे ना हाँ कुछ नहीं बोले। आगे बढ़ गये। खामोशी से मैं भी उनके पीछे लग गया।
लम्बा डग भरते हुए वे अपने क्वार्टर आये। (जारी है)
@ कृष्ण मनु
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