अमर प्रेम
(6)
उधर राहुल के मन की खुशी भी चौपाये नहीं चुप रही है।
बहुत नसीब वाले होते हैं वो जीने प्यार को मंजिल मिला करती है।
वरमाला गले मैं पड़ते ही दोनों को एहसास होता की अब वो दो जिस्म एक जान हो गए।
जबकि अभी तो बहुत सी रस्में बाकी हैं।
अभी तो स्टेज पर आए लोग आशीर्वाद दे रहे हैं और नज़र उतार रहे हैं जोड़े की हर कोई खुश है।
अब धीरे-धीरे फेरों का वक्त निकट आरहा है।
दोनों के दिलों कि धड़कने धीरे-धीरे बढ़ रही है और दोनों के दिलों में इस वक्त एक ही गाना बज रहा है।
बन के वो मेरा नसीब आरहा है.....
और समय आ गया सात फेरों का जन्म-जन्मांतर के बंधनों में बाध जाने का सदा-सदा के लिए एक दूजे के हो जाने का फिर आई मंगलसूत्र और मांग भराई की बारी
और बस राधा होगाई श्याम की, फिर शुरू हुआ कार्यक्र्म अहिरवादों का पैर छुआई और पैर पुजाई का
यह सब हो जाने के बाद ज़रा देर रुकाई का और फिर आ गया समय लो इतनी जल्दी बिदाई का
यह वो पल है जो आम नहीं होता। हर लड़की के लिए यह सबसे खास मौका होता है जिसमें खुशी के साथ ग़म के आँसू भी होते हैं।
नये रिश्तों के जुडने की खुशी तो पूराने रिश्ते छूटने का गम भी होता है।
लोगों को लगता है ऐसे मौके पर लड़कियां सब को दिखाने के लिए रोती हैं लेकिन सच तो यह है की लड़कियां अपना सब कुछ छूट जाने के लिए रोती हैं।
जिस घर मैं वह पैदा हुई, पली, बढ़ी, पढ़ी, उसी घर को आज उसे छोड़ना पड़ रहा है। लड़कियां इतनी खास होती है की उनका रिश्ता न सिर्फ सजीव चीजों बल्कि बेजान चीजों से भी जुड़ा होता है इसलिए घर की हर एक चीज़ उन्हें पुकारती है, यूँ ही लड़की घर की दीवारों से लिपट लिपट के रोती है। घर के समान को छु छु कर रोती है।
भले ही कहने को अगले ही दिन आना हो लड़की को अपने घर पग फैरे के लिए आना हो। मगर फिर भी उस वक्त ऐसा लगता है जैसे मानो हमेशा के लिए यह घर छूट रहा है और फिर जैसे कभी आना ही नहीं होगा।उस पल को शब्दो में सम्झना शायद हर लड़की के लिए बहुत मुश्किल है। जो भाव और जो भावनाएं उस वक़्त हर लड़की के मन में होती है उसे शायद यह समाज या कोई लड़का कभी समझ ही नहीं सकता क्यूँ अपना सर्वस्व छोड़कर आना और किसी और के जीवन में आकर एक नयी दुनिया बसाना केवल एक लड़की ही कर सकती है
यूँ तो पढ़ाई लिखाई के चक्कर में, और नौकरी की खातिर हर लड़ा अपने माँ-बाप को छोड़ दूसरे शहर में रहता है।
लेकिन उस वाट उसके मन में वापस आने पर नये सिरे से ज़िंदगी शुरू करनी होग जैसी चुनौती नहीं होती क्यूंकि वह उसका घर ही होता है जहां बचपन से उसकी मर्ज़ी से सब चलता आया होता है। उसे किसी से कुछ पूछने या सीखने की जरूरत नहीं होती।
इन सब चीजों की जरूरत किसी को पड़ती है तो ह केवल लड़की को पड़ती। नये घर में नये लोग सबका भिन्न-भिन्न व्यवहार और पसंद।
फिर चाहे वह पसंद खाने पीने की हो या पहने ओढ़ने की, हर किसी को नयी बहू से अपेक्षाएँ भी बहुत होती हैं। बहुत कम परिवार ऐसे होते हैं जो बहू की मनोदशा को समझते हुए व्यवहार करते हैं।
खैर, हमारी अंजलि बहुत खुश नसीब है, जो उसे यह सब नहीं झेलना क्यूंकि राहुल के घर उसके पिता के अतिरिक्त और कोई है ही नहीं जिसके साथ अंजलि को ताल मेल बिठाने जैसी डिकट्टों का सामना करना पड़े।
हाँ अभी कुछ इनो के लिए अंजलि को थोड़ी परेशानी होगी क्यूंकि शादी का घर है मेहमान अभी यही हैं। और अभी तो कथा कहानी जैसे छोटे मोटे रस्मों रिवाज बाकी हैं। और अभी बहुत से ऐसे मेहमान भी बाकी हैं जिन्हें अंजलि के हाथ बना खाना खाना है तो किसी को केवल खीर खानी है।
राहुल के घर के कुछ बड़े बुजुर्ग हैं जो यह सारी रस्में अदा कर वाएंगे। जैसे बुआ जी चाची टाई इत्यादि कुछ छोटी बहने भी हैं
चचा ताऊ की
दरवाजे पर कार आकर रुकती है।
घर की महिलाए गीत गाना शुरू कर देती हैं। दुलहा दुल्हन घर के द्वार पर पहुँचते हैं।
जहां उनकी चाची हाथों में पूजा की ताली और द्वार पर चवाल से भरा कलश लिए खड़ी हैं
पीछे बुआ जी कुमकुम को एक प्रांत में घोले सफ़ेद चादर बिछाये बहू के ग्रह प्रवेश की राह देख रही हैं
चोटी बहने सभी रस्मों के पूर्ण होने का बड़ी बे सबरी से इतेजार कर रही है।
जल्दी करो न मम्मी हमें भ्भि से बहुत सी बातें करनी है
मुझे neg भी तो लेना है
अरे यह सब तो ठीक है भैया भाई को वो मछ्ली और अंगूठी वाला खेल भी तो खिलाना है
हाय कितना कुछ बाकी है और सब लोग इतनी धीरे-धीरे सब कर रहे हो की पूछो ही मत
पीछे से टाई जी आवाज़ आती है
अरे ओ ...बावले उतावलों अभी बहुत समय है
जरा देर शांति रखो अभी तो बहू के हल्दी वाले हाथ भी लगवाने हे दरवाजे की पास वाली दीवाल पर
और तुम लोगों को बस अपनी अपनी पड़ी है चलो भागो यहाँ से,
अरे अभी कैसे जाएँ अभी तो भैया को हमें नेग देना बाकी है।
अभी तो कमी का टाइम है मोसी अभी कैसे जाने दें
क्यूँ भाभी सही कह रही हूँ न मैं,
अंजलि मुसकुराते हुए हाँ बिलकुल यह तो बहनों का हक बनाता है।
बिलकुल छोड़ना मत अपने भैया को,
पीछे से नकुल के दोस्तों की आवाज आती है अरे वाह ! क्या बात काही है भाभी
भाई लोग भाभी अपने साथ है
अब चिंता की कोई बात नहीं अब आपण ओ चाहें वो ले सकतेन भाई से क्यूँ भाई माना तो नहीं करोगे न हाँ हाँ....चुटकी लेते हुए दोस्त छेड़ रहा है राहुल को
इधर चाची दोनों का ठीका करती है मीठा खिलाती है और आरती उतार कर बहू से उस कलश को दायें पैर से ठोकर मारते हुए अंदर आने को कहती है।
के पीछे से फिर टाई की आवाज़ आती है रुको रुको......!
दो पल के लिए सब स्तब्ध रह जाते हैं
पूरे माहौल में सन्नता बिखर जाता है, क्या हुआ दीदी दरी हुई अवाद में चाची जी पूछती हैं।
होना क्या है, कल्पना अरी ओ कल्पना कुमकुम की थाली लिए ही खड़ी रहेगी की हल्दी भी घोल कर लाएगी जल्दी से बहू के हाठे नहीं लगवाने हैं क्या दीवाल पर
वहाँ खड़ी बुआ जी सकपकाई सी हाँ....हाँ भाभी क्यूँ नहीं अभी लायी
भागकर जाती है और एक थाली में हल्दी घोल कर ले आती है
लो बहू अब इस थाली में अपने दोनों हाथ रंग कर द्वार पर लगा दो और फिर ग्रह प्रवेश करना।
जी कहते हुए अंजलि अपने सुंदर सुंदर म्हेंदी वाले गोरे गोरे पतले पतले हाथ हल्दी की थाली में डुबो कर द्वार पर लगा देती है।
अभी फिर दोनों अंदर की तरफ कदम बढ़ते ही हैं की फिर एक ओर से आवाज़ आती
ठेरो!
बहनो को भूल गए क्या फेले हमारा नेग निकालो फिर अंगार आने देंगे।
हम पाँच बहने है आपकी... अब आप सोच लो हम पंचो को बराबर बराबर हिस्सा मिलना चाहिए।
अब तो भाभी ने भी हाँ कह दी है।
एक हज़ार एक तो आपको सबको देने ही पड़ेंगे चाहे जो हो।
इतना ! न भई ना एतना तो बहुत है मैं नहीं देने वाला इतना
हाय भैया कितने कंजूस हो शादी कौन बार बार होती है एतना भी नहीं कर सकते अपनी प्यारी बहनो के लिए। हुम्म
बोलो न भाभी भैया को नहीं तो हम अंदर नहीं जाने देंगे खड़े रहना रात भर यहीं,
अरी लड़कियों जल्दी करो जो करना है अभी बहुत सी रस्में बाकी है फिर इन लोगों को उस सब के लिए भी तयार होना है।
हाँ हाँ हमने कब रोका है भैया को नेक दें और जाएँ।
दे दो ना, क्या तुम भी बच्चों का मन नहीं रखते हो क्या, इधर आओ तुम लोग यह लो पाँच हजार हैं जाओ एश करो।
अंजलि ने यह कदम जल्दी समस्या का समाधान हो इसलिए उठाया था न की किसी को नीचा दिखने या किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना
किन्तु सब कुछ जानते बुझते और समझते हुए भी राहुल को यह बात ठेस पहुँचा गयी।
जो उसके चेहरे से कुछ पंचायती रिश्तेदार समझ गए।
परंतु अंजलि की समझ में कुछ नहीं आया क्यूंकि उसका तो कोई ऐसा इरादा ही नहीं था जो वह यह समझ पाती।
खैर बहू का गृह प्रवेश हुआ और कुछ आस पड़ोस वाली लड़कियां अंजलि को लेकर चली गयी चलो भाभी जल्दी से नहा धोकर तयार हो जाओ अभी कथा होनी है और फिर कुछ खेल भी बाकी हैं जिनमें आपको हार्न नहीं है बिलकुल भी, हँसी की आवाज़े...
समझ लो अच्छी तरह जो हार अगयी न आप तो ज़िंदगी भर भैया के आगे झुक कर रहना पड़ेगा
अच्छा और जो जीत गयी तो अंजलि ने मुसकुराते हुए पूछा।
तो आप ज़िंदगी भर नचाना भैया को अपनी उंगिलयों पर और क्या। ...फिर हँसी ठिठोली की आवाज़
चलो आप नहलों जल्दी से, कहती हुए सब बाहर चली जाती हैं। राहुल का मन व्याकुल है अंजलि के करीब जाने को, मगर कैसे जाये क्या करे यह उसे समझ नहीं आरहा है
कोई बहाना भी नहीं सूझ रहा है।
तभी उसके यार दोस्त आकार उससे भी कहते हैं चल भई नहा धो लेय जल्दी से फिर कथा में भी बैठना है तुझे
चल चल जल्दी कर हाँ मैं ज़रा अपने कपड़े तो लेलून कमरे से बहाना बनाते हुए राहुल अपने कमरे की और जाने लगता है की चाची जी बीच में रास्ता रोकते हुए कहाँ चले श्रीमान अभी कथा तो हो जाने दो इतनी भी क्या जल्दी है।
नहीं चाची जी मैं तो बस अपने कपड़े लेने जा रहा था
अच्छा ब्च्चु हम से ही होशियारी, हुम्म हमें सब पता है तुम क्यूँ अंदर जाना चाहते हो।ज़रा तो शर्म करो बहू नहा रही है अंदर,
हाँ तो मीन तो बस अलमारी से अपने कपड़े लूँगा और चला आऊँगा
अच्छा....जो इतने शरीफ होते मर्द तो औरतों को कोई समस्या ही न होती एक नयी नवेली गर्भवती स्त्री की और इशारा करते हुए चाची जी ने राहुल के कान खिचते हुए कहा। और एक लड़की को बुला कर कहा जारी चुनिया अंदार अलमारी में से अपने भैया के कपड़े और तौलिया लाकर देदे।
हुम्म आए बड़े कथा भी नहीं हुई और यह चले अंदर मजे लेने।
राहुल बेचार क्या करता मन मसोस कर रह गया।
जैसे तैसे नहा कर तयार होकर वो बाहर निकला तो देखा अनगन में कोई नहीं है उसने सोचा चलो अच्छा मौका है
वह तुरंत अपने कमरे की और भागा मगर यह क्या कमरा अंदर से बंद था
उसे अंदर जाने की जल्दी की कहीं को देख न ले वर्ण फिर एक बार उसके हाथ से यह मौका निकाल जाएगा उसने जल्दी –जल्दी दरवाजा ठोंकना चालू किया अंजली लगभग तयार थी बस गहने फेन रही थी उसने जैसे ही द्वार खोला राहुल ने जल्दी से अंदर घुस कर दरवाजा बंद कर दिया
और अंजलि यह कहते ही रह गयी अरे अरे क्या कर रहे हो कोई देख लेगा तो अभी बवाल खड़ा हो जाएगा।
अरे बस एक बोसे की तो बात है, अच्छा अंजलि हँसते हुए जाओ बेशर्म कहीं क, अभी कुछ नहीं सब कथा क बाद, अरे तुम तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे पहली बार मैंने तूहरा बदन छुआ है, दे दो न सिर्फ एक (किस) और थोड़ी न कुछ मांग रहा हूँ तुम से
धत...जाओ तुम यहाँ से मगर राहुल मानने को ही तयार नहीं होता तो अंजलि उसका चेहरा पकड़ के दाई और घूमती है और उसके गोरे गालों पर आने लिपिस्टिक भरे होंटो से चूम लेती है।
अब जाओ भी सब राह देख रहे होंगे।
यह क्या बच्चों जैसा किस दिया तुमने मुझे, अचानक राहुल उठा और अंजली की सदी में से दिख रही उसकी कमर में हाथ डालते हुए उसके चेहरे से अपना चेहरा जोड़ते हुए उसकी आँखों में आंखे डालते हुए कहता है।
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