Sabreena - 9 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 9

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सबरीना - 9

सबरीना

(9)

रोने का स्वर कब एक हो गया, पता ही नहीं चला।‘

पुलिस स्टेशन में घुसे तो मुख्य हिस्से में सुल्तान नजरबाएफ का बड़ा सा पोर्टेट लगा था। उनके बराबर में ही अब्दुला अरिपोव का फोटो भी था, जिन्होंने उज्बेकिस्तान का राष्ट्रगान लिखा है। पुलिस अफसर की कुर्सी के पीछे उज्बेकिस्तान का राष्ट्र चिह्न मौजूद था, उसके नीचे ही राष्ट्रगान लिखा हुआ था। जिसमें उज्बेक राष्ट्र की महानता का गौरव गाया गया है। ये वही अफसर था जो सुबह होटल आई टीम को लीड कर रहा था। उसने प्रोफेसर तारीकबी के प्रति काफी आदर दिखाया, दोनों ने अपने गालों से एक-दूसरे के गाल छूकर मिलन कार्यक्रम पूरा किया। पुलिस अफसर ने उतना ही आदर सुशांत को भी दिया। सबरीना भी अधिकारपूर्वक कुर्सी खींचकर बैठ गई, जैसे पहले भी यहां आती रही हो। पुलिस स्टेशन को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि यहां अपराधियों से निपटा जाता होगा, बल्कि वो किसी आम सरकारी दफ्तर की तरह ही लग रहा था। सुशांत के दिमाग में भारत के पुलिस स्टेशनों के साथ तुलना का खेल चल रहा था। अफसर के पास पुराना क्यूबाई सिगार था, वो बार-बार उसका प्रदर्शन कर रहा था। तैसे सोवियत अतीत के प्रति सम्मान जाहिर कर रहा हो। उसने प्रोफेसर तारीकबी की तरफ सिगार बढ़ाया और फिर दोनों बारी-बारी से एक ही सिगार पर जुटे रहे। पूरा कमरा धुयें से भर गया था। उन्होंने उज्बेकी में कुछ बातें की और फिर ठहाका लगाकर हंसने लगे। सुशांत खामोशी से उन्हें सुनता और झेलता रहा। प्रोफेसर तारीकबी ने पुलिस अफसर को संबोधित किया-

‘ कामरेड दारिकोव, ये प्रोफेसर सुशांत हैं, बड़े प्रोफसर हैंै। आज बहुत बढ़िया लेक्चर हुआ यूनिवर्सिटी में....बड़ी तारीफ हुई इनकी....।‘ दारिकोव प्रोफेसर तारीकबी की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा-

‘ बढ़िया, बढ़िया। ऐसे लोग आने चाहिए मुल्क में। पर, एक बात बताइये प्रोफेसर तारीकबी आप मेहमानों को ये क्यों नहीं बताते कि होटल में किन लोगों से मिलना हैं और किनसे नहीं ?’

‘देखिए....’ सबरीना ने कुछ कहना चाहा, लेकिन दरिकोव ने उसे डांट दिया।

‘ आप देखिए, पाकिस्तानी के साथ सबरीना की शादी का मामला कितनी परेशानी का सबब बना रहा। उसके बाद ये मोहतरमा नाइट क्लब से पकड़ी गईं। इन पर पुलिस निगरानी दर्ज है, लेकिन ये हर बार पुलिस को चुनौती पेश करती हैं। आपकी लिहाज है, वरना हम तो इन्हें पाकिस्तान को डिपोर्ट कर चुके होते। कितना बड़ा मामला था वो! मुल्क के विदेश मंत्री को सीधे दखल देना पड़ा था। आप तो जानते ही हैं!’

दारिकोव की बात पर प्रोफेसर तारीकबी ने सिर हिलाकर सहमति जताई। दारिकोव फिर बोलने लगा-

‘ तीन महीने से इनकी पुलिस-हाजिरी नहीं हो पाई। आज तड़के खबर मिली कि ये होटल टाशकैंट में किसी विदेशी से मिलने जा रही हैं। हमें डर था कि फिर किसी विदेशी से कांट्रैक्ट-मैरिज का मामला हो सकता है। जबकि, अब ये कानूनन किसी विदेशी से शादी नहीं कर सकतीं। वहां पहुंचे तो ये जनाब मिले, तलाशी में पता चला कि इन्हें आपने बुलाया है। खैर, इनका पासपोर्ट भी लाना पड़ा। सुबह से मुसीबत बनी हुई है, हिन्दुस्तानी दूतावास भी खबर की, वहां पहले से इनके बारे में खबर थी। खैर, अब आप आ गए हैं तो मुझे राहत महसूस हुई। मैं भी टेंशन लिए बैठा था और दुआ कर रहा था कि ये हिन्दुस्तानी प्रोफेसर कहीं पाकिस्तानी खाविंद जैसे हालात का शिकार न हो जाएं।‘ दारिकोव बोलता रहा और सबरीना चुपचाप सुनती रही। उसके चेहरे पर गम और गुस्से के भाव आ-जा रहे थे। प्रोफेसर तारीकबी ने मामले को जल्द निपटाने की गरज से कहा-

‘ मैंने ही इन्हें प्रोफेसर सुशांत से मिलने भेजा था। सबरीना की तरफ से जो भी गलती हुई, ये उसे सुधारेगी। आप जानते हैं, इसने बीते सालों में कितना बुरा वक्त गुजारा है। आइंदा, मैं खुद इसे हर महीने की तयशुदा तारीख को लेकर आपके पास आउंगा।‘ पुलिस अधिकारी दारिकोव ने प्रोफेसर तारीकबी की बात से सहमत होने का कोई संकेत नहीं दिया, लेकिन प्रोफेसर को यकीन था कि मामला हल हो गया है। दारिकोव ने सुशांत के सामने एक कागज बढ़ाया और साथ उस दस्तखत करने को कहा। सुशांत ने प्रोफेसर तारीकबी की ओर देखा। उन्होंने आश्वत किया कि इसमें पासपोर्ट हासिल करने और पुलिस के बर्ताव से संतुष्ट होने की बात लिखी है। प्रोफेसर तारीकबी की आश्वस्ति के बार दस्तखत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। सबरीना से बहुत सारे कागजों पर दस्तखत कराए गए। उसे सख्त ढंग से हिदायत दी गई और मामले को निपटा हुआ समझकर प्रोफेसर तारीकबी उठ खड़े हुए। उन्होंने दारिकोव के प्रति अपनापन दिखाते हुए एक बार फिर गाल-मिलन किया और उनकी पीठ पर धौल जमाते हुए कहा, ‘ठीक है, कामरेड दारिकोव, मिलते हैं जल्द ही! और हां, ये सबरीना हमारे मेहमान को होटल तक छोड़ेगी, आप की इजाजत हो तो ?‘

‘हां, हां ठीक है, अब कोई दिक्कत नहीं। पर, रात में होटल में न रुके। होटल के लेडी गेस्ट के तौर पर सुबह से ही इनका नाम दर्ज है, ध्यान रहे!‘ सबरीना ने सिर हिलाया और तीनों लोग गाड़ी की ओर बढ़ चले। सुशांत की जान में जान आई। उसे सुबह से शाम तक के 10-12 घंटे बरसों लंबे लगे थे। अब सबरीना का अतीत उसके आकर्षण का केंद्र था, वो जानना चाहता था कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा कि सबरीना पुलिस की आॅब्जर्वेशन लिस्ट में है और उसका किसी विदेशी के संपर्क में होना भी अपराध की तरह देखा जा रहा है। प्रोफेसर तारीकबी ने कल के कार्यक्रम का ब्यौरा दिया और रास्ते में अपने घर के समीप उतर गए। अब सबरीना पीछे की सीट पर सुशांत के साथ आ गई। उसे सुशांत के द्वंद्व का अहसास था।

‘ बहुत सारे सवाल हैं ना प्रोफेसर ! बताओ, क्या जानना चाहते हो, बोलो, जो पूछोगे सच, सच बताउंगी।‘

‘ ये सब जो मैंने देखा है, इसकी वजह क्या है सबरीना ?‘

‘ मेरे पिता सोवियत फौज में थे। बेहद अनुशासित और जिम्मेदार आदमी। मेरी मां बैले डांसर थी। दोनों ने प्रेेम-विवाह किया था। मैंने जिंदगी में अपने पिता जैसा ईमानदार आदमी नहीं देखा। वे मेरी मां से बेहद प्यार करते थे। कुछ ही बरसों के अंतराल में हम तीन बहने पैदा हुई। मैं सबसे छोटी थी। मेरे पिता स्तालिन से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने सबसे बड़ी बहन का नाम स्तालिनोवा रखा। वे मेरी मां को दिलराबू कहकर बुलाते थे और दूसरी बहन का नाम दिलराबिया रखा। दिलराबिया एक्यूट ल्यूकेमिया का शिकार हो गई थी। इस बीमारी का सोवियत संघ में कोई इलाज नहीं था, लेकिन मेरी पिता को विदेश जाकर इलाज कराने की अनुमति मिल गई थी। इस अनुमति को हासिल करने में सत्ता के गलियारों में मेरी मां की ऊंची पहुंच ने मदद की थी।‘

सबरीना बिना रूके बहुत कुछ कहे जा रही थी, जैसे बरसों से किसी सुनने वाले का इंतजार कर रही हो और वो सुनने वाला सुशांत के रूप में आया हो।

‘ दिलराबिया का बोन मैरो ट्रांसप्लांट होना था। सबसे पहले स्तालिनोवा का बोन मैरो लेने की कोशिश की गई, लेकिन वो मैच नहीं हुआ। मेरे पिता थोड़े संकित थे, लेकिन उन्होंने किसी को कुछ नहीं कहा। मैं, दिलराबिया से एक साल छोटी थी। डाॅक्टरों ने काफी सोच-विचार के बाद तय किया कि मेरा बोन मैरो लेकर ट्रांसप्लांट किया जाए, लेकिन हम दोनों का भी मैच नहीं हुआ। मेरे पिता सदमे में थे। उन्होंने हम तीनों बहनों के डीएनए सैंपल कराए और फिर मास्को लौट गए। जिंदगी पुराने दिनों की तरह ही चल रही थी। दिलराबिया को लेकर हम सभी परेशान थे क्योंकि जल्द ही उसकी मौत तय थी।’

सुशांत ने सबरीना की तरफ देखा और उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। सबरीना की आंखें भर आई, पर वो बोलती रही-

‘ कुछ वक्त बाद मेरे पिता मास्को से वापस लौटे। वे जरूरत से ज्यादा खामोश लग रहे थे। कोई रिपोर्ट मेरी मां के हाथ में थी, वो घुटनों के बल बैठी हुई थीं। पिता किसी उत्तर की उम्मीद में लगातार उनकी तरफ देख रहे थे। हम तीनों बहनें रोने लगीं। मेरे पिता ने दिलराबिया को गोद में उठाया और हम दोनों को लेकर बाहर चले गए। मैंने अपने पिता को पहली बार रोते हुए देखा था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पिताजी घर लौटे और फिर मां से कुछ बातें की। पिताजी सुबह जल्दी उठे और हम तीनों बहनों को मास्को ले जाने की तैयारी करने लगे। कुछ दिन बाद हम अपनी मां के बिना मास्को पहुंच गए और बाद में पता चला कि मेरी मां ने आत्महत्या कर ली।‘ सबरीना रोने लगी और देर तक रोती रही। लेकिन, ऐसा नहीं लगा कि सबरीना के भीतर का गुब्बार थम गया हो। वो अब भी बोझिल थी।

‘कुछ दिन बाद दिलराबिया मर गई। हम दोनों बहने यूनिवर्सिटी पढ़ने चली गईं। हमारी निगाह में मेरे पिता कातिल जैसे थे। एक दिन हम दोनों ने हिम्मत करके अपने पिता से पूछा कि मां ने आत्महत्यों क्यों की ? आप हमें मास्को क्यों लेकर आए ? पिता ने जो कुछ बताया, उस सब के लिए सदमा बहुत छोटा शब्द है। हमारी डीएनए रिपोर्ट सामने थीं। हम तीनों में से किसी का भी बायोलाॅजीकल रिश्ता हमारे पिता से नहीं था। इतने बरसों बाद एक बार फिर मैंने अपने पिता को रोते देखा। हम दोनों भी रोने लगीं। इतना ही नहीं, हम तीनों के पिता अलग-अलग पुरुष थे। ओह! मां...... पिता ने हम दोनों को अपनी बाहों में भर लिया और तीनों के रोने का स्वर कब एक हो गया, पता ही नहीं चला।‘

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