फूल गुलाब सी वह लड़की शुचि. विश्वास और साहस से भरा वह लड़का अनिकेत. यह उनकी किस्मत ही थी कि कॉलेज की सीढ़ियां साथ उतरकर जिन्दगी की सीढ़ियां चढ़ते हुए नौकरी भी दोनों ने एक ही कम्पनी में पाई. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने की लायकात रखने वाले कोई भी ग्रेजुएट के लिए किसी भी बीपीओ कम्पनी में नौकरी पा जाना उतना ही आसान है जितना एक कप चाय बनाना. तो ज्वाइनिंग के पहले दिन ही उन्हें उनके सुपरवाइजर ने टोका. वे दोनों अपने कॉलेज का अल्लहड़पना यहां भी न छोड़ पाये थे. उनकी नजरों में गलती शायद उनकी ही थी जो लंच अवर में अनिकेत शुचि के गले में हाथ डालकर बिन्दास केन्टीन में खड़ा बातें कर रहा था. ठीक है भई! ऑफिस उनका है पर ऑफिस अवर के बाद के पल तो अपने ही है. बस! उन्हीं पलों को जीते हुए प्यार परवान चढ़ने लगा और लोगों को भी उनकी ‘कुछ कुछ होता है’ वाली बात पता चलने लगी.
तो फिर? तो फिर कुछ खास नहीं हुआ. दोनों किसी की भी परवाह किए बिना बस यूं ही मिलते रहे और अपने ख़्वाब पालते रहे.
फुटबाल के शौक की वजह से अनिकेत ने शुचि को कई बार खफा किया लेकिन फिर घूमने की शौकीन शुचि को अनिकेत अपने ड्राइविंग के क्रेज की बदौलत उसे वीकेंड पर लांग फास्ट ड्राइव पर ले जाकर मना भी लेता. एक दिन अनिकेत अचानक कुछ कहे बिना ऑफिस न आया.शुचि परेशान. पर फिर चुपचाप आई एक खबर. अपनी स्पीड ड्राईविंग की बदौलत ऑफिस से लौटते हुए वह एक एक्सीडेंट कर बैठा और अस्पताल पहुंच गया. डॉक्टर्स के ४८ घंटे के परिश्रम और मां बहनों की प्रार्थनाओं के फलस्वरूप आंखें तो खोली उसने लेकिन कुछ बोल न पाया. शुचि की पलकें भीग गई. दिन बीते, शरीर पर लगी पट्टियां दूर होने लगी. घाव भरने लगे लेकिन सभी की धीरज खूटने लगी. अनिकेत बोल न सका. डॉक्टर्स ने हाथ ऊंचे किए तो बाकी रही आस भी जाती रही.
फूल गुलाब सी वह लड़की शुचि. शाम हाथ में केक और फुटबाल लेकर अस्पताल आई. विश्वास और साहस से भरा वह लड़का अनिकेत. जन्मदिन पर मुस्कुराकर अपनी प्रेमिका का सरप्राइज पाकर खुश हो गया. केक कटा, तालियां बजी, बधाईयां बिखरी और शुचि के संग फुटबाल लिए एक सेल्फी फेसबुक पर अपलोड हुई. खुशियां और भी दुगनी हो गई जब दो महीने अस्पताल में गुजारने के बाद अगली सुबह घर जाने की बहती हुई आवाज आई. फिर रात गहराने लगी. विश्वास और साहस से भरा वह लड़का अनिकेत सिरहाने रखी फुटबाल को हाथ में लेकर उसे चूमकर फिर से ख़्वाब सजाने लगा.
सुबह गोद में फुटबाल लिए व्हील चेयर पर बैठकर वार्ड से बाहर निकलता अनिकेत. हाथों में एक चिठ्ठी लिए कुछ सोचता सा अनिकेत. अचानक खांसते हुए निढ़ाल होता अनिकेत. घबराती हुई सी मां और बहनें. छूटकर लुढ़कते हुए दूर जाती चीखकर कहती फुटबाल ‘आय एम सॉरी. बाय अनिकेत.’
दूर कहीं से गूंजती एक आवाज 'मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता..... ' फूल गुलाब सी वह लड़की शुचि. शाम एकान्त में बैठकर फ्रेन्ड्स व्हाट्सएप ग्रुप में कुछ लिखती वह लड़की.
RIP...Rest in Peace