Domnik ki Vapsi - 28 in Hindi Love Stories by Vivek Mishra books and stories PDF | डॉमनिक की वापसी - 28

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डॉमनिक की वापसी - 28

डॉमनिक की वापसी

(28)

उस दिन अनंत ने अपने हाथ से चाय बनाकर दोनों को दी. फिर एक चिट्ठियों का पुराना गट्ठर खोल के उन्हें तार से छेदकर, उसमें फसाकर कुंडे से लटकाते हुए बोले, ‘चीजें आँखों से ओझल होने पर भी अपने पूरे भार और आयतन के साथ कहीं न कहीं तो बनी ही रहती हैं.. जो दुनिया हम अपने पीछे छोड़ आते हैं वह वहाँ अपनी गति से आगे बढ़ती रहती है...’ फिर उस फ़कीर को याद करते हुए बोले ‘लोरिकी’ का सबसे उम्दा गायक है.. चलता-फिरता इतिहास है.. उसके दिल में वो कहानियाँ दर्ज़ हैं जिन्हें राजे-रजवाड़े अपने महलों की नींव में दफ़न कर देते हैं....’ फिर जैसे आधिक्या देवी के बारे में सोच के बोले ‘अपने जीवन का सच बिना किसी लाग लपेट के बिना अपना बचाव किए, किसी के सामने कह डालना एक तरह की स्वीकारोक्ति भी है, और प्रायश्चित भी... मुझे ऐसे लगा था तुम दोनों के मन का कोई कोना उन कहानियों से जुड़ा है सो तुम्हें उनको सुन लेना चाहिए... उनमें से तुम्हें क्या रखना है और क्या भुला देना है, ये तुम्हारे ऊपर है.’

उसके बाद उन्होंने नृत्य के अभ्यास के लिए पैरों में घुंघरू बांधते हुए रेबेका की ओर देखा और बोले, ‘अपना ध्यान रखना...’

तब तक गली में से दौड़ते हुए दानी भी कमरे में आ गई. अनंत ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘वैसे कुछ बचाने में किसी न किसी को तो नष्ट होना ही पड़ता है.’

उसके बाद दीपांश और रेबेका ने उनसे हाथ जोड़कर विदा ली और वह अभ्यास के लिए कमरे के बीच में खड़े हो गए...

अनंत के कमरे से निकल के बाहर सड़क पर आते हुए दीपांश ने अपने मन में दबा प्रश्न रेबेका जिसे अब वह रिद्धि करके पुकारने लगा था से पूछ ही लिया, ‘आज अनंत जी की बातें बहुत बिखरी और अबूझ-सी लगीं वह तुम्हारे बारे में कुछ चिंतित भी लग रहे थे...’

रेबेका ने लंबी साँस खींचते हुए कहा, ‘घर की चारदीवारी हो या बाज़ार..., औरत को अपनी तरह से जीने की कीमत चुकानी ही पड़ती है..., यहाँ भाई, बाप, पति और रिश्तेदार नहीं होते तो दल्लों, सेठों और उनके ठेकेदारों की हुकूमत चलती है.’

फिर उसने अपना खाली हाथ दीपांश के सामने फैलाया. दीपांश ने जेब से निकाल के सिगरेट कि डिब्बी उसकी हथेली पे रख दी... उसने सिगरेट निकाल के होंठों पे लगाई.. दीपांश ने माचिस निकाल के उसे सुलगाया..फिर भीतर से पुराने किसी बोझ को छाती के ऊपर से सरकाते हुए बोली, ‘दानी को बचाने के लिए जिस आदमी की मदद ली थी वही पीछे पड़ा है उसके कहे पे नहीं चलूंगी तो दानी को उठावा देगा.., इति के ठिकाने की ख़बर मैंने तुम्हें दी थी यह भी उसे पता चल गया है.. हर समय गिद्ध सा मंडराता रहता है.’

‘तुम पुलिस को क्यों नहीं बता देतीं.’

रेबेका हँसते हुए बोली, ‘कानून शरीफों के लिए है... दुनिया के भीतर एक और दुनिया है जो बाहर से नहीं दिखती, उसके अपने कानून हैं. उनके बारे में कह-सुनके जिंदगी और ज़ुबान दोनों का ज़ायका खराब हो जाता है.’

उसके बाद रास्ते भर दोनों चुप ही रहे. अलग होते हुए रेबेका ने कहा, ‘मैं दो दिन नहीं मिल पाऊँगी, वापस आकर ख़ुद ही फोन करूंगी..’

अलग होकर भी दोनों का एक दूसरे के पास कुछ छूट गया...

***