Amar Prem - 4 in Hindi Love Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | अमर प्रेम - 4

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अमर प्रेम - 4

अमर प्रेम

(4)

हाँ वो उस दिन जब अंजलि से मुलाक़ात हुई तब मेरी भी समझ में नहीं आया कि मुझे उससे क्या पूछना चाहिए क्या नहीं तो मैंने भी बस यही पूछा था कि घर ग्रहस्थी के काम काज जानती हो या नहीं और तुम्हारे शौक क्या क्या है वगैरा –वगैरा

जल्दी बाज़ी और खुशी के मारे मैं यह बिटिया से पूछना ही भूल गया कि तुम्हारे घर में कौन –कौन है।

खैर कोई बात नहीं अब तो पता चल ही गया। असल में राहुल कि भी माँ नहीं है। इसलिए मुझे भी समझ नहीं आया कि बिटिया से क्या पूछना उचित होगा क्या नहीं।

लेकिन अब जब आपका और हमारा हाले दिल एक ही जैसा है तो फिर कोई बात ही नहीं। औरत के बिना घर क्या और कैसा होता है यह आप और मैं बखूबी जानते हैं। बस इसलिए मैं अपने बेटे का विवाह करना चाहता हूँ, ताकि हमारा मकान जल्द ही घर बन सके।

क्यूँ क्या खाया है आप का ।

हाँ जी हाँ जी बिलकुल ठीक कहा आपने, मैं भी इसका ब्याह कर गंगा नहाना चाहता हूँ। एक ही बेटी है मेरी, बस यह शादी करके सदा खुश रहे एक बेटी के बाप को भला इसके अतिरिक्त और क्या चाहिए।

अंजलि बेटी जाओ सबके लिए चाय पानी कि व्यवस्था करो और हाँ देखो यह लोग खाना खाये बिना यहाँ से जाना नहीं चाहिए। यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।

जी पापा कहते हुए अंजलि आँखों से राहुल कि तरफ अंदर आने का इशारा करते हुए अंदर चली जाती है। दीना नाथ जी यह बात भाँप लेते हैं और स्वयं ही राहुल को अंजलि का हाथ बटाने के लिए अंदर जाने को कह देते हैं।

राहुल पापा कि तरफ देखकर आँखों ही आँखों में जाने कि आज्ञा मांगता है और उसे आँखों ही आँखों में आज्ञा देकर नकुल जाने के लिए हाँ कह देता है।

कुछ देर मौन रहने के बाद नकुल से रहा नहीं जाता और वह दीना नाथ जी से कहता है यही आप बुरा न माने तो एक बात पूछूं , अरे इसमें बुरा मानने कि क्या बात है। आप तो लड़के वाले हैं हक से पूछिये जो पूछना चाहते हैं। आखिर हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है। जी नकुल बोला। आपको नकुल कि आम्दानी के विषय में तो ज्ञात होगा ही, हम लोग एक साधारण से मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं और मुझे तो पेंशन भी नहीं मिलती। बस कुछ पुरानी जमा पूंजी से मैं अपना खर्च चलता हूँ और बाकी कि कमी राहुल कि तङ्खौया से पूरी हो जाती है। फिर आप जैसा इतना बड़ा और धनी आदमी मुझ जैसे एक गरीब आदमी के बेटे से अपनी बेटी कि शादी के लिए राज़ी कैसे होगया।

बस इतनी सी बात, इसमें भला बुरा मानने वाली कौनसी बात है।

मैं तो समझा आप मेरी धन दौलात देखकर कहीं दहेज कि कोई मांग न कर बैठें क्यूंकी मैं दहेज प्रथा के सकत खिलाफ हूँ। हाँ यह बात और है कि मेरे बाद मेरा जो कुछ भी है वह अंजलि का ही है। लेकिन मेरे जीते जी मैं यह कतई नहीं चाहता कि मेरी बेटी अपने बाप के पैसों पर एष करे और इतराती हुई फिरे कि वह बहुत पैसे वाली है।

नहीं! आप जो कुछ भी देख रहे हैं वह मेरा है, मेरी कमाई है और जब तक मैं ना चाहूँ उस पर किसी और का कोई हक नहीं है, फिर भले ही वह मेरी अपनी बेटी ही क्यूँ न हो। उसे यदि अपने पैसों पर इतराना है यह खुद को अमीर ज़ादी दिखाना है तो करे स्वयं मेहनत और फिर दिखाये दुनिया को कि उसके पास कितना पैसा है। इसलिए मैंने उसे पढ़ा लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा किया कि कल को वो किसी विपदा के आने पर यह मेरे चले जाने पर खुद को असहाए न महसूस करे। और उसे इस बात का भी एहसास हो कि एक साधारण जीवन व्यतीत करने वाला भी एक इंसान ही होता ही दौलात आजाने से इंसान भगवान नहीं बन जाता।

बस यही सब सीखने और समझने के लिए मैंने उसे नौकरी कराई। ताकि उसे उसके बाप के पैसों का कभी घमंड न आए।

दीना नाथ कि बाते सुनकर नकुल को पूर्ण विश्वास होगया कि अंजलि ही उसके बेटे के लिए सही लड़की है।

उसने हाथ जोड़कर कहा आपसे मिलकर आज मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे कोई दहेज वहेज नहीं चाहिए। आप जो भी अपनी बेटी को प्यार से देना चाहें बस वही दीजिये। मुझे आप से सिवाय आपकी बेटी के और कुछ नहीं चाहिए।

पापा चलिये गरमा गरम नाश्ते के साथ चाय तयार है। इस प्रकार चाय कि चुसकियों के संग राहुल और अंजलि का रिश्ता पक्का हो जाता है।

सभी बहुत खुश होते हैं। ऐसे मौकों पर अक्सर बच्चों को अपनी माँ कि कमी खलती है फिर चाहे बेटा हो या बेटी राहुल और अंजलि को भी उनके जीवन के इस महत्वपूर्ण निर्णय में अपनी अपनी माओं कि कमी खल रही थी।

दोनों के मन में रहरह कर यह विचार आ जा रहा था कि यदि अभी आज इस मौके पर उनकी माँ होती तो कैसा होता। न केवल उन्हें बल्कि उनके पिता को भी अपने जीवन साथी कि भारी कमी का एहसास हो रहा था। सभी कि आँखों में नमी हंसीएस लबों पर थी । ऐसे ही थोड़ी खुशी थोड़े ग़म के माहौल में वह रात बीती पंडित जी से जल्द से जल्द कि तारीख निकलवाने का खेकर दोनों परिवारों ने एक दूजे को विदा किया।

पंडित से बात होने पर पता चला छे महीने से पहेले का कोई भी महूरत इस शादी के लिए उपयुक्त नहीं है।

लेकिन अब क्या किया जा सकता था। इंतज़ार तो करना ही था बस यही सोच सोचकर वो प्रेमी जोड़ा अपना दिल बहलाया करता था कि जहां इतने साल रुके वहाँ छे महीने ओर सही। वो कहते है न कि दिल बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल अच्छ है।

बस वैसे ही यह जोड़ा अपना दिल भेला लिया करता था। एक ही ऑफिस में होने पर रोज़ मिलने के बावजूद भी इस जोड़े का हाल ऐसा था मानो इन्हें इन आने वाले छे महीनो कि सजा सुना दी गयी हो।

दिन यूं ही रेंग रेंगकर बीत रहे थे कि अचानक अंजलि को कंपनी कि ओर से विदेश जाने का मौका मिला जिसे वह ना नहीं कह पायी उसने अपने पिता से विनत्ति कि वह राहुल को अपने प्रोजेक्ट में जॉइन करा कर अपने साथ विदेश ले जाय।

किन्तु उसके पिता नहीं माने इधर राहुल और नकुल दोनों का मन एक अंजाने डर से धडक रहा था राहुल अंजलि को अकेले विदेश जाने नहीं देना चाहता था उसने उससे माना भी किया था कि वह अपने बॉस को माना कर दे।

लेकिन फिर यह हो ना सका क्यूंकी अंजलि खुद भी विदेश जा कर अपने कैरियर में कुछ सुनहेरे पन्ना जोड़ना चाहती थी। उसने राहुल के लाख रोकने और माना करने के बावजूद भी अपने बॉस को विदेश जाने के लिए ना नहीं कहा और अब वो दिन दूर नहीं था जब अंजलि के विदेश जाने का दिन भी निकट आ रहा था।

अंजलि ने भी राहुल को अपने करियर का वास्ता देखर बहुत समझाने कि कोशिश की थी

मगर राहुल भी अंजलि कि भावनाओं को न समझ सका था। भरी और उदास मन से अंजलि अकेले हवाईअड्डे पहुँचती है और फिर विदेश चली जाती है।

पूरे रास्ते अंजलि के मन में बस एक यही सवाल शोर मचाता रहता है कि राहुल ने उसका साथ क्यूँ नहीं दिया, क्या राहुल नहीं चाहता कि मैं अपने कैरियर में आगे बढ़ूँ, मेरी तरक्की हो। क्यूंकि यदि ऐसा हुआ तो उसमें बुराई क्या है।

यह अंजलि सोच ही नहीं पा रही थी। उसके मन में तो यह विचार आरहा था कि यही वह विदेश में रहकर यदा कमाई करेगी तो ज्यादा बचत भी कर पाएगी जो उसके और राहुल के भविष्य में काम आयेंगे।

आखिर अंत में तो राहुल और उसे ही साथ रहना है तो फिर यदि उसने भविषय का सोच कर एक निर्णय ले भी लिया तो ऐसी कौन सी आफत आगयी कि राहुल ऊसे छोड़ने हवाईअड्डे तक नहीं आया।

यही सब सोचते-सोचते आँखों में नमी लिए अंजलि विदेश चली गयी।

इधर राहुल क मन को यही डर अंदर ही अंदर खाने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि अंजलि को वहाँ कोई और पसंद आजाये और वह अपने आगे की ज़िंदगी उसके साथ बिताना तय कर ले या वहीं बस जाये।

क्यूंकि उसने तो अपने पापा से यह वादा कर रखा है कि वह अपनी माँ का घर छोड़कर कहीं नहीं जाएगा फिर यहाँ तो बात मात्र भूमि कि बन आई थी फिर ऐसे में भला राहुल अपने बूढ़े पिता को अकेला किसके भरोसे छोड़कर जा सकता था।

यूं कहने को तो अंजलि वहाँ से रोज़ राहुल को फोन करती उसके बारे में पूछती उसके पापा के विषय में पूछती और राहुल को अपनी व्यथा समझने कि कोशसी करती।

लेकिन न जाने क्यूँ न राहुल अंजलि को अपने पापा से किए वादे के बारे बता पा रहा था न ही अंजलि अपने दिल का हाल ऊसे समझ पा रही थी।

यूं चिढ़-चिढ़ में समय गुज़र ने लगा और आखिरकार छे महीने पूर्ण हुये। तो राहुल को लगा कि शादी कि बात सुनकर अंजलि खुशी से उछल पड़ेगी और सब कुछ छोड़छाड़ कर भागी–भागी चली आएगी और फिर वह किसी तरह उसे समझा बुझाकर मनाकर वहीं भारत में ही रोक लेगा और फिर दोनों खुशी-खुसी अपना अपना काम और नौकरी करते हुए उसके पापा के साथ हमेशा के लिए रहेंगे।

और फिर सब कुछ ही समय बाद ठीक हो जाएगा।

फिर धीरे से वह अपना परिवार बढ़ा लेंगे और दो से तीन हो जाएँगे तो अंजलि फिर पूरी तरह से माँ बनकर बच्चों में लग जाएगी और विदेश विदेश सब भूल जाएगी

फिर तब राहुल उसका मन रखने के लिए विदेश का कोई 3 या छे महीने वाला प्रोजेक्ट जॉइन कर लेगा ताकि सबका रहना और घूमना साथ हो जाये और फिर सब वापस भारत आकर चैन से रेह सकें।

बिना अंजलि से इस विषय में बात किए राहुल पहले ही से यह सब सोचकर बैठा है और बहुत खुश है कि अंजलि उसकी बात को माना नहीं करेगी वह माना कर ही नहीं सकती है

क्यूंकि वह उससे बहुत प्यार करती है और शादी का सपना तो वह कौलेज लाइफ से ही देखते आयें हैं तो शादी के लिए आना तो अंजलि किसी भी कीमित पर ना कर ही नहीं सकती।

ऐसा सब सोचते हुए बड़ी ही बेताबी और खुशी के साथ राहुल अंजलि के होने का इंतज़ार करने लगा। और अंजलि का फोन आते ही उसने बिना अंजलि कि और से कुछ भी जाने सुने बगैर अपना सारा प्लान अंजलि क सामने रख दिया शादी का दिन निकट आगया है

सुनकर एक पल के लिए अंजलि बेहद खुश हुई

लेकिन दूजे ही पल उसके मन में यह शंका ने घर कर लिया कि अभी उसका केरिर्यर मुकाम पर है क्या ऐसे में शादी करके इंडिया में बैठ जाना उसके लिए सही होगा इस आओह पोह में उसने राहुल कि केवल सारी बाते सुनी किन्तु अपने मन कि वह एक न कह पायी और अनमनी सी हँसी के साथ उसने वह फोन काट दिया और गहरी चिंता में डूब गयी कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत क्या उसका अभी जीवन के इस मोड पर शादी करना उचित होगा।

शादी तो चलो कर भी ले, लेकिन यदि बच्चा बीच में आ गया तो उसके करियर का क्या होगा। कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि बच्चा हो जाने के बाद राहुल और उसके पिता उस पर मानसिक दबाव बना कर उसकी नौकरी ही ना छुड़वा दें।

यदी ऐसा हो गया तो उसका क्या होगा। विचारों के सागर में यूं ही गोते लगती ज़िंदगी कि जगदो जहद से डूबती उबरती अंजलि

यही सोचे जारी है कि वह राहुल को किस प्रकार समझाये कि वह अभी शादी नहीं करना चाहती।

अभी उसे अपनी ज़िंदगी से और वक्त चाहिए।

उधर राहुल को भी लग रहा है है कि अभी नहीं तो शायद कभी नहीं इसलिए वह चाहता है कि एक बार शादी भर हो जाये

फिर वो कौनसा माना कर रहा है अंजलि को कि वह शादी के बाद नौकरी छोड़ दे या घर बैठ जाये वह तो बस निश्चिंत हो जाना चाहता है कि उसकी अंजलि केवल उसकी है।

***