सबरीना
(6)
शहद में डूबी हुई-सी!
सबरीना से सुशांत की आंखें मिली तो उसने मुंह घुमा लिया। जिस आदमी को वो सुबह से बख्तामीर पुलिस स्टेशन ले जाने का डर दिखा रही है, अब आंसुओं से भरी आंख कैसे मिलाए। यूनिवर्सिटी शहर के बाहरी इलाके में बनी है। एक पुरानी मसजिद के पास से गुजरे तो अजान सुनाई देनी लगी। प्रोफेसर तारीकबी ने विषय बदलने की कोशिश की।
‘अब उज्बेकिस्तान में पांचों वक्त अजान सुनाई देती है। सोवियत राज में सब पर पाबंदी थी। हमारी पीढ़ी ने जिंदगी की जो समझ हासिल की है, वो अलग तरह की है। इसलिए न अजान आकर्षित करती और न नमाज। सबरीना की पीढ़ी में ऐसे लाखों लोग पैदा हुए जो पांचों वक्त के नमाजी हैं। खैर, ये दौर ही अलग है।’ प्रोफेसर ने लंबी सांस खींचते हुए अपनी बात पूरी की। इस बीच सबरीना को भी अपनी भावनाओं पर काबू पाने का समय मिल गया और उसने प्रोफेसर की बात को इरादतन खारिज किया।
‘ प्रोफेसर तारीकबी आप कटाक्ष कर रहे हैं, हमारी पीढ़ी को नासमझ बता रहे हैं!’
‘ नहीं, नहीं, मेरा वो मतलब नहीं है। आपकी जो आस्था है, आप उस पर चलिए, पर जिंदगी के बारे में आपका नजरिया दुरुस्त होना चाहिए। इस इलाके में इसलाम तो हजार साल पहले आया है, पहले भी लोग अपनी समझ के लिहाज से धर्म मानते ही होंगे। अब भी मान सकते हैं, जिससे उन्हें राहत मिलती हो। पर, मैं इस बात की मुखालफत करता हूं कि कोई सरकार या सरकारी इदारे धर्म का झंडा उठाने लगें। अब, मेरा ही उदाहरण लीजिए। मेरे अब्बा मुसलमान थे, पर निजी तौर पर मेरा कोई मजहब नहीं हैं। पर, अब सरकारें चाहती हैं......’
‘बंद कीजिए प्रोफेसर, आप कुछ ज्यादा लंबा बताने लगते हैं।’ सबरीना ने प्रोफेसर तारीकबी को चुप करा दिया और फिर सुशांत को देखने लगी। पहली बार सुशांत को ऐसा लगा कि सबरीना वैसी बुरी नहीं है, जैसी कि बीते कुछ घंटों में उसे लगती रही है। सुबह पहली मुलाकात के वक्त जो मुरझायापन सबरीना के चेहरे पर थो, वो अब जैसे गायब हो गया था। चुपके-चुपके गालों से गुजरे आंसुओं ने उसके चेहरे को जैसे ताजगी से भर दिया था। सबरीना ने चेहरा पौंछने के लिए अपने बैग से छोटा-सा रूमाल निकाला और फिर आंखों के किनारे से सुशांत को देखा।
‘आपको पता है प्रोफेसर, मैंने एक पाकिस्तानी से कांट्रैक्ट मैरिज की थी। मेरे पास कोई काम नहीं था। उसने मुझे पाकिस्तान में दुभाषिये का काम दिलाने की बात कही। हम लोगों ने एक साल के लिए शादी की और फिर पाकिस्तान चले गए। वो बन्नू का रहने वाला था।’ सबरीना अपनी बातों से अक्सर चैकाती है। उसने एक बार फिर चैंका दिया। किसी हिन्दुस्तानी का विदेश में ऐसी महिला के संपर्क में आना बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है जो पहले पाकिस्तान में रह चुकी है। सुशांत ने बात पूरी करने के लिए पूछा-‘फिर ?’
‘ उसने कोई काम नहीं दिलाया। मुझे घर में बंद करके रखा गया। साल भर पूरा होने पर मुझे उज्बेकिस्तान लौटना था, लेकिन इससे पहले वो मुझे किसी और बेचने की तैयारी कर चुका था। पर, उसे अंदाज नहीं था कि मैं क्या कुछ कर सकती हूं।‘
’तुमने क्या किया ?‘
‘मैंने एक दिन घर में आग लगा दी और वो जलकर मर गया! तुम नहीं समझ पाआगे, कभी नहीं समझ पाओगे!’ एक बार फिर वो रुआंसी हो गई।
‘क्या ? तुमने उसे मार डाला, वो भी पाकिस्तान में, उसके देश में!’
‘हां, मैंने मार डाला।’ सबरीना ने काफी जोर देकर ये वाक्य कहा।
‘ओह!’
रास्ते की बातचीत से सुशांत का डर कुछ दूर हुआ था, लेकिन अब वो एक ही झटके में फिर लौट आया।
सबरीना अपनी बात पूरी कर रही थी-‘उसका घर जल गया, मैंने उसे जलते हुए देखा, उसे मरते हुए देखा। मुझे अफसोस नहीं हुआ। मेरे मन में एक बार भी नहीं आया कि मैंने गलत किया है। मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैं सीधे इस्लामाबाद गई। तब तक उज्बेक दूतावास वहां नहीं था। रूसी दूतावास में कुछ परिचित थे। कई दिन दूतावास में छिपी रही और फिर उन्होंने नकली पासपोर्ट का इंतजाम किया और नेपाल के जरिये उज्बेकिस्तान लौट आईं।’
सुशांत की आंखें फैल गई थी। जो कुछ वो सुन रहा था, कान उसके लिए तैयार नहीं थे। इसलिए फैली हुई आंखों से सारी बातों को समझने की कोशिश कर रहा था। मन ही मन अपने को कोस रहा था, ‘कहां फंस गया यार, इन लोगों के बीच में!‘
‘आप को लगता है, मैं अपराधी हूं ! नहीं, मैं नहीं हूं। मैंने, उज्बेकिस्तान आकर पूरा वाकया पुलिस में दर्ज कराया। जो कानून मुझे कांट्रैक्ट मैरिज करके विदेश जाने की अनुमति देता है, वही कानून मुझे अपनी जान बचाने का हक भी देता है। पाकिस्तानी कानून जो कहता हो, मैं अपने मुल्क में दोषी नहीं हूं। किस्सा यहीं खत्म नहीं होता प्रोफेसर, जिंदगी ने और भी कई गहरे सबक दिए हैं।‘
प्रोफेसर तारीकबी अचानक बोल पडे़, ‘ लो भई, आज गई यूनिवर्सिटी।’
सामने डाॅ. साकिब मिर्जाएव खड़े थे। गाड़ी से नीचे पांव रखते ही उन्होंने इतने जोर से हाथ मिलाया कि सुशांत को अपना हाथ कंधे से अलग होता लगा। फिर वो उससे भी ज्यादा उत्साह से गले मिले। उन्होंने इतनी ताकत से दबोचा कि दम घुटने-सा अहसास हुआ। मिलने का कार्यक्रम अभी पूरा नहीं हुआ था, उन्होंने गालों से गाल मिलाकर आखरी चरण पूरा किया। उनकी गाल जरूरत से ज्यादा ठंडी थी और ठंड की वजह से मूंछे भी काफी सख्त हो गई लग रही थी। डाॅ. मिर्जाएव ने इशारा किया और फिर पूरा दल विभाग की ओर चल पड़ा। सुशांत ने एक बार फिर सबरीना की ओर देखा, वो मुस्कुरायी। इस बार उसकी मुस्कुराहट में शहद में डूबी हुई-सी थी।
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