Indradhanush Satranga - 24 in Hindi Motivational Stories by Mohd Arshad Khan books and stories PDF | इंद्रधनुष सतरंगा - 24

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इंद्रधनुष सतरंगा - 24

इंद्रधनुष सतरंगा

(24)

स्कूटर बिगड़ गया

मोबले का स्कूटर बिगड़ गया।

सुबह-सुबह स्कूटर निकालकर चले ही थे कि मौलाना साहब के दरवाजे़ तक पहुँचते-पहुँचते वह ‘घुर्र-घुर्र’ करके बंद हो गया। स्कूटर अभी नया था। उसे ख़रीदे साल भर भी नहीं हुआ था। आमतौर पर वह एक किक में स्टार्ट हो जाता था, पर आज किक लगाते-लगाते मोबले हैरान हो गए ।

मोबले को आज एक ज़रूरी काम से बाहर निकलना था। समय बिल्कुल नहीं था। पर स्कूटर था कि बैर ठाने बैठा था। मोबले को पसीने छूटने लगे। स्कूटर चलाना तो उन्हें किसी तरह आ गया था पर उसकी ए-बी-सी-डी उन्हें नहीं पता थी। अब तक इसकी ज़रूरत भी नहीं पड़ी थी। पर आज जब वह एकाएक बंद हो गया तो उनके हाथ-पैर फूल गए।

समय बीतता जा रहा था और स्कूटर टस से मस नहीं हो रहा था। मोबले ने अपनी समझ से सब जाँच-भालकर देख लिया। पर कोई कामयाबी नहीं मिली।

अचानक मोबले को याद आया कि उनकी डायरी में पप्पू मिस्त्री का नंबर लिखा हुआ है। पप्पू की दूकान सड़क पर थी। वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर। वह उन्हें जानता भी था। मोबले आशा की किरण लिए घर की ओर लपके।

अक्सर होता यह है कि हमें जिन चीज़ों की ज़रूरत नहीं होती वह हमारे आस-पास ही मँडराया करती हैं, पर जैसे ही उनका काम लगता है, आँखों से ओझल हो जाती हैं। सामने होकर भी नहीं दिखाई देतीं। मोबले के साथ ऐसा ही हुआ। उनकी डायरी वैसे तो मेज़ पर पड़ी धूल खाया करती थी। पर आज जब उसकी ज़रूरत थी, तो वहाँ से नदारद मिली। मोबले ने मेज़ का एक-एक सामान उलट डाला। कापी-किताबों के पन्ने तक झाड़-झाड़कर देख लिए। पर डायरी न मिली। अलमारी भी छान मारी। एक-एक सामान उतन डाला, पर डायरी को नहीं मिलना था, नहीं मिली।

मोबले ग़ुस्से में पैर पटकते हुए वापस लौट चले। अब दूकान तक स्कूटर खींचकर ले जाने के अलावा दूसरा चारा नहीं था।

वह मुँह लटकाए हुए स्कूटर तक पहुँचे तो लगा स्कूटर से किसी ने छेड़छाड़ की है। उसके खड़े होने की स्थिति तो बदली ही हुई थी, दो-एक जगह कालिख भरी उँगलियों के निशान भी लगे हुए थे। मोबले समझे कि गली के बच्चों ने छेड़छाड़ की होगी। बड़बड़ाते हुए बोले, ‘‘लगता है कमबख़्तों ने कभी स्कूटर नहीं देखा। धो-पोंछकर रखा था। सब गंदा कर दिया। अब फिर से धुलवाना पड़ेगा।’’

मोबले स्कूटर खींचकर ले चलने को हुए कि तभी मन में आया, क्यों न एक किक और लगाकर देख लें। भगवान का नाम लेकर किक लगाई। हैरत की बात, इस बार स्कूटर स्टार्ट हो गया। मोबले ख़ुशी से झूम उठे।

भगवान को लाख-लाख धन्यवाद देकर मोबले चलने को तैयार हुए तो उन्होंने सुना पीछे से आतिश जी कह रहे थे, ‘‘मौलाना साहब, आज आपका अनुभव काम आ गया, नहीं तो बेचारे मोबले को स्कूटर घसीटकर ले जाना पड़ता।’’

मोबले ने बरबस घूमकर देखा तो एक चिथड़े में अँगुलियाँ पोंछते मौलाना साहब दरवाजे़ खड़े मुस्करा रहे थे। मोबले भी बिना मुस्कराए न रह सके। वह चाह तो रहे थे कि वापस आकर मौलाना साहब का धन्यवाद दें। पर मन में बैठी हिचक और काम की जल्दी से ऐसा न कर सके। लेकिन रास्ते भर जाने क्यों उनका मन उत्साह से भरा रहा। आज उन्होंने बिना डरे पूरी रफ्रतार से स्कूटर चलाया।

***