अब लौट चले -10
सामने के दरवाजे से रवि, अरविन्द और संजना अंदर आ रहें थे. सहमे और डरे हुए से रवि अपना सर झुकाये चुप चाप मनु के सामने खड़ा हो गया था...
बैठिये आप लोग...
नो सर थेंक्स.... रवि ने कहा था
इस वक़्त हम एक सामान्य दोस्त हैं रवि बैठ जाओ
और रवि मेरे पास आकर बैठ गया था अरविन्द और संजना दूसरी तरफ बैठ गये थे..
तभी मनु ने रवि से पूछा था.... आप मेरी इस फर्म में कितने वर्षो से काम कर रहें हैं...?
जी सर लग भग 15-16 सालों से
इन 15-16 सालों में मैंने कभी आपको आपके किसी भी परसनल मेटर पर आपसे बात की...?
नहीं कभी नहीं.. !
आप मुझें कब से जानते हैं...? यानी इस कंपनी के मालिक के तौर पर..?
सर पिछले 2-3 सालों से... !
जबकि मै आपको जब से जानता हूं मिस्टर रवि जब आपने मेरी ये कंपनी ज्वाइनिंग ली थी....असल में मैं ये बात इस लिए कर रहा हूं क्योंकि मेरी एक आदत हैं मैं किसी के परसनल मेटर में या उसकी निजी ज़िन्दगी में कभी भी नहीं झांकता जो मेरे साथ दग़ा करता हैं... हा ये बात और हैं वो वक़्त कुछ और था ये वक़्त कुछ और हैं लेकिन मै अच्छे वक़्त में किसी के साथ गलत नहीं करता... चाहे वो मेरा दुश्मन ही क्यों ना हो... मै अपने बुरे वक़्त के समय अपने आपको ईश्वर के हाँथो में सोप देता हू... क्योंकि कि इस दुनियां में उसके सिवा मेरा कोई नहीं हैं... मै तो अनाथ था ना मेरे माता पिता कौन ये मै आज तक नहीं जान पाया... समय गुजरता गया... ज़िन्दगी बिना किसी रंग की यूही आगे चल ही रहीं थी... एक दिन संध्या ने मेरा हाथ थमा... और मेरी ज़िन्दगी में रंग भरने लगे थे.... हालांकि वो रंग ज्यादा दिन नहीं टिक सके तुम मुझसे अच्छे चित्रकार निकले और तुमने मेरी ज़िन्दगी के रंग भी चुरा लिए....
मनु की आंखों में आंसू आ गये थे उसने चश्मा उतार कर अपनी आँखो के अश्कों को साफ किया और फिर यथावत होते हुए मुझसे मुख़ातिब होते हुए बोलने लगे...
संध्या जी आप क्या समझती हैं... ज़िन्दगी आपके हिसाब से चलेगी... मुझें लगता हैं आप दोनों में इस तरह की लड़ाई पहले कभी नहीं हुई जो आपने इस तरह का निर्णय लिया...?
ये सबाल मनु ने मुझसे किया था लेकिन मेरे पास इस बात का कोई जवाब. नहीं था मै चुप चाप ज़मीन में नज़रे गढ़ाए बैठी थी... शायद सब मेरे जबाब के इंतज़ार में थे इसलिए सब सांत थे....
संध्या जी ऐसे चुप रहने से कुछ नहीं होगा... आपको जवाब तो देना ही होगा आखिर क्या सोच कर मेरे पास इतने वर्षो बाद वापस आई... कुछ तो वजह रहीं होंगी... जब से आपने मुझें और अभिषेक को छोड़ा था आप जानती कितना समय गुजर गया...आपको इससे क्या लेना देना इन 35 सालों में आपने कभी भी ना मेरी और ना मेरे इस बच्चे की सुध ली आपको आपकी अय्याशी से फुर्सत ही नहीं थी कि आप एक नन्ही सी जान को छोड़ कर रंग रलिया मनाने में मशगूल थी...
मै ऊब चुकी हूं इस ज़िन्दगी से...
वाह आपका ऊबना लाज़मी हैं और दुसरो के मन की कोई फ़िक्र नहीं हैं आपको.... कितनी स्वार्थी हैं आप संध्या जी अफ़सोस होता हैं आपकी इस सोच पर... कम से कम अब तो इस उम्र मे इस तरह की सोच तो मत रखो... क्या चाहती हैं आप...?
मैने कहा ना ऊब चुकी हूं इस जिंदगी से... हर इंसान अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहता हैं... लेकिन रवि ने मेरे साथ धोखा किया...
मैंने क्या धोखा किया संध्या तुम्हारे साथ...?
जब तक तुम अपने पिता के साथ रहें तब तक तुम तो बड़े अमीर इंसान थे...
हां मै जनता हूं... तुम्हारे आते ही मुझें मेरे पिताजी ने जायदाद से बेदखल कर दिया था जब उन्हें तुम्हारी सच्चाई का पता चला तो इसमें बुरा क्या हैं... लेकिन मैंने तुम्हें कोई परेशानी होने दी कभी... नहीं ना मनु बाबू सच्चाई तो ये हैं जब आपके बारे मे किताबों में सफलता की कहानी को पढ़ा तो इनका तब से दिमाग फिर चुका हैं... ज़िन्दगी में हम बहुत सारी गलतियां करते हैं अपने स्वार्थ के लिए लेकिन कभी कभी कोई गलती हमारे लिए आफत बन जाती हैं... मै भी पहले इन्ही की तरह सोचा करता था लेकिन जब ठोंकर लगी तब समझ आया कि हम ही गलत थे... एक समय वो भी था जब मै पैसों की अहमियत को नहीं समझता था... ईश्वर ने मुझें इस बात का एहसास दिलाया.... आप ही ने तो मुझे रोका था मुझें आत्म हत्या करने से...
देखो रवि उन पुरानी बातों को भूल जाओ... संध्या जी और यही बात मै आप से भी कहता हूं अपनी जिंदगी और अब अपने परिवार की जिंदगी को अब और नर्क ना बनाओ रंजना शादी के लायक हो चुकी हैं अब इसकी जिंदगी के बारे में सोचो... अब जिस फर्ज़ को उस ईश्वर ने आप दोनों को सौपा हैं अब कम से कम उसे तो पूरा करो... चलो इक पल के लिए मान लेते हैं अगर आप हमारे पास आ भी जाती हैं तो क्या होगा... मेरे लिए और मेरे अभिषेक के लिए तो आप मर चुकी हैं अब आपकी ज़गह हमारी जिंदगी में नहीं हैं... जिंदगी के हर निर्णय आपकी सोच और मन के मुताबिक नहीं होंगे... आप लोग अब जा सकते हैं मुझें मेरे पोते से मिलना हैं वैसे भी मै दो महीने बाद लौटा हूं... आप लोगों से मेरी यही गुज़ारिश हैं अपने घर की लड़ाई अपने घरतक ही सिमित रखो...
और मनु मायूश हो कर उठे थे तभी अभिषेक ने मनु को सहारा दिया था और वो लगड़ाते लंगड़ाते एक और दरवाज़े में समा गये... हम लोग चुप चाप कुछ देर बैठे रहें थे... मुझें गिल्टी फील हो रहीं थी मैंने ही अपने परिवार की इज़्ज़त को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था.... तभी रवि, अरविन्द और संजना मेरे करीव आए थे..रवि ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था...
संध्या.... अब मन से घर लौट चलो... इतना सुनते ही मै तीनो से लिपट कर खूब रोइ थी... मुझें अपनी गलती का एहसास हो चला था... और मैंने भी अब अपने मन से पूरी तरह कह दिया था अब लौट चलें.....
? समाप्त ?