Kya yahi pyar hai in Hindi Moral Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | क्या यही प्यार है

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क्या यही प्यार है

सुबह सुबह बुआ जी का फोन आ गया। मैंने नमस्कार कर पूछा "बुआ जी आज कैसे आपको अपनी भतीजी की याद आ गई। "
"अरे याद तो रोज ही आती है बस टाइम ही नहीं मिल पाता। अच्छा छोड़ ।आज मैंने एक खुशखबरी देने के लिए तुझे फोन किया है।"
" तो बताओ बुआ जी क्या खुशखबरी है।"
" तेरे भाई रमन की शादी है।"
" यह क्या कह रही हो बुआ ,रमन की शादी लेकिन वह तो शादीशुदा है ना!"
" अरे वह भी कोई शादी थी। ना जात की ना बिरादरी की ।पता नहीं कैसे उस से दिल लगा बैठा और हमें भी मजबूरी में उसकी बात माननी पड़ गई। "
"लेकिन बुआ आप उसकी पहली शादी होते हुए दूसरी कैसे कर दोगी?"
"छोड़ दिया उसे तो रमन ने।"
" क्या? लेकिन वह तो उससे बहुत प्यार करता था। उसके कारण ही तो उसने सबसे बैर मोल लिया। फिर अब ऐसा क्या हो गया इन तीन चार सालों में।"
" अकल आ गई उसे। एक तो छोटी जाति की लड़की से शादी कर ली थी तो वैसे ही समाज में उसकी कोई इज्जत नहीं रही थी और अब कई सालों से उसे औलाद भी नहीं हुई। यह बच्चे भी ना मां बाप को अपना दुश्मन समझते हैं। अच्छा अब तू ज्यादा इंक्वायरी मत कर और एक-दो दिन पहले ही शादी में आ जाना। जो रंग चाव जब ना कर सकी। अब पूरा करूंगी।" कहकर बुआ ने फोन रख दिया।
उनकी बातें सुन मैं एकदम हैरान रह गई समझ ही नहीं आ रहा था ,पूजा पर इतनी जान छिड़कने वाला रमन उसे छोड़ने को कैसे तैयार हो गया। रह रहकर मुझे पुरानी बातें याद आ रही थी।
शादी ब्याह और छुट्टियों में मैं अपनी बुआ के घर जाती थी। पूजा की बुआ भी वहीं पड़ोस में रहती थी। तो हम अक्सर मिल जाते थे और धीरे-धीरे हमारी दोस्ती हो गई। घर पास होने के कारण दोनों घरों में काफी आना-जाना था। रमन भी हमारी मंडली में शामिल था। मुझे तो खबर भी नहीं लगी कि कब उन दोनों मैं इतनी नजदीकियां हो गई। गर्मियों की छुट्टियों में जब मैं बुआ के घर गई तो रमन ने मुझे सारी बातें बताई। मैंने दोनों को ही समझाया कि यह ठीक नहीं है। घर वाले कभी भी शादी के लिए नहीं मानेंगे। तब रमन ने जोर देते हुए कहा "कोमल मैं पूजा को कई सालों से जानता व समझता हूं और मुझे लगता है यही मेरी सही जीवनसाथी है। जाति पाति के बंधनों में मैं विश्वास नहीं करता। रिश्ता दिल से जुड़ता है। जो मेरा पूजा के साथ जुड़ गया और शादी तो मैं इसी से ही करूंगा।" दोनों ही के घर वालों को जब यह पता चला तो हंगामा मच गया। लेकिन रमन तो अपनी जिद पर अड़ा था। 1 साल यूं ही गुजर गया लेकिन घरवाले नहीं माने तो उन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली और अलग रहने लगे। इकलौते बेटे को यूं अलग रहता देख दोनों ही के घर वालों का दिल पसीज गया और उन्होंने उन्हें अपना लिया।
उसी बीच मेरी शादी भी हो गई। पूजा से फोन पर एक दो बार बात हुई बहुत खुश थी। लेकिन बुआ जब भी फोन करती उसकी बुराइयों का अंबार लगा देती। फिर मैं भी घर गृहस्थी में उलझ गई और ज्यादा बातें उनसे ना हो पाई। लेकिन आज बुआ के फोन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि ऐसा क्या हुआ होगा। मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने पूजा के पास फोन किया।
पहले तो उसने मेरा फोन काट दिया। थोड़ी ही देर बाद उसका फोन आ गया। मेरे कुछ पूछने से पहले ही वह बोली "तुम रमन की बहन के नाते फोन कर रही हो या मेरी सहेली के। "
तब मैंने उसे प्यार से कहा "पूजा मैं अपनी उसी बचपन की सहेली से इंसानियत के नाते बात करना चाहती हूं। मैं भी एक स्त्री हूं। आज ही मुझे सब बातों का पता चला। मैं तो घर परिवार में इतना उलझ गई थी कि किसी से बात ही नहीं कर पाती थी। जहां तक मुझे पता था ।तुम्हारा और रमन का जीवन तो हंसी खुशी चल रहा था फिर यह कैसे हो गया।"
"मेरी बदकिस्मती कहूं या की रमन बुजदिली। शादी के 1-2 साल तक तो सब सही रहा। वह मुझ पर जान छिड़कता था । लेकिन जब से परिवार वाले हमें साथ लेकर गए तब से उसका व्यवहार बदलने लगा। काम पर भी जाना उसने कम कर दिया था। मेरे सास-ससुर उसे बिना कुछ करे ही जेब खर्च दे रहे थे। मेरी सास बात बात पर ताने देने लगी थी और हर काम में कमियां निकालती। यहां तक कि मेरे खाने पीने पर भी वह निगरानी रखने लगी। मेरा मायके जाना या उनका यहां आने पर भी उन्होंने पाबंदी लगा दी थी। रमन मेरी कुछ सुनता ही नहीं था। क्योंकि उसे तो अब बिना कुछ किए रुपया मिलने लगे थे और प्यार का नशा तो समय के साथ साथ उतर ही रहा था। अब तो वह मुझ पर हाथ भी उठा देता। अपने घर वालों से मैं किस तरह से कुछ कहती । उनसे ऊपर होकर ही तो मैंने खुद अपना जीवनसाथी चुना था। शादी के 3 साल हो गए थे और हमें कोई बच्चा नहीं था। कई बार मेरा चेकअप हुआ डॉक्टरों ने मेरी सभी रिपोर्ट नॉर्मल बताई और रमन की रिपोर्ट को मेरी सास ने कभी जाहिर ही नहीं होने दिया कि उसमें क्या आया है। सबके सामने वह यही कहती कि इसमें ही कमी है। हम तो सब इलाज करवा कर थक गए। अब उनके पास मुझ पर लांछन लगाने का एक और हथियार मिल गया था की मैं बांझ हूं और मुझे बच्चे नहीं हो सकते। उन्होंने रमन के दिमाग में भी यही बात भरनी शुरू कर दी कि तुमने जाति से बाहर शादी की वह तो हमने अपना ली। लेकिन अब यह बताओ तुम्हारा वंश कैसे चलेगा हम तो बिना पोता पोती का मुंह देखें इस दुनिया से चले जाएंगे। रमन को भी लगने लगा था कि सारी कमी मुझ में ही है और उसके अत्चार बढ़ते ही जा रहे थे। वह मेरी कोई बात सुनने व समझने को तैयार ही ना था। कई कई दिन तक मेरे पास ना आता।
एक दिन मेरे पापा बिना बताए आ गए। उस दिन तुम्हारी बुआ घर पर नहीं थी और रमन भी बाहर गया हुआ था। मेरी हालत देख उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं वही पूजा हूं क्योंकि मैं अब हड्डियों का ढांचा मात्र थी। पापा के पूछने पर मैंने सारी बातें उन्हें बताई।
तब वह बोले "बेटा इतने दिन तक तूने क्यों छुपाया। तू तो हमेशा फोन पर अपनी राजी खुशी की खबर देती थी।"
"पापा मैं किस मुंह से आपसे सब कहती । पसंद तो मेरी थी ना !आप सब ने तो मुझे बहुत समझाया था। अब शायद यही मेरी किस्मत है।"
इतनी देर में मेरी सास व रमन आ गए। पापा को वहां देख उन्होंने खूब हंगामा किया। पापा ने जब मेरी हालत के बारे में उनसे कहा तो रमन ने पापा को जलील करते हुए कहा "वह मेरी नासमझी थी कि मैंने इससे शादी की। लेकिन मैं इससे और निभा नहीं कर सकता।"
पापा ने जब मेरे सास-ससुर से बात करनी चाही तो उन्होंने भी दो टूक जवाब दे दिया कि "यह तो रमन की जिद थी वरना हम तुम्हारी जाति की लड़की को कभी बहू बना कर नहीं लाते और ऊपर से इसने आज तक एक औलाद नहीं जनी। यह तो हमारी भली मानसता है कि अभी तक हमने इसे घर में बैठा रखा है। लेकिन अब हमने फैसला कर लिया है कि हम रमन की दूसरी शादी करेंगे। आप या तो पंचायती फैसला कर ले या कोर्ट के जरिए तलाक। हां अगर आप अपनी बेटी को रखने में असमर्थ हैं तो यही छोड़ सकते हैं । रह लेगी घर के किसी कोने में। हमें इस बात पर एतराज नहीं।"
मेरी सास की बात सुन मेरे पापा शांत किंतु गंभीर स्वर में बोले "मेरी बेटी मेरे लिए कभी बोझ नहीं थी और मैंने उसे अच्छी शिक्षा दीक्षा के साथ ही अच्छे संस्कार दिए हैं । जो वह अब तक बिना कुछ कहे आप लोगों के साथ निभा रही थी। छोटा बड़ा कोई जाति से नहीं अपनी सोच व संस्कारों से होता है और आप कि सोच ने बता दिया की आपकी जाति चाहे कितनी भी ऊंची हो लेकिन संस्कार नाममात्र भी नहीं। चाहूं तो मैं आप लोगों को अपनी बेटी की प्रताड़ना के केस में जेल के धक्के खिला सकता हूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। इसे मेरी कमजोरी मत समझना क्योंकि मैं अपना समय अब इन व्यर्थ की चीजों में खराब नहीं करना चाहता। वैसे भी मेरी बेटी नादानी में अपने जीवन के महत्वपूर्ण साल उस शख्स के पीछे गंवा बैठी है जिसे उसकी कदर ही नहीं। अब मैं अपनी बेटी का भविष्य संवारने में और उसे इस स्याह अतीत से बाहर निकालने में मदद करूंगा।"
"कोमल मेरे लिए सब कुछ इतनी जल्दी भूल जाना संभव नहीं है । क्योंकि मैंने उसे अपनी आत्मा से स्वीकारा था। लेकिन...! खैर मैं अब कमजोर नहीं पडूंगी और अपने पापा का सपना जो रमन के झूठे प्यार के फरेब में पीछे छूट गया था उसे पूरा कर दिखलाऊंगी।"
पूजा से बात कर मुझे रमन से नफरत सी होने लगी थी। एक लड़की का घर उजाड़ वह नया आशियाना बसाने चला है। क्या यही