लघुकथा
1.भस्मासुर
- अलख निरंजन!
- आ जाइए बाबा पेड़ की छाह में।
बाबा के आते ही वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- आज्ञा महाराज।
बाबा ने खटिया पर आसन जमाया। बोले- बच्चा, तेरा चेहरा मुरझाया हुआ है। दुःखी लगते हो। दुख का करण बता, बेटा। चुटकी में दूर कर दूंगा।
- एक दुख हो तो बताऊं। दुख का बोझ उठाते-उठाते मैं हंसना-मुस्कुराना सब भूल गया बाबा।
- देख बच्चा। दुख से छुटकारा पाना है तो तीन बातों पर अमल कर । तेरी हंसी-खुशी सब वापस आ जाएगी।
- कौन सी बातें, महाराज?
- पहली बात, तू 'इरखा'( ईर्ष्या) त्याग दे।
उसने मन ही मन सोचा, बाबा तो सच में ज्ञानी हैं। बचपन की बात भी जानते है। 'इरखवा' पर दिल आया था कभी मेरा लेकिन उसको तो कभी का छोड़ दिया था। प्रकट में बोला- महाराज 'इरखा' का त्याग तो मैं बहुत पहले कर चुका हूँ ।
- ठीक है। दूसरी बात। बच्चा 'संतोख'(संतोष) को अपना लो।
वह मन ही मन बाबा की बुद्धि पर हंसा । भला संतोख को अपनाना क्या है, वह तो मेरा बेटा ही है। वह प्रकट में बोला- बाबा, संतोख तो दिन भर मेरे कंधे पर ही बैठा रहता है।
बाबा थोड़ा चिंतित दिखे- 'इरखा' नहीं है। 'संतोख' भी है फिर इसके दुख का कारण क्या है? बोले- तीसरी बात, चाहे लाख मुसीबत तुझ पर आए बच्चा, हंसते रहो। हंसी नहीं आए तो भी हंसो। देखना, दरवाजे पर आया हुआ दुख भी भाग जाएगा।
- ठीक है बाबा। आपकी बात सिर आँखों पर।
इतना सुनना था कि बाबा खटिया पर पसर गये। बोले- बच्चा आज तो बाबा तेरे घर के सामने ही धूनी रमायेगा ।
तत्काल उसे आनेवाले दुख के तूफान की आहट हुई। बाबा के हजार नख़रे झेलने पड़ेंगे। आटा,चावल-दाल, तरकारी के साथ दूध-घी का इंतजाम। बाप रे बाप , कहाँ से इंतजाम करेगा वह? तभी उसे बाबा की तीसरी बात की याद आ गयी। दुख-समस्या आये फिर भी हंसते रहो। आया हुआ दुख भी भाग जाएगा।
वह हंसने लगा।
बाबा उसे हंसता देख आश्वस्त हो गये- बच्चा, बाबा के लिए ठंडा जल और चाय का इंतजाम करो। और नमकीन वगैरह हो तो वह भी लेते आना।
वह सुना और हंसने लगा। इस बार की हंसी पहले वाली हंसी से दुगुनी थी।
बाबा उसकी हंसी से चिढ़ गये- जाओ बच्चा, शीघ्र प्रबंध करो। बाबा को चाय की तलब लगी है।
वह फिर हंसने लगा। हंसता रहा।
बाबा की सहनशक्ति जवाब देने लगी। वे क्रोधित मुद्रा लिये खाट पर बैठ गए। वे कुछ बोलने वाले थे कि सामने से एक स्त्री को आते देख चुप हो गए।
स्त्री ने बाबा को प्रणाम किया और पैर पर पांच रुपए दक्षिणा रखते हुए हाथ जोड़कर बोली- बाबा, हम आपकी सेवा करने में असमर्थ हैं। टूटी मड़ैया में आप कहाँ रहिएगा! गाँव के नुक्कड़ पर मंदिर है। वहीं विश्राम कीजिए।
बाबा का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। वे झटके से उठ गये। डण्ड-कमंडल समेटते हुए बाबा ने उसे देखा। उसकी रूकी हंसी फिर शुरू हो गयी।
तत्काल आयी समस्या, सच में, जानेवाली थी। #
2.मीठी शरारत
बात उन दिनो की है जब मैं हाईस्कूल का विद्यार्थी था। प्राइमरी स्कूल से आये एक साल हुआ होगा। अभी भी अनजानापन, झिझक, भय पूरी तरह गये नहीं थे। मित्र भी नहीं बन पाये थे। स्कूल आना, क्लास करना और छुट्टी होते ही वापस हो जाना। सारे काम खामोशी में ही होते थे।
स्थितियाँ ऐसी ही थीं कि एक रोज.....
हिन्दी पढ़ाने मास्टर साहब आए। हट्टा-कट्टा बदन। पचास पार करती आयु। सिर पर अध पके बाल किंतु ठीक से संवरे हुए। चेहरा खुरदरा पर मुस्कान का स्थायी निवास। कुल मिलाकर मुझे अच्छा लगने वाले हिन्दी के मास्टर साहब।
आते ही कल का बाकी बचा पाठ शुरु करते हुए उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी कविता का पाठ सस्वर करने लगे-
चित्रा ने अर्जुन को पाया शिव को मिली भवानी थी
खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी
मास्टर साहब का स्वर ऐसा था कि क्लास के बदमाश लड़के भी ध्यान लगा बैठते थे। उधर उनका पाठ जारी था इधन मेरी बाल-सुलभ हरकत। मैंने अगली पंक्ति में बैठे दो जोड़ियों पर नजर डाली। अनायास मेरे मन में कुछ चुलबुली-सी सोच उभरी और काफी प्रयास करने के बावजूद फिस्स से हंसी निकल गयी । हाथ से भी हंसी रोकने का प्रयास विफल रहा था।
मास्टर साहब का स्वर-पाठ अचानक थम गया। सदा मौजूद रहने वाली मुस्कान गायब थी। उसकी जगह क्रोध ने ले ली थी- "कौन है? हाथ ऊपर करो।" गम्भीर आवाज सुनते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। हाथ अनायास ऊपर उठ गया।
उंगली का इशारा पाते ही मैं मरी-सी चाल में मास्टर साहब के पास आ गया। आदेश के पहले ही हथेली फैलाकर खड़ा हो गया। उन्होंने डस्टर उठाकर मारने की कोशिश की ही थी कि बीच में मेरे बगल में बैठा लड़का तेजी से आया और मेरी हथेली पर उसने अपनी हथेली रख दी। मास्टर साहब रूक गये। हैरत से उस लड़के को जो क्लास मॉनिटर था , देखा-" गोविंद तुम! क्या हुआ?"
-"मास्टर साहब, दोषी सिर्फ यह लड़का नहीं। हमसब हैं। हमसब को सजा मिलनी चाहिए।"
-"क्यों?"मास्टर साहब के हैरत में और इज़ाफा हो गया।
-" मास्टर साहब, उधर उस तरफ लड़को वाले बेंच पर अर्जुन बैठा हुआ है और इधर लडकियों वाली बेंच पर चित्रा बैठी है। उधर शिव शंकर बैठा है और इधर भवानी बैठी है। आप उधर पाठ कर रहे थे तो इधर पिछे बैठे सारे लड़के मुंह दबाकर हंस रहे थे। इसकी हंसी निकल गयी तो....."
-" बस-बस समझ गया। सब के सब शरारती हो। शर्म नहीं आती । यह स्कूल है। यहाँ सीखने आते हो। अच्छी बातें। अच्छा व्यवहार। सब माफी मांगो। अरे, ये दोनों तुम्हारी बहने हैं।"
हम सभी खड़े होकर माफी मांगने लगे। तभी घंटी बजी। क्लास से निकलते समय मास्टर साहब की मुस्कान कुछ अधिक गहरी थी।#
@कृष्ण मनु
9939315925