हमारे छोटे से जीवन मे कितनी ही घटनाए घटित हो जाती हैँ
जिनसे हमें कुछ गहरी बिखरी यादें मिल पाती हैँ
यादें भी बड़ी अजीब होती हैँ
कुछ कड़वी तो कुछ मीठी और कुछ तो बड़ी ही विचित्र भयंकर रूप मे हमारे मन मे बसी होती हैँ
सभी यादों का अपना अलग महत्व होता हैँ जैसे अच्छी यादें हमारे जीवन को सुखद बनाती हैँ
तो वही बुरी यादें हमें सिख दिलाती हैँ
सम्भलना सीखा जाती हैँ
कुछ यादें दुख से भरा आनंद का अनुभव कराती हैँ
कुछ संसार की पहचान बताती हैँ
इसी प्रकार की एक याद रखने वाली याद मुझे अच्छे से याद हैँ
शिमला
दिन मे वहा का नजारा जितना मनमोहक जितना सुहाना जितना रसिक था रात मे उतना ही सुनसान खुंखार भयंकर और रूह को देहला देने वाला हो जाता था
एक मजबूत सुरक्षित घर के होते हुए भी एक अजीब सा डर हमारे ज़ेहन पर छा जाता जैसे किसी खौफनाक जंगल मे विचित्र संकटो से घिरे हुए हों और ना जाने किस दिशा से हम पर घातक आक्रमण हो जाये
ये रोमांचित कर देने वाला अनुभव मुझे तब प्राप्त हुआ जब मेरे मोसेरे भाई को एक सुमसाम एकांत पहाड़ी पर एक खूबसूरत फार्म हॉउस को डेकोरेट करने का सुअवसर मिला था
जब काम ख़त्म होने वाला था तब उसने मुझे घूमने बुला लिया
वाह पर जिस फार्महॉउस मे काम चल रहा था हम भाई के वर्कर्स के साथ उस फार्म हॉउस मे ही रह रहे थे
खेर जब हमारी आखरी रात थी तब भाई के साथ काम कर रहे एक वर्कर ने दिल देहला देने वाली बात बताई जिसने उस जगह का डर और भी बड़ा दिया
मनुष्य को जिस कार्य मे भय लगता हैँ कभी कभी वो उस भय का रसपान करने का आदि हो जाता हैँ
असल मे भय करते समय हमें अत्या अधिक उत्तेजना होती हैँ जिसके अंत परिणाम मे हमें एक रोमांच का अनुभव होता है और इस रोमांचित करने वाले कार्य के प्रति भयभीत होने के पश्चात भी हम आकर्षित होते जाते हैँ
बस इसी रोमांच के वशीभुत हम उसकी बातो को उस भव्य भयानक रात मे और भी अधिक जिज्ञासा से सुन रहे थे
वर्कर बोला एक बार हमरे गांव से करीब बीस मजदूर पंजाब मे एक इलाके मे मजदूरी के लिये बुलाये गये उस जगह हमें दुगनी दिहाड़ी मिलने वाली थी ऊपर से खाना पीना रहना सब उनही का था हमसे बोला गया था के उन लोगन को हमरी कारीगरी बहुते भाई हैँ
तो भैया हमको ये काम बड़ा मौके का जान पड़ा और कौन ससुरा ऐसा मौका हाथ से जाने दे सकत हैँ भला हमार गुट अगले ही दिन की गाड़ी से पहुंच गया वहाँ
सही पते पर पहुंच देखा के एक बड़ा सा खण्डर हैँ जिसका काम किये देना था उसके ही सामने एक पुराना पीपल का पेड़ था और दस बारह कदम दूर एक दो कमरों का कच्चा मकान भी था यही पर हमरे रहिन खातिर व्यवस्था की गई थी जिसमे बड़का सा आंगन और एक बड़की सी रसोई भी थी
लेकिन ससुरा लघुशंका का कौनो जुगाड़ ना ही था उसके लिये पास के खेतन मे जाई पड़ी
खाने पिने के बनाने खातिर दो माँ बेटी दिन मे आवत थी और सूरज के उतरने से पहिले ही चली जावत थी हम सब काम को निपटा कर देर से आवत थे ई कारण से हम सबका ठंडा खाना खाई पडत रही
अब ई संकट निवारण के खातिर सोचत तो रही के रोके उनको मगर का बात बोलते और का पूछते
और इ बात से हमार मतबल भी का था जो पूछते उनसे के कहे इतनी जल्दी चली जावत हैँ