ab lout chale - 9 in Hindi Classic Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | अब लौट चले - 9

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अब लौट चले - 9

अब लौट चले -9

किसी ज़माने में इस घर में मेरी मर्ज़ी चला करती थी और मनु चुपचाप मेरी ज़िद के आगे झुक जाया करता था. ठीक उसी तरह आज में अभिषेक के आगे झुक गई थी एक अजीब सी दहशत उसके चेहरे पर दिखाई दी थी... जिसने मुझें सहमने पर मज़बूर कर दिया था...

सुबह के 4 बज चुके थे अभिषेक मेरे पास आया था... में जाग रहीं थी..

संध्या जी... ! चलिए जल्दी से तैयार हो जाइये बस हमें 1 घंटे में निकलना हैं...
मुझें लगता हैं तुम बेबजह परेशान हो रहें हो..
देखिये सुबह सुबह मै कोई फालतू बात ना करना चाहता हूं और नाही सुनना... आप से जितना कहा हैं उतना करें तो आपके लिए बेहतर होगा..

मै चुपचाप उठ कर वाश रूम की तरफ आ गई थी अभिषेक उसी कमरे मै रुका रहा था

वाश रूम से बहार आकर जब मै कमरे के पास आई तो मेरा बेग लिए अभिषेक पहले से ही खड़ा था... वो तैयार था बिलकुल किसी बड़े आदमी की तरह उसकी छवि लग रहीं थी बिलकुल उसी तरह जब मनु को मैंने पहली बार देखा था....
अब क्या सोच रहीं हैं...?
क.. कुछ नहीं... और मै बाहर की तरफ चल दी अभिषेक मेरे पीछे पीछे आने लगा था... बाहर 2लग्ज़री कारे ख़डी थी और 4-5 लोग भी थे जिसमें 2 महिलाये थी उन में से एक ने कार का दरवाजा खोला..
इस में डेठियेगा मेम...
मैंने अभिषेक को देखा तो उसने आँखो से इशारा करके इजाजत दी... मै कार में सबर हो गई थी और दूसरी तरफ से दूसरी महिला मेरे बाजू में आ कर बैठ गई थी मै दोनों के बीच मे किसी कैदी की तरह उलझा सा महसूस कर रहीं थी तभी एक आदमी कार में ड्राइवर के पास बाली सीट पर आकर बैठ गया था...अभिषेक दूसरी कार में था उसकी गाडी चलते ही हमारी कार भी उसके पीछे पीछे हो ली थी...

4घंटे के सफऱ में हम मुकाम पर पहुँचे थे.... शहर के पोश एरिया की एक आलिशान बिल्डिंग अरे ये तो रवि का ऑफिस हैं... हम सब कार से बाहर निकले ही थे कि मैंने अभिषेक के पास जाते ही पूछा था

हम यहां एम एस कार्पोरेशन में क्यों आए हैं...?
मुझें नहीं पता... आप चुपचाप रहेंगी तो आपके लिए बेहतर होगा...
तभी उन महिलाओ ने मुझें इशारे से चुप रहने को कहा...
लेकिन ये तो रवि का ऑफिस हैं... अभिषेक ये तुम अच्छा नहीं कर रहें हो.. अगर रवि के साथ बात करनी ही थी तो घर चलकर कर सकते थे यहां ऑफिस में.... तमाशा करने की क्या जरूरत थी... मैंने कितना बखेड़ा खड़ा कर दिया.. लेकिन हम सब दूसरे रास्ते से होते हुए बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर पहुंचने के लिए लिफ्ट में दाखिल हो चुके थे... रवि अक्सर कहा करता था उसके मालिक के जहां जहां ऑफिस हैं वहां वहां आलिशान उनके फ्लेट भी हैं.. जरूर मनु ने रवि के बॉस से जान पहचान होंगी तभी तो वो मुझें यहां लेकर आया हैं लेकिन उन्हें हमारी इस पर्शनल लाइफ में क्यों आने की ज़रूरत पढ़ रहीं हैं... मेरे मन में ये विचार चल ही रहें थे कि हम लिफ्ट से निकल कर एक लम्बे टनल से कड़ी सुरक्षा के बीच से गुजरते होते हुए एक आलिशान लॉबी में दाखिल हो चुके थे अंदर का इंटीरियर देखते ही मेरी आँखे फटी की फ़टी रह गई... साथ में आने बाले लोग बाहर ही रुक गये थे मेनगेट बंद हो चुका था इस वक्त मै ओर अभिषेक ही थे... मै सोच में डूबी हुई किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहीं थी कि तभी कोई मेरे पैरों में किसी के होने का एहसास हुआ मैंने अपने पैरों की तरफ देखा तो एक बच्चा सिर रख कर मेरे पैरों में लेटा हुआ था.. मै कुछ समझ नहीं पाई थी...

ये आपके अंश का अंश हैं संध्या जी मेरा बेटा अंश...

मेरी आँखे इतना सुनते ही भर आई थी... मैंने उसे अपनी गोदी में उठाना चाहा तो अंश मुझसे दूर हो गया...

संध्या जी ये मेरी वाइफ मीनाक्षी...

एक शांत सौम्य सी मूरत ने मेरे पैर छुए थे.. इस पल मुझें एहसास हुआ था कि वो कल और आज में वाकई में काफ़ी लम्बा समय गुज़र गया हैं... तभी अभिषेक ने मीनाक्षी को कहा

मीनाक्षी आप अंश के साथ अंदर जाओ और वो अंश को लेकर अंदर चली गई थी... मै अंश को जाते हुए देख रहीं थी कि तभी एक तरफ का दरवाज़ा खुला था...

ओह नहीं यार.... मैंने कहा ना मै और अभिषेक कल आपके पास पहुंच जाएंगे...

हैं भगवान ये तो मनु हैं.... मै सिर्फ उसे देख ही रहीं थी और वो मेरे सामने आ कर खडे हो गये थे...

अरे आप खड़ी क्यों हैं.. बैठिये ना... ओह संध्या जी वक़्त के साथ सब बदल गया.... सिर्फ कुछ यादों को छोड़ कर बस वहीं ज़िन्दा हैं जो ठहरी हुई हैं ...

मनु सामने वाले सोफे पर बैठ गए थे..... और मेँ भी उसे देखती हुई बैठ गयी थी....एक दम बदला अंदाज़.... तभी अभिषेक ने मनु से पूछा था..

पापा मै जाऊं...?
नहीं बेटे तुम मेरी जिंदगी के अहम् हिस्सा हो आज तुम्हारा इस वक्त रहना बहुत ज़रूरी हैं... आप भी यही बैठो... हातो संध्या जी अब आपकी ज़िन्दगी में ये उथल पुथल कैसी...?
मनु ने सिगार सुलगाते हुए मुझसे पूछा था लेकिन मै मनु के परिवर्तन को देख रहीं थी जो कभी मेरे रहते नहीं दिखाई दिया था... मेरे मुँह से चाह कर भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था...
अगर आप यू ही मुझें देखती रहेंगी तो कैसे चलेगा...? अगर आप ये सोच रहीं हैं कि मै आपके इस अंदाज़ से पिघल जाऊँगा तो ये आपकी बेबकूफी हैं... इंसान से गलतियां होती हैं पर बार -बार नहीं... खैर इतने सालों बाद हम कैसे याद आ गये आपको...?
मै चुप ही थी जिसके चलते सन्नाटा सा रहा वो दोनों मेरे जवाब का इंतज़ार करते रहें लेकिन मै एकदम शून्य थी... अंदर से ऐसा लग रहा था के उठ कर यहां से भाग जाऊं लेकिन अब ऐसा कर पाना मेरे बस के बाहर था शुरुआत मैंने की थी.... तभी किसी के आने की आहट हुई तो मेरी नज़रे उस और उठ गई थी....