tumne kabhi pyar kiya tha ? - 3 in Hindi Love Stories by महेश रौतेला books and stories PDF | तुमने कभी प्यार किया था? - 3

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तुमने कभी प्यार किया था? - 3

तुमने कभी प्यार किया था?भाग-३
 
मैं हमेशा उसको सुनना चाहती थी।
मेरा सम्बोधन धीरे-धीरे आदरसूचक होने लगा था ।मुझे बहुत से क्षण याद हैं जब उसको देखते ही मेरे कदम रूक जाते थे ।
उनका लेक्चर , भैतिक रसायन पर , धाराप्रवाह लिये था । वह कण की गति को समीकरण में बाँध रहा था और मैं आवाक हो , उनके स्नेहिल स्वभाव की गति देख रही थी। कण की गति का तरंग और कण के रूप में सुन्दर विवेचना उसने की थी । लेक्चर के बाद, मैं उसे बधाई देना चाहती थी , लेकिन वह अपने साथियों के साथ बाहर आ गया था। मैंने सामने की पहाड़ी को देखा जो आसमान को छू रही थी। कड़ाके की ठंड में, मैं हास्टल आ गयी । लेक्चर श्रृंखला का दूसरा लेक्चर हारमोंस पर था। उस लेक्चर में वह सभी के साथ खूब हँस रहा था। मैं गम्भीर होकर सुन रही थी। पर उसकी हँसी और मुस्कान हमेशा मुझे मोहित करते थे।
महाविद्यालय के वार्षिक महोत्सव में, हमारी कक्षा नाटक प्रस्तुत करने जा रही थी । लड़की का अभिनय लड़के को करना था।अन्य लड़कों ने उससे कहा कि लड़कियों से ब्रा इत्यादि सामान लेना है ।वह हम तीनों लड़कियों के पास आया और परिधानों का नाम लिया। ब्रा का नाम लेते ही हम शरमा गये। उसने तब तक ब्रा का नाम सुना भी नहीं था।
उसकी अबोधता मन को छू लेती थी।
एक दिन जब वह महाविद्यालय से जा रहा था तो सेंटमेरी की १४-१५ लड़कियों ने उसका रास्ता कतार बना कर रोक दिया था वह पीछे मुड़ा और हम मुस्करा रहे थे ।
जीवन में ऐसा हास - परिहास हमें आन्दोलित करता है।झील के चारों तरफ के पहाड़ हमारे प्यार को हमेशा घेरे रहते थे।
वहाँ तब फिल्मों की सूटिंग हुआ करती थी । एक फिल्म की शूटिंग देखने हम गये थे। हम नाव में बैठकर गये और वह होटल के सामने था। देर तक हम शूटिंग देखते रहे । दूसरे दिन कालेज में उसने मुझसे पूछा "कैसी लगी शूटिंग?" मैंने कहा"अच्छी लगी"।
और उसके चेहरे को पढ़ने लगी।
संवेदना और अनुभूति जब एक जगह इकट्ठी रहती हैं तो शान्ति देती हैं। प्यार सुबह की तरह आता है ,सन्ध्या की तरह विदा हो, नक्षत्रों की भाँति टिमटिमाता रहता है।
कितनी बार वह हास्टल के मोड़ तक आता ,फिर मिलने का साहस नहीं कर पाने के कारण लौट जाता। लौटकर नन्दा देवी के मन्दिर में जाकर उनसे हिम्मत माँगता।
एक दिन वह अपने दो साथियों के साथ फोटो स्टूडियो के सामने खड़ा था , मैं अपने साथियों के साथ नीचे के रास्ते जा रही थी मेरी नजर उस पर पड़ी और रूक गयी। ५-७ मिनट एक-दूसरे को देखते रहे। फिर वह फोटो स्टूडियो मैं चला गया । मैं प्यार की अनुभूतियों को लेकर आगे बढ़ी जहाँ मेरे साथी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। वे बोले "जब इतना चाहती हो तो कह क्यों नहीं देती।" मैं योंही मुस्कुरा कर रह गयी।हम चलना चाहते थे पर गन्तव्य से अनजान।
 
मैं जब घर से सुबह आ रही थी तो वह मुझे बिजली के पोल पर मिला। मैं खड़ी हो गयी और वह बोला " स्टेशन किसी से मिलने जा रहा हूँ।" और यह कह कर चला गया। मैं जानती थी कि वह मुझसे मिलने ही आया है लेकिन उसकी हिचकिचाहट उसे सच बोलने से मना कर रही थी।बहुत बार मनुष्य की सरलता ,उसकी अच्छाई उसको अर्थवान तो बनाती है पर साथ ही उसे उसका मूल्य चुकाना पड़ता है।
जब उसने प्रैक्टिकल क्लास में मेरा पहली बार नाम लिया था तो मैं आवाक रह गयी थी। मुझे लगा " उसनें अनन्त प्यार मेरे व्यक्तित्व पर एकाएक उडेल दिया है।" मैं स्टूल पर बैठी थी और उसके सामने उतरने की कोशिश कर रही थी।
वह हमारी क्लास में चाय पीने आता था। हमारा एक साथ होना हमें पूर्णता देता था।पर उसके आदर्शवाद ने एक भटकाव भी दिया था।प्यार हमें नयी-नयी संवेदनाएं और अनुभूतियाँ दे जाता है। मनुष्य जिन्हें जीवन पर्यंत खोजता है।
मेरी हँसी और मुस्कान में तब झील और पहाड़ों के उतार-चढ़ाव हुआ करते थे। बाद में मैं हँसी भी और मुस्कराई भी पर झील और पहाड़ों का अतुलनीय सौन्दर्य उसमें नहीं होते थे।
हमारा प्यार उसके लेखन के लिये एक उत्स था और मेरे लिये बहाव। हम २ साल में कुछ दिन मिले लेकिन इतने सालों में कितनी बार साथ-साथ चलते रहे। बर्षों बाद,जब इंटरनेट, फेसबुक, गूगल, व्हाट्सएप आये तो एक दूसरे को खोजना कुछ सीमा तक संभव हो गया।उसकी बातें जिन्हें मैं इन्टरनेट पर पढ़ती रही हूँ, उनके बीच स्वंय को पाती हूँ । वह लिखता है-
 
1) मैं वहीं ठहर गया हूँ
जहाँ तुम हो
तुम्हारी परछाई है ,
अद्भुत आत्मा है
आँखों की आदतें हैं ,
प्यार का मिजाज है
मैं वहीं ठहर गया हूँ,
जहाँ आँखों के प्रश्न हैं,
भूगोल के नक्शे हैं ,
इतिहास का रोना है ,
मौसम का आनन्द है ,
वषों का लालित्य है,
पानी का आचमन है ,
पगडण्डियों का भुलावा है ,
सड़कों का सारांश है,
मैं वहीं ठहर गया हूँ ।
 
2)
मैं वहाँ से लेकर आऊँगा
ठंडी हवाओं की बातें,
बर्फीली कहानियाँ ,
पहाड़ों की ऊँचाई,
गिरते पत्थरों के टुकड़े,
नदी में बहते घरों की खबर,
टपकती छत का हाल ,
फलों से भरी टोकरियाँ,
गीतों के गुच्छे ,
आसमानी मन ,
चुप्पी भरी यादें ,
मुड़ती गरदन का सच ,
प्यार का अर्थ ,
जवानों का हौसला ,
प्यार की पीड़ा ,
मैं वहाँ से लेकर आऊँगा ।
3)
ये,
तेरी यादों का कोहरा,
तेरी यादों की बूँदें ,
तेरी यादों का साया,
तेरी यादों का पहरा,
शब्दों में नहीं वाचा है,
मन से सारा जप डाला है।
तेरी बातों के बादल,
तेरी बातों की राहें,
तेरी बातों का हँसना,
तेरी बातों की पगडण्डियाँ,
शब्दों में नहीं वाचा है,
मन से सारा जप डाला है।
तुझे कहने वाले भाव,
तुझे लाने वाले क्षण,
तुझे बताने वाली सांसें,
तुझसे आने वाली लौ ,
शब्दों में नहीं वाचा है,
मन से सारा जप डाला है।
4)
मैंने सबसे पहले
तुममें खोजा था प्यार,
तुम्हें पता था या नहीं,
पता नहीं ।
मैंने सबसे पहले
तुमसे ही कहा था,
अपना पवित्र सत्य
तुम्हें पता था या नही,
पता नहीं ।
मैंने सबसे पहले
तुमसे ही कहा था,
" मैं तुमसे प्यार करता हूँ"
तुम्हें पता था या नही,
पता नहीं ।
उसका पुस्तकालय में जाना,देर तक वहाँ पढ़ना बीच-बीच में मेरे हास्टल की ओर देखना उस समय का सच था। वह शान्त भी था और अन्याय के प्रति आक्रामक भी। इन्टरनेट पर आगे लिखता है-
अब तेरी सुबह कैसी है
तेरी संध्या कैसी है ,
तब दिन का साथ कैसा था
रात का साया कैसा था ,
जो पाना चाहा, पा न सका
ढूंढ़ा तो ,खोज न पाया
अपनी बातें, बाँट न पाया
कहना चाहा, तो कह न सका
आधी-अधूरी बातों को
पूरा मैं कर न सका
कितने झंझावातों में
कितने मन के पाठों में ,
चाहा भी तो, आ न सका।
वह मेरे जीवन का सच है।उड़ता है फिर मन में बैठ जाता।जीवन के यथार्थ को शब्दों में नहीं बाँध सकते हैं। रात में जो भी नक्षत्र दिखाई देता, वह एक आशा लिये होता है।हर घटना मुझे जब-तब हिलाती है।महाविद्यालय की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते जब कभी अचानक वह मिलता, तो मन के साथ मेरे कंधे भी उसे समेटने लगते।जिस रास्ते के कमरे से वह मुझे देखता था, मेरी आँखें बार-बार वहाँ देखती-उतरती थीं। मैं उसे सम्मान देती थी।उसने मेरे चेहरे पर कभी हँसी या मुस्कराहट नहीं देखी थी,क्योंकि उसे देखते ही मैं गम्भीर हो जाती थी।वह झील के किनारे बने मैदान के एक सिरे पर खड़ा हो मेरी प्रतीक्षा करता, इस इच्छा में कि मैं दिखभर जाऊँ।----।
***** महेश रौतेला