Vidrohini - 2 in Hindi Moral Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | विद्रोहिणी - 2

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विद्रोहिणी - 2

विद्रोहिणी

(2)

निर्दयता

श्यामा अपने बच्चों के साथ अपने पति के घर लौट गई। उसका पति किशन महाराष्ट्र के एक छोटे गांव में रहता था। वह ब्रम्हाजी के मंदिर में पुजारी था।

किशन औसत उंचाई का, दुबला पतला व गोरा लगभग 20 वर्षीय युवक था। वह धोती कुर्ता पहनता था व कहीं विशेष कार्य से बाहर जाने पर सिर पर काली टोपी पहनता था।

वह बडे क्रोधी स्वभाव का था व श्यामा पर अपना रौब गांठता रहता था । वह वक्त बेवक्त उसे पीट देता था। मंदिर में प्रायः साधूगण आकर रूका करते थे। किशन मंदिर से होने वाली सारी आय साधुओं की खातिरदारी, तम्बाखू व नशा सेवन में उड़ा देता था।

उस दिन मंदिर में एक साधू बाबा आकर रूके हुए थे। किशन उनसे खूब गप्पें लगा रहा था। बड़ी हंसी मजाक चल रही थी। किशन ने श्यामा को आवाज लगाते हुए कहा, ‘श्यामा हमारे साधू बाबा बड़ी दूर से यहां आए हैं। इनके लिए बढ़िया खाना बनना चाहिए। ’

श्यामा अंदर के कमरे में थी। वह बच्चों को तैयार कर रही थी।

उसने कहा, ‘ रसोईघर में खाने के लिए कोई वस्तु शेष नहीं बची है। बच्चे खाने के लिए जिद कर रहे हैं किन्तु इनके लिए भी कुछ नहीं बचा है। ’

इतना सुनते ही किशन ने भड़क कर कहा, ‘ सामान नहीं है तो मामाजी के यहां से दौड़ कर ले आ। ’

किशन का मामा पास मे ही रहता था। उसने अपनी मृत्युशैया पर अंतिम सांसे गिनती हुई बहिन को वचन दिया था कि वह उसके बच्चों की जीवन भर देखभाल करेगा। किशन के पूरे परिवार के भरण पोषण का जिम्मा उसका था। किन्तु मामी बड़े दुष्ट स्वभाव की थी। वह किशन व श्यामा से अपने घर का पूरा काम कराती तब कहीं जाकर बड़ी मुश्किल से थोड़ा खाना देती थी। मामा से षिकायत करने पर वह श्यामा को और अधिक तंग करती थी।

किशन के मामा मोहनलाल की कहानी बड़ी अजीब थी। वह पास के गांव में एक सेठ के यहां मुनीम था। मोहन ऐक हट्टा कट्टा, लंबा कद व गौर वर्ण का व्यक्ति था। उसका मालिक ऐक अत्यंत धनी सेठ था। वह वृद्ध व्यक्ति था। उसके दो जवान बेटे व एक विवाहित बेटी थी। सेठ विधुर था व अत्यंत कामी था। उसने एक गरीब पिता को धन देकर उसकी चौदह वर्षीय बेटी से विवाह कर लिया। घर के सभी लोग उससे बड़े रूष्ट हो गऐ किन्तु वृद्ध अपनी नवयौवना पत्नि को पाकर फूला नहीं समाता था। यद्यपि वह अपनी पत्नि के साथ शरीर स्पर्श के अलावा कुछ नहीं कर पाता था किन्तु इस विवाह से उसके मानसिक सुख की सीमा न थी। उसने अपने इस काल्पनिक सुख के बदले अपनी पत्नि को कीमती गहने व अकूत धन से लाद दिया। अति उल्लास के फलस्वरूप सेठ की ऐक माह बाद ही हृदयाघात से मृत्यु हो गई। कुछ ही दिनों बाद परिवार में सेठ की सम्पत्ति को लेकर उसके रिश्तेदारों में संघर्ष व षड़़यंत्र होने लगे। सेठ की विधवा प्रायः सरेआम मोहनलाल के साथ हंसी व मटरगश्ती करती नजर आने लगी। उसका रोमांस जवान हट्टे कट्टे मुनीम के साथ पहले से ही चोरी चुपके चल रहा था।

एकमात्र मुनीम को ही कम्पनी के व्यापार के गोपनीय सूत्रों की जानकारी थी ।

उसके बिना व्यापार का पत्ता तक नहीं हिल सकता था। उसे व्यापार व सम्पत्ति की बारिकी का पूरा ज्ञान था। उसने सारे कीमती कागजात अपनी महबूबा सेठानी के हवाले कर गुप्त स्थान पर रखवा दिऐ।

इस प्रकार मोहनलाल उस कम्पनी का एकमात्र कर्ताधर्ता बन गया।

उसके आगे अन्य सब विवश हो गऐ। सेठ के पुत्र अपने पिता के व्यापार में कोई रूचि नहीं लेते थे। इस उदासीनता की कीमत उन्हें चुकानी पड रही थी। वे निठल्ले थे इसलिऐ व्यापार की एबीसीडी नहीं समझते थे। सेठानी व मोहनलाल प्रायः गुप्त मंत्रणा करते नजर आते व पर्दे के पीछे गुलछर्रे उड़ाते। विधवा ने अपना सबकुछ उस खूबसूरत गरीब मुनीम पर न्यौछावर कर दिया व उसे उपहार में भारी सम्पत्ति का मालिक बना दिया। वह गांव का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया।

श्यामा ने कहा, ‘ यदि मैं मामा कें यहां गई तो मामी मुझे वहीं रोक लेगी व शाम तक काम कराऐगी। ‘ अपने हुक्म की नाफरमानी सुनकर किशन गुस्से से उबल पड़ा । वह तूफान की तरह अंदर कमरे मे गया व श्यामा को लात घूंसे से मारने लगा। श्यामा उससे दया की भीख मांगती रही किन्तु उसका दिल नहीं पसीजा। श्यामा रोती तड़पती व दर्द से कराहती रही। वह चिल्लाता रहा, ‘ रांड! सबके सामने रोज मेरा अपमान करती है। मुझसे जबान लड़ाती है। अपने आप को बड़ी अकलमंद समझती है।

वह श्यामा को पीटते एवं घसीटते हुए एक छोटी अंधेरी कोठरी में ले गया। उसने श्यामा को उस तंग जगह में बंद कर दिया व बाहर से सांकल लगा दी । वहां श्यामा अपने पैर तक ठीक से नहीं फैला सकती थी। श्यामा उस जगह सुबह से देर शाम तक भूखी प्यासी बंद अपने दुर्भाग्य को कोसती रही।

अंधेरा होने पर एक व्यक्ति को उस कोठरी में कुछ अजीब हलचल सुनाई दी। उत्सुकतावश उसने कोठरी को खोलकर देखा तो वह स्तब्ध रह गया। श्यामा वहां अचेत पड़ी थी। वह जोर से चीखा, ‘ पुजारी! तुम्हारी पत्नि यहां बेहोंश पड़ी है। ’ यह नजारा देखकर वहां अनेक लोग इकठ्ठा हो गए। श्यामा को बड़ी मुश्किल से होंशमें लाया गया किन्तु किशन का कलेजा नहीं पसीजा।

इस तरह श्यामा पर किशन के जुल्म रोज बढ़ते गए। उधर बच्चो पर ध्यान न देने से वे आवारा होकर सड़कों पर घूमने लगे। किशन ने उन्हें स्कूल र्में भर्ती नहीं कराया।

एक दिन श्यामा का बड़ा बेटा कुमार अपने पिता की फेंकी हुई अधजली बीड़ी पी रहा था। वह बड़ी जोर से खांसा।

श्यामा तेजी से दौड़ती हुई्र आई। वह कुमार को बीड़ी पीता देख क्रोधित होगई व उसे बुरी तरह पीटने लगी।

उसने कुमार को जोरदार तमाचा जड़ते हुए पूछा, ‘ क्या अब भविष्य मे बीड़ी पीऐगा ? ’

कुमार ने रोते हुए जोर से सिर हिलाते हुए कहा ‘नहीं, कभी नहीं। ’

किन्तु कुमार का चोरी छुपे बीड़ी पीना, उसका जोर जोर से खांसना व श्यामा का उसे जोर से पीटना जारी रहा।

अंत में तंग आकर श्यामा ने अपमे पिता को पत्र लिखा:

पूज्य पिताजी,

“ कृपया यह पत्र मिलते ही पहली गाड़ी से आकर मुझे इस नर्क से निकालिये। मैं यहां बेहद परेशान हूं। मेरा पति रोज मुझे बेवजह पीटता है व मुझे अनेक बार भूखा रखकर बेइंतहा अत्याचार करता है। बच्चों को स्कूल में भर्ती नहीं कराया गया है । वे आवारा सड़कों पर घूमते हैं। आपके न आने की स्थिति में मुझे आत्महत्या के लिए विवश होना पड़ेगा। “

श्यामा को बड़ी कठिनाई से सबसे छिपाकर वह पत्र डाक से भिजवाना पड़ा।

वह पत्र कौशल्या को मिला। वह अनपढ़ थी । किसी अन्य व्यक्ति से उसने पत्र पढ़़वाया। पत्र सुनकर वह अचेत हो गई। घर के सभी लोग घोर चिंता में डूब गए। उसी रात श्यामा की माता पहली गाड़ी पकड़कर श्यामा के गांव जा पहुंची।

***