Life @ Twist and Turn .com - 19 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 19

Featured Books
Categories
Share

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 19

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 19

ज़िंदगी हर कदम एक नई जंग है ---सच, दामिनी ने इस जंग को खूब बहादुरी से लड़ा है | आदमी की बाहरी जंग तो सबको दिखाई देती है परन्तु आंतरिक जंग से वह ख़ुद ही जूझता है ! कला जीवन को जीना सिखाती है, नया रूप देती है, साँसें ज़िंदा रखने के लिए अँधेरी कोठरी से निकाल साँस लेने की जगह बनाती है | मज़ाक है क्या ज़िंदगी को यूँ ही बिखेर देना | आदमी की बाहरी जंग से भीतरी जंग अधिक हानिकारक होती है | मीशा भी अपनी अंदरूनी जंग से लड़ती रही,

उसके मूड का पता ही नहीं चल रहा था | कभी तो वह वन्दिता के सामने एक बच्ची सी बन जाती जैसे बहुत कहना मानने वाली आज्ञाकारी गुड़िया, खूब सज-धजकर सुंदर, कोमल जादू की पुड़िया सी ! कभी फिर से बिखर जाती, जैसे कोई फ़ितूर सा चढ़ जाता था उसे अचानक | कभी हर रोज़ सुबह कत्थक की प्रैक्टिस के लिए जाने को उतावली रहती, कभी निरीह सी कोने में दुबक जाती |

``नानी !आप अपने स्ट्रगल की बात बताने वालीं थीं ?``

दामिनी रोज़ की तरह दोपहर को फ़्रूट्स काटने में लगी हुई थी। सेव का छिलका चाकू से उतारते हुए बोली ;"मैं जब वीरेन के साथ अहमदाबाद आई थी तब उनके पास हाथ में डिग्री के अलावा कोई रिसोर्स नहीं थे | ज़िंदगी जीने के लिए जूझना पड़ता है बेटा ! हम यहाँ अजनबी भी थे और ख़ाली हाथ भी | मेरे माँ-पिता जी ने वीरेन को बहुत कुछ देने की ज़िद की लेकिन वीरेन एक ख़ुद्दार व्यक्ति थे, मैंने भी उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो मुझे केवल पहने हुए कपड़ों में ही लेकर आ गए थे ----"

"लेकिन, यहीं क्यों नानी ? इतनी दूर ---? यहाँ क्या था उनका ?" मीशा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी |

"बेटा ! एक आंतरिक विश्वास होता है जिसके सहारे कमज़ोर से कमज़ोर आदमी भी सुदृढ़ हो खड़ा हो जाता है | बस, वही विश्वास हमें यहाँ खींच लाया | तुम्हारे नानू ने यहाँ के एक बड़े वकील का नाम सुना था, उनसे कॉरस्पॉन्डेंस हुई और इनकी क्वालिफ़िकेशन देखकर उन्होंने इन्हेंअपने असिस्टेंट के रूप में यहाँ बुला लिया | जबकि बड़ा मुश्किल था इतनी दूर आना --पर न जाने किस खिंचाव से हम यहाँ चले आए, कहते हैं न, सब कुछ सुनिश्चित होता है, बस --ऐसा ही होगा कुछ----"

"फिर ---इतना कुछ कैसे ?"मीशा के मन में प्रश्नों पर प्रश्न जन्म ले रहे थे |

"वकील विभूति नारायण ---बहुत बड़ा नाम ! लोग उनके पास जाते हुए बहुत संकोच करते थे | उनकी फ़ीस इतनी अधिक थी कि सामान्य लोग तो उनके पास जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे लेकिन उनकी एक बहुत बड़ी विशेषता थी कि वे किसी ग़रीब, लाचार और ईमानदार आदमी से कुछ नहीं लेते थे, उसका केस वो फ़्री में ही लड़ते थे और उनका जीतना तो हर केस में तय था ---"

"तो नानू को उनसे इतना कुछ मिला ?" मीशा ने फिर उत्सुकता से एक और प्रश्न परोस दिया |

"नहीं बेटा --वैसे उन्होंने विवाह नहीं किया था पर वो किसी को भी कुछ भी मुफ़्त में देने के हक़ में नहीं थे | उन्होंने तुम्हारे नानू को पहले वही सब सिखाया जो उन्होंने खुद शायद घुट्टी में पीए हुए थे यानि ईमानदारी का और काम शिद्द्त का पाठ, वैसे यह अलौकिक बात थी कि तुम्हारे नानू में पहले से ही ये गुण थे जिनसे वे और भी प्रभावित हो गए --

-और पाँच वर्ष के अंदर उन्होंने तुम्हारे नानू को अपनी कुर्सी सौंप दी, वो काफ़ी बड़ी उम्र के थे और उन्हें किसी परिश्रमी और ईमानदार व्यक्ति की ज़रुरत थी ----"

"ये सब प्रापर्टी उनकी है नानी ?"मीशा ने आँखें फैलाकर पूछा |

"अरे नहीं, उनका कुछ नहीं है लेकिन उनकी गाइडेंस और आशीर्वाद ने हमारे जीवन को सुवासित कर दिया, इसमें कोई शक नहीं है | उन्होंने अपने बँगले में एक वृद्धाश्रम बनाकर सारा धन उसमें दान कर दिया था, तुझे दिखाकर लाऊँगी --" दामिनी ने एक लंबी साँस खींची जैसे वह कहीं खो गई थी |

"आपने अपनी पत्रकारिता का काम ज़ारी रखा ?वो कैसे?"

"हाँ बेटा, हम दो साल बाद घर मिलने गए थे तब बिंदो हमारे साथ आ गई थी --बस मेरी डिलीवरी में, मेरे प्रोफ़ेशन में उसने मेरा माँ की तरह साथ दिया | दरसल मेरा प्रोफ़ेशन मेरे लिए सपना था, उस पर गुजरात को, यहाँ के लोगों की संस्कृति पर गांधीजी के प्रभाव को समझने का जूनून था | उसके बिना मैं अपने व्यक्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकती थी |"

``मम्मी बतातीं रहतीं थीं कि आप जब यहाँ के आउटस्टेंडिंग लोगों, यहाँ की एन जी ओज़ के विषय लिखतीं थीं तो कोई आपके लेख प्रकाशित नहीं करता था। "

``ये बात बिलकुल सच है क्योंकि स्त्री के स्थान पर कोई पुरुष ये सब लिखता तो हाथों हाथ लिया जाता। ख़ैर ---------बस ---जहाँ चाह, वहाँ राह ! उस समय स्त्री पत्रकार को अजीब संशय से देखा जाता था। मैं योग करती थी उन सारे दवाबों में मानसिक संतुलन बनाये रही। मेरी माँ, दादी एक बात कहती थीं जो मुझे आज तक याद है, मैं जब भी कुछ ढीली पड़ती या उदास होती वो कहतीं ---अपने खड़े हुए बिना, कोई कुछ नहीं पा सकता --उनकी इस बात ने मुझे एक सुदृढ़ व्यक्ति के रूप में खड़ा कर दिया "

कुछ रुककर दामिनी ने मीशा से पूछा, "बेटा, तुझे नहीं लगता कि हम जो कुछ भी करते हैं, उसी से सफ़लता मिलती है, किसी और के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने से या किसी की दया के सहारे नहीं ---! वह मीशा की आँखों में

झाँककर उसका उत्तर पढ़ने का प्रयत्न करने लगी|

"मुझे भी कुछ कुछ ऐसा लगने लगा है। "

दामिनी में एक आशा का संचार होने लगा था कि जिस भरोसे से कामिनी अपनी बेटी को उसके पास छोड़ गई है, वह उसका भरोसा नहीं तोड़ेगी। जब घबरा जाती तो चुपके से फ़ोन करने बैठ जाती। वन्दिता उसे समझाती ;"दामिनी !इतनी हताश क्यों हो जाती हो ? ये मूड स्विंग्स तो हर आदमी के होते हैं, किसीके ज़्यादा, किसी के कम, सिचुएशनल्स होते हैं ये ! अब इस तरह के केसेज़ में वो ज़रा ज़्यादा होते हैं, छोटी है, जीवन का तर्ज़ुर्बा अभी है ही कहाँ उसे ---बस इतनी सी बात है|"

"यार ! मुझे यही तो चिंता हो जाती है यह पूरी तरह ठीक कब होगी ? इसकी माँ के भी कितने फ़ोन आ चुके हैं |पहले इसकी एम बी ए करने की मानसिक तैयारी थी --अब उस बारे में कोई बात करना चाहें तो बिफर जाती है |एडमिशन्स का समय पास ही है, अगर ठीक न हो सकी तो बेकार ही साल बर्बाद होगा ---"दामिनी के आशा के समुद्र में उदासी की हिलोरें उठने लगतीं, पता नहीं क्या होगा ? गहरे अवसाद की घटा सी उसके मन में कभी भी उमड़ने लगती |

" दामिनी !एक साल की चिंता, पूरे जीवन के दुःख से कम है न ?`` पल भर रुककर वन्दिता ने पूछा ;

"दिल पर हाथ रखकर कहना, क्या तुम कभी इस स्थिति से नहीं गुज़रती हो ?सच कहूँ --तो तुम मीशा के बारे में भी कमोबेश इसी स्थिति से गुज़र रही हो ----यानि तुम्हारा भी तो मूड स्विंग-"

"मतलब -----?"

"तुम्हारे मन में मीशा के पूरी तरह ठीक होने की आशंका कभी भी उठने लगती है, कभी तुम्हारा मन सोचता है, वह बिलकुल ठीक हो जाएगी, कभी उसका व्यवहार या मूड देखकर तुम ख़ुद ही पशोपेश में पड़ जाती हो |``

दामिनी जब भी मीशा से बात करने की कोशिश करती वह फिर भड़क सी जाती । आख़िर ऐसे चलेगा कब तक ?

दामिनी को कभी भी अपने स्ट्रगल के दिन याद आने लगते | एक बार स्ट्रगल थोड़े ही हुई थी उसके जीवन में, न जाने कितनी बार प्रारब्ध ने उसकी परीक्षा ली थी | वीरेन के साथ शादी करके जब वह आई तब उसके पास अकेलेपन के अलावा कुछ नहीं था | ज़माना यहाँ भी वही था जो उसके शहर में था, लोगों की प्रकृति भी वैसी ही थी बल्कि यहाँ तो लड़कियों ने बी ए किया और उनकी शिक्षा पूरी हो गई | जब वह अपना पर्स लटकाकर हस्तियों का साक्षात्कार करने जाती तब यहाँ पर भी कौन उसे समझ पाता था, केवल वीरेन के ! कितने अजीबोग़रीब प्रश्न उसके सामने आते थे, जिनका उत्तर उसे बहुत विवेक से देना होता था | ख़ैर, उसके लिए वीरेन का समझना, उसका साथ बहुत था मानो पूरी दुनियाँ उसकी हमसफ़र हो |

दामिनी को लगा वह मीशा को सम्भाल रही है वीरेन उसे, "दामिनी ! तुम इतनी बहादुर हो, किसी भी बात से परेशान मत होना, छोटी-छोटी परेशानियाँ तो सबके सामने आती हैं । हम तो वो हैं जो परेशानियों में ही जन्मे, खेले हैं | रही बात सफ़लता की सो सफ़लता कर्म करने वाली की झोली में ज़रूरआती ही है | वो ---देखो, सामने कितनी बड़ी इमारत है, और उसमें लगी छोटी-छोटी ईंटें ---? इन ईंटों के सहारे ही तो बनी है वह --बस हमारे प्रयत्नों की छोटी-छोटी ईंटें ही हमारे जीवन की इमारत को सुदृढ़ बनायेंगी। `` कैसा ठहरा हुआ विवेकपूर्ण, भव्य व्यक्तित्व था वीरेन का ! उसकी आँखें सजल हो आईं |

दामिनी को लगा फिर वीरेन कह रहे हैं कि मीशा के लिए `` प्रयास की एक-एक ईंट रखकर उसके मन की दीवार को सुदृढ़ करो | हमसे जुड़े लोग बेशक भौतिक रूप में हमारे सामने नहीं होते किन्तु विचारों व चेतना के रूप में हमारी सहायता करते रहते हैं | मुश्किलों से भाग जाना तो आसान है पर मुश्किलों का सामना करना ही इतिहास रचने का कदम है |" अब तो याद नहीं दामिनी को लेकिन न जाने किस बात की चर्चा करते हुए वीरेन बोले थे बल्कि वह उस समय हँसी भी थी वीरेन पर ---न जाने ऐसा तो कौन सा इतिहास रचने जा रही है वह !

धीरे-धीरे कैसे एक-एक कदम बड़ी एहतियात से रखकर वह अपनी मंज़िल पर पहुंची थी | आज बेशक लोग उसकी सफ़लता, उसके ठाठ-बाट को ईर्ष्या की नज़र से देखते हों लेकिन वे जानते ही क्या हैं उसके स्ट्रगल के बारे में | और वह किसी के लिए आंसरेबिल भी क्यों हो ?दामिनी ने अपने सिर को झटका दिया क्या पागलों की तरह सोचने लगी है ? मीशा के केस को सुलझाने के बजाय वह अपने वरख़ क्यों पलटने लगी ? ओह ! यह भी तो एक प्रकार का मूड स्विंग ही हुआ न ?अचानक उसके होठों पर मुस्कुराहट तैर गई |

***