Afsar ka abhinandan - 26 in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | अफसर का अभिनन्दन - 26

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अफसर का अभिनन्दन - 26

प्रभु !हमें कॉमेडी से बचाओं

यशवंत कोठारी

इस कलि का ल में वर्षा का तो अकाल है मगर कॉमेडी की बारिश हर जगह हो रही हैं ,क्या अख़बार क्या टी वि चेनल क्या समाचार चेनल सर्वत्र कॉमेडी की छाई बहार है.दर्शक श्रोता कॉमेडी की बाढ़ में बह रहा है, चिल्ला रहा है,मगर उसे बचा ने वाला कोई नहीं है.उसे इस तथाकथित कॉमेडी मे से ही जीवन तत्व की ऑक्सीजन ढूंढनी है.शायद ही एसा कोई चेनल हो जो कॉमेडी नहीं परोस रहा है.कार्यक्रमों की स्थिति ये की इन प्रोग्रम्मों से अच्छी कामेडी तो घरों में बच्चे कर लेते हैं, स्कूल कालेजों के वार्षिक कार्यक्रमों में हो जाती है.तथाकथित पंचो को सुन सुन कार हंसी के बजाय रोना आता है.किसी भी चेनल को देख लो भोंडापन ,अश्लीलता. फूहड़ गंदी हरकते ,बस यहीं सब रह गया है .दुर्भाग्य यह की कोई रोक टोक नहीं कोई सेंसर बोर्ड नहीं जो मर्जी चाहे दिखाओ. द्विअर्थी संवाद,उटपटांग हरकते और हो गई कॉमेडी.

हास्य को नवरसों में प्रमुख स्थान दिया गया है ,लेकिन इन फ़िल्मी लटके झटकों ने इसे हास्यास्पद रस बना दिया है.संस्कृत नाटकों में विदूषक व् सूत्रधार होते थे जो मनोरंजन करते थे. नट-नटी संवाद भी यहीं का म करते थे.शेक्शपियर के नाटकों में भी क्लाउन ऑफ़ दी एम्पायर होता था ,ये लोग आम आदमी के प्रतिनिधि होते थे ,रा जा इनकी आवाज को अवाम की आवाज मानता था.मगर आज कल की कॉमेडी से भगवन बचाए. उलटे सीधे कपड़े, पुरुष को नारी बनाना,नारी को पुरुष का स्वांग बनाना –हो गई कॉमेडी. बीच बीच में हंसी के केसेट भर दो. एक दो लोगो को खाली हंसने ,चिल्लाने के लिए बैठा दो. कर्यक्रम की टी आर पी केलिए किसी भी हद तक जाकर करोडो के खेल खेलो.

एक प्रसिद्ध कामेडी शो में तो एक मंत्री ही बैठ कर हाहा हु हु करते हैं.इस शो में अपमानित करने वाली कॉमेडी परोसी जाती है जो निक्रष्ट कामेडी मानी जाती है.दर्शकों के साथ भी एसा ही व्यवहार किया जाता है.न्यूज़ चनलों में जो छोटे छोटे कर्यक्रम दिखाते है वे राजनितिक होते है, कुछ स्थानों पर कवि या कवयित्रिया लटके झटकों के साथ अवतरित होती है,कुछ चेनल अनिमेशन का सहारा लेते हैं मगर हंसी फिर भी नहीं आती आप मुझे सूम कह सकते हैं मगर हकीकत ये है की अब हंसी किसी कार्यक्रम से नहीं आती, हंसी जिदगी से ही गायब होगई तो कॉमेडी में कहाँ से आएगी?

कभी ये जो है जिन्दगी ,श्रीमान श्रीमती, नुक्कड़,जैसे सीरियल आते थे . शेखर सुमन,जैसे लोग थे .आकाशवाणी पे झलकियाँ आज भी अच्छी आती हैं..फिर लाफ्टर चेम्पियन का युग आया.नए लड़के आये.कुछ ने अच्छी मेहनत की करीब ५०० लोग रोज इस क्षेत्र में का म कर रहे हैं,मगर स्तर निरंतर गिरता ही जा रहा है.

फिल्मों में भी जानीवाकर, जोहर ,गोविंदा , अमिताभ असरानी महमूद जैसे कलाकार थे राजपाल यादव ने भी मेहनत की मगर कपिल,भारती,,और अनु कपूर जैसे लोग सब गुड़ गोबर कर दे रहे हैं, क्या पैसा ही सब कुछ है, समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं.

भारत मुनी के नाट्य शाश्त्र को पुन:पढ़ा जाना चाहिए .

इस तनाव युक्त समय में हँसना,खुश रहना एक जरूरत है, सब तरफ से निराश होकर आदमी लतीफो,,हास्य कार्य क्रर्मो की और देखता है,लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगती है.कोलोरेडो विश्व विद्यालय ने कोमेडी पर एक किताब छापी है ,मगर उसमें भारतीय व् एशियाई कामेडी का जिक्र नहीं है.क्या हमारा सेंस ऑफ़ ह्यूमर मर गया है.कभी रा जा के कानों तक यह कॉमेडी पहुँचती थी मगर अब कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारी लोक संस्कृति में भी कामेडी, प्रहसन हंसी मजाक का भर पूर स्थान था मगर आधुनिकता ने सब लील लिया.रह गया बस टी वि का अश्लील भोंडा हास्य और उधा र की हंसी.हम सबसे ज्यादा फिल्मे बनाते हैं लेकिन हास्य के मामले में बड़े गरीब है.मालामाल वीकली,पिपली लाइव, अंगूर जैसा हास्य फिर पैदा होना चाहिए.

एसा नहीं है की अच्छे लेखक या कलाकार नहीं हैं वे हैं लेकिन प्रोडूसर –निर्देशक के नखरे कौन उठाये .रत को ११ बजे स्क्रिप्ट के साथ बुलाएँगे फिर ३ बजे तक बिठाये रखेंगे और फिर वापस रत को आना ,एसी स्थिति में स्वाभिमानी लेखक प्रेमचंद, अमृतलाल नागर ,भगवती चरण वर्मा की तरह वापस गाँव लौट जायगा , या श्याम ज्वालामुखी की तरह ट्रेन की चपेट में आ जायगा क्योकि उसके पास टेक्सी के पैसे नहीं होंगे.

रसिक पाठकों कभी सिट काम ही चलती थी मगर स्टैंडिंग कामेडी ने सब गुड गोबर कर दिया अब् कामेडी ही ट्रेजेडी है ,हम लोग अपनी अपनी ट्रेजेडी को कामेडी समझे और जिए .शायर का कलाम है-कभी आती थी हाल –ए-दिल पर हंसी, अब किसी बात पर नहीं आती .

ooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo यशवंत कोठारी ,86,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर -