Domnik ki Vapsi - 21 in Hindi Love Stories by Vivek Mishra books and stories PDF | डॉमनिक की वापसी - 21

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डॉमनिक की वापसी - 21

डॉमनिक की वापसी

(21)

शिमोर्ग के मंच पर जाते ही विश्वमोहन रूम में आए. बिना कुछ कहे दीपांश के सामने बैठ गए. फिर जैसे अपने से ही बात करते हुए बोले ‘बहुत अच्छा रिस्पोंस है दर्शकों का. पहले के किसी भी शो से कई गुना बेहतर.’ फिर बोलते हुए थोड़ा आगे खिसक आए, ‘इस नाटक का दुनियाभर के अलग-अलग शहरों में सैकड़ों बार मंचन होगा. मेरी, तुम्हारी, हम सबकी ज़िन्दगी बदल जाएगी. हमें सालभर बाद इससे भी बड़ा फाइनेंसर मिल जाएगा. तुम्हें सेतिया से प्रॉब्लम है वो तो समझ आता है और उसे मैं ठीक भी कर लूंगा पर शिमोर्ग से...क्या प्रॉब्लम है?’

‘अब मुझे किसी से प्रोब्लम नहीं. आप सबने मेरे लिए जो किया उसके लिए एहसानमंद हूँ, आप सबका.’ इतना कहके दीपांश उठकर शीशे के सामने खड़ा हो गया.

विश्वमोहन भी उसके साथ आके खड़े हो गए, बोले, ‘जानते हो इतने बड़े बजट के नाटक को मंच तक लाना कोई आसान काम नहीं है. जब ये नाटक लिखा था तब से मन में यही सवाल था कि डॉमनिक का किरदार कौन निभाएगा. फिर अचानक तुम सामने आ गए. बिलकुल उसी किरदार की तरह. पर जो तुम हो उसी को जीना अभिनय नहीं है. अभिनय लोगों को उसके होने का यकीन दिलाना है जो तुम नहीं हो. थोड़ी दुनियादारी समझो, नहीं तो रमाकांत की तरह पूरी ज़िन्दगी यहीं मंडी हाउस पर भटकते हुए बीत जाएगी.’ फिर शीशे में दीपांश के अक्स को डॉमनिक के रूप में कुछ इस तरह देखा जैसे अपनी ही रची किसी कलाकृति को देख रहे हों.

फिर जेब से सिगरेट निकालकर सुलगाते हुए बोले, ‘शिमोर्ग बहुत चाहती है तुम्हें.’

दीपांश बिना कुछ कहे वॉयलिन उठाकर जाने के लिए तैयार हो गया.

विश्वमोहन अपनी बातों का असर न होते देखके उसके कंधे पे हाथ रखके सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए बोले, ‘सेतिया के साथ शिमोर्ग को देखके बहुत बुरा लगा?’

दीपांश ने वापस मुड़कर वॉयलिन ड्रेसिंग टेबिल पर रख दी.

विश्वमोहन ने वापस वॉयलिन उसके हाथ में पकड़ाते हुए कहा, ‘उसे मैंने ही सेतिया के पास भेजा था.’

दीपांश का कमरे में दम घुटने लगा.

वह कमरे से निकलना ही चाहता था, पर वह उसके रास्ते में खड़े, बोलते ही रहे, ‘मैं भी बहुत पसंद करता हूँ शिमोर्ग को, पर जानता हूँ कहीं पहुँचने के लिए कहीं से निकलना ही पड़ता है. कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ देना पड़ता है.’

नाटक के अंतिम दृश्य से पहले मंच पर दीपांश की एंट्री का इशारा हो चुका था.... विश्वमोहन ग्रीनरूम में दीपांश का रास्ता रोके खड़े थे, ‘ये मेरा बनाया किरदार है जिसने तम्हें यहाँ लाके खड़ा किया है, ज़रा इससे बाहर निकल के सोचो..’

दीपांश ने निकलने के लिए अपना रास्ता बनाते हुए कहा, ‘मैं उससे बाहर ही हूँ, अपने किरदार में जिसे आपने नहीं बनाया, वैसे भी अब आपका डॉमनिक बहुत दूर तक मेरे साथ नहीं चल पाएगा.’

मंच पर आखिरी दृश्य था...

एलिना डॉमनिक को छोड़कर वापस अपने पति रॉबर्ट के पास जा चुकी थी...

डॉमनिक कुर्सी पर बैठा वॉयलिन बजा रहा था. उसके चारों ओर फैला प्रकाश उसके पीछे एक छोटे से गोले में सिमट आया था. उसकी परछाईं लम्बी होकर मंच के फ्लोर पर फैल गई थी. परछाईं में वॉयलिन जैसे उसकी बाहों का ही विस्तार हो गई थी, उसके सुर धीरे-धीरे लोगों की स्मृति में हमेशा के लिए अंकित हो रहे थे. रोशनी मद्धिम होती जा रही थी. परछाइयाँ अपने ही अँधेरे में डूबकर मिट रही थीं. डॉमनिक के पीछे से पर्दे ने उतरकर चाँद को ढक लिया था. डॉमनिक ने कुर्सी से नीचे खिसककर घुटने ज़मीन पर टेक दिए. लोग संगीत और अभिनय के सम्मोहन में खड़े होकर तालियाँ बजा रहे थे.

आज कम होती रोशनी के साथ वॉयलिन का स्वर धीमा नहीं हुआ था.

आज ज़मीन से उठा डॉमानिक वापस ज़मीन पर घुटने टेककर वॉयलिन बजा रहा था, वह विलगित ह्रदय से बजती जा रही थी, तेज़ और तेज़. इससे तालियों भी तेज़ और तेज़ हुई जा रही थीं. लोग कुर्सियों से उठके मंच के पास इकट्ठे हो गए थे. विश्वमोहन, रमाकांत, शिमोर्ग... सभी विस्मित थे.. मंच पर जो हो रहा था वह स्क्रिप्ट से बाहर था.... किरदार अपनी सीमा लांघकर कुछ और हुआ जाता था... जो पहली बार नाटक देख रहे थे वे डॉमनिक के इस आक्रोश... इस तड़प को ही नाटक का अंत मान रहे थे..

जो पहले देख चुके थे उन्हें डॉमनिक की उदास अँधेरे में डूबती वॉयलिन याद आ रही थी...

तभी यकायक वॉयलिन का तार टूट गया. वह ख़ामोश हो गई...

मंच अँधेरे में डूब गया और हॉल में रोशनी हो गई...

लोग कह रहे थे वह ‘डॉमनिक की वापसी’ का सबसे सफल मंचन था...

***