विद्रोहिणी
(1)
मन्नत
शाम का समय था। ऐक बैलगाड़ी सरपट उस पहाड़ी के ढलान पर दौड़ी जा रही थी।
गाड़ीवान एक युवा नौजवान था जो उमंग उत्साह से भरा हुआ था। वह रह रहकर गुनगुनाता था ,
‘ चलना ही जीवन है रूकना ही मौत
चलते चलो, चलते चलो।’
गाड़ी मे ऐक वृद्ध दम्पत्ति अपनी युवा बेटी के साथ बैठे हुए थे। बेटी की उम्र करीब बीस साल रही होगी। बेटी के विवाह को करीब तीन वर्ष हो चुके थे किन्तु उसकी गोद सूनी थी। ससुराल वाले बेटी को दिनरात ताने मारते थे। बेटी की गोद हरी हो जाए, इस मन्नत के लिए वे राजस्थान के इस प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में मन्नत मांगने हेतु आए थे। क्षितिज पर सूरज अस्त हो रहा था। हवा तेज बह रही थी। हवा के साथ बैल बड़़ी तेजी से भाग रहे थै।
अचानक बैल ठिठक कर रुक गए। गाड़ीवान भयभीत स्वर में धीरे से बोला, ‘अरे बाप रे ! शेर !
‘सामने से कुछ दूरी पर दो शेरों का जोड़ा मंथर गति से चलते हुए उनकी ओर आ रहा था। वे अपनी ही धुन मे दिखाई दे रहे थे। गाड़ी में बैठे हर व्यक्ति की डर के मारे घिग्गी बंध गई। मौत प्रतिक्षण नजदीक आ रही थी।
अपना अंतिम समय जानकर वृद्ध घबराते हुए धीरे से बोला, ‘ मैं शेरों के सामने कूद जाउंगा,
शेर मुझे खा लेंगे किन्तु तुम सब की जान तो बच जाएगी। ’
इस पर वृद्धा रोते हुए बोली, ‘ आपके बगैर मैं वैधव्य जीवन जीकर क्या करूंगी? शेरों के आगे कूदकर पहले मैं अपनी जान दूंगी, आप मेरी बेटी को सुरक्षित इसके घर छोड़ आना। ।’
इस प्रकार दोनो माता पिता बेटी को बचाने के लिए अपने प्राण पहले देने के लिए जिद करने लगे। अब शेर गाड़ी के बहुत समीप आ चुके थे। सभी लोगों की सांस रूक गई थी। दोनों वृद्ध दम्पत्ति, शेरों के सामने पहले कूदने की जिद में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे । शेरों ने सिर उठाकर अनमने भाव से गाउ़ी की ओर देखा। उन्होने गाड़ी व उसमें उपस्थित किसी वस्तु में कोई रूचि या जिज्ञासा नहीं दिखाई। वे अपनी मस्त चाल से आगे बढ़ चले। सब लोगों ने गहरी सांस ली। गाड़ीवान अब सरपट गाडी़ दौड़ा रहा था।
अभी भी भय के मारे हर व्यक्ति मुड़ मुड़कर पीछे देख रहा था। कुछ देर बाद रेल्वे स्टेशन की चिमनी का प्रकाश दिखाई देने लगा। सबने गहरी निश्वास भरी ।
वृद्ध माता ने कहा, ‘ हे हनुमान बाबा! तेरा बड़ा धन्यवाद, आज तो तूने ही मृत्यु से हमारी रक्षाकी नही तो हम श्यामा के घरवालों को क्या मुंह दिखाते ? हे भगवान तेरा बार बार घन्यवाद। ’
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स्वप्न व ज्योतिषी
श्यामा सांवले रंग की लड़की थी । वह कुछ स्थूलकाय, गोल चेहरा, नाटे कद की सुंदर युवती थी। उसकी चाल मतवाली थी। सांवला रंग होने पर भी वह सुंदर थी।
उस सुबह वह खुशी से चहक रही थी। उसने अपनी माता से कहा -
‘ मां मैने आज बड़े सवेरे एक सपना देखा। ’
माँ ने उत्सुकतावश पूछा, ‘ क्या देखा, बेटी ? ‘
‘मैने अपने आंगन में दो बच्चों को खेलते देखा। ’
‘यह तो बड़ी अच्छी खबर सुनाई बेटी, ! हे भगवान ! तेरी बोली सफल हो। सुबह सुबह का सपना सदा सत्य होता है। ’
श्यामा उस शहर के एक बहुत बड़े मकान मे रहती थी। उस मकान में तीन तीन कमरों के अनेक फ्लेट्स थे जिनमें अनेक किरायेदार रहते थे। मकान के तल मंजिल मे एक नल था जिससे सभी लोग पानी भरते थे। नल के समीप ही एक कुआ था। बीच में एक बड़ा आंगन था।
उस मकान मे प्रायः एक पंडित आया करता था। वह एक ज्योतिषी था। उसके पास लोगों की प्रत्येक समस्या का हल था। पंडितजी एक लंबे छरहरे बदन के व्यक्ति थे। उनके ललाट पर लाल तिलक था, सिर पर काले रंग की टोपी ; वे लंबा कुर्ता व धोती पहनते व उनके गले में एक लाल अंगोछा लिपटे रहता ।
सुबह का वक्त था। पंडितजी का आगमन हुआ। पंडित को देखकर कौशल्या को श्यामा के विषय मे जानने की उत्सुकता हुई। उसने पंडित से पूछा, ‘ पंडितजी श्यामा की खाली गोद कब भरेगी ? ’
पंडितजी गंभीर होकर मन ही मन कुछ गणना करने लगे। उन्होने कहा ‘’ श्यामा के पुत्र भाव पर शुभ ग्रह गुरु की दृष्टि पड़ रही है, अतः श्यामा को शीघ्र संतान प्राप्त होगी। कौशल्या ने फिर पूछा ‘’ श्यामा को कितनी संतान होंगी, पंडितजी ? ’
पंडितजी ने पुनः कुछ गणना की एवम् बोले, ‘’ श्यामा को दो पुत्रों का योग है। ’’
कौशल्या का मन मयूर आनंद से नाच उठा। उसने पंडितजी को एक चवन्नी दी। पंडितजी ने शीघ्रता से उसे अंटी किया एवं आशिर्वाद देते हुए आगे बढ़ चले ‘ तुम्हारी मनोकामना पूरी हो। अच्छा ज्योतिषी निराश मन में आशा की नई ज्योति जगा देता है।
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संतान प्राप्ति
कुछ माह बाद ने श्यामा ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया।
श्यामा के घर खुशिया मनाई जाने लगी। सुबह होते ही उसके घर रोज आसपास से स्त्रियां जुट़तीं । खूब नाच गाना होता, हॅंसी मजाक होता और अंत में मिठाई बंटती।
वे गातीः
‘श्यामा के घर’ जन्मे नंदलाला,
बाल गोपाला, यशोदा के लाला,
आनंद बरस रहा है,
कौशल्या के भाग जगे हैं ’
बालक मनुष्य के जीवन में नये जीवन का संचार करता है, नीरस होते जीवन में नया उत्साह उमंग भरता है। बच्चे के बिना मनुष्य का जीवन शुष्क हो जाता है।
अगले दिन पंडितजी को बड़े आदर से बुलाकर उन्हे शाल, श्रीफल व चवन्नी देकर सम्मानित किया गया। पंडितजी ने बालक की जन्मपत्रिका बनाई। उन्होने बालक केा अत्यंत प्रतिभाशाली होने व परिवार का नाम रौशन करने वाला बताया। बालक का नाम कुमार रखा गया।
अगले वर्ष श्यामा ने पुनः दूसरे पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम मोहन रखा गया।
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