Domnik ki Vapsi - 20 in Hindi Love Stories by Vivek Mishra books and stories PDF | डॉमनिक की वापसी - 20

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डॉमनिक की वापसी - 20

डॉमनिक की वापसी

(20)

श्रीराम सेंटर में विश्वमोहन के नाटक 'डॉमनिक की वापसी' का पचासवाँ शो। समय से आधा-एक घंटे पहले से ही दिल्ली के तानसेन मार्ग पर अच्छी खासी गहमा-गहमी, हॉल के बाहर हाथों में टिकिट या पास लिए घण्टी बजने की प्रतिक्षा में खड़े लोग। नाटक के निर्देशक विश्वमोहन मुख्य द्वार के बाईं ओर एक कोने में पत्रकारों से मुख़ातिब- ‘देखिए सचमुच ‘दुनिया एक रंगमंच है'…और इसमें हरपल, एक साथ असंख्य नाटकों का मंचन होता है, फिर भी जीवन- जीवन है और नाटक- नाटक,…या कहें कि नाटक जीवन होते हुए भी, उससे इतर एक कला भी है, जीवन के भीतर सतत आकार लेता एक सपना भी है, जीविका भी है, और कभी-कभी जीवन के अंधेरे रास्तों में टिमटिमाता, हमें रास्ता दिखाता दीया भी है.’

पत्रकारों से बात करते हुए भी, वह बार-बार थिएटर के मेन गेट की ओर देख रहे थे। उन्हें देखकर लगता कि भीतर चल रही नाटक की तैयरियों से अधिक वे किसी और बात से चिन्तित हैं, शायद उन्हें किसी का इन्तज़ार है। तभी उनकी सहायक ज्योति जिसने इति की जगह काम संभाला था, ने आकर बताया कि दीपांश का अभी तक कोई पता नहीं। अगर उसे पता नहीं तो किसे पता होगा? दीपांश का उस समय वहाँ न होना सचमुच चिन्ता की बात थी। शायद इसीलिए विश्वमोहन का ध्यान अपने सामने चमकते कैमरों पर न होकर बार-बार गेट की ओर जा रहा था।

शो के लिए बहुत सारी तैयारियाँ की गई थीं। जो लोग नाटक पहले भी देख चुके थे उनके लिए भी इस शो में बहुत कुछ नया था- नए कॉस्ट्यूम, नए तरीके की मंच सज्जा, नई तक़नीक से लैस प्रकाश व्यवस्था, नया संगीत। किसी ने भी अपनी तरफ़ से, किसी काम में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, पर फिर भी सबके मन में एक विचित्र-सा कौतुहल था और उसका कारण था दीपांश और शिमोर्ग की डॉमनिक और एलीना के रूप में मंच से इतर के अबोले के बाद की बदली हुई केमिस्ट्री.

भीतर ग्रीन रूम में शिमोर्ग नाटक की नायिका 'एलिना' के गेटअप में आ चुकी थी। मेकअप हो चुकने के बाद भी वह आँख़ें मूँदे शीशे के सामने बैठी थी। रमाकन्त-'एलिना' के पति 'रॉबर्ट' की भूमिका के लिए अपना कीमती कोट पहनकर तैयार हो गए थे। वह इस समय ग्रीन रूम के बीचो-बीच रखी, एक पुरानी टेबल की ड्रॉर में पड़ी तमाम चीज़ों को बिथोल कर, उनमें सिगार ढूँढ रहे थे। इस बीच टेबिल पर रखा उनका मोबाईल लगातार बज रहा था। उनकी पत्नी का फोन था, उन्होंने झल्लाकर फोन काटा और उसे स्विच ऑफ कर दिया।

विश्वमोहन ग्रीन रूम से मंच तक जाने वाली कॉरीडोर में खड़े अपनी सहायक को डाँट रहे थे। दीपांश का अभी तक कहीं पता नहीं था। पहली घण्टी बज चुकी थी। पहला दृश्य एलिना और उसके पति रॉबर्ट का था। यानी शिमोर्ग और रमाकन्त के मंच पर जाने का समय हो चुका था।

हॉल में अपना स्थान ले चुके दर्शकों की संख्या और उनका उत्साह, पिछले दिनों में 'डॉमनिक की वापसी' को मिली लोकप्रियता की गवाही दे रहे थे।

तीसरी बेल बजते ही मंच पर प्रकाश फैलता चला गया।

दर्शकों के सामने एक शानदार हवेली के भव्य ड्रॉइंग रूम का दृश्य है। दीवारों पर कीमती कलाकृतियाँ लगी हैं। रॉबर्ट कमरे के बीचों-बीच एक बड़ी आराम कुर्सी पर बैठे सिगार पी रहे हैं। लगता है वह सिगार नहीं पी रहे हैं, बल्कि उससे जीवन के त्राण खींच रहे हैं। उनके पीछे से घुमावदार सीढ़ियाँ हवेली के ऊपरी हिस्से में जाती हैं। नेपथ्य में बहुत धीमे से बजती वॉयलिन का स्वर दृश्य को गम्भीर बना रहा है। हॉल के अंधेरे में बैठे दर्शकों की कई जोड़ा आँखें रॉबर्ट को ध्यान से देख रही हैं, पर वह कुछ भी कहने की जल्दी में नहीं हैं।

किसी के सीढ़ियों से उतरने की आवाज़ आती है। दर्शकों की आँखें सीढ़ियों की ओर उठती हैं, पर रॉबर्ट अब भी निरापद एवम तटस्थ हैं। एलिना सीढ़ियाँ उतरती हुई दिखाई देती है। उसने काले रंग का, सिल्क का गाउन पहना है और अपने सुनहले बाल जूड़े में बाँध रखे हैं। उसके हाथ में एक हैन्ड बैग है, जिसे देखकर लगता है, वह कहीं बाहर जा रही है।

उसके पदचाप सुनकर रॉबर्ट ने भारी आवाज़ में बिना उसकी ओर देखे हुए कहा, 'इस समय कहाँ जा रही हो, एलीना?'

एलीना ने सपाट-सा उत्तर दिया, 'पता नहीं।'

अब रॉबर्ट ने अपनी बात एलिना कि ओर देखते हुए कही, 'तो दो पल ठहरो और सोचकर बताओ कि तुम इस समय जा कहाँ सकती हो?'

'मैं कहीं जाने के लिए नहीं जा रही हूँ। बस इस समय मैं यहाँ से चली जाना चाहती हूँ।' एलिना ने बिना रॉबर्ट की ओर देखे ही जवाब दिया।

रॉबर्ट ने ऐसी हैरानी से पूछा, जिसमें झुंझलाहट का पुट अधिक था 'पर क्यूँ एलिना, यहाँ से जाना ही क्यूँ ज़रूरी है? तुम यहाँ रहकर भी, यह जता सकती हो कि तुम मुझसे नाराज़ हो।… तुम यहाँ रहकर,…कुछ भी कर सकती हो’

एलिना ने निमिष मात्र ठहर कर रॉबर्ट को देखा, ‘हाँ, मैं यही कर रही हूँ, मैं यहाँ रहते हुए भी, अभी यहाँ से जा रही हूँ। तुम कहते हो न कि मैं स्वतन्त्र हूँ, अपने निर्णय ख़ुद ले सकती हूँ, तो इस समय मेरा यही निर्णय है।’

रॉबर्ट ने हल्के गुस्से के साथ थोड़ी ऊँची आवाज़ में, जिसमें थोड़ी याचना भी शामिल थी, फिर सवाल किया, ‘प्रश्न यह है कि कहाँ जा रही हो और कब तक के लिए?’

एलिना ने रॉबर्ट की ओर घुमते हुए कहा, ‘उत्तर फिर वही है, मुझे नहीं मालूम और जो बात मुझे ख़ुद नहीं पता तुम्हें कैसे बता सकती हूँ। मेरा तुमसे एक सवाल है, तुम दिन-रात अपने कामों में लगे रहते हो, तुम्हें यह जानने की फुर्सत भी नहीं होती कि मैं इस दुनिया में हूँ भी या नहीं।…फिर आज क्यूँ जानना चाहते हो कि मैं कहाँ जा रही हूँ?’

‘क्यूँकि मैं परवाह करता हूँ, तुम्हारी’ अब रॉबर्ट आराम कुर्सी से खड़े हो गए थे। एलिना और वह आमने-सामने थे।

‘क्यूँ परवाह करते हो?’

‘क्योंकि प्रेम करता हूँ तुमसे। पति हूँ तुम्हारा।’

‘पर तुम्हें यह प्रेम और अपना पति होना तभी क्यूँ याद आता है, जब तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे बनाए एक निश्चित दायरे को लाँघने वाली हूँ।…वैसे तो तुम भूले रहते हो, अपने पति होने को और अपने प्रेम को भी।’

रॉबर्ट पहली बार बोलते हुए तनिक झुक गए थे, ‘ ऐसा नहीं है, एलिना। यह मेरा प्रेम ही है, यह सब कुछ तुम्हारे लिए है। तुम यहाँ नहीं हो तो कुछ भी नहीं है। मैं तुम्हारी वजह से ही लौटता हूँ, इस छत के नीचे।’

एलिना दर्शकों की ओर घूम जाती है। ऊपर से तेज़ प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ रहा है। ‘सही कहा तुमने। मेरी वजह से लौटते हो तुम इस छत के नीचे, जिसे मैं घर समझती हूँ।…और मुझे यहाँ देखकर आश्वस्त हो जाते हो कि इस छत के नीचे तुम्हारा बनाया सब कुछ सुरक्षित है, तुम्हारी पत्नि के साथ।…तुम्हारे इन्तज़ार में। ये प्रेम नहीं है, रॉबर्ट। मैं अब तुम्हारा प्रेम नहीं हूँ। मैं तुम्हारी आदत हूँ, जिसे इस छत के नीचे देखकर तुम मन ही मन खुश हो जाते हो।…सोचते हो कि हाँ, मेरे हिस्से का रिश्ता, उसका सुख, कभी भी पाए जाने के लिए सुरक्षित है। (बोलते हुए दर्शकों के और करीब जाती है जिससे तेज़ रोशनी में तनी हुई गर्दन और तमतमाए चेहरे की मांसपेशियां चमक उठती हैं)…चाहे फिर तुम्हें कभी भी जरूरत न पड़े,…उसकी।’

रॉबर्ट एलिना के पीछे से दर्शकों की ओर बड़ते हुए थोड़ी हताश और लड़खड़ाई आवाज़ में कहते हैं, ‘पर मेरे आस-पास एक बहुत बड़ी दुनिया है, जिसे मैं चलाता हूँ, जो मैंने बहुत मेहनत से ख़ुद खड़ी की है, क्या वो सब मेरे अकेले के लिए है?’

एलिना रॉबर्ट की ओर घूमती है। उसकी भौहें, बात शुरू होने से पहले ही एक सवाल की तरह उठती हैं, ‘तो क्या वो सब मेरे लिए है?…और अगर मेरे लिए है भी, तो क्यूँ भूले रहते हो मुझको, उस दुनिया को चलाते वक़्त? सच तो ये है, वह दुनिया तुम्हारी है और वह लगातार बड़ी होती जा रही है।…तुम शायद ठीक से देख नहीं पा रहे, अब वह तुम्हारे लिए भी नहीं है। वह तुम्हारे अहम के लिए है। तुम्हारी एक काल्पनिक-सी लगातार बड़ी होती छवि के लिए है, पर वह छवि है - वो अहम है,…कि बढ़ता ही जाता है और मेरी दुनिया, एक छोटी-सी दुनिया और सिकुड़ती जाती है। मुरझा गया है, मेरा मन, इस वृहत से विकराल होते वृक्ष के नीचे रहते हुए, बस अब मुझे इसकी छाया से दूर जाना है।’

रॉबर्ट खत्म होती सिगार का आखिरी कश खींचते हैं। उनके मुँह से गाड़ा धुआँ ऊपर उठता है. लगता है- धुआँ नहीं भीतर बैठा कोई ज़हरीला नाग निकला है। एलिना रॉबर्ट की कुर्सी के सामने से मंच का छोटा-सा घेरा लेती हुई, मंच से बाहर चली जाती है। रॉबर्ट फिर सिगार का एक कश लेना चाहते हैं, पर सिगार बुझ चुका है। वह जैसे विश्वास नहीं कर पाते कि वह सचमुच बुझ गया है। वह उसे अपनी आँखों के सामने लाकर ध्यान से देखते हैं, फिर आराम कुर्सी के बगल में रखे स्टूल पर सजी कीमती एश्ट्रे में रख देते हैं। कुछ सोचकर वह फिर उस सिगार को उठाते हैं और दोबारा एश्ट्रे में रखते हुए, उसे ज़ोर से मसल देते हैं।

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मंच पर फैला प्रकाश सिमटता चला जाता है। अंधेरे में दीवार पर लगी कलाकृतियाँ नेपथ्य में खिसकने लगती हैं।

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वॉयलिन का स्वर तेज़ होने लगता है। मंच के बाँई ओर एक लेम्प पोस्ट प्रकाश में आता है और उसके भीतर जलते बल्ब का प्रकाश फैलकर अपने चारों ओर एक घेरा बना लेता है। उस घेरे से कुछ ही दूर एलिना खड़ी है। एलिना प्रकाश के घेरे में प्रवेश करती है और एक हाथ से लेम्प पोस्ट को पकड़ लेती है। वॉयलिन अभी भी बज रही है। स्वर और सघन हो उठा है। वह विलम्बित से द्रुत में आ गई है। इतनी रात में इस खाली मैदान में बजती वॉयलिन एलिना को परेशान कर रही है।

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मंच के पीछे नाटक के निर्देशक विश्वमोहन- डॉमनिक की भूमिका निभाने के लिए बड़ी हड़बड़ी में तैयार होते दीपांश से कह रहे थे, ‘अगर तुम्हें यहाँ पहुँचने में थोड़ी और देर हो जाती तो क्या हो सकता था, जानते हो तुम?’

‘अगर इति के मिलने में एक दिन की भी देर हो जाती तो क्या हो सकता था जानते हैं आप?’

‘इट्स सो इर्रिस्पोन्सिबल,…एण्ड यू आर ड्रन्क!’

दीपांश के चेहरे पर कोई भाव नहीं उभरे। उसने सिर हिलाया। बड़े ही विचित्र ढ़ग से सिर हिलाया, लगा सिर धड़ से अलग होकर ज़मीन पर गिर पड़ेगा। विश्व मोहन अभी कुछ और कह पाते कि वह मंच की ओर भागा।

विश्वमोहन ने उसका ढीला-काला चोगा खींचते हुए कहा, ‘वॉयलिन तो लेते जाओ,’

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मंच पर एलिना धीरे-धीरे लेम्प पोस्ट की रोशनी से दूर होती हुई वॉयलिन की आवाज़ की ओर बढ़ रही है। नीले रंग की रोशनी उसके गोरे रंग को श्यामल कर रही है। उसके इस रंग से रात के दूसरे पहर का भान हो रहा है। उसके कानों में पड़ता वॉयलिन का स्वर उसे बेचैन कर रहा है। आगे और अंधेरा है, पर वॉयलिन की आवाज़ इसी ओर से, नहीं यहीं से, ठीक यहीं से आ रही है। पर यहाँ तो कोई नहीं है। वह तेजी से आगे बढ़ती है। तभी उसे किसी चीज से ज़ोर की ठोकर लगती है। ठोकर की आवाज़ से वॉयलिन बंद हो जाती है।

एलिना ध्यान से देखती है। उसके सामने एक कब्र नुमा आयताकार गड्ढ़ा है, जिसमें एक सिर दिखाई दे रहा है। वह चीख पड़ती है। डॉमनिक कूदकर गड्ढ़े से बाहर निकलता है। उसके बाल उलझे हुए हैं। दाड़ी बढ़ी हुई है। काले-ढीले चोगे पर मिट्टी लगी है। उसके हाथ में वॉयलिन है। एलिना डॉमनिक को देखकर पीछे हट जाती है। वह अभी भी उसकी उपस्थिति को लेकर सशंकित है।

डॉमनिक मंच के पीछे पड़े काले पर्दे की ओर देखते हुए, ‘फादर ठीक कहते थे, ये गाँव ही है, जहाँ थोड़ा-बहुत सुकुन बाकी है। शहर में तो कब्र में सोए मुर्दों तक को चैन नहीं। उन्हें भी डर लगा रहता है कि न जाने कब उन्हें अपने ठिकानों से बेदखल होना पड़े।’

एलिना थोड़ी हिम्मत बटोरते हुए, ‘कौन हो तुम?’

डॉमनिक सपाट और लम्बा चेहरा बनाते हुए, ‘पता नहीं।’

एलिना आश्चर्य से, ‘पता नहीं मतलब, तुम्हें ये तो पता है कि तुमने मुझे डरा दिया?’

डॉमनिक थोड़ा आगे बढ़ते हुए, ‘मैंने तुम्हें डरा दिया, इस समय इस कब्रिस्तान में आकर डरा तो आपने मुझे दिया है।’

एलिना डरते हुए, ‘ये कब्रिस्तान है?’

डॉमनिक किसी महान दार्शनिक के चेहरे की उदासी अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए, ‘हाँ, मुर्दों के इन्तज़ार में बाँहे फैलाए खड़ा, आधी खुदी कब्रोंवाला, एक नया कब्रिस्तान।’

‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो?’

डॉमनिक चेहरे को सामान्य करते हुए, ‘मै इस कब्र में बैठकर वॉयलिन बजा रहा था।’

‘बड़े अजीब आदमी हो, वैसे तुम हो कौन?’

डॉमनिक फिर उसी उदासी को ओढ़ने की कोशिश में मुस्करा देता है, ‘आपके यहाँ आ धमकने से पहले मैं भी यही सोच रहा था कि मैं कौन हूँ?…क्या आपको पता है,…आप कौन है?’

‘हाँ, मैं, मैं एलिना, मि रॉबर्ट की…’

‘मि रॉबर्ट की?’

एलिना गर्दन लम्बी करते हुए, ‘कोई नहीं, मैं एलिना हूँ, बस..’

‘ओह! इस तरह बस नाम भर बताना है?…तो मैं डॉमनिक हूँ, वॉयलिन वाला।’ डॉमनिक पूरी नाटकीयता के साथ एक पैर पीछे मोड़ते हुए, एक हाथ से वॉयलिन ऊपर उठाते हुए, एलिना के आगे सिर झुकाता है। एलिना के चेहरे के भाव ऐसे हैं, जिससे लगता है कि उसके मन में डॉमनिक को जानने की उत्सुकता पैदा हुई है, पर उसे अपने चेहरे के अभिजात्य में दबाए है। फिर भी वह कह उठती है, ‘मैंने अपने आस-पास कई व्यापारियों, सरकारी अधिकारियों, दलालों, लेखकों, गायकों-संगीतकारों, चित्रकारों और लगभग सभी अपने तरह के महत्वपूर्ण आदमियों को मंडराते हुए देखा है, पर तुम्हारे जैसा आदमी मैंने अपने जीवन में आज पहली बार देखा है।’

डॉमनिक एलिना को ध्यान से देखते हुए, उसके चारों ओर एक चक्कर लगाता है, फिर कुछ सोचते हुए, ‘आप जैसी भद्र महीला को इतनी रात में, यहाँ इस तरह नहीं घूमना चाहिए।’

‘क्यों? …कयों नहीं घूमना चाहिए? …और तुम्हें कैसे पता कि मैं कैसी महिला हूँ?’

डॉमनिक कुछ सोचते हुए, ‘भद्र महिलाएं रात में सोने के समय भी अपने सुनहले बाल जूड़े में बांध के रखती हैं,…और हाँ सर्दियों में भी वे ठंड से बचने के लिए, अपने सिल्क के गाउन के ऊपर काला मोटा लबादा नहीं पहनती और वे हमेशा, आठों पहर, सुन्दर दिखती हैं।…और हाँ एक आखिरी बात, उन्हें पहली बार देखने पर उनकी उम्र का अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता।’

एलिना के न चाहते हुए भी उसके चेहरे पर एक खिसियानी हँसी उभर आई है। ठीक उसी पल अपने हाथों को एक दूसरे से बांधते हुए, उसे एहसास हुआ कि उसे ठंड लग रही है और सचमुच ही उसने अपना ओवरकोट नहीं पहना है। वह अपने सुनहले बालों पर हाथ फेरते हुए एहसास करती है कि उसने इतने गुस्से में भी, घर से निकलते हुए बाल जूड़े में करीने से बांध रखे हैं। एलिना एक झटके से खुद को अपनी छवि से मुक्त करते हुए, डॉमनिक से मुख़ातिब होती है, ‘तुम रहते कहाँ हो?’

‘यहीं’

‘यहीं! इस कब्रिस्तान में?’

‘नहीं, इस अधूरी खुदी कब्र में। रात में इसमें सर्दी नहीं लगती और देर रात तक वॉयलिन बजाने पर कोई शिकायत भी नहीं करता।’

‘……………!’

‘वैसे मैं पिछले चार-छ: रातों से ही यहाँ हूँ। यहीं से सुबह काम पर जाता हूँ।’

‘इससे पहले कहाँ रहते थे?’

‘इससे पहले एक सराय में रहता था। उसका कई दिन का किराया बाकी था, सो वहाँ से निकाल दिया गया।’ डॉमनिक अपनी बात खत्म करते हुए, वॉयलिन का छोटा-सा टुकड़ा बजा कर ठेका देता है, जैसे उसने बहुत महत्वपूर्ण संवाद बोला हो।

एलिना को हँसी आ जाती है, ‘क्या तुम मुझे उस सराय तक ले चलोगे?’

डॉमनिक बड़े विचित्र ढ़ंग से गर्दन घुमाते हुए, ‘उस सराय तक! नहीं, मैं उस गली तक में नहीं जाता।’

इस बार डॉमनिक के चेहरे पर उतरी उदासी सच्ची थी। उसने अपने भीतर ऐसे सिकुड़ते हुए कहा, जैसे उसे ख़ुद पर ही ग्लानि हो रही हो, ‘उस सराय का मालिक मुझे देखकर गालियाँ बकने लगता है। पहले वह मुझसे बहुत प्यार से बात करता था। उसे संगीत पसंद था। वह रात में देर तक मेरे कमरे में बैठकर वॉयलिन सुनता था। कहता था, ‘तुझे किसी बड़े संगीतकार से मिलवाऊंगा और फिर तेरी ज़िन्दगी बदल जाएगी’……पर वह पैसों के मामले में बहुत कड़क आदमी है, बिलकुल मेरे बाप की तरह, वह रोज तिजोरी से निकाल कर, अपना एक-एक पैसा गिनकर, वापस अपनी तिजोरी में रखता है, उसकी दो बेटियाँ भी हैं, जिनमें से एक के साथ वह मेरी शादी भी करवाना चाहता था.’

एलिना ‘इतना पैसे वाला आदमी अपनी बेटी की शादी तुमसे करवाना चाहता था!’

‘हाँ, मुझसे, क्योंकि वह अपनी बेटी की शादी में एक पैसा भी खर्च नहीं करना चाहता था, पर शादी तो क्या होती, उससे पहले ही पैसे के चक्कर में मेरी उससे बिगड़ गई। एक तो कई दिनों का किराया बाकी था और उस पर मैंने उससे कुछ कर्ज़ा ले लिया.’

‘अगर कर्ज़ा लिया था, तो चुकाया क्यूँ नहीं?’

‘पगार मिलने पर चुका ही देता कि वह दुकान ही बन्द हो गई, जिसमें मैं वॉयलिन ठीक करता था, और तो और, जिस आदमी की मदद के लिए मैंने सराय के मालिक से पैसे उधार लिए थे, वह भी पैसे लेकर गायब हो गया, फिर कभी दुकान पर आया ही नहीं। मैं उसका पता भी नहीं जानता।’

‘क्या! तुमने अपनी हालत देखी है!, इस हालत में तुम्हें किसी और की मदद करने की कैसे सूझी?’

डॉमनिक अपनी आँखों को गहरा करते हुए बोला, ‘वह एक संगीत प्रेमी है, वह अक्सर उस दुकान पर आता था, जहाँ मैं काम करता था। जब पुराने टूटे तारों वाले बेसुरे हो चुके वॉयलिन, मैं ठीक करके बजाता, तो वह बहुत ध्यान से सुनता। वह बारीक से बारीक कमी को भी पकड़ लेता था। उसके कान जैसे संगीत सुनने के लिए ही बने थे। संगीत सुनते हुए उसकी आँखों में एक चमक होती और उसकी आँखों की चमक देखकर मुझे लगता, सचमुच ही मैंने एक अच्छा काम किया है। मुझे लगता, मैंने एक रोगी को स्वस्थ कर दिया है।(एलिना की ओर देखते हुए) ...हाँ, हर वॉयलिन मेरे लिए एक जीते जागते इंसान की तरह है। मैं नहीं चाहता कोई उसे तोड़ कर कबाड़ में फेंक दे।’

एलिना जैसे भूल गई है कि वह किसी कब्रिस्तान में खड़ी, एक अजनबी से बात कर रही है। डॉमनिक की बातें जैसे पर्त दर पर्त उसके मन पर बिछती जा रही हैं।

डॉमनिक कब्रिस्तान से बाहर ऊपर आसमान में चमकते चाँद को देखता है, जिसे मंच के कोने में किसी अदृश्य तार से लटकाया गया है। वह सचमुच का चाँद प्रतीत होता है। दरसल चाँद डॉमनिक की आँखों में है, या उस नकली चाँद को असली समझ कर उसे देखने वालों की दृश्टि में, या यह सब डॉमनिक की भूमिका निभा रहे दीपांश के अभिनय में है। कोई ठीक-ठीक जान नहीं पा रहा है। सब उस चाँद के मोहपाश में बंध गए हैं, जिसे देखते हुए डॉमनिक ने कहा, ‘केवल वॉयलिन बजाना संगीत नहीं है। मेरे लिए वॉयलिन बनाना, टूटे तारों को बदलना, उन्हें कसना-ठीक करना, उसको अपने हाथों में लिए घूमना, गले लगाना-चूमना, उसके संग सोना-उठना-बैठना सब संगीत है। दुनिया के लिए वॉयलिन का बजना संगीत है, मेरे लिए दुनिया में वॉयलिन होना ही संगीत है।’

डॉमनिक अपनी बात पूरी करके एलिना को देखता है। उसकी दृश्टि अभी भी चाँद के मोहपाश में बंधी आस-मान में हिलगी है। वह जैसे अपने आप से बातें कर रही है, या शायद चाँद से, ‘उफ़, मैं नहीं जानती थी कि मेरे घर से इतनी कम दूरी पर एक कब्रिस्तान है। एक अधूरा, इतना सुंदर कब्रिस्तान, जहाँ से चाँद इतना साफ़ और इतना बड़ा दिखता होगा,…काश, मैं भी यहीं किसी अधूरी खुदी कब्र में, ऐसी ही निश्चिन्त रह पाती।’

डॉमनिक आश्चर्य से, ‘तुम यहाँ?’

‘अगर किसी कब्र में नहीं, तो उस कोने में बनी, उस छोटी-सी छतरी के नीचे, जहाँ रुककर शायद लोग अपने प्रिय जनों के लिए प्रार्थना किया करेंगे।’

डॉमनिक- ‘नहीं तुम्हारा यहाँ रुकना ठीक नहीं, मैं तुम्हें उस सराय में ले चलता हूँ। (थोड़े संकोच के साथ) वैसे वहाँ औरतें रात बिताने के लिए अकेली नहीं आतीं, कोई न कोई मर्द उनके साथ होता है।’

‘तुम हो न मेरे साथ.’

‘क्या मैं?’

एलिना अपनी गलती सुधारते हुए, ‘मेरा मतलब वो नहीं है, मतलब मैं अकेली तो नहीं जा रही हूँ न।’

डॉमनिक अपने कपड़े झाड़ते हुए चल देता है। एलिना उसके पीछे चलती है। मंच पर फैला प्रकाश फिर उसी कोने में सिमटता चला जाता है, जहाँ लेम्प पोस्ट अपने चारों ओर रोशनी के छोटे घेरे के बीच खड़ा है।

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कॉरीडोर में, रॉबर्ट के कॉस्टयूम में खड़े रमाकान्त बड़ी बेचैनी से फोन पर बात कर रहे थे। रॉबर्ट की पोशाक में होते हुए भी अब उनके चेहरे पर उसके चेहरे-सा दम्भ और पैसे का गुरूर नहीं था। अब उनके चेहरे पर थी एक संघर्ष करते अभिनेता के जीवन के यथार्थ से हार जाने के बाद जन्मी निरीहता। अब आवाज़ में खरखराहट की जगह रिरियाहट थी। उनकी जेब में सिगार था, पर मंच के किरदार के लिए, मंच से बाहर वह उसे पी नहीं सकते थे। चेहरे पर खीज, करूणा, अभिनय की नहीं, सच की थी। कोई अभिनेता शायद ही कभी ऐसे भाव ला सकता हो अपने चेहरे पर। ऐसी बेबसी, ऐसी लाचारी, ऐसी वीरानी। नहीं शायद कोई भी नहीं ला सकता। वह भी नहीं ला सकते। जीवन के अभिनय का अपना अलग शास्त्र है।

फोन कट गया। वह हैलो-हैलो करते रह गए। उन्होंने फिर से फोन लगाया, पर दूसरी तरफ़ से फोन नहीं उठा। उन्होंने दाँत भींच कर फोन बन्द कर दिया, स्विचऑफ्।

लगा जैसे उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा।

मंच पर जब उन्हें कुछ नहीं सूझता तो वे सीटी बजाने लगते हैं। उन्होंने यह मंच के लम्बे अनुभव से सीखा था। उन्हें लगता है संवाद हीनता से खाली हुई जगह को सीटी की इस आवाज़ से भरा जा सकता है। मंच पर यह प्रयोग सफल होता है, पर यहाँ उनके होठों से निकला सीटी का स्वर विरल होकर छीण होता चला गया। कहीं से कोई प्रतिक्रिया नहीं।

अगला दृश्य रमाकन्त का था।

उन्हें रॉबर्ट के रूप में मंच पर जाना था, पर वह अंधेरे में खड़े अभी भी सीटी बजा रहे थे। वह अपनी पत्नी अभि को फोन मिला रहे थे। फोन नहीं उठा। जब वहाँ से वह फोन कर रही थी तब रमाकान्त फोन नहीं उठा सके थे। अब वह फोन नहीं उठा रही थी। उसका रमाकान्त को अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाने का यही तरीका था। वे एक दूसरे से हज़ारों मील दूर होकर भी एक दूसरे के लिए एक बड़ा तनाव पैदा कर सकते थे और करते भी थे। ऐसे में वह अपनी जेब से सिगार निकालते और बिना जलाए ही उसका एक लम्बा कश खींचकर, अपने भीतर थोड़ी-बहुत हलचल पैदा करने की कोशिश करते, पर बिना जले सिगार धुआँ नहीं छोड़ता और वह मंच पर जलाए जाने के लिए सुरक्षित बचा रहता।

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मंच पर फैला प्रकाश धीरे-धीरे उस कोने में सिमटता चला जाता है, जहाँ लेम्प पोस्ट अपने चारों ओर रोशनी के एक छोटे घेरे के बीच खड़ा है।

लेम्प पोस्ट के नीचे कोई सिर पर हैट लगाए हाथ में छतरी लिए खड़ा है। दर्शकों की तरफ उसकी पीठ है। वह अपने कोट की जेब से लाइटर निकाल कर, अपने दांतों में दबाया हुआ सिगार सुलगाता है। लाईटर के जलते ही पता चलता है, वह रॉबर्ट है। वह बड़बड़ाता हुआ आगे बढ़ता है, ‘ये औरतें भी अपने आप में बनती बहुत हैं, दुनिया भर का मर्म इन्हीं को पता है। बाकी सब तो मूर्ख हैं। ओह! जीसस कोई बताए इन्हें कि ये खुद क्या हैं? कोई तो न्याय करे’।

अचानक रॉबर्ट को किसी चीज से ज़ोर की ठोकर लगती है। वह औंधे मुँह ज़मीन पर गिरता है। वह गिरते ही गायब हो जाता है।

सिर्फ़ उसकी आवाज़ सुनाई देती है, ‘ओह मॉय गॉड, प्लीज़…, कोई निकालो मुझे यहाँ से’।

तभी सीटी बजने की आवाज़ आती है। फिर टॉर्च की रोशनी मंच पर पड़ती है,

उसके बाद एक पुलिस कॉन्स्टेबल की भूमिका में अशोक मंच पर आता है। चारों ओर रोशनी फेंकता है। आधी खुदी कब्र में गिरे रॉबर्ट को देखता है। उसके ऊपर रोशनी डालते हुए, ‘क्यूँ चिल्ला रहे हैं, श्रीमान?

रॉबर्ट, ‘बाहर निकालो मुझे’

कॉन्स्टेबल, ‘बाहर निकालो मतलब! वॉयलिन कहाँ है, तुम्हारी? आज जबसे मैं ड्यूटी पर आया हूँ, तुमने कोई सुर नहीं छेड़ा!’

‘तुम्हारा दिमाग़ ख़राब है? मैं इतनी रात में इस गड्ढ़े में गिरने के बाद वॉयलिन बजाऊँगा! मैं यहाँ से जा रहा था कि इस गड्ढ़े में गिर गया’

‘ओह! तो आप वो नहीं हैं, जो देर रात तक इस कब्र में बैठ कर वॉयलिन बजाता है.’

‘तुम क्या बक रहे हो, मुझे समझ में नहीं आ रहा है, यह गड्ढ़ा किसी की कब्र है?’

‘जी हाँ यह गड्ढ़ा एक अधूरी खुदी कब्र है और जहाँ मैं खड़ा हूँ वह जगह एक कब्रिस्तान है.’

रॉबर्ट जैसे भूल गए हैं कि वह एक गड्ढ़े में गिरे हुए हैं। लगभग चौंकते हुए ‘कब्रिस्तान, इतनी प्राइम लोकेशन पर!, यहाँ तो मॉल, सिनेप्लेक्स, फ़नविलेज कुछ भी बन सकता है’।

‘वह भी बन जाएगा, पर फ़िलहाल इस जगह पर कब्रिस्तान का बोर्ड लगा है, पर अभी तक यहाँ किसी को दफ़नाया नहीं गया है। कब्रिस्तान बनने से पहले ही ज़मीन पर विवाद खड़ा हो गया। इस कब्रिस्तान में खुदी कब्र में कोई मुर्दा चैन से सो पाता कि उससे पहले ही कोई कोर्ट से स्टे ऑर्डर लेकर आ गया। वह भी तुम्हारी तरह यही कहता था कि यहाँ कुछ भी बन सकता है, फिर कब्रिस्तान ही क्यों?’

कॉन्सटेबल ने टॉर्च बुझा दी और वह बहुत इत्मीनान से कब्र के पास पड़े पत्थर पर बैठ गया। उसने अपनी शर्ट की जेब से सिगरेट निकाली, फिर अपनी दूसरी जेब में माचिस टटोलने लगा। फिर अचानक रॉबर्ट की तरफ़ देख कर बोला, ‘माचिस है आपके पास?’

‘बेशर्मी की हद है, कोई लॉ एण्ड ऑर्डर है यहाँ? रास्तों पे इतना अंधेरा है। बीच मैदान में किसी की कब्र खुदी पड़ी है, मैं इसके भीतर गिर गया हूँ और तुम लाइटर माँग रहे हो!’

‘लाइटर नहीं माचिस.’

‘हाँ वही, पहले मुझे बाहर निकालो.’

कॉन्सटेबल रॉबर्ट का हाथ पकड़कर उसे गड्ढे से बाहर खींचता है। रॉबर्ट के बाहर आते ही, ‘लाओ लाइटर निकालो.’

रॉबर्ट हाँफ़ते हुए, ‘रुको पहले मुझे अपना सिगार जलाने दो.’

रॉबर्ट की जेब से निकले सिगार को देखते हुए कॉन्स्टेबल, ‘बहुत महंगा सिगार पीते हो!’

रॉबर्ट एक सिगार और निकालता है और उसकी ओर बढ़ा देता है। वह झपट कर सिगार लपक लेता है। रॉबर्ट दोनों का सिगार जलाता है और कॉन्स्टेबल के पास ही दूसरे पत्थर पर बैठ जाता है’।

रॉबर्ट सिगार का धुँआ छोड़ते हुए, ‘बीच मैदान में इतना बड़ा गड्ढा! क्या इसे भरा नहीं जा सकता? और ये इतने बड़े-बड़े पत्थर जैसे किसी को इस कब्र में गिराने के लिए ही यहाँ पड़े हैं’।

कॉन्स्टेबल जिस पत्थर पर बैठा है, उसी पर झुककर टॉर्च की रोशनी डालते हुए, ‘यह मामूली पत्थर नहीं है, देखिए इस पर किस महान हस्ती का नाम लिखा है, ये उसी शख़्स का नाम है, जिसने यह ज़मीन कब्रितान बनाने के लिए दान की थी और हाँ जिस पत्थर पर आप बैठे हैं, निश्चय ही उस पर इन श्रीमान की पत्नी का नाम लिखा है। बहुत प्यार था दोनों में। दोनों एक साथ स्वर्ग सिधारे। जीते जी वे यही प्रार्थना करते थे कि जब जाएं एक साथ जाएं। दोनो एक साथ ही गए। ईश्वर ने सुन ली उनकी। ऐसा भाग्य भी कम ही लोगों का होता है। दोनो की अंतिम इच्छा थी कि उन्हें यहीं दफ़नाया जाए, एक साथ. पर उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। उनके मरते ही ज़मीन के कई दावेदार पैदा हो गए। एक कोर्ट से स्टे भी ले आया और यह जगह कब्रिस्तान बनते-बनते रह गई। इस काम में ईश्वर भी उनकी मदद नहीं कर सका’।

रॉबर्ट ने सिगार का लम्बा कश खींचा, ‘अब तो यहाँ कब्रिस्तान बनने से रहा, कम से कम इस कब्र को भरकर, इन पत्थरों को यहाँ से हटा देना चाहिए’।

कॉन्स्टेबल ने न में सिर हिलाते हुए कहा, ‘यह नहीं हो सकता, कोर्ट का ऑर्डर है कि यहाँ यथास्थिति बनाए रखी जाए। बस तब से यह कब्र और पत्थर जस के तस यहाँ हैं और इसी लिए हमें यहाँ तैनात किया गया है.’

रॉबर्ट ने सिगार का धुँआ छोड़ते हुए पूछा, ‘और वो वॉयलिन वाला कौन है?’

कॉन्स्टेबल ने सिगार का आख़िरी कश फेफड़ों की पूरी ताक़त लगाकर खींचते हुए कहा, ‘है कोई सिरफिरा, कई दिनों से देर रात तक इस कब्र में बैठा वॉयलिन बजाता है। मैंने कभी उसकी शक्ल नहीं देखी। बस सड़क के उस पार से उसकी वॉयलिन से निकली धुनें सुनता हूँ। बजाता क्या है, कलेजा निचोड़ के रख देता है, पर यहाँ कौन सुनता है, इस देश में किसी की कदर नहीं है’ यह सब कहते हुए जैसे उसे अचानक कुछ ध्यान आया हो, उसने तुरन्त अपनी जेब से क़ाग़ज़ और पेन निकालते हुए कहा, ‘आप अपना नाम-पता और इस समय यहाँ आने की वज़ह इसमें लिख दीजिए’।

रॉबर्ट कुछ अचकचाते हुए, ‘मैं तो बस यूँ ही यहाँ टहलने के लिए चला आया था’

‘इतनी रात गए यहाँ घूमने तो कोई नहीं आता, ज़रूर कोई और वज़ह है’।

‘है भी तो क्या तुम्हें बतानी जरूरी है?’

कॉन्स्टेबल पैन्ट झाड़कर अपनी जगह खड़े होते हुए, ‘तो फिर चलो थाने.’

रॉबर्ट जूते से मसल कर सिगार बुझाते हुए, ‘अच्छी मुसीबत है, क्या तुमने उस वॉयलिन वाले से भी इस तरह यहाँ आने की वज़ह पूछी थी?’

‘उसने गड्ढे में गिरने के बाद मुझे बुलाकर यह नहीं कहा था कि यहाँ कब्रिस्तान की जगह मल्टीप्लेक्स बन सकता है.’

‘तुम नहीं जानते मैं कौन हूँ.’

‘तुम मेरे लिए एक अनाधिकृत क्षेत्र में, आधी रात को, एक कब्र में से निकले हुए आदमी हो, बताते हो या ले चलूँ थाने?’

‘नहीं बताऊँग़ा.’

‘अच्छा मत बताओ, एक सिगार और दे दो और निकलो यहाँ से, सालों बाद इतनी उम्दा तम्बाकू टेस्ट की है, यहाँ की तो नहीं लगती?’

‘बाहर की है, यह एक सिगार, तुम्हारी एक दिन की पगार से भी ज्यादा महंगी है, समझे। वैसे भी अब और नहीं है मेरे पास’।

‘तो फिर चलो थाने’

‘क्या बकवास कर रहे हो, कुछ पैसे पकड़ों और निकलो यहाँ से’

‘मैं घूस नहीं लेता। बहुत उसूल वाला आदमी हूँ।’

‘फिर सिगार क्यूँ माँग रहे थे?’

कॉन्स्टेबल एक गहरी साँस लेता है, ‘साब गाँव में बड़ी ज़मींदारी थी अपनी भी। बस मज़बूरी में ही फंस गया, इस नौकरी में। चौधरी हूँ, सूरज डूबने से पहले ही हुक्का लग जाता था, दरवाज़े पे। बीसियों गाँव के लोग बैठकी करने आते थे। मेरे ताऊ बड़े शौक़ीन थे, तम्बाकू के। क़िसम-क़िसम की तम्बाकू मंगाते थे बाहर से। उनकी नज़र बचाकर कभी-कभी मैं भी खींच लेता था, पर समय बदलते टाइम नहीं लगता। प्रेम हो गया। प्रेम में भागकर शहर आ गए और हो गए पुलिस में भर्ती। गाँव तो छूट गया, पर तम्बाकू की लत और जैन्व्यिन चीज की पहचान अभी तक साथ है।’

रॉबर्ट कॉन्स्टेबल को बड़े ध्यान से देखता है, फिर कुछ सोचते हुए अपने कोट की जेब से एक सिगार निकाल कर उसकी ओर बढ़ा देता है।

वह बहुत मासूमियत से सिगार पकड़ता है। उसे ध्यान से देखते हुए, ‘प्रेम भी तम्बाकू की लत जैसा है, साब’

रॉबर्ट सिगार कि ओर देखकर, अपनी ही आवाज़ में डूबते हुए, ‘ये आख़िरी है, बचा के रखी थी। मैं सोने से पहले पीता हूँ। सच में लत है,…पुरानी आदत है।’

‘अगर एतराज़ न हो तो हम दोनो इसी में से दो-दो कश ले सकते हैं’

‘नहीं मैं सिगार शेयर नहीं करता’

‘तो फिर मैं भी नहीं पीता, पर लौटाऊँगा नहीं। मैं इसे रख लेता हूँ।’ यह कहते हुए कॉन्स्टेबल सिगार अपनी जेब में रख लेता है।

रॉबर्ट कब्रिस्तान के बाहर आसमान में चमकते चाँद को देखता है, जो अब पहले दृश्य से ज्यादा बड़ा लग रहा है। वह जैसे चाँद और धरती के बीच की दूरी नाप रहा है। वह कुछ बुदबुदाता है, ‘मेरी पत्नी एलिना अचानक ही बिना बताए कहीं चली गई है। मैं उसे ढूँढने निकला था’

‘मतलब वह मिसिंग है, खो गई? कब से?’

‘नहीं मिसिंग नहीं है, बोल के गई है।’

‘आपने तो कहा बिना कुछ बताए।’

‘ओह! यानि मुझे बोलकर गई है कि मैं जा रही हूँ, पर यह नहीं बताया कि कहाँ।’

‘मतलब क्या तुम्हें छोड़ के चली गईं?’

‘नहीं उसने ऐसा नहीं कहा’

‘तो फिर आ जाएगीं, कहाँ गई होंगी? किसी दोस्त, या रिश्तेदार के पास, या फिर किसी क्लब या थिएटर बगैरह। एक औरत अकेली और कहाँ जा सकती है?’

‘नहीं इस बार वह ऐसी किसी जगह नहीं गई होगी। इस बार वह ऐसा कुछ सोच कर नहीं निकली। बस गुस्से में बिना कुछ सोचे चली गई।’

‘रोका क्यूँ नहीं, तुम क्या कर रहे थे?’

‘मैं सिगार पी रहा था।’

‘पत्नी चली गई और तुम सिगार पीते रहे?’

सिगार का नाम सुनते ही रॉबर्ट ने कॉन्स्टेबल को देखा। उसकी आँखों में गहरी तलब थी। शायद सिगार की, या फिर अपनी पत्नी एलिना की, या हर समय सिर्फ़ उसे अपने आस-पास देखने की। रॉबर्ट की भूमिका निभा रहे रमाकान्त बिना किसी संवाद के अपने अभिनय से अपनी इस तलब और असमंजस को दर्शकों को बता देते हैं। हॉल में तालियाँ बजने लगती हैं।

वह बड़बड़ाते हैं, ‘मेरे लिए चाँद का होना काफ़ी नहीं, चाँद को देखने और चाँद पर पहुँचने में बहुत फ़र्क है।’

कॉन्स्टेबल चिड़ते हुए, ‘लेकिन चाँद पर पहुँचने भर से वह तुम्हारा नहीं हो जाता, कितने लोग, कितनी हसरत से, ज़मीन पर खड़े होकर चाँद को देखते हैं, आँखों में भर लेते हैं। उसके साथ जीते-मरते हैं। उसकी क़समें खाते हैं। ख़्वाहिश तो उनमें से भी बहुतों की चाँद पर पहुँने की रहती होगी, पर उनके लिए रात में चाँद का होना ही काफ़ी है.’

‘मैंने यहाँ पहुँचने के लिए क्या कुछ नहीं किया, तुम नहीं समझोगे.’

‘पर उसमें चाँद की क्या ग़लती है?’

रॉबर्ट चाँद को देखते हैं, फिर कॉन्स्टेबल को और फिर दर्शकों की ओर देखते हुए गहरे विषाद में डूब जाते हैं। उनके चेहरे की मांसपेशियों पर किसी के उन्हें न समझपाने का दुख फैलने लगता है। धीरे-धीरे वह दुख स्थाई कुंठा में परिवर्तित हो पूरे चेहरे पर तन जाता है।

कॉन्स्टेबल उनके चेहरे के भाव देखकर, अपनी जेब से सिगार निकालकर रॉबर्ट को दे देता है।

रॉबर्ट सिगार के हाथ में आते ही, कोट की जेब से लाइटर निकालकर उसे सुलगाते हैं और एक लम्बा कश खींचते हैं।

कॉन्स्टेबल रॉबर्ट के मुँह से निकलते धुँए में तम्बाकू सूँघता है।

रॉबर्ट एक और कश खींचकर सिगार कॉन्स्टेबल की ओर बढ़ा देते हैं।

वह बड़ी हैरानी से रॉबर्ट को देखता है, फिर सिगार उसके हाथ से लेकर बहुत संजीदगी से सिगार का कश लेता है।

दोनो घूमकर एक साथ चाँद को देखते हैं और एक साथ धुएँ का गुबार मुँह से निकालते हैं। मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा होता चला जाता है।

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ग्रीनरूम में शिमोर्ग और दीपांश अगले दृश्य के इन्जार में बैठे थे.

शिमोर्ग इस शो के लिए बदल दिए गए एक संवाद को मन ही मन बुदबुदा रही थी. लगता था भूल गई है, ‘क्या था वो प्रेम काम है. समथिंग...’

दीपांश ‘पहले तुम बोलोगी ‘प्रेम कोई काम नहीं है, प्रेम साथ होना या न होना भी नहीं है.’

शिमोर्ग ‘हाँ याद आ गया फिर तुम पूछोगे, ‘तब प्रेम क्या है?’

दीपांश, ‘तब तुम कहोगी, ‘शायद मैं कहके न समझा सकूँ.’

शिमोर्ग ‘फिर तुम कहोगे, ‘मैं जानता हूँ, तुम मुझसे प्रेम करती हो.’

दीपांश, ‘और तुम?’

शिमोर्ग, ‘ऑफकोर्स आई लव यू. लेकिन मैं ये मौका इस तरह हाथ से जाने नहीं दे सकती.’

दीपांश, ‘डॉयलॉग ये नहीं है.’

शिमोर्ग, ‘मैं तुमसे बात कर रही हूँ.’

दीपांश, ‘अगर इति के गायब होने में सेतिया का हाथ हो तब भी नहीं?’

शिमोर्ग, ‘ये बात तुम इतने भरोसे के साथ कैसे कह सकते हो?’

दीपांश, ‘हाँ भरोसे से तो अब कुछ भी नहीं कह सकता.’

शिमोर्ग कुछ कहती उससे पहले ज्योति ने आकर उसकी एंट्री का इशारा किया.

शिमोर्ग उठकर चली गई...

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