BALA - Film Review in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | ‘बाला’ फिल्म रिव्यू - आयुष्मान का जादू फिर चलेगा..? 

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‘बाला’ फिल्म रिव्यू - आयुष्मान का जादू फिर चलेगा..? 

एक जैसे विषय पर बनी ‘ट्विन’ फिल्मों का एक ही समय पर रिलिज होने का किस्सा बोलिवुड में कोई नई बात नहीं है. 1993 में सुभाष घई की ‘खलनायक’ (सुपरहिट) के पीछे पीछे आई ‘खलनाईका’ (सुपरफ्लॉप) के सब्जेक्ट में समानताएं थीं. 2002 में तो कमाल हो गया था. शहीद भगतसिंह के जीवन पर आधारित तीन फिल्में एक ही साल में रिलिज हुईं थीं- ‘द लेजेन्ड ओफ भगतसिंह’ (अजय देवगन); ‘23 मार्च 1931- शहीद’ (बॉबी देओल) और ‘शहीद-ए-आजम’ (सोनु सूद). बॉक्सऑफिस पर तीनो फिल्मों का कबाडा हो गया था, लेकिन देवगनवाली देखनेलायक थीं. गंजेपन की वजह से एक जवान लडके की जिंदगी में होनेवाली ट्रेजेडी पर पिछले हफ्ते ही आई ‘उजडा चमन’ बुरी तरह से फ्लॉप हो गई है. उसी विषय पर इस हफ्ते आईं है ‘बाला’. तो अब सवाल ये है की, ‘तेरा क्या होगा बालिया..?’

‘बाला’ की कहानी है कानपुर में रहनेवाले एक मिडलक्लास युवा बालमुकुंद उर्फ बाला की, जो अपने गंजे होते जा रहे सिर से परेशान है. व्यवसाय से सेल्समेन बाला काली स्कीन को गोरा बनाने का दावा करती फेयरनेस क्रीम बेचते है. परिवार में पिता, माता, छोटा भाई और नानाजी है. टकलेपन की वजह से बाला की स्कूलवाली गर्लफ्रेन्ड उसे छोड के चली गईं हैं और नई लडकी मिल नहीं रही. पडोस में रहेनेवाली लतिका त्रिवेदी (भूमि पेंडनेकर) बाला को पसंद करती है लेकिन उसका रंग सांवला होने की वजह से बाला उससे कभी प्यार कर ही नहीं पाया. बाला का दिल आता है टिकटॉक स्टार परि मिश्रा (यामी गौतम) पे. परि का प्यार हासिल करने के लिए सर पे बाल होना जरूरी है. अब बाल उगाने के लिए बाला जो मशक्कत करता है, उसी से बनती है कहानी ‘बाला’ की.

स्क्रिप्ट सिलेक्शन मामले में इक्के साबित हो चुके आयुष्मान खुराना एक बार फिर अपने मजबूत परफोर्मन्स के बलबूते पर फिल्म में छा जाते है. गंजे इंसान के दर्द को उन्होंने बहोत ही सही ढंग से पर्दे पर उतारा है. फिल्म में वो स्टॅंडअप कॉमेडीयन बनने का पैशन फॉलो करते दिखाए गए है और एसा करने में उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान तक की नकल बडी की बखूबी की अदा है. न सिर्फ कॉमेडी सीन्स में बलकी गंभीर दृश्यों में भी उन्होंने पूरी जान लगाकर काम किया है. 1970 के दशक में एक अभिनेता हुआ करते थे जिनका नाम नई पीढी के बहोत कम सिनेप्रेमीओं को याद होगा- अमोल पालेकर. अपनी साफसूथरी, रियललाइफ फिल्मों के जरीए पालेकरजी ने अपना एक खास फैन फोलोइंग बनाया था. बच्चनसाब की ढिशूम-ढिशूम वाली एक्शन फिल्मों के दौर में भी अमोलसर की फिल्में चुपके से रिलिज होकर सुपरहिट हो जाया करती थीं. उनका सरल व्यक्तित्व और उनकी रियलिस्टिक एक्टिंग दर्शकों को खास इसलिए लगती थीं क्योंकी वो दिखने में भी हमारे जैसे आम आदमी थे. आज के दौर में आयुष्मान खुराना ऐसे एक्टर है जिसके साधारण लूक्स और वास्तविकता के करीब पात्रों की वजह से दर्शक उनके साथ कनेक्ट हो जाते है, जुड जाते है. 21वीं सदी के इस अनमोल-आयुष्मान-पालेकर को देखकर लगता है की, अरे! ये बंदा तो हम में से ही एक है..! यही बजह है इस दमदार एक्टर की सफलता की. इसी कारण के चलते आज के दौर के मोडेल जैसे दिखनेवाले चिकने-हेन्डसम युवा अभिनेताओं से आयुष्मान काफी आगे निकल गए है. इस बंदे की जितनी तारीफ करो कम है. ‘बाला’में भी कमाल-बेमिसाल अभिनय किया है उन्होंने. 2017 में आई ‘बरेली की बरफी’ और ‘शुभ मंगल सावधान’; 2018 की ‘अंधाधून’ और ‘बधाई हो’ तथा 2019 की ‘आर्टिकल 15’ और ‘ड्रीम गर्ल’ के बाद ‘बाला’ आयुष्मान की लगातार सातवीं हिट फिल्म है. जे ब्बात..!

‘बाला’ की दोनों हिरोइनो नें भी आयुष्मान की टक्कर का काम किया है. आयुष्मान के जैसे ही साधारण दिखनेवाली लेकिन हमेशा दमदार एक्टिंग करनेवाली भूमि पेंडनेकर फिर एक बार दिल जीत लेती है. एक सांवली लडकी की विडंबना को भूमि ने बडे ही असरदार ढंग से पेश किया है. (लेकिन सांवली दिखाने के लिए भूमि को जो मेकअप किया गया है वो बहोत ही खराब लगता है. कुदरती सांवलापन बिलकुल भी ऐसा नहीं दिखता.) आयुष्मान और भूमि तो हमेशा उम्मीद से दुगना देते ही है, लेकिन दर्शकों को सबसे बडा सरप्राइज दिया है यामी गौतम ने. एक बबली, सोशियल मीडिया स्टार के पात्र में यामी ने कमाल का अभिनय किया है. ये उनकी करियर का सबसे बेस्ट रोल होगा.

सहायक भूमिका में भी सभी कलाकारों का चयन (कास्टिंग, यार…) बडा ही सटिक किया गया है. रणजी ट्रॉफी प्लेयर सौरभ शुक्ला, मूछोंवाली मौसी सीमा पाहवा, ‘स्त्री’वाला ‘जना’ अभिषेक बेनर्जी-- सभी एकदम सहज और परफेक्ट लगे. गंजे भाई के सर पे बाल उगाने के चक्कर में छोटे भाई को अपने बडे भाई के सर पे तरहतरह की बदबूदार चीजें मलना पडता है. आयुष्मान के छोटे भाई बने युवा कलाकार धीरेंद्र कुमार गौतम ने अपने हिस्से में आए दो सीन में जो धमाकेदार फ्रस्ट्रेशन निकाला है, वो कमाल का है. क्या खूब डायलोग-बेटिंग की है लडके ने..! जावेद जाफरी ने अपने किरदार की बॉडी लेंग्वेज जबरदस्त पकडी है. काश के उनका रोल थोडा और लंबा होता. दो बाल-कलाकारों का काम भी प्रसंशनीय है.

2018 में ‘स्त्री’ जैसी एक नंबर होरर-कॉमेडी लानेवाले निर्माता दिनेश विजन और निर्देशक अमर कौशिक की जोड़ी ने ‘बाला’ के रुप में फिर एक बार एक दमदार फिल्म दी है. 133 मिनट की फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती. गानों की संभावना होने के बावजूद इस रोमेन्टिक कोमेडी में केवल दो गाने आते है, और वो भी कमजोर है. अमर कौशिक के निर्देशन के जितना ही चुस्त है हेमंती सरकार का एडिटिंग. अनुज राकेश धवन की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है लेकिन कानपुर की खूबसूरती थोडी और नजर आतीं तो मजा आ जाता.

‘बाला’ में काफी स्मार्ट स्क्रिप्ट लिखी गईं है. आजकल के जमाने में बाल झडने की आम हो चुकी समस्या के इर्दगिर्द निरेन भट्ट द्वारा लिखी गई कहानी काफी मजेदार है. न केवल सीन्स और सिच्युएशन्स बलकी तीनों मुख्य किरदारों के केरेक्टराइजेशन में भी काफी महेनत की गई है. और तीनो कलाकारों ने पूरी शिद्दत से उसे पर्दे पर निखारा है. तीनो के आदर्श, सोच और अन्डरस्टेन्डिंग अलग अलग है, और फिर भी तीनो अपनी अपनी जगह सही है. ये स्मार्ट राइटिंग का ही कमाल है की तीनो में से कोई विलन नहीं लगता. फिल्म में बाला की दो प्रेम कहानीयां दिखाई गईं है, एक यामी के साथ, दूसरी भूमि के साथ. क्लाइमेक्स आते आते दर्शकों को लगता है की बाला की लवलाइफ में अब एसा होगा, या फिर वैसा होगा, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं होता. फिल्म बिलकुल भी प्रेडिक्टेबल नहीं बनती और यही खास बात है इस फिल्म की कहानी की. शाब्बाश..!

फिल्म के डायलोग्स बहोत ही बढिया है. घीसेपीटे संवाद की जगह यहां फ्रेश वन लाइनर्स की ऐसी झडी लगाई गई है की पूरी फिल्म में दर्शक के चहेरे पर एक स्माइल बनी रहेती है. गंभीर सिच्युएशन में भी हंसी के फव्वारे फूटते रहेते है. फन्नी डायलोग्स और एक्टर के कोमिक टाइमिंग की वजह से कॉमेडी हो वो तो समज में आता है, लेकिन यहां तो निर्देशक ने बैकग्राउन्ड म्युजिक से भी कॉमेडी करवाई है..! जी हां. यकीन नहीं होता तो आयुष्मान की सुहागरात वाला सीन ध्यान से देखीएगा. भई वाह..! सलाम, फिल्म के लेखक और निर्देशक को. फिल्म एक प्यारा सा मेसेज भी देती है की, ‘सिर्फ सुंदर दिखना ही सबकुछ नहीं है. आप जैसे हो वैसी ही रहो. किसी और को दिखाने के लिए, केवल तारीफें बटोरने के लिए खुद को बदलने की जरूरत नहीं. अपनी शारीरिक खामीओं का आप खुद स्वीकार करोगे तो दुनिया को, समाज को भी उसे स्वीकार करना ही पडेगा.’ निर्देशन ने ज्ञानी बाबा बनने की कोशिश किए बिना यह मेसेज कहानी में बखूबी पिरोया है.

मिस्टर खुराना के तरकश से निकला एक और तीर सही निशाने पे लगा है तो 5 में से 4 स्टार्स तो बनता है, बोस. आयुष्मान के ईश्क में पडने का एक और मौका मिला है. मिस मत किजिएगा. रिक्वेस्ट है, बेब्यू...