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[ साझा उपन्यास ]
कथानक रूपरेखा व संयोजन
नीलम कुलश्रेष्ठ
एपीसोड - 18
जब घरवाले अपने घर आने वाले होतें हैं तो ढेर सी तैयारियाँ करनी होतीं है, कैसी उत्तेजना भरी ख़ुशी मन में रहती है। तब अपनी थकान पर ध्यान नहीं जाता। बस होता है न --मेहमान-- आये --आये --और चले गए। मन रीता और शरीर थकान से चूर हो जाता है। दामिनी भी थककर, लेटकर अपनी थकान उतार रही है। उसमें हिम्मत नहीं बची है बेतरतीब घर को ठीक करने की। वह एलान कर देती है, ``बिन्दो !बंगले को ठीक करने के लिए जो करना है, तुम करो मेरे से तो हिला भी नहीं जा रहा.
बिन्दो बिदक कर कहती है, ``आपसे कह कौन रहा है कि घर ठीक करो ? हमने तो पहले ही आपसे कह दिया था कि दिमाग़ कितना भी घोड़े सा दौड़ा लो लेकिन सरीर की ताकत तो बिन्दो की काम आयेगी। ``
मीशा उसकी बात पर हंसते हुये कहने लगी, `` ``नानी !मैं भी तो हूँ। मैं भी काकी की हेल्प करूंगी। चलिए काकी पहले कचरा पोता कर लीजिये। ``मीशा झाड़ू पोंछा स्वयं अपनी देख रेख में करवा रही है। कहीं सोफ़े के नीचे घुसे गिलास मिल रहे हैं या साइड टेबल के नीचे रक्खे मग्स। कालीन को जैसे ही झाड़ा, उसके कोने में ढकी एक चम्मच टन्न से फ़र्श गिर पड़ी। बिन्दो ने उसे उठा लिया।
मीशा हंस पडी, ``ये हमारे आलसी महाराज अयन भाई की ख़ुराफ़ात है। उस दिन आइसक्रीम की प्लेट यहाँ ले आये थे। चम्मच नीचे गिर गई तो कौन उठे, आइसक्रीम थोड़ी देर रखकर पिघलाई और प्लेट से पी गये । ``
बिन्दो काकी भी फिक्क से हंस पड़ी, ``सारे छोरे एक जैसे होते हैं। ``
सारे बंगले की सफ़ाई के बाद वह कहती है, ``अब आप आराम करिये। कल बेतरतीब हो गई रसोई ठीक करके बर्तन साफ़ करने वाली मुनिया से बाहर निकाली महंगी क्रॉकरी को धुलवाकर, पुँछवाकर आलमारी में रखवा दीजिये। मैं ड्राइंग रूम के सोफ़े के कुशन्स, बेडरूम्स की बैडशीट्स व पिलो कवर्स बदल दूंगी । उन्हें उठाकर वॉशिंग मशीन में डालना काकी आप का काम है। ``
दामिनी ये देखकर खुश है कि मीशा के चेहरे की सलवटें कुछ ठीक होती जा रहीं हैं । बाल अब सुलझे से कभी पोनी या बिखरकर अपने रंगत में आ चुके हैं इसलिए दामिनी ने कहा, `` मैं अपनी एक दोस्त के यहाँ लेकर चलूंगी | वो उम्र में मुझसे बहुत छोटी है लेकिन हम दोनों की जमती बहुत है। पता है, कत्थक डांसर है वो और उसका बेटा बहुत प्रख्यात तबलावादक, बिटिया उसकी क्लासिकल संगीत में विशारद है ---यानि पूरे परिवार की नसों में कला प्रवाहित हो रही है |"दामिनी को अपने साथ जाने के लिए तैयार कर रही थी |
"कोई आर्ट बाक़ी नहीं बची क्या?----"धीमे से मुस्कुराकर मीशा ने दामिनी से पूछा |
"उनके पति बहुत अच्छी पेंटिग्स करते थे । तू चलेगी तो देखना ---वैसे पेशे से वो भी वकील ही थे.तेरे बड़के नानू के साथ वकालत करते थे |"
"अच्छा ---" मीशा ने बेमन से कहा, फिर जैसे उसे अपनी बात याद आ गई |
"नानी, आप टालने में एक्सपर्ट हैं, मुझे ईमानदारी से बताइए --अगर नानू आपसे प्रेम करके बीच में लटका देते तो आप क्या सहज रह पातीं ?"
"ईमानदारी से कहूँ तो, हम सब ही तो इंसान हैं, सब संवेदना से ओत-प्रोत हैं, लेकिन एक बात और भी सोचने वाली है कि क्या हम दूसरों के इशारे पर इतने गुलाम बन जाएं कि उसकी मनमानी अपने ऊपर चलने दें ?सच है, चोट लगती है तो पीड़ा होती है | तूने पूछा, उसका उत्तर भी देती हूँ--हाँ, धोखा मिलता तो कष्ट तो होता पर मैं उससे निकलने की पूरी कोशिश करती --तू तो बेटा कुछ कहती ही नहीं, अपनी नानी की दोस्त है पर बताती ही नहीं कुछ ----" दामिनी ने कुछ उदास दिखने की कोशिश की |
"नहीं नानी, मैं सब कुछ बताऊँगी आपको, पूछिए --क्या पूछना है ?"उसने बड़े सपाट स्वर में कहा |
"अरे ! मुझे कोई ख़ास बात थोड़े ही पूछनी है तुझसे, मैं तो ये कहना चाहती थी कि हमारी खिलंदड़ी मीशा की सारी सहेलियाँ कहाँ चली गईं ?अब तू मेरे पास रहेगी तो तेरी यहाँ सहेलियाँ बन जाएंगी --ठीक है न ? फिर तेरा मन खूब लगेगा --"
" ओह! नानी, आई डोंट नीड फ्रैंड्स ---और फिर आप तो हैं न ? "
" क्या कहा मैं ओल्डी तेरी फ़्रेंड हूँ ?रिअली आई एम फीलिंग यंग। बहुत रात हो गई है अब कुछ देर तो सो लें, नहीं तो कल ठीक से एन्जॉय नहीं कर पाएंगे --" दामिनी ने मीशा को अपने पास सटा लिया |
अगले दिन सुबह ही दामिनी ने पंडित जसराज की आवाज़ में सुबह का शास्त्रीय राग भटियार की ऑडियो म्युज़िक सिस्टम लगा दी, `कोई नहीं है अपना --अपना --अपना। `
मीशा को क्लासिकल में रूचि थी, वह जानती थी | आँखें मलती हुई मीशा के मुख पर एक सौम्य तरावट देखकर दामिनी का चेहरा सुकून से भर उठा | गीत समाप्त होते ही मीशा पूछने लगी, `` नानी! आज आपको ये क्या सूझा कि पंडित जसराज का ये सुबह गाने वाला शास्त्रीय गीत का ऑडियो लगा दिया है ?``
``ये इसलिए लगाया है कि तुम अब जीवन के मर्म को थोड़ा तो समझ पा रही हो। ``
``सुबह सुबह ये गीत सुनाकर आपने तो मुझे और डिप्रैस्ड कर दिया है। लेकिन नानी आप तो मेरी हैं। ``कहते हुए वह भावुक होकर उनसे चिपट गई।
``कोई शक ?लेकिन मैं तो तुम्हारे चेहरे पर एक शांति भी देख रहीं हूँ। ``
``पंडित जसराज की शांत आवाज़ की दी हुई ये शांति है। ``
``इस गीत में बहुत बड़ा मेसेज है कि दुनियां में सबसे अपने हम ही हैं अपने को मज़बूत करने की कोशिश हमें ही करनी होती है। सुबह की शुरुआत इस भावना से करो तो सारी दिनचर्या गीता के ज्ञान कि डिटैचमेंट फ़्रॉम ऑल से बहुत अच्छी तरह सम्पन्न होती है। ``
वैसे उसने मीशा से यह बात छिपाई थी कि उसकी मित्र डांसर वंदिता एक मनोचिकित्सक भी है | वह उसे सबसे एक पारिवारिक माहौल में मिलवाना चाहती थी | कुछ दिनों पहले उसने फ़ोन पर वन्दिता से बात की तो उसने पूछा, ``जब ये हादसा हुआ तो मीशा कैसे रिऐक्ट करती थी ?``
``कावेरी बता रही थी कि बस ये बुत बनी जी रही थी। न नहाने का होश , न बाल काढ़ने का होश, न खाने का होश। ``
``तुम्हारे पास आकर बदली तो है ?``
``बिल्कुल, अब थोड़ा मुस्कराने भी लगी है। बस एक ही रट लगाती रहती है। उसकी ज़िंदगी बेकार हो गई है। उसे आगे नहीं पढ़ना। ``
``थैंक गॉड ये न्यूरोटिक नहीं हुई है वर्ना इसका वापिस लौटना मुमकिन नहीं था। शी इज़ अ केस ऑफ़ सायकोटिक। वह भी माइल्ड स्किज़ोफ़्रेनिया वर्ना सायकोटिक्स मरीज़ों में उससे गंभीर तीन स्टेजेज़ और होतीं हैं। ``
``हाय ! तो ये सायकिक हो रही है ?``दामिनी की फ़ोन पर आवाज़ रुंध गई थी।
`` `डो -`नट वरी। अगर मनोचिकित्सकों की नज़र से देखा जाए तो दुनिया के हर इंसान में कोई न कोई मनोविकार होता ही है। तुम इसे मेरे पास ले आओ मैं उसे डांस सिखाने के बहाने उसका इलाज करती रहूंगी। कुछ मेडिसिन्स पानी में घोलकर देतीं रहूंगी। ``
रात में वन्दिता आंटी के घर के ड्राइंग रूम में नानी के फ़्रेंड के पति की लगी मॉडर्न आर्ट की पेंटिंग्स को मीशा घूम घूम कर ध्यान से देख रही थी। उसने पूछा, ``नानी बता रहीं थीं कि आपके बेटे फ़ेमस तबला वादक हैं व बेटी क्लासिकल डांसर। ``
``दोनों की आज देलही में परफ़ॉर्मेन्स है नहीं तो तुमसे मिलवाती। ``वन्दिता बताने लगी,
``मीशा !जब मेरे पति की डैथ हुई थी तो मैं सिर्फ़ अड़तालीस वर्ष की थी। ``
``हाऊ सैड ? आपने कैसे सब सम्भाला ?
``जब ज़िंदगी चोट देती है तो अपने को सम्भालना पड़ता है। ``
मीशा ने बुरा सा मुंह बनाया , वह समझ गई नानी ने यहां भी उसकी बात बता दी है इसलिए उसे भाषण पिलाया जा रहा है।
``चलो खाना खाते हैं। ``दामिनी ने उसका चेहरा पढ़कर बात बदल दी। तीनों उठाकर डाइनिंग रूम में आ गईं। दामिनी ने क़ोफ़्ते का डोंगा उठाकर उसमें से दो कोफ़्ते लेते हुए पूछा, ``वन्दिता क्या आज भी तुम सुबह प्रेक्टिस करती हो ?``
``ओ --यस यदि सुबह डांस न करूं तो रोटी हजम नहीं होती। ``
``मेरे लिए एक फ़ेवर कर सकती हो ?मैं मीशा को तुम्हारे पास तुम्हारी प्रेक्टिस के समय छोड़ जाऊँगी । ये भी कत्थक डांस सीख लेगी। `
``श्योर। ``
``नानी !मैं क्या करूँगी कत्थक सीखकर ?``
``तुम इतना अच्छा डांस करती हो। कत्थक सीखकर डांस करते समय बहुत अच्छे स्टेप्स लेने लगोगी व हाथों की मुद्राओं में भी सलीका आ जायेगा। ``
``ओ --नो। ``
``ओ --यस। ``
`` नानी ! वन्दिता आंटी के नाम के आगे डॉक्टर क्यों लगा है, वह तो डाँसर है ---" मीशा ने दामिनी से रास्ते में ही पूछा, ``आपने उसका इंट्रोडक्शन ऐसे ही कराया था न –डॉ. वन्दिता ---?"
"हाँ---तो नृत्य में डॉक्टरेट नहीं होती क्या?" दरसल, दामिनी भूल ही गई थी कि उसे मीशा को वन्दिता का परिचय केवल एक नृत्यांगना के रूप में देना है, डॉक्टर के रूप में नहीं | पर उसने बात संभाल ली |
दूसरी सुबह नानी के साथ वन्दिता आंटी के घर कैब में जाती मीशा सोच रही थी कि घर भर में सही में ये बात मशहूर है कि दामिनी न ख़ुद चैन से बैठती है, न बैठने देती है। वह कितने दिनों से ये बात पूछना चाह रही थी, ``नानी !अपने घर इतनी बड़ी कार है तो आप ड्राइवर क्यों नहीं रख लेतीं ?``
``आजकल ड्राइवर दस हज़ार रूपये लेते हैं और मेरा रोज़ कहीं जाना नहीं होता। एन जी ओ `ज़ का कोई न कोई बंदा मुझे पिक करके ले जाता है तो क्यों पैसे फ़ाल्तू ख़र्च करूँ ? अब तुम रोज़ डांस सीखने जाओगी तो कोई पार्ट टाइम ड्राइवर ढूंढ़ लूंगी। ``
वन्दिता के घर पहुंचकर दामिनी ने कहा, ``लो सम्भालो अपनी अमानत। ``
``वैलकम मीशा !``आज वन्दिता चूड़ीदार पायजामा व क्रीम कलर के अनारकली कुर्ते पर लाल चुन्नी बांधे बहुत छोटी व सुन्दर लग रहीं थीं। सच ही मीशा अपनी इस सुंदर गुरु से मिलकर ख़ुशी ख़ुशी पैरों में घुँघरू बाँधने लगी।
वन्दिता बोली, `` दामिनी ! आप जाइये । मैं मीशा को रोज़ ड्रॉप कर दिया करूंगी, मेरी भी सैर हो जाएगी व घर के कुछ काम हो जाएंगे । ``
`` थैंक्स डीयर। ``कहते हुए दामिनी चली गई।
वन्दिता ने कत्थक के बोल आरम्भ किये, ``ता थई थई तत --आ थई थई तत। तिगधा थई थई तत। ` `
प्रेक्टिस के बाद वन्दिता ने कहा, ``मैं तुम्हारे लिए नीबू पानी लातीं हूँ। कल तुम्हें श्याम के हाथ की लस्सी पिलवाउंगी, बहुत अच्छी बनाता है। अभी वह सब्ज़ी लेने गया है। ``
वह रसोई में गई और नीबू पानी में डिप्रेशन से उबरने की एक टेबलेट डालकर उसे चम्मच से मिला दिया।
चार दिन में ही वन्दिता से मीशा बेतकल्लुफ़ हो गई । वन्दिता ने उससे कहा, ``तुम्हें एक राज़ की बात बतातीं हूँ। मुझे कॉलेज में एक लड़के से इश्क हो गया था। ``
मीशा की धड़कनें बढ़ गईं, ``क्या वे पढ़ते समय भी पेंटिंग बनाते थे ?``
``धत ---उससे शादी कहाँ हो पाई ? ``
``लेकिन आप तो बहुत खुश लगतीं हैं। ``
``वो तो बरसों पुराना अपना राज़ तुम्हें बताया है। वक्त सब ज़ख्म भर देता है यदि उस दुःख से दूर जाने की कोशिश की जाए। ख़ैर --ये बात छोड़ो। तुम इतनी सुन्दर हो, कोई तो इस सूरत पर फ़िदा हुआ होगा ?``
``वन्दिता आंटी !प्लीज़। ``
वन्दिता सच में चुप होकर उसे डांस सिखाने लगी।
``जानती हो मेरे एक्स से मेरी मुलाक़ात कैसे हुई थी ?``वन्दिता ने दूसरे दिन फिर बात छेड़ी, `` हमारे कॉलेज में एनुअल प्रोग्राम होने वाला था। एक ड्रामे में मुझे उसकी पत्नी का रोल करना था इसलिए हम दोनों के दिल की धड़कनें धड़क उठीं। ``
``आंटी! एग्ज़ेक्टली मैं भी उससे एनुअल फ़ंक्शन में मिली थी। मुझसे दो साल सीनियर था। हमारे सर ने हमें एक ड्रामे की रिहर्सल के लिए बुलाया था। ``पता नहीं कैसे मीशा के मुंह से ये बात फिसल पड़ी।
``फिर ?``
``उसी दिन शाम को मैंने अपना ई- मेल अकाउंट चैक किया। उसका एक मेल था -`मेरा नाम भी `एम` से शुरू होता है। `एम` फ़ॉर मिहिर। कहीं ये उपर वाले का कोई इशारा तो नहीं है ?मैं बहुत शर्मा गई। तब मेरा बी बी ए का दूसरा साल था। मैंने कोई जवाब नहीं दिया। ``
``फिर ?``
``फिर क्या होता है ?कोई ज़रूरी है मैं हर बात आपसे शेयर करूं ?``मीशा क्रोध में बिफ़र गई।
वन्दिता ने धीरे से कहा, ``चलो डांस करते हैं। ``
मीशा ज़ोर से चिल्लाई, ``मुझे आपसे डांस नहीं सीखना। बस मैं अभी घर जा रहीं हूँ । । ``
वन्दिता का ऐसे अवसाद से भरे लोगों से साबका पड़ता रहता था इसलिए वह विचलित नहीं हुई, ``चलो, मैं तुम्हें छोड़ आतीं हूँ। ``
``नहीं, मैं ख़ुद चली जाउंगी। ``
``अच्छी बच्ची! ज़िद नहीं करते। ``उसने प्यार से उसके सिर को सहलाया। मीशा का गुस्सा उतर गया।
वन्दिता ने चुपके से दामिनी को फ़ोन पर सब बात बता दी व कहा तुम इसे मेरे पास डांस सीखने के लिए बिल्कुल दवाब मत डालना। मीशा दो दिन आश्चर्य करती रही कि नानी उससे क्यों नहीं वन्दिता आंटी के घर चलने के लिए कह रहीं ? चौथे दिन वह सुबह बहाना बनाकर बोली, ``नानी !वन्दिता आंटी के बच्चे देलही से लौट आये होंगे । मेरा बहुत मन है उनसे मिलने के लिए। वे बहुत टेलेंटेड हैं। ``
``ये तो बहुत अच्छी बात है। शाम को मैं बिन्दो से मटर पनीर बनाने की कह दूंगी। उन्हीं के यहाँ पूल डिनर कर लेंगे। ``
मीशा कुछ संकोच से बोली, ``अगर ब्रेकफ़ास्ट करके अभी चलें तो मैं उनसे मिल भी लूंगी, डाँस प्रेक्टिस भी हो जायेगी। ``
दामिनी ने बहुत मुश्किल से अपनी मुस्कराहट दबाई।
इसके बाद वाले दिन तो जैसे बाँध बह निकला। वन्दिता ने इतना भर पूछा था, ``मिहिर नाम तो गुजराती लगता है तो जयपुर में भी तुम्हें गुजराती मिल गया ? ``
``हाँ, नानी के यहां अहमदाबाद में बचपन से आने से मुझे गुजराती कल्चर बहुत अच्छी लगती है। उसने दूसरे दिन स्पष्ट मेल कर दिया -`मुझसे दोस्ती करोगी जो शादी में बदल जाए ?` ``
``तुमने क्या जवाब दिया ?``
``मैंने लिखा -`सोचकर बताउंगी, पहले एक दूसरे को जान तो लें। ``
वन्दिता के सामने मीशा का प्यार जैसे खुली किताब बनता जा रहा था। बी बी ए फ़ाइनल में आकर मीशा भावविभोर होकर कॉलेज के मंच पर गा रही थी, ``ये कैसा इस्क है ---अजब सा रिस्क है। ``
इस प्रेम कहानी का अंत वैसा हुआ जो होना नहीं चाहिए था, फिर भी अनेक कहनियों जैसा अंत था। मिहिर को एक एन आर आई गुजराती ने अपनी इकलौती लड़की के लिए पसंद करके यू एस में अपना बिज़नेस सम्भालने के लिए बुला लिया।
वन्दिता ने आख़िरकार प्रश्न उछाल ही दिया, ``तुम ऐसे बेवफ़ा लड़के के लिए पढ़ाई क्यों छोड़ना चाहती हो ?``
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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