डोर – रिश्तों का बंधन
(8)
सुबह सुबह जैसे बारिश की बूंदों से नयना की नींद खुली। अभी वह पूरी तरह जाग नहीं पाई थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कमरे में बरसात कैसे आ सकती है, खिड़की भी तो बंद ही है। वह हैरान सी देख रही थी कि एक जानी पहचानी खनकती हुई मर्दाना हंसी उसके कानों में मिश्री सी घोलती चली गई। उसने मुड़ कर देखा, दरवाज़े की ओट में खड़ा वह शैतान पेट पकड़ कर हंसे जा रहा था। "चिंटू!" नयना चादर फेंक कर उठ खड़ी हुई और दौड़ कर चिंटू के गले लग गई। चिंटू ने भी नयना को कस कर सीने में छुपा लिया जैसे सारी दुनिया की बलाओं से उसे महफूज़ कर लेना चाहता हो।
"चाची कौन कहेगा आपका बेटा आई.ए.एस अफसर है, हरकतें तो इसकी आज भी बंदरों जैसी हैं। पूरा भिगो दिया मुझे।"
"अच्छा है ना दीदी, कम से कम इस बहाने से तुम नहाई तो सही वरना तो पता नहीं नहाती भी हो या नहीं।"
"कुछ भी मत बोल मैं हर रोज़ न आती हूं।"
"दीदी! नहाने में तो बस पांच दस मिनट लगते हैं पर तुम तो एक घंटे से पहले कभी बाथरूम से बाहर आती ही नहीं, सच सच बताना बाथरूम में नहाने जाती हो या फिर सोने।" कह कर चिंटू फिर ताली बजा कर हंस पड़ा।
"चाचा देखो ना चिंटू को मुझे तंग कर रहा है।" नयना वैसे ही ठुनकने लगी जैसे बचपन ठुनका करती थी।
"मैं मारुंगा इसे।" चाचा ने भी एक बार फिर अपना वही पुराना डायलोग दोहरा दिया जो वो बरसों से दोहराते आ रहे थे।
"आप क्यों मारेंगे, नन्नी अब बच्ची नहीं है, खुद निपट लेगी।" चाची भी मज़े लेने मैदान में आ गईं।
"बड़ी मां ये तीनों तो एक हो गए अब इनके अत्याचार से मुझ बेचारे को आप ही बचा लो।"
"मैं भी देखती हूं कौन मेरे लाडले को मारता है।" मां ने हंस कर चिंटू को गले लगा लिया।
"हाए बड़ी मां आप कितनी अच्छी हो। बस एक आप ही हो जो मुझसे प्यार करती हो। इस बार आप मेरे साथ दिल्ली चलो, दीदी को रहने दो अपने प्यारे चाचा चाची के पास। पता है वहां मुझे क्वार्टर भी मिला हुआ है, उस अकेले घर में मेरा मन नहीं लगता।" चिंटू मां के घुटनों में लेट गया
"चलूं तो सही बेटा, पर तू तो ऑफिस चला जाएगा फिर मैं बूढ़ी पीछे से अकेली रह जाऊंगी। एक काम कर तू पहले बहू ले आ, तेरे घर में रौनक हो जाएगी फिर मैं क्या हम सब आ जाएंगे तेरे पास।" मां प्यार से उसके बालों को सहलाने लगी।
"हां तो मैंने कब मना किया है, ले आओ बहू।"
"ओए होए मां को प्यार जताने के बहाने अपना काम निकाल रहा है। नोट बैड।" नयना ने चिंटू को चिढा़या पर वह मुस्कुराने लगा।
"बहू तो तब लाएं जब तू उसका नाम और पता बताए।" इस बार चाचा का स्वर थोड़ा गंभीर था।
"हां ये भी सही है, लड़की तो तूने पसंद कर ली अब हमें भी उसके दर्शन करा दे ताकी हम तेरी बैंड मेरा मतलब शादी की शहनाई बजवा लें।" नयना पूरे मूड में थी।
"ठीक है बताता हूं, इस बार मैं आप लोगों को उससे मिलवाने ही आया हूं, इस संडे यानी परसों वो लड़की अपने मम्मी पापा के साथ हमारे घर आ रही है तो अब छुपाने का कोई मतलब भी नहीं। वैसे आप सब उसे और उसके परिवार को पहले से ही बहुत अच्छे से जानते हैं खासकर बड़ी मां और नन्नी दीदी आप दोनों तो उसे उसके बचपन से जानते हैं, बता दीदी कौन है वो, चल तू भी क्या याद करेगी एक हिंट और दे देता हूं वो लोग तुझे बहुत मानते है और उन लोगों ने हमारी मदद भी बहुत बड़ी की थी।"
"हैं! ऐसी कौन है जिसे हम पहले से ही जानते हैं। पहेलियां ना बुझा लड़के, लड़की को उसके मां बाप के साथ घर मिलने भी बुला लिया और हमें बताया भी नहीं, भाभी पता नहीं क्या करता है ये लड़का, यूं कोई लड़कीवालों को बुलाता है क्या, कितनी तैयारियां करनी पड़ती हैं पता भी है।" चाची एकदम से घबरा गई और चिंटू पर चिल्लाने लगीं।
"ओहो चाची चिल, दो दिन हैं हमारे पास सब हो जाएगा चिंता मत करो पर पहले ये तो पता चले आपके लाडले ने आखिर पसंद किया किसे है, नाम बता जल्दी से और फोटो भी दिखा, बहुत हो गई तेरी नौटंकी।" कहते हुए नयना ने चिंटू का फोन उसके हाथ से छीन लिया और गैलरी में फोटो ढूंढने लगी। चिंटू ने भी कोई विरोध नहीं किया और फोन का लॉक खोल कर बड़ी शांति से नयना को पकड़ा दिया। नयना ने लगभग सारी गैलरी खंगाल डाली पर उसे कोई ऐसी तस्वीर नहीं दिखी जो अलग हो, सभी घरवालों की फोटोज़ थीं। कुछ चिंटू के दोस्तों और कॉलीग्स की तस्वीरें भी थीं। नयना निराश हो गई कि तभी उसकी नज़र पूर्वी की फोटो पर पड़ी, पूर्वी और कोई नहीं जया मोसी की बेटी टीना थी। अचानक जैसे नयना के दिमाग की बत्ती सी जल गई, यही तो है वो जिसके बारे में चिंटू कह रहा था। जया मोसी और प्रकाश मोसाजी को सब कितनी अच्छी तरह से जानते हैं, उन लोगों ने हमेशा नयना की मदद की और तो और नयना का तलाक का केस भी तो पूर्वी ने ही लड़ा था वकील के तौर पर। नयना ने चिंटू की ओर देखा उसके होठों की मुस्कान जैसे कह रही थी,'दीदी तूने ठीक पहचाना।' नयना खुशी से उछल पड़ी।
"अरे खुद ही खुश होती रहेगी कि हमें भी हमारी बहू की फोटो दिखाएगी।" मां ने कहा तो उसने मोबाइल चाचा के हाथ में पकड़ा दिया। सब पूर्वी और चिंटू के बारे में जान कर खुश भी थे और आश्चर्यचकित भी। चाची तो बार बार यही कहे जा रही थीं, "लो बोलो आंखों के सामने लड़की और हमें नहीं सूझा यह रिश्ता।" चाची और मां अपनी बहू के स्वागत की तैयारियों में लग गई, चाचा को भी बाजार से सामान लाने की ड्यूटी पकड़ा दी गई। नयना ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगी और चिंटू अपनी सफर की थकान उतारने के लिए सोने चला गया पर जाते जाते नयना को हिदायत देता गया, "दीदी ऑफिस के बाद सीधा घर आना, और कहीं मत जाना।"
शाम को चाची और चिंटू दोनों ने ही नयना को एक अजीब मुश्किल में डाल दिया। चाची उसे अपनी होने वाली बहू के लिए उपहार खरीदने बाजार ले कर जाना चाहती थी जबकि चिंटू उसे अपने साथ रिन्नी दीदी के घर ले कर जाने की जिद पकड़े बैठा था। समस्या थोड़ी गंभीर हो रही थी बहस कर कर के दोनों मां बेटे ने मुंह फुला लिया था। दोनों के अपने अपने तर्क थे चाची का कहना था, 'मेहमानों के आने की तैयारी ज्यादा जरूरी है, रिन्नी कहां भागी जा रही है, उससे मिलने कल चले जाना। आज नन्नी को मेरे साथ जाने दे।'
चिंटू कह रहा था, 'मम्मी आप कल कोई और काम निकाल दोगी, ऐसे तैयारी कर रही हो जैसे दो दिन बाद मेरी शादी हो, सुबह से काम में लगी पड़ी हो खुद भी थक गई और पापा और बड़ी मां को भी थका दिया। अरे अभी वो सिर्फ आप लोगों से मिलने आ रहे हैं, सब ठीक है इतनी टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। आज के लिए आपने काफी काम कर लिया अब आराम करो, बाकी काम कल हो जाएगा। आज हमें रिन्नी दीदी के घर जाने दो प्लीज़, कल मैं खुद आप दोनों को शॉपिंग करवाने ले चलूंगा। मम्मी मान जाओ राहुल जीजाजी मुझसे नाराज़ हो जाएंगे।' उन दोनों की बहस का नतीजा ना निकलते देख नयना ने एक बीच का रास्ता निकाला कि पहले वो लोग रिन्नी दीदी के घर चलते है और वहां से उन्हें साथ ले कर शॉपिंग करने चले जाएंगे।
जब वो लोग घर से निकले तो चिंटू के ड्राइवर उसे सैल्यूट करते हुए गाड़ी का दरवाज़ा खोलने जल्दी से आगे बढ़ गया पर चिंटू ने उससे यह कह कर गाड़ी की चाबी लेली कि वह खुद ड्राइव कर लेगा। नयना और चाची दोनों को चिंटू का रूतबा देख कर गर्व की जो अनुभूत हो रही थी उसे शब्दों में व्यक्त करना संभव ही नहीं था। वो लोग आए तो थे रिन्नी दीदी सरप्राइज़ देने पर यह देख कर खुद ही सरप्राइज़ हो गए कि रिन्नी दीदी के घर एक खलबली सी मची हुई थी, बच्ची के रोने की आवाज घर के बाहर तक आ रही थी। "लगता है बच्ची गिर गई है, बहुत चोट आई है शायद तभी इतना ज़ोर से रो रही है।" चाची ने कहा।
"नहीं चाची इतनी छोटी बच्ची कैसे गिरेगी अभी तो उसे करवट लेना भी नहीं आता।" नयना ने कहा और तेज़ी से घर के अंदर प्रवेश कर गई, पीछे पीछे चाची और चिंटू भी आ गए। "क्या हुआ दीदी? ये गुड़िया इतना ज़ोर से क्यों रो रही है?"
"मुझे भी नहीं पता नन्नी, आज दीपक भैया की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी इसलिए वो ऊपर अपने कमरे में ही आराम कर रहे हैं, गुड़िया उनके पास ही है, राहुल आप देखो तो एक बार जाकर क्या बात है।"
राहुल ऊपर जाने लगे तो नयना से रहा नहीं गया वह भी जीजाजी के पीछे सीढियों की ओर बढ़ गई। ऊपर कमरे में अजीब ही नज़ारा था दीपक तो सोए हुए थे और बच्ची बिस्तर पर उल्टी लेट कर ज़ोर ज़ोर से रो रही थी। नयना को दीपक पर बहुत गुस्सा आ रहा था, कैसा पिता है, बच्ची रो रही है और यह आराम से सो रहा है। "दीपक को तो बहुत तेज़ बुखार है। नन्नी तुम बच्ची को संभालो मैं अपना ब्रीफकेस ले कर आता हूं।" राहुल ने कहा और नीचे चले गए। नयना ने जल्दी से आगे बढ़ कर बच्ची को गोद में उठा लिया। उसने कपड़े गीले कर रखे थे, वह उसके लिए साफ कपड़े ढ़ूंढ़ ही रही थी कि रिन्नी दीदी दौड़ती हुई ऊपर आई और बच्ची को गोद में लेकर चुप करवाने की कोशिश करने लगीं। उन्होंने अलमारी में से कपड़े निकाल कर छुटकी के कपड़े बदले। दीपक के लिए नयना का गुस्सा जाने कहां गायब हो गया, अब उसे दीपक की फिक्र हो रही थी। वह वॉशरुम से ठंडा पानी लेकिर आई और अपना रुमाल भिगो कर दीपक के सर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखने लगी।
"नन्नी गुड़िया को भूख लगी है, तू इसे नीचे ले जा और दूध गर्म करके पिला दे तब तक राहुल दीपक भैया का चेक-अप भी कर लेंगे।" नयना बच्ची को गोद में ले कर नीचे आ गई, चाची ने पहले ही उसके लिए दूध गर्म कर दिया था, चाची बच्ची को गोद में ले बोतल से दूध पिलाने लगीं। राहुल और चिंटू दीपक को भी सहारा दे कर नीचे ले आए थे। राहुल ने दीपक को दवा दी वह दवा खा कर दीवान पर ही लेट गया रिन्नी और राहुल उसकी तीमारदारी में लग गए, कुछ देर बाद जब उसका बुखार पहले से कम हुआ तो उनकी जान में जान आई। रिन्नी उसे डांटने लगी, "दीपक भैया आपकी तबीयत इतनी खराब हो गई और आपने हमें बताया ही नहीं, जब यूं पराया ही समझना है तो क्या फायदा साथ रहने का। पता है छुटकी कितना रो रही थी, अगर वह रोते रोते बैड से गिर जाती तो।"
"भाभी मैं जब लेटा था तब तो यह सो ही रही थी, फिर मुझे भी नींद आ गई, यह कब उठ गई पता ही नहीं चला।" दीपक ने हाथ बढ़ा कर बच्ची को सहला दिया, वह अभी भी रोए जा रही थी। चाची उसे लोरी सुनाने लगीं। चाची का गाना सुनकर भी जब वह शांत नहीं हुई तो चिंटू बोला, "मम्मी ये आज की बच्ची है, हमारे ज़माने की लोरी से चुप नहीं होगी इसे तो आप चन्ना मेरेया गा कर सुनाओ फिर देखना कैसे डांस करती है।" चिंटू की बात पर सब हंसने लगे।
"इसका नाम क्या रखा है आपने दीपक भैया।" चिंटू ने पूछा।
"आप ही रख दो चैतन्य मुझे तो कुछ सूझ ही नहीं रहा।"
"कुछ अच्छा सा नाम ढूंढ़ना। बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई है तेरे कंधो पर चिंटू, ओहो सॉरी आई.ए.एस. चैतन्य सुरेश।" राहुल अब चिंटू के पीछे शुरू हो गए।
"आई.ए.एस. चैतन्य सुरेश तो मैं दुनिया के लिए हूं जीजाजी आप सबके लिए तो हमेशा चिंटू ही रहूंगा।"
"नाम रखने की जिम्मेदारी खूब दी आपने मेरे भाई को दीपक भैया, इसे तो अब बस एक ही नाम पसंद है पूर्वी, वही रख देगा।" रिन्नी दीदी भी कहां पीछे रहने वाली थी।
"नहीं, नहीं, मैं इसका नाम पूर्वी नहीं खुशी रखुंगा, और देख लेना एक दिन ये हम सबकी ज़िंदगी में खुशियां बिखेर देगी।" चिंटू ने बच्ची का माथा चूम लिया। वो लोग आए तो थे रिन्नी को अपने साथ शॉपिंग पर ले जाने पर यहां आ कर खुशी को बहलाने लगे। सभी बारी बारी से उसे गोद में लेकर खिला रहे थे। नयना ने उसे गोद में लिया तो जाने क्या हुआ कि वह हंस दी। "ले नन्नी तेरी गोद में आ कर तो इसने दांत निकाल दिए, जैसे हम तो इसे कांटे चुभा रहे थे और तूने फूल बरसा दिए।" रिन्नी ने खुशी के गाल पर हल्की सी चपत लगा दी।
"लगता है इसे नयना की गोद पसंद आ गई।" पास ही बैठी राहुल की मां ने कहा। देर हो रही थी चाची और चिंटू घर चले गए जबकि नयना को रिन्नी ने यह कह कर कि, 'दीपक भैया की तबीयत भी खराब है और खुशी भी थोड़ी परेशान है आज नन्नी तू मेरे पास रुक जा, मुझे आसानी हो जाएगी।' अपने घर ही रोक लिया। राहुल ने दीपक को खुशी से दूर रहने को कहा था कि कहीं उसे भी बुखार ना आ जाए। उस रात राहुल दीपक के पास गेस्टरूम में सोए और नयना रिन्नी के पास, खुशी भी उनके साथ ही थी। रिन्नी बच्ची के साथ सारी रात सोती जागती रही और नयना उन दोनों के साथ। कभी बच्ची कपड़े गीले करके रोने लगती और कभी उसे भूख लग जाती तो उठ कर रोने लग जाती और फिर दूध पी कर खेलने लगती। रिन्नी का बेटा अभी छोटा ही था इसलिए उसे इसकी आदत थी पर नयना के लिए तो यह सर्वथा नया अनुभव था।
सुबह नयना की आंख जल्दी ही खुल गई, वह सबके लिए चाय बना कर ले आई। चाय पी कर राहुल ने कहा, "नयना तुम तैयार हो जाओ मैं तुम्हें घर छोड़ कर फिर क्लिनिक जाऊंगा, आज दीपक के भी कुछ टेस्ट करवाने हैं।"
"मैं ऑटो से चली जाऊंगी जीजाजी, क्लीनिक तो घर से बहुत दूर है आप बेकार परेशान हो जाएंगे।"
"बिल्कुल नहीं तुम्हें ऑटो से भेज कर मुझे अपनी शामत बुलानी है क्या? तुम्हारा वो लाडला भाई भी तो आया हुआ है आजकल।" राहुल की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि डोरबेल बज उठी। रिन्नी ने दरवाज़ा खोला, बाहर चिंटू को खड़ा देख वह आश्चर्यचकित रह गई, "अरे चिंटू तू इतनी सुबह सुबह।"
"चैतन्यजी कोई कीमती चीज़ छूट गई थी क्या जो इतनी सुबह आना पड़ा?" राहुल के स्वर से भी आश्चर्य टपक रहा था
"मैं तो नन्नी दीदी को लेने आया था जीजाजी।"
"हाए! हम क्या तेरी नन्नी दीदी को अपने यहां ही रखने वाले थे जो डर कर भागे चले आए लेने।" राहुल की मां भी ठिठोली करने लगीं।
"नहीं आंटी मम्मी ने भेजा है कि ये परेशान हो जाएगी आने में।"
"आपने यूं ही तकलीफ की चैतन्य, नयना को तो राहुल भैया अभी घर छोड़ने निकल ही रहे थे।"
"फिर तो मैं ठीक समय पर पहुंचा दीपक भैया वरना मम्मी से और भी डांट पड़ती, चल दीदी जल्दी कर घर में सब तेरे बिना उदास हो रहे हैं।"
"सब उदास हैं या तू उदास हो रहा है, रात को नींद तो ठीक से आई थी ना, नन्नी को छेड़े बिना दिल कहां लगता है तेरा।" रिन्नी ने कहा तो चिंटू कुछ झेंप सा गया और जाकर गाड़ी में बैठ गया। नयना को उस पर इस वक्त बहुत प्यार आ रहा था, उसका मन कर रहा था वह चिंटू के दोनों गाल जोर से खींच कर प्यार करे बिल्कुल वैसे ही जैसे बचपन में किया करती थी। पर इसमें खतरा था बचपन में तो वह रो कर मां से डांट पड़वाता था पर अब तो खुद ही पीट देगा। वह जल्दी से छुटकू और खुशी को प्यार कर गाड़ी में बैठ गई।
घर जाते ही नयना कस कर मां के गले लग गई। "क्या हुआ? आज बड़ा प्यार आ रहा है मां पर।" मां ने उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा।
"पूरी रात आपसे दूर रही है आपकी बेटी बड़ी मां, प्यार तो आएगा ही ना।"
"मां कल रात मैंने पहली बार छोटे बच्चे को इतने करीब से देखा। रिन्नी दीदी खुशी को इतने प्यार से संभाल रहीं थीं, वो सारी रात नहीं सो पाई, खुशी की एक आवाज पर ही उठ जाती थी। उन्हें देख कर मुझे अहसास हुआ बचपन में मैंने भी आपको ऐसे ही परेशान किया होगा।"
"नहीं बेटा तूने मुझे परेशान नहीं किया, तूने तो मुझे मां बनने का सुख दिया। यह सुख निराला होता है बेटा, तेरी मुस्कान, तेरी किलकारियां सब मेरी और तेरे पापा के जीवन की अनमोल यादें हैं।"
"और नहीं तो क्या,बच्चे भी कहीं मां बाप को परेशान करते हैं। पता नहीं क्या क्या सोचती रहती है ये लड़की भी। बच्चे तो मां बाप की ज़िंदगी खुशहाल बनाते हैं, अपने मां बाप का गुरूर होते हैं, अगर बच्चे पालने में थोड़ा कष्ट पा भी लिया तो क्या आखिर मां बाप होने का सुख भी तो पाया।" चाची हंसने लगीं।
"वही तो मैं भी कह रही हूं, जैसे तुम मेहनत करके प्रेज़ेंटेशन तैयार करती हो तो तुम्हें प्रमोशन मिलता है, वैसे ही हमने तुम पर मेहनत की
और तुम पांच बेटियों और अपने बेटे को इतना लायक बनाया कि अब दुनिया हमें गर्व भरी नज़र से देखती है, यह हमारा प्रमोशन है, है ना।"
"हाए! नन्नी दीदी तू रिन्नी दीदी के घर एक रात क्या रह आई समझदार हो गई। वैसे एक बात बताऊं तूने घर में किसी ओर को परेशान किया या नहीं पर मुझे बहुत परेशान किया है, तेरी वजह से मुझे अपनी सुबह की मीठी नींद छोड़ कर इतनी लंबी ड्राइविंग करनी पड़ी।"
"तो तुझे क्या जरूरत थी मुझे लेने आने की मैं खुद आ जाती ऑटो से।"
"ऑटो से आ जाती! बड़ी आई ऑटो से आने वाली।" चिंटू उसकी नकल निकालने लगा तो नयना उसके पीछे मारने दौड़ी। दोनों अपना ओहदा और सारी दुनियादारी भूल कर देर तक बच्चों की तरह एक दूसरे के पीछे दौड़ते रहे।
"अब बहुत हो गया तुम दोनों का, जाओ जा कर तैयार हो कर आओ वरना मार खाओगे। कहे देती हूं आज अगर मुझे बाजार नहीं ले कर गए तो फिर देखना मैं तुम्हारी क्या गत बनाती हूं।" चाची कमर पर हाथ रख उन्हें डांटने लगी।
"ओहो चिल माते आजकल ऑनलाइन शॉपिंग के ज़माने में बाज़ार कौन जाता है।"
"मैं जाऊंगी, अपनी बहू के लिए मैं खुद ड्रेस चुन कर लाऊंगी, तुम्हें नहीं जाना मत जाओ मैं अकेले चली जाऊंगी।"
"अरे नहीं नहीं हम भी चलेंगे आपके साथ।" नयना ने कहा और चिंटू को उसके कमरे में धकेल कर खुद भी तैयार होने लगी। शनिवार की पूरी छुट्टी चाची ने बाजार घूमने में लगा दी। जाने क्या लेना चाहती थीं वो अपनी बहू के लिए, उन्हें कुछ पसंद ही नहीं आ रहा था। चाची के साथ एक दुकान से दूसरी दुकान पर घूम घूम कर नयना और चिंटू की तो हालत ही खराब हो गई। आखिर जब चाची को एक गुलाबी रंग की साड़ी पसंद आई तो चिंटू और नयना ने चैन की सांस ली, चाची को कुछ और दिखे और उनका फैसला बदले उससे पहले दोनों उन्हें गाड़ी में बिठा कर घर ले आए।
संडे को सभी सुबह जल्दी उठ गए और नहा धो कर तैयार हो गए। आज घर की सज्जा भी कुछ अलग ही थी, चाची और मां ने बहुत मेहनत की थी, अपनी बहू पूर्वी के स्वागत के लिए घरवाले ही नहीं घर भी पलकें बिछा कर तैयार था। चिंटू भी एकदम नए पाजामे कुर्ते में जच रहा था, मां ने उसकी नज़र उतारी तो मुस्करा दिया, उसके दिल की खुशी उसके चेहरे से छलक रही थी। नयना को वही पुराना सूट पहन कर घूमते देख चिंटू उसके पीछे पड़ गया, "नन्नी दीदी ये क्या पहन कर घूम रही है, कुछ अच्छा सा पहनती ना, आज तेरे भाई को लड़कीवाले देखने आ रहे हैं। क्या कहेंगे वो लोग? सोचेंगे जो अपनी बहन का ध्यान नहीं रखता वह हमारी बेटी को क्या खुश रखेगा। अगर उन्होंने मना कर दिया तो, मेरा घर कैसे बसेगा, आखिर मेरे भविष्य का सवाल है।"
"कुछ नहीं कहेंगे? लड़कीवाले मेरे भाई को देखने आ रहे हैं, मेरा सूट नहीं। मेरा भाई लाखों में एक है और उसके लिए कोई मना नहीं कर सकता।"
"ठीक है मान लिया पर आज तू यह सूट पहनेगी।" चिंटू ने एक पैकेट नयना के हाथ पर रख दिया। पैकेट में एक बहुत खूबसूरत फिरोजी रंग का कढ़ाई वाला कुर्ता और प्लाज़ो था। नयना उसे देखती रही। कभी यह रंग उसे बहुत पसंद था, उसकी वॉर्डरॉब में इस में फिरोजी रंग की इतनी ड्रेसेज होती थीं कि सब मज़ाक उड़ाते थे उसका। पर अब तो उसने ऐसे कपड़े पहनना बंद ही कर दिया, ठीक से तैयार हुए भी अरसा हो गया, कभी मन ही नहीं करता।
"थैंक्स भाई, तूने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी, कल से सोच रही हूं टीना को मैं क्या दूं तोहफे में, पर समझ नहीं पा रही थी। सोचती हूं यही ड्रेस दे दूं।"
"खबरदार मेरी बेटी की ड्रेस को हाथ भी लगाया तो, यह तेरे लिए आई है और इसे तू ही पहनेगी समझी।" चाची ने बड़ी बड़ी आंखें निकाल कर कहा।
"नन्नी दीदी!" चिंटू ने पास बैठ कर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया, "मैं तेरे लिए महत्वपूर्ण हूं ना, या सिर्फ एक वही था जो कभी तेरा हुआ ही नहीं?"
"कैसी बातें कर रहा है चिंटू, तू मेरे लिए इस दुनिया में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।" रोने को हो आई नयना।
"और मेरी खुशी?"
"तेरी खुशी भी।"
"और मेरी खुशी इसमें है कि मेरी बहन मेरी शादी में हर पुरानी बात भूल कर सिर्फ खुशियां मनाए, खूब सजे, सबके साथ हंसे गाए।"
"अभी शादी में बहुत वक्त है। जब शादी होगी तब मैं यह ड्रेस पहन लूंगी, आज के लिए यही ठीक है।" नयना ने चिंटू को टालने की एक आखिरी कोशिश की पर वह जानती थी चिंटू मानने वाला तो नहीं है।
"ना शादी के लिए और खरीद लेना, ये तो आज ही पहननी पड़ेगी, तू जानती है मैं बहुत जिद्दी हूं, मानूंगा नहीं।"
"अच्छा ठीक है, बदल कर आती हूं कपड़े।" आखिर नयना ने हार मान ली। नयना जब तैयार हो कर आई तो उस सूट में बहुत प्यारी लग रही थी, आज अरसे बाद हल्का सा मेकअप भी किया था उसने। चाचा कुछ देर तक उसे अपलक देखते रहे फिर उसके पास आकर उसका माथा चूम लिया और बोले, "खुश रहा कर ना गुड़िया, रंग खिलते हैं तुझपर उसके पीछे क्यों अपनी ज़िंदगी बेरंग किए बैठी है जो तेरे लायक ही नहीं है।"
"लो बोलो मेहमान तो आ भी गए और यहां अभी तक भरत मिलाप ही चल रहा है।" रिन्नी भी आकर चाचा के गले लग गई, चाचा ने नयना के साथ उसे भी बाहों में समेट लिया।
"क्या! पूर्वी आ गई।" चाची चौंक कर बाहर जाने लगीं।
"हाए राम अभी तो बहू आई भी नहीं और हमारी मां तो बेटियों को भूल भी गई।" रिन्नी का अंदाज़ थोड़ा नाटकीय था।
"रिन्नी दीदी, बेटी तो बेटी मम्मी तो इन दिनों उस बेटे को भी भूली बैठी हैं जिसके लिए बहू ला रही हैं।" चिंटू कहां पीछे रहने वाला था।
"देखो भाभी इन दुष्टों को मेरा मज़ाक उड़ाने का एक मौका नहीं छोड़ते।"
"तू इनकी बातों पर ध्यान ही ना दे, अभी ये लोग बच्चे हैं, तेरी भावनाओं को क्या समझेंगे। और तुम लोग अपनी मां को परेशान करना बंद करो, तुम्हें नहीं पता घर में बहू लाना हर मां का सपना होता है, यह सपना मां बनते ही उसकी आंखों में सज जाता है और बेटे के बड़े होने के साथ साथ संवरता, निखरता रहता है।"
"और बहू आने के बाद क्या होता है।" नयना का स्वर कुछ खोया खोया सा था, उसे विवेक की मां याद आ रही थी।
"होना क्या है! उसी बहू के साथ दिन रात लड़ना-अड़ना होता है।" रिन्नी ने कुछ इस तरह कहा कि नयना के होठों पर मुस्कान आ गई, उसने देखा मां और चाची भी मुस्कुरा रही थीं, शायद कहीं ना कहीं उन दोनों की भी यही कहानी थी।
"मैं नहीं लड़ने वाली पूर्वी के साथ देख लेना उसे बेटी की तरह प्यार दूंगी।"
"हमारी भैंस तो गई पानी में, क्यों नयना।"
"अपनी भैंस को पानी में से बाद में निकालती रहना पहले इसे संभालो कितनी देर से लिए खड़ा हूं।" राहुल ने गोद में ली खुशी रिन्नी की ओर बढ़ा दी। नयना ने उसे लपक कर अपने अंक में समेट लिया और चहक उठी, "आहा! खुशी भी आई है। दीदी ये तो आपकी बेटी बन गई है।"
"अरे नहीं नहीं, दीपक हमारी पिटाई कर देगा अगर उसकी बेटी को तुमने हमारी बेटी कह दिया। अगर उसकी तबीयत खराब ना होती तो वह इसे यहां लाने ही नहीं देता, सीने से लगाए रहता है हर वक्त, इसकी देखभाल के लिए वह किसी पर विश्वास नहीं करता। कभी हमारे घर आ कर देखना।" राहुल ने कहा। थोड़ी देर बातें होती रहीं, नयना और चिंटू तो खुशी के साथ ही खेलते रहे कि तभी प्रकाश मोसाजी अपने परिवार के साथ आ गए। जया मोसी ने पहले मां और फिर नयना को गले लगा लिया, "बहुत प्यारी लग रही है हमारी बेटी।" मोसाजी ने भी नयना का सर थपथपा दिया।
"जी सही कहा खारीवाल साहब आपने, हमारी बेटी भी बहुत प्यारी लग रही है।" चाचा-चाची पूर्वी को देख कर निहाल हुए जा रहे थे, पेस्टल पीच कलर के सूट में वह सुंदर भी बहुत लग रही थी। उसने आगे बढ़कर सभी बड़ों के पांव छुए, चिंटू ने शरारत से मुस्कुराते हुए नयना की ओर भी इशारा कर दिया। पूर्वी नयना के भी पांव छूने लगी तो नयना ने उसे बीच में ही रोक कर गले से लगा लिया। उसका मन चिंटू के कान खींचने का हो रहा था। सोनू भी अब बच्चा नहीं रहा था बड़ा हो कर हैंडसम हो गया था, पूरा आई. आई. टी. का स्टूडेंट लग रहा था, धीर गंभीर और सभ्य मुखमुद्रा में वह बिल्कुल मोसाजी की कार्बन कॉपी लग रहा था। चाची और मां चाय नाश्ते का इंतज़ाम देखने लगीं, बाकी सब हॉल में जम गए, छुटकू और खुशी उनके खिलौने बन गए थे। उनके हंसी ठहाकों से घर में बहार सी आ गई थी।
नयना और रिन्नी मां और चाची की रसोई में मदद करने आई तो चाची ने उनसे कहा, "तुम दोनों बाहर मेहमानों का ख्याल रखो यहां तो हम संभाल लेंगे।" वो दोनों कुछ कहतीं उससे पहले ही जया मोसी भी रसोई में आ गई और बोलीं, "यहां कोई मेहमान नहीं है बहनजी सब अपने हैं, हम तो पहले भी आते रहे हैं यहां और मैंने आपके साथ रसोई में काम भी करवाया है। फिर आज ऐसा क्या नया है सब मिल कर करेंगे तो जल्दी होगा और फिर सब मिल कर बैठेंगे क्यों ठीक है ना नयना।" वे कपों में चाय डालने लगीं। नयना और रिन्नी ट्रे में नाश्ता रख कर बाहर देने गई पर किसी ने नहीं खाया।
मोसाजी बोले, "भाभी आप लोग भी आ जाओ फिर मज़ा आएगा।" चाय नाश्ते के बीच सुरेश चाचा और प्रकाश मोसाजी ने चिंटू और टीना की शादी की बात भी पक्की कर दी। चाची भोजन का इंतज़ाम करने उठने लगी तो मोसाजी ने मना कर दिया, "भाभी आपने नाश्ता ही इतना करवा दिया कि अब पेट में खाने के लिए जगह ही नहीं रही, थोड़ी देर बैठते हैं फिर चलते हैं।"
रिन्नी तिलक की थाली सजा लाई, चाची चिंटू और टीना के रोके की एक छोटी सी रस्म करना चाहती थीं। चाची ने तिलक करके साड़ी और नारियल पूर्वी की गोद में रख दी और अपने गले से सोने की चैन उतार कर उसके गले में पहना दी। प्रकाश मोसाजी और जया मोसी ने भी चिंटू को तिलक लगा कर रोके की रस्म की। रोके की रस्म के बाद रिन्नी दीदी चिंटू और पूर्वी की आरती करने लगीं तो उन्होंने नयना को भी आने का इशारा किया। नयना ने आगे बढ़ कर रिन्नी दीदी के हाथ पर अपना हाथ भी धर दिया। आरती के बाद जब नेग देने की बात आई तो चाचा बोले, 'मैं नन्नी और रिन्नी को वो नेग दूंगा जो वो मांगेंगी।' यह सुन कर नयना चाचा के गले लग गई क्योंकि यही उसका सच्चा नेग था, चाचा-चाची और चिंटू का प्यार उसके लिए सारी दुनिया के रूपए-पैसे से भी ज्यादा अनमोल था। यह उसके अपनों का प्यार ही तो था जिसके सहारे वह फिर से खुद को समेट पाई वरना तो अवसाद की अंधेरी गुफा से टकरा कर कब की बिखर चुकी होती।
पूर्वी चाचा के पांव छूने लगी तो उसका पांव उसकी ड्रेस में अटक गया और वह लड़खड़ा गई मगर चिंटू ने उसे संभाल लिया। यह देख कर नयना को अच्छा लगा, उसे याद आया शादी के शुरूआती दिनों में वह भी भारी साड़ी में ऐसे ही उलझ जाती थी। एक बार तो गिर भी पड़ी थी, उस वक्त विवेक उसके पास ही खड़ा था, नयना ने हाथ भी बढ़ाया था उसकी ओर पर विवेक ने उसे नहीं थामा, बल्कि जब वह गिर पड़ी तो अपनी मां के बहाने से उसे सुनाते हुए बोला, "कैसी बहू लाई हो मां जिसे ठीक से चलना भी नहीं आता।" विवेक उपेक्षा से सर झटकते हुए घर से बाहर चला गया और मां नयना को देर तक घूरती रहीं, नयना सर झुका कर अपराधी की भांति कमरे में आ गई और अपनी छिली हुई कोहनी पर आंसुओं का मरहम लगाती रही। सबके हंसने की आवाज से नयना की सोच की कड़ी टूटी, किसी बात पर एक ज़ोरदार ठहाका लगा था, नयना ने अतीत की यादों से बाहर आ कर खुदको सामान्य किया, ठीक ही कहते हैं लोग इंसान का अतीत कभी उसका पीछा नहीं छोड़ता।
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