Life @ Twist and Turn .com - 17 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 17

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 17

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 17

यामिनी ने रोती हुई दिल दहलाने जैसा सवाल पूछती सृष्टि को अपने हाथों में जकड़ लिया, "नहीं, बिलकुल नहीं, किसने कहा तुमसे कि तुम्हारी मम्मी मर जाएगी ?”

उसने नोरा की तरफ़ इशारा किया | नोरा छोटी बेटी वृष्टि को नहला रही थी | कुछ देर बाद किचन में जब वो बर्तन साफ़ कर रही थी तब यामिनी ने उससे पूछा, `` तुम ने सृष्टि को क्यों कहा कि, उसकी माँ मर जायगी ?"

नोरा के चेहरे पर यादों के बादल मंडराने लगे और वह आप बीती सुनाने लगी, ` ``मेरी माँ मर गई थी जब आई ओनली फ़िफ्टीन ईयर ओल्ड। तो इनकी माँ भी मर सकती है। `` माँ से बिछुड़ने की पीड़ा उसके चेहरे पर फैल गई थी, उसने बताया, "ठीक दोपहर के बारह बजे माँ ने कहा था कि इतना अन्धेरा क्यों है ?``

`` ये कहते हुये मर गई थी ?``

``यस, मरते हुये वो मेरी इन बाहों में थीं । आज तक मेरी बाहें दुखती हैं | मेरी माँ मेरी बाहों में मर गई , हम चार बच्चों को छोड़ कर वो चल बसी, हमारा संसार उजड़ गया, बाप किसी और औरत के साथ भाग गया । मैं अबोध बच्ची थी, मेरे पीरियड्स तभी शुरू हुए थे | उसको उस उम्र में माँ की सख़्त ज़रुरत थी!

उसके द्वारा पता चला, `` फ़िलिपीन में गर्भ निरोध नहीं कर सकते, हमारे धर्म के खिलाफ़ है | हर साल एक बच्चा पैदा हो जाता है और अक्सर औरत को अकेला छोड़ कर आदमी किसी और औरत के साथ रहने लगता है | सिंगापुर में लगभग दो -ढाई लाख मेड्स काम करती हैं |अधिकतर दक्षिण एशिया से, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यान्मार, श्री लंका, बँगला देश, भारत और फ़िलिपीन से मेड्स काम करने आती हैं | ``

हैरी कहते, `` न्यूज़ पेपर में मैंने पढ़ा कि यहाँ हजारों एजेंट्स हैं जिनका व्यवसाय मेड्स सप्लाई करना है |``

उसके चेहरे पर मायूसी के बादल घिरे रहते थे | यामिनी को उस पर दया आई, बेचारी यहाँ परदेस में दूसरों की झूठन साफ़ कर रही है| उसने पूछा, "तुम अपने देश में क्यों काम नहीं करती ?”

अपनी टूटी इंग्लिश में उसने बताया, ``वहाँ पैसा बहुत कम मिलता है, एक पढ़ी लिखी नर्स को, डाक्टर को हज़ार, डेढ़ हज़ार पीसो (वहाँ की करैंसी को पीसो कहते हैं) मिलते हैं, जबकि सिंगापुर का एक डॉलर वहाँ के पैतींस पीसो के बराबर था, कन्वर्ट करके तीस-चालीस हज़ार पीसो बन जाते हैं | यहाँ की कमाई से मेरा घर चलता है, मेरे बच्चे पढ़ते हैं, मेरे घर की छत बरसात में चू रही थी, मैंने यहाँ से पैसे भेज कर नई छत डलवा दी |``

“तुम्हारे घर में कौन कौन है ?” यामिनी ने पूछा था |

“ मेरे तीन बच्चे हैं | ” उसने अपने हाथ की तीन उंगलियाँ दिखाईं | बच्चों का नाम लेते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा |वह रसोई में सब्ज़ी काट रही थी, यामिनी खाना बना रही थी | इससे पहले नोरा ने कभी भारतीय घर में काम नहीं किया था, रोटी बेलने में उसकी नानी मरती थी, कहती, "आई कैन डोह यू रोल ” मतलब वो आटा बाँध देगी पर चपाती यामिनी बनाए | उसकी बातें समझने में अच्छा ख़ासा कोमेडी सर्कस हो जाता था और इतने संकट के दिनों में भी यामिनी हँस पड़ती थी |

वैसे ही सिंगापूर की इंग्लिश को सिंग्लिश नाम दिया गया है यामिनी के प्रत्येक प्रश्न के उत्तर में नोरा या तो कहती, ``। ` कैन, कैन `या `लाह लाह कैन नॉट `। ``प्रत्येक प्रश्न का उत्तर होता है । कैन मतलब ‘यस’ और कैननोट लाह माने 'नहीं '|

“ यहाँ से पहले तुम कहाँ काम करती थी ?”

“दुबई में ---” और अचानक ज़ोर से हँस पड़ी ।

"क्या हुआ ?" यामिनी ने उत्सुकता से पूछा था |

“ मैडम ! -------। ``“ वह फिर हंसने लगी

यामिनी ने उसकी बात बीच में काट कर कहा, "मैडम मत कहो, तुम्हारी भाषा में नानी को क्या कहते हैं ?"

उसने बताया कि नानी को 'लोला' और नाना को ‘लोलो'!

यामिनी ने कहा ;" अब से तुम मुझे लोला कहना "। वह सहर्ष मान गयी |

"अब बताओ दुबई के बारे में | ”

उसने बताया कि वो किसी अमीर के घर काम करती थी जहाँ तीस मेड्स और भी थीं |

" बाप रे बाप! तीस मेड्स ! " यामिनी के आश्चर्य का ठिकाना न था | ”

"वहाँ क्या- क्या काम करती थी ?”

“ बस, वहाँ मैडम लोगों की देखभाल, उनके लिए चाय आदि सर्व करना, मेहमानों की देख भाल करना | पैसा बहुत था, अपना कमरा था, टी वी था | खाना बनाने वाले अलग होते थे, कोई लड़की किसी मर्द से बात नहीं कर सकती थी | साहब की चार मेमसाहब थीं, सबके अलग-अलग बँगले थे और आपस में सारी औरतों, सासों के बीच खूब लड़ाई होती --” इसीलिए वो हँस रही थी |

“ तो वहाँ से क्यों आ गई ? “

“ बहुत दूर था | "

सिंगापुर से उसका घर पास पड़ता था और वैसे भी वहाँ किले जैसे घर की खिड़कियों में भारी पर्दे पड़े रहते थे | पर्दा हटा कर औरतें बाहर झाँक भी नहीं सकतीं थीं।

यामिनी और उसके पति ने अनुभा को थोड़ा समय देना उचित समझा था और बिटिया के स्वस्थ होने तक, वातावरण को हल्का -फुल्का करने की चेष्टा में वे बात -बे बात पर सृष्टि-वृष्टि के साथ ज़बरदस्ती हँसते रहते | वृष्टि अभी बहुत छोटी थी, माँ को रोते देख उससे दूर भाग खड़ी होती, सृष्टि उम्र से पहले बुड्ढी अम्मा बन गई थी वो माँ के आँसू पोंछती, उसके गालों पर ढेर सारा प्यार बरसाती |

यामिनी नोरा से उसके जीवन की दास्ताँ सुन लेती थी | एक बार उसने नोरा से पूछा, “ यू डोंट टॉक अबाउट योर हस्बैंड ? व्हाट इस हिज़ नेम ?”

" हेट हज़बेंड ”। उसकी आँखों से गर्म-गर्म लावा धधक रहा था, यामिनी स्तब्ध रह गयी |वह प्यार से अपने `दुर्लभ पति `की तरफ़ देखने लगी की क्या कोई पति इतना बुरा हो सकता है कि उससे घृणा होने लगे ?

उत्तेजित नोरा का शरीर काँप रहा था, “ आई डिवोर्स हिम !” उसका एक एक शब्द मानो ज़हरीला तीर था जो वो उस हेट हज़बेंड पर दाग़ रही थी |

पहले माँ फिर उसका पति, माँ तो चलो बीमार थी पर पति जिससे वो इतनी घृणा करती थी कि उसने उसका नाम ‘हेट-हजबैंड ‘ रख दिया था |

तीन दिन बीत रहे थे, अनुभा थोड़ा नार्मल हुई तब एक दिन जब बच्चों को नोरा बाहर खिलाने ले गयी थी, तब उन्होंने पूछा, ” क्या हुआ जो इतना एक्सट्रीम स्टेप ले लिया तूने ?वो तो अच्छा हुया नोरा उसे अस्पताल नहीं ले गई वरना सिंगापुर के कायदे क़ानून के चलते पूरा घर उनकी गिरफ़्त में आ जाता | ``

अनु कुछ नहीं बोली छत की और ताकने लगी |

उन दिनों दामाद ऑफ़िस के काम से यूरोप गए हुए थे |वे अक्सर बाहर देशों में जाते रहते थे | बहुत बार तो महीने के बीस दिन उनका चक्कर अमेरिका, जापान और यूरोप लगता रहता था | परन्तु उस दिन अनुभा की आँखों में शून्य भरा था वो ऎसी लग रही थी जैसे कोई मकड़ी जाल में फँस गई हो और वो उसमें तड़प रही हो, बहुत पूछने पर उसने फीके स्वर व सपाट शब्दों में कहा, “ ऑफ़िस के काम से नहीं पापा, वो तो वहाँ अपनी किसी गर्ल फ़्रेन्ड के साथ रह रहे हैं |’’ कातर सी दृष्टि से बिटिया बाप को देख रही थी |

“ अब मैं कहाँ जाऊँ ? क्या करूँ ?”-------“ अब मैं कहाँ जाऊँ ? क्या करूँ ?”

‘हाथों के तोते उड़ जाना ’ शायद इसी स्थिति को कहते हैं | गहरा अन्धेरा है, कोहरा ही कोहरा है | उस गहन कोहरे में तीन निरीह जानें, बाहें पसारे मदद माँग रही हैं | मदद भी किस से ? एक रिटायर्ड पैंसठ वर्षीय बाप से जो पेंशन पर अपना व अपनी पत्नी का गुज़ारा करता है | बेटी को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया और किसी और के पुत्र रत्न ने उसे रोगी बना दिया |

एक वीभत्व सी हँसी हँसता हुआ ज़ोर-ज़ोर से उसका बाप हँसने लगा, "ठीक ही तो कहते हैं लोग, बेटी के जन्म पर रोते हैं लोग !”

कुसूर क्या बेटी का था ?नहीं | सज़ा किसने भोगी ? ये कौन सी अदालत है ? कौनसा न्याय है ? जहाँ बिना लगाम का बेटा 'हीरा, ’ और संवेदन शील बेटी, 'कोयला ?' चिल्लाते रहो ; “सत्यमेव –जयते” जैसे प्रोग्राम टी। वी। पर प्रसारित करते रहो | लेख लिख- लिख कर छापते रहो | सत्य ये ही है | बाक़ी सब झूठ !!

चाहे जो भी हो अब वे किसी हालत अपनी बिटिया और दोनों नातिनों को अब वहां नहीं छोड़ेंगे | वैसे भी दामिनी के घर जाकर निशी की आत्महत्या से जैसे सारा परिवार सहम गया है। ज़िंदगी की वीथियों पर कब कौन से दुःख नकाब ओढ़े, छिपे खड़े हैं ? उस स्थान पर पहुंचो तो ---वे नकाब उलट कर सामने आ जायें।

फ़ौज की नौकरी करते-करते कर्नल हैरी को जब मौत से डर नहीं लगा तो सामने पड़ा चैलेन्ज उनके लिए कठिन अवश्य था परन्तु पार न किया जा सके ऐसा नहीं !उन्हें बहुत पहले अनुभा को इस दलदल भरी ब्याहता जिन्दगी से निकाल लेना चाहिए था, परन्तु कहते हैं न, 'जब जागो तब सवेरा ‘ ! यदि नोरा अपने बच्चों के लिए दूसरे देशों में घाट -घाट का पानी पी सकती है तो अनुभा क्यों नहीं अपने देश लौटकर नया जीवन शुरू कर सकती है ??

यामिनी ने अहमदबाद दामिनी के घर से लौटकरअपनी बेटी अनुभा को सिंगापुर फ़ोन करके पूर्ण सहयोग का वायदा किया, उसकी टूटी ज़िंदगी को संवारने का पक्का इरादा करके उसे सिंगापुर से वापिस लाने का फ़ैसला कर लिया | आगे का सफ़र आसान तो बिलकुल नहीं था सबसे पहले तो वे उसे धीरे धीरे मानसिक रूप से मज़बूत बनाएंगे जिससे वो पुनः अपने पैरो पर खड़ी हो सके।

हैरी ने धीमे से पूछा, ``क्या ये सब इतना आसान होगा ?``

`` ज़िंदगी में इतना आसान कुछ भी नहीं है लेकिन क्यों जीये हमारी बेटी एक ज़लालत भरी ज़िंदगी ? ``

तब तक उन दोनों को अपनी शरीर रूपी नौका में, अपने दिमाग़ में मोटर लगवानी पड़ेगी और उसे मोटर बोट में बदलकर फिर उसे सशक्त ज़हाज में परिवर्तित करना पडेगा । रिटायर्ड कर्नल ने एक बार फिर अपना पोर्टर्फ़ोलियो, कागज़ संभाले और फिर मोर्चा संभालने को तत्पर हो गए | किसी कॉरपोरेट में उन्हें सिक्युरिटी ऑफ़िसर के पद के लिए आवेदन देना होगा।

अनुभा की इस कदम से ज़िंदगी संवर जायेगी ? उसका दिमाग़ मीशा में भी उलझा हुआ था। क्या कर रहीं होंगी दीदी व मीशा ?

उसने दामिनी दीदी का नंबर लगा ही लिया, ``दीदी !नमस्ते। कैसीं हैं आप ?``

``मैं ठीक हूँ। उम्र हो गई है इसलिए तीन चार दिन थकान उतारकर अब फ़्रेश हुईं हूँ। ``

``आपके कारण हम सब एक जगह मिल लिए, थैंक यू वेरी मच। ``

``मेरा घर भी तो गुलज़ार हो गया। ``

``दीदी !मीशा के विषय में क्या सोचा है ?``

``ऐसा है यामिनी ! सावेरी व मैं उसे कल्चरल प्रोग्राम में ले जाकर, फ़िल्म दिखाकर व रेस्टोरेंट में ले जाकर थक गए हैं। उसका कुछ मूड बदलता है लेकिन फिर वह पहली जैसी गुमसुम हो जाती है इसलिए मैंने सोचा है उसे मैं अपनी दोस्त वन्दिता को दिखाऊं। ``

``ओ --दीदी वही वन्दिता जो सायकेट्रिस्ट के साथ फ़ेमस कत्थक डांसर है ?``

``हाँ, वही. तुम उसे कैसे जानती हो ?``

``मैं आपके साथ एक बार उसका शो देखने गई थी। ``

``पता नहीं वह मीशा को देखकर वह क्या सलाह दे ?``दामिनी की चिंतित आवाज़ जैसे मोबाइल से यामिनी के दिल में जा धंसी।

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मधु सोसी गुप्ता

ई-मेल -- ---sosimadhu@gmail.com

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