सर्व गुण संपन्न, सर्व शक्तिवान श्री श्री 108 श्री चोर जी महाराज !
चरण युगल में अकिंचन शौकीलाल का साष्टांग दण्डवत।
मैंने कई कई रातें जाग कर, अपने नालेज को ठोक-पीट कर , सब तरह से आश्वस्त होने के बाद आप के श्री चरणों में में यह खत भेज रहा हूँ।
इसे खत नहीं दबे-कुचले, निचुड़े, अपनो से चोट खाये एक निरीह प्राणी का आर्तनाद समझिए। समझिए कि बेकारी के 'ग्राह' के जबड़े में शौकीलाल रूपी 'गज' उद्धार के लिए आप को पुकार रहा है। समझिए कि बाजारीकरण की होलिका जल रहे आम जनता रूपी प्रह्लाद आप का आह्वान कर रहा है। समझिए कि यह खत नहीं, आप के निर्भयारण्य में विचरने के लिए एक छौने की गुहार है जिसे दबोचने के लिए खूंखार भेड़िये जबड़ा फाड़ कर खड़े हैं।
मैं भी अजीब अहमक हूँ। फरियाद पर फरियाद किये जा रहा हूं लेकिन अबतक आप को अपना परिचय नहीं दिया। मुझे पक्का भरोसा है कि आप मुझे पहचानते ही शीघ्र अपनी सेवा में बुला लेंगे।
हे चोर जी, जरा अपना स्मरण कपाट खोलिये ! याद कीजिए भाद्र महीने की उस काली रात को , बिजली की कड़क, आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल को, रुक रुक कर होती बारिश को, तेज हवा के झोंके को। ऐसे ही भीगे मौसम में टूटी छतरी से किसी तरह बचते-बचाते कादो-कीच से अंटी पड़ी, फिसलन भरी पगडंडी पर लड़खड़ाता , हांफता-कांपता निरीह प्राणी रेलवे यार्ड के बीच से गुजर रहा था। याद कीजिए चोर जी, वह मैं ही था।
यार्ड के बीच से गुजरते वक्त लोहे के उठा-पटक की आवाज सुन मेरे कान चौकन्ने हुए थे तभी बिजली तड़की थी। क्षणिक रोशनी में कुछ लोगों को लोहा ढोते मैंने देखा था। माजरा क्या है अभी मैं समझ पाता कि अचानक आप के आदमी प्रेत की तरह मुझे घेर कर खड़े हो गए थे।
दोहरे हाड़-काठ के काले कलूटे आप के आदमी काले कपड़े से सिर और मुँह ढके किसी यमदूत सा दिख रहे थे। मेरी घिघ्घी बंध गई थी उस समय । चोर के बारे में मैंने केवल सुना था। अखबारों में पढ़ा था। लेकिन प्रथम दर्शन का रोमांचकारी अनुभव प्राप्त करने का अवसर उसी रोज मिला था मुझे।
वे मुस्टंडे मुझे मार ही डालते लेकिन आप अचानक किसी फ़रिश्ते की तरह प्रकट हो गए थे और मेरी जान बचा ली थी। आप ने मुझे कठोर आवाज में आदेश दिया था कि मैं खामोश रहूँ और दूसरों की तरह झाड़ियों के बीच खड़े ट्रकों में लोहा लोड करता रहूँ।
मरता क्या नहीं करता। पौ फटने तक मैं भूखे-प्यासे मैं लोहा ढोता रहा। किसी भी तरह जान बचानी थी। मेरी तरह कई दूसरे भी आप के चंगुल में फंस कर लोहा ढो रहे थे। उनमें वह ठेकेदार भी था जिसके अधीन मैं काम करता था। उस कम्पनी का सीनियर मैनेजर भी था जो गाहे-बेगाहे मुझपर रौब गाँठा करता था। उन्हें ऐसी हालत में देख मेरी थकान तब जाती रही थी।
सुबह मुझे मुक्त करते समय आप ने फिर मुझे धमकी दी थी कि मैं अपना मुँह बंद रखूँगा वरना........। आप ने सौ का नोट भी मेरी तरफ बढ़ाया था। शायद भिखारियों की सी मेरी दशा पर आप को तरस आ गया होगा। वैसे भी ईमानदारी अगर कहीं बची है तो आप जैसे चोरों के पास ही बची है। उस समय मुझ पर आदर्श और ईमानदारी का भूत सवार था इसलिए नोट लिये बिना भाग निकला था।
सच कहता हूँ चोर जी, उस रात का नजारा देखकर आप के पावर का क़ायल हो गया हूँ। उस रात आप के भय से अच्छे अच्छो की पैंट ढिली हो रही थी। मैंने ऐसे अमीरजादों को लोहा ढोते देखा था जो एक ग्लास पानी भी खुद से लेकर नहीं पीते। यार्ड के सुरक्षा अधिकारी सहित सारे सुरक्षा गार्डों को आप के कदमों में बिछा देखकर मुझे घोर आश्चर्य हुआ था।
आप की अथाह शक्ति का अंदाजा मुझे उस रात को ही हो गया था लेकिन पुख्ता प्रमाण उस समय मिला जब सुबह रात वाली घटना की रपट लिखवाने की मंशा से मैं थाना में ताक-झांक कर रहा था। उस रोज खिड़की से मैंने आप को पुलिस इंस्पेक्टर की कुर्सी पर बैठा देखा था तो सच मानिये एक क्षण के लिए मेरे होश उड़ गये थे। जिस तरह से पुलिस इंस्पेक्टर झुक कर आप को चाय सर्व कर रहा था, उसे देखकर मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि यह वही इंस्पेक्टर है जो बात-बेबात निरीह लोगों की चमड़ी उधेड़ता रहता था। सच, आप महाबली हैं।
उसदिन मैं दबे पाँव वापस लौट आया था और हमेशा के लिए अपना मुँह बंद कर लिया था।
#मान्यवर चोर जी, अब तो इस खत के लेखक को आप भली भाँति पहचान गए होंगे। अब मुझे अपनी सेवा में हाजिर होने का एक अवसर अवश्य प्रदान करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।
आप के पास पत्र लिखने की हिम्मत कदापि नहीं होती लेकिन उस रात मुझे मुक्त करते हुए आप ने कहा था- आदर्श का चोला जब उतार फेको और मेरी जरूरत महसूस करो तो मुझे याद करना। आज जरूरत महसूस हुई इसलिए आप को याद कर रहा हूँ।
#हे चोर महाराज, पत्र-पत्रिकाओं में पढ़कर, अखबारों में बाँच कर , दूर दर्शन में झाँक कर मैं ज्यों ज्यों आप के कारनामों से अवगत होता गया, मेरे सामने आप की महानता का 'पर्दाफाश ' होता गया। (जारी है)
@कृष्ण मनु
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