udhde zakhm - 6 in Hindi Love Stories by Junaid Chaudhary books and stories PDF | उधड़े ज़ख्म - 6

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उधड़े ज़ख्म - 6


जब मुझे पता लगा सुम्मी जल गई है, में शौक़ हो गया,मेरे मुँह से फिर अल्फ़ाज़ ही न निकले,फिर अम्मी ने कहना शुरू करा,खुद पर आग लगा के ये दूसरी मंजिल में चुप चाप बैठी रही,न चीखी न चिल्लाई,न जाने कैसा सदमा लगा था इसे के इसका आधा जिस्म जल गया लेकिन ये ना चीखी,

मोहल्ले वालों ने जब धुंआ निकलते देखा घर से तो कुंडी बजायी,तब पता लगा के इसने आग लगा ली है, गुलवेज़ (सुम्मी का छोटा भाई) ने कॉल कर के तेरे पापा को बताया तो वो मुझे ले के भागे भागे इसके घर गए,वहाँ जाकर देखा तो भाई साहब इसे चादर में लपेटे बैठे थे,तेरे पापा फ़ौरन सिविल लाइन हॉस्पिटल ले आये,ताकि सुम्मी ओर उसके वालिद किसी कानूनी पचड़े में न फंसे।


मैंने कहा पापा कहां है अब? अम्मी बोली वो ओर तेरे मामा सुम्मी के घर गए हुए है,वो वहाँ जाकर हादसे का मंज़र तैयार कर रहे है,ताकि ये आत्महत्या न लगे,बल्कि हादसा लगे,मैंने सुम्मी को समझा दिया है कि कोई पूछे तो कहे कि रोटी बनाते में स्टोव फट गया और में जल गई,मेरा दिमाग दर्द के मारे फटने को तैयार था,तभी नर्स आयी और अम्मी के हाथ में दो टयूब पकड़ाते हुए बोली ये उस लड़की के जले हुए ज़ख्मो पर लगा दो,कुछ आराम मिल जायेगा,

अम्मी टयूब लेकर पर्दे के पीछे चली गयी।

में वही बाहर पड़ी टेबल पर गिर गया और अपने हाथों में अपना मुह रख के ज़ारो क़तार बस रोये जा रहा था,

जब कुछ देर में रो लिया तो अब सिर्फ सिसकियां बाहर निकल रही थी,आंखे भी पानी बहाते बहाते थक चुकी थी,तभी अम्मी ने मेरे कंधे पर हाथ रख के मुझसे कहा,भइये जल्दी से अंदर चल,दो अधिकारी बड़ी बदतमीज़ी कर रहे हैं,उन्होंने सुम्मी के जिस्म से आकर चादर उतार दी, ओर फिर उस से कह रहे हैं क्यो री लड़की तूने आत्महत्या की कोशिश क्यो की ?

मेंने कहा जवान बच्ची के जिस्म से ऐसे चादर उतारते आपको शर्म नहीं आ रही,तो कहते हैं इसे शर्म नही आई ऐसा काम करते हुये।


अम्मी की बात सुन कर जितना भी दर्द था गुस्से में बदल गया, मेने कहा इसकी माँ का हरामी मारू,में भागता हुआ वार्ड में गया ओर जाकर अधिकारी का गला पकड़ कर उसे दीवार में घुसेड़ दिया, जब मैने उसका गले पकड़े हुए उसकी तरफ देखा तो वो मोटा तगड़ा काला कुत्ते जैसी शक्ल वाला हराम खाऊ अधिकारी था,और अचानक से हुए हमले की हेबत उसपर तारी थी,मैने चीख कर कहा साले तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी सुम्मी के ऊपर से चादर उतारने की, तेरी नस्लें वीरान कर दूंगा में साले, तेरा हश्र खराब कर दूंगा में, चीख पुकार सुनकर वार्ड के चारो वार्डबॉय आ गये,उस दिन मुझ जैसे पतले दुबले 55 किलो के लड़के को संभालने में चार 6फुटे लड़को के पसीनें छूट गए,वो अधिकारी बोला साले तेरा कैरियर बर्बाद कर दूंगा में, तू जानता नही है किसपर हाथ उठाया है तूने,मेंने कहा तू जानता है साले मुझे में किसका लड़का हूं किसकी बहु पर हाथ डाला है तूने।

अधिकारी -ज़िन्दगी भर जेल में सड़ेगा तू।

मैं- अबे साले तुझे में जिंदा छोडूंगा तब तो मुझे जेल करायेगा तू, आज शाम तक तेरा क़त्ल कर दूंगा हरामी के बच्चे, उस अधिकारी और मेरे बीच गुत्थम गुत्था चल ही रही थी कि तभी पापा आ गए,उन्होंने स्थिति को समझते हुए मुझे चुप कराया,और दोनों अधिकारियों को समझाते हुए नर्स रूम में ले गए,इधर अस्पताल के सारे मरीज़ों के तीमारदारों ने मेरे चारो और घेरा बना लिया और कहने लगे इन अधिकारियों को ज़रा भी शर्म नहीं,इन्हें किसी के दर्द से फ़र्क़ नही पड़ता,


क्योंकि पापा का रसूख़ शहर में बहुत था इसलिये मुझपर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई।

इधर मामा मेरे पास बैठ गए,और मेरे कंधे पर हाथ रख के समझाने लगे के ये मसला सुसाइड केस का है,वेसे तो मैने ओर तेरे पापा ने घर जाकर सब सेट कर दिया है,स्टोव रख कर तेल बिखेर दिया है, कुछ रोटियां पका कर रख दी हैं, कुछ पेड़े रख दिये है,आटा बिखेर कर पूरा हादसे का मंज़र बना दिया है,बस तू सुम्मी को समझा देना के क़ुबूल न करे के उसने सुसाइड की कोशिश की,इतने तेरे पापा अधिकारियों को समझा रहे है,इतने तू जाकर सुम्मी को समझा आ।

में उधर जाने के लिए उठा के देखा अम्मी मेरी ही तरफ आ रही थी,जब अम्मी पास आई तो मैने पूछा केसी है सुम्मी,ट्यूब लगा दिया था आपने पूरा?उसके घाव कितने गहरे हैं ?

अम्मी ने बताया उसके जिस्म की ऊपरी खाल सब जल चुकी है,डॉ० ने उसके सीने पर छोटी सी हथौड़ी मारी तो कोयले जैसी राख झड़ रही थी,अम्मी रोते हुए बोली उसकी अम्मी से तो देखा ही नही गया।

मेंने बड़े भारी भरे मन से रूम में जाकर देखा सुम्मी आँखे मूंदे लेटी हुई थी,में वही पास जाकर बेंच पर बैठ गया,सुम्मी कि अम्मी मुझे देख कर बेंच से उठ कर चली गई,सुम्मी ने आंखे खोली मेरी तरफ देखा,मेंने कहा तुमने ये सब क्यो किया सुम्मी,कुछ वक़्त तो दिया होता,सब ठीक हो जाता, तुम तो बड़ी हिम्मत वाली ओर दीनदार हो, फिर तुमने ऐसा कदम क्यो उठाया?

सुम्मी- मर्ज़ मोहब्बत ओर मोत न होती तो इंसान ने कहाँ काबू में आना था।

इस बात का मेरे पास कोई जवाब न था,तो मेंने उसे मामा वाली बात पूरी तरह समझा दी, इतने में अधिकारी लोग पापा के साथ फिर से आ गए, उन्होंने गुस्से की नज़र से मेरी तरफ देखा और मैने उसकी तरफ,फिर उस अधिकारी ने सुम्मी से पूछा क्या तुमने सुसाइड एटेम्पट की कोशिश की ? सुम्मी ने न में गर्दन हिला दी,

फिर उसने पूछा क्या किसी ने तुमपर जानलेवा हमला किया ?या उकसाया तुम्हे?

सुम्मी ने फिर न में गर्दन हिला दी,उसने पूछा फिर तुम जली कैसे? सुम्मी ने कहा रोटी बनाते वक्त स्टोव में आग लग गई थी।


अधिकारी ने पापा की तरफ देख के कहा हाजी जी पता तो हमें भी है के स्टोव फट के आग लगी है या लगाई गई है,स्टोव फटता तो सामने का पूरा जिस्म जलता चेहरे समेद,पर इस लड़की का चेहरा बच गया है और बाकी जिस्म जल गया है,उसने कहा आप मुझे मोके पर लेकर चलें,और इतना कह कर फिर वो चले गये।

इधर डॉक्टर ड्रिप लेकर खड़ी थी,उन्होंने हाथ मे ड्रिप लगाने के लिए नस ढूंढ़ी ओर उसमें कैनुला डाला,लेकिन सुम्मी के हाथ इतने जल चुके थे कि कैनुला उसमे काम नही कर रहा था,दोनों हाथों में 3/4 बार सुइयां घुसेड़ने के बाद भी जब उन्हें कामयाबी नही मिली तो उन्होंने सुम्मी के पैर में कैनुला डाल कर ड्रिप शुरू की,सुम्मी के हाथ दर्द कर रहे थे,मेने उसके हाथ को अपने हाथों में थाम लिया,वो फूल से नाज़ुक हाथ जल के सख्त पड़ गए थे।और उनमें पड़े छालो में से खून छिनक रहा था,उसके हाथ को हाथो में लेते ही मुझे वो मंज़र याद आया जब सबसे पहले उसके मुलायम हाथो को मैने छुआ था,वो पल याद करते ही मेरी आँखों से आंसू टपक कर सुम्मी के हाथ पर गिर गया,सुम्मी ने मुझसे कहा अब ये हाथ खूबसूरत नही रहे जुनैद,और सिर्फ हाथ ही नही ये जिस्म भी खूबसूरत नही रहा।

मेंने कहा मुझे तुम्हारी खूबसूरती से प्यार नही सुम्मी,तुमसे प्यार है तुम्हारे मिज़ाज से तुम्हारे अख़लाक़ से तुम्हारी सोच से तुम्हारे जज़्बात से तुम्हारी रूह से प्यार है,तुम वो लड़की हो जिसे देख कर धूप का इक टुकड़ा बादल हो सकता है,तुम वो हो जिसे देख कर चाँद पूरा पागल हो सकता है।


फिर में रोते हुए चेहरे पर छोटी सी मुस्कान लाया और कहा ये प्यार मेरी दाढ़ी की तरह है जो बस बढ़ता ही जायगा,कभी घटेगा नही,इसपर सुम्मी ने कहा औरत के लिए ज़रूरी है कि वो गुनाह करने से पहले खुद पर तरस ज़रूर खाये.. क्योंकि गुनाह करने वाली औरत को..तोबा के बाद बस अल्लाह मुआफ़ करता है,ये ज़माना ये मुआशरा कभी मुआफ़ नही करता।

मेंने कहा आग लगे इस दुनिया को,भाड़ में झोंको ज़माने को,मुझे बस तुमसे मोहब्बत है,मुझे फ़र्क़ नही पड़ता कोन किसके बारे में क्या सोचता है।

सुम्मी-अल्लाह ता'आला मुझे माफ़ तो कर देंगे न जुनैद? में मर गयी तो जन्नत में जाऊंगी ना?

मैं- तुम ऐसी बातें क्यों करती हो सुम्मी,अभी हम दोनों को बहुत जीना है ,दुनिया के सारे रंग देखने है,ओर जब हम मरेंगे तो साथ मरेंगे,ओर जन्नत में भी साथ ही जायँगे इन्शा अल्लाह।

सुम्मी- मरना जीना भी शायद मजबूरी की दो लहरे हैं

कुछ सोच के मरना चाहा था कुछ सोच के जीना चाहा है।


ये शेर पढ़ने के बाद
सुम्मी ने मुझसे कहा मुझे प्यास लगी है जुनैद।


मेंने कहा रुको में अभी पानी मंगवाता हूं,मेने नर्स को आवाज़ दी ओर कहा इन्हें पानी लाकर दे दीजिए,नर्स ने कहा इन्हें पानी मत पिलाना, नही तो इनकी जान पर बन आयेगी,

मेंने कहा पर क्यों? नर्स ने कहा आपको इतना भी नही पता करंट लगे हुए ओर बर्न हुये पेशेंट को पानी नही देते, मेंने कहा पर इन्हें प्यास लगी है,क्या करा जाए?

नर्स ने कहा कपड़ा गीला कर के बस इनके होंठ गीले कर दो।

ऐसी बेबसी दुश्मन को भी नसीब न हो, चाहत ऐसी के सारे जहां का पानी सुम्मी पर न्योछावर कर दूं,पहुँच इतनी के सुम्मी को झट से पेट भर पानी पिला दूं और मजबूर इतना के उसे एक घूंट पानी भी नही दे सकता,लाचार होकर सुम्मी का हाथ पकड़े बैठा रहा।

सुम्मी के हाथ से निकलने वाले खून और पानी से मेरा हाथ गीला हो चुका था,फिर मुझे ख्याल आया कि शायद उसे मेरे हाथ पकड़ने की वजह से दर्द महसूस हो रहा होगा, मेने उसका हाथ होले से बेड पर रख दिया,और अपने हाथ में लगे हुए खून और पीप को में भरे हुए दिल से देखने लगा,कभी में अपने हाथ को देखता कभी सुम्मी के हाथ को,उसके हाथ में वंडर लैंड वाली अंघुठी अभी भी थी,जो जलने की वजह से काली पड़ चुकी थी,उस अंघुठी को देख कर मेरी आँखों से आंसू टप टप कर बहने लगे।


उसने मेरी तरफ गर्दन कि मेने अपनी आंखों से आंसू साफ किये,सुम्मी कहने लगी जुनैद तुम मत रौ,में तुम्हारे रोने की वजह नही बनना चाहती,

मैंने कहा सुम्मी मेरी आँखों से आंसू ये सोच कर बह रहे है जब में कारखाने में काम करता और मेरी उंगलिया हल्की बहुत जल जाती थी तो उसकी जलन की वजह से मेरी सिसकी निकल जाती थी,और तुम पूरी जल गई लेकिन एक उफ तक न करा,तुम्हारे घर वालों तक को पता नही लगा कि तुम ऊपर बैठी जल रही हो,इतना पक्का दिल कहाँ से लाई सुम्मी ?


सुम्मी- जुनैद मोहब्बत मोहब्बत भी है और आज़ीयत भी है,बाज़ औक़ात इंसान मोहब्बत को पाकर आज़ियत का शिकार हो जाता है ओर बाज़ औक़ात मोहब्बत न मिलने से भी आज़ियत का शिकार हो जाता है, ला हासिल मोहब्बत एक इंसान को सारी जिंदगी के लिए आज़ियत पसन्द बना देती है...

जिस तरह इंसान का पूरा जिस्म ज़ख्मी हो ओर सब जख्मो से खून रिसता रहता हो इंसान उस हाल में जिस आज़ियत का शिकार होता है, ला हासिल मोहब्बत भी इसी तरह इंसान को आज़ियत ओर तकलीफ में मुब्तला रखती है...

इस तकलीफ का कोई अंत भी तो नही,न किसी की तस्सल्ली न किसी का दिलासा,फिर कुछ ग़म ज़िन्दगी में ऐसे होते हैं जो जिस्मानी तकलीफों से बहुत बड़े होते हैं..

मेरे दिल में जो आग लगी थी उसे बुझाने के लिए मुझे अपने जिस्म में आग लगाना बहुत आसान लगा,और यकीन मानो जुनैद दिल की आग इस दुनिया की आग से बहुत ज़्यादा गर्म है,और मुझे लगता है मेरे नसीब में सिवाए ज़लालत ओर जलने के और कुछ नही लिखा,पहले दिल की जलन,फिर जिस्म की जलन फिर गेर मेहरम के हाथों इज़्ज़त की ज़लालत की जलन, मुझे जिस हालत में देखने का हक़ मेरे दिल ने सिर्फ तुम्हे दिया था,उसे न जाने किन किन गंदी आंखों ने देखा,और जुनैद में इस हालत में मर गई तो जहन्नम की जलन।


मैंने कहा चुप करो तुम अपनी बकवास,तुम दुनिया में भी मेरी जन्नत हो और मरने के बाद भी मेरे साथ जन्नत में जाओगी,अब उल्टा सीधा मत सोचो तुम्हें और प्यास लगेगी तुम बस आराम करो,में तुम्हारा मुहाफ़िज़ बन कर यही बाहर बैठा हुं, में इतना कह कर वहाँ से उठ कर बाहर आ गया,में जानता था में वहा बैठा रहा तो वो मुझसे बातें करती रहेगी और फिर उसे ओर ज़्यादा प्यास लगेगी,बाहर बैठ कर में सोचने लगा आखिर ऐसी क्या बात थी जो सुम्मी को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ गया,सोच का दरिया बड़ा गहरा होता है,इस दरिया में बाहर में डूबा हुआ था और अंदर लेटी सुम्मी,सोचते सोचते मेरा ध्यान तब टूटा जब पापा ने कहा नही यूसुफ भाई आप माफी मत मांगिये,मेंने गर्दन घुमा कर देखा तो मेरे ससुर जी पापा के सामने हाथ जोड़े खड़े थे,और पापा उनके हाथों को थामे खड़े थे,ससुर जी कह रहे थे आज आप वक़्त पर आकर मेरे परिवार को न सम्भालते तो न जाने क्या हो जाता,मेरी तो समझ ही नही आ रहा था में सुम्मी को लेकर कहा जाऊ क्या करूँ क्या न करू।


(कोम बिरादरी की लाज निभाते हम जैसे जज़्बाती लोग

अक्सर धोका खा जाते हैं हम जैसे देहाती लोग।)


पापा ने कहा में समझ सकता हूं,जैसे हालात अचानक से आप पर आए ऐसे हालातों में घरवालो का ज़ेहन काम नही करता है,ऐसे वक्त में बाहर वाले ही गाड़ी खींच कर ले जाते है,और आप फिक्र मत कीजिए,सुम्मी जल्दी ठीक हो जायेगी इन्शा अल्लाह।


इस पर मैंने कहा यहाँ सरकारी अस्पताल मे डाल रखा है आपने,ऐसे कैसे ठीक हो जायेगी,मुरादाबाद में ओर भी अच्छे अच्छे हॉस्पिटल है,वहाँ लेकर क्यों नही चलते,यहां हर कुत्ते जैसी शक्ल वाला आदमी आकर सुम्मी के साथ बदतमीज़ी कर रहा है,पापा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और समझाया गुस्से को काबू में रख बेटा,जिस अधिकारी के ऊपर तूने हाथ उठाया था उसे बमुश्किल मेने समझाया है,तेरे बड़े भाई के वकील सर की बात उस से कराई ओर उसे कानूनी करवाई में फसने का डर दिखाया तब जाकर वो शांत हुआ,अभी वो जाकर तेरे खिलाफ रिपोर्ट लिखवा देता तो हम तुझे देखते या सुम्मी को देखते? और रही बात इलाज की तो यहाँ की सी एम ओ से मैने बात कर ली है,सारे स्पेशल डॉ उन्होंने सुम्मी के इलाज के लिए लगा दिए हैं,और फिर जबकी ऐसे वक्त में सुम्मी को तेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तो क्या तू जेल में जाकर बैठ जायगा ? मैंने नही में गर्दन हिलाई ओर फिर सोचा जब सुम्मी को मेरी ज़रूरत है तो में बाहर क्यों खड़ा हूं,और में फिर अंदर जाकर बैठ गया।