The Author Sarvesh Saxena Follow Current Read भूख... By Sarvesh Saxena Hindi Motivational Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Trembling Shadows - 20 Trembling Shadows A romantic, psychological thriller Kotra S... Was it GHOST? Was it GHOST?A torch has enough light to make them reach to... HAPPINESS - 106 Dilbar He is a fool who does not understand the gestures of... Finding only You - 2 (yesterday, We read that Nivaan tell Rivaj that our work i... Trembling Shadows - 19 Trembling Shadows A romantic, psychological thriller Kotra S... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share भूख... (20) 4.6k 15.6k 3 आज मंगलवार है | मैं और श्याम चौराहे के पास वाले हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ा के सीधा श्याम की बुआ जी को लेने बस अड्डे पहुंच गए, बस लेट थी, इसीलिए हमने वहीँ बैठकर बुआ जी की बस का इंतजार करना सही समझा | मुझे अक्सर भीड़ भाड़ वाली जगहों पे जाना बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन बात दोस्त की थी तो मैं बैठ गया | हम दोनों बस अड्डे के बाहर बात कर रहे थे और श्याम तो हर आने जाने वाली सवारी को देख के कोई ना कोई बात उसके बारे मे बताता |हमे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि चार पांच बच्चे आकर हाथ फैलाने लगे तो कोई पैर छूने लगा और भीख मांगने लगा,श्याम सभी को दूर भगाने लगा और बोला जाओ पैसे नहीं हैं मेरे पास, तो मैंने श्याम को इशारा किया कि बच्चों को प्रसाद बांट दे | श्याम सभी बच्चों को प्रसाद बांटने लगा, प्रसाद बांटते हुए श्याम और मैंने देखा कि दूर एक बारह साल के आसपास का बच्चा उदास बैठा हमारी ओर देख रहा था | मैंने बच्चे को बुलाकर प्रसाद देना चाहा तो श्याम बोला, "अरे ये तो मुसलमान है इसीलिए यह प्रसाद लेने नहीं आ रहा था और दूर से देख रहा था" कई बार हम लोगों ने यह देखा था कि मुस्लिम बच्चे प्रसाद नहीं लेते | मैंने श्याम को चुप रहने को कहा और बच्चे से पूछा, "प्रसाद लोगे क्या"? बच्चे ने चुप रहकर ही सर हिला कर हामी भर दी, बच्चे को मैंने एक लड्डू दे दिया उसने लड्डू ले तो लिया पर खुद देर तक खड़ा गौर से लड्डू देखता रहा और लड्डू ले कर जाने लगा तो श्याम बोला, "देखना वह लड्डू खाएगा नहीं"| मुझे लगा कि शायद उसने हमारे डर से लड्डू ले लिया तभी वो बच्चा हमारे पास आया और बोला, " भईया एक और लड्डू दे दो, अम्मी के लिए, घर में कल से कुछ भी खाने को नहीं है" | मैंने बच्चे को दो लड्डू और दिए, हम कुछ कहते इससे पहले बच्चा दौड़कर चला गया | मैं और श्याम निशब्द रह गए और सोचते रहे क्या कोई भी धर्म, जाति, रूप, रंग, लिंग, भूख और गरीबी से बड़ा है | सच ही कहा है किसी ने गरीबी ही रिश्तो की अहमियत सिखाती है और उन्हें जोड़ कर रखती है और भूख सभी भेदभाव तोड़ती है, भूख से बड़ी दुनिया मे और कोई सच्चाई नहीं | कोई भी धर्म भूख से बड़ा नहीं क्यूंकि भूख के आगे सब धर्म, जाति दम तोड़ देते हैं | तभी हमे बुआ जी की आवाज सुनाई दी और उन्हें लेकर हम गाड़ी मे बैठ गए, मैं अभी भी उस लड़के के बारे मे सोच रहा था, श्याम भी चुप था, बुआ जी अपनी बातें बराबर बोले जा रही थीं लेकिन मेरी नजर उसी बच्चे को ढूंढ रही थीं |? समाप्त ?कहानी पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का आभार lकृपया अपनी राय जरूर दें, आप चाहें तो मुझे मेसेज बॉक्स मे मैसेज कर सकते हैं l?धन्यवाद् ?? सर्वेश कुमार सक्सेना Download Our App