संकेत के दिल की धड़कन बढ़ गई थी । उसका खौफनाक एक्सीडेंट और सुशान्त का सुसाइड अटेम्प्ट । संकेत सोच रहा था कि इससे अच्छा तो मर ही गया होता कम से कम सुशान्त पर तो मुसीबत न आती और शायद श्राप भी ख़त्म हो जाता ।
सोचते हुए संकेत को घड़ी का ख्याल आया, देखता तो रोज़ था पर कभी ध्यान नहीं दिया कि घड़ी उस पहली होश वाली रात के बाद अपनी जगह से गायब थी । आखिर वो घड़ी गई तो गई कहाँ ?
"माँ वो घड़ी कहाँ गई । " संकेत ने माँ से पूछा ।
"कौन सी घड़ी बेटा?" माँ ने वापस सवाल दाग दिया ।
"अरे वही जो मेरे होश में आने तक वहां लगी थी ।" संकेत बोला ।
"अच्छा वो घड़ी.... वो तो मैंने ही हटा के भीतर डाल दी । क्या है न बेटा घड़ी खराब हो गई थी और खराब घड़ी देखना अशुभ् भी होता है । एक तो तेरी तबियत ठीक नहीं ऊपर से अपशगुन होता तो......." बोलते बोलते माँ चुप हो गई ।
"क्या माँ आज के समय में अंध........" आधा शब्द बोल कर संकेत भी चुप हो गया । भूत चुड़ैल भी तो अंधविश्वास ही होते थे संकेत की नज़र में, पर आज उसे इन ताकतों पर पूरा यकीन था ।
औघड़ का वो कथन कि "वो आएगी " उसके कानों में गूंजा करता था ।
"माँ ज़रा वो घड़ी तो निकालना ।" संकेत ने अगले दिन की सुबह माँ को बोला ।
"क्या करेगा उस घड़ी का ?" माँ ने पूछा ।
"तुम लाओ तो ....." संकेत बोला ।
माँ अलमारी में से वो बंद घड़ी निकाल के लाई और संकेत के हाथ पर रख दी । घड़ी ठीक उसी 12:12 पर बंद थी । बैटरी भी लगी थी । संकेत ने बैटरी निकाल के रिमोट में डाली और टीवी की तरफ कर के पावर बटन दबाया । टीवी चालू हो गया था ।
"सेल भी ठीक काम कर रहे हैं तो घड़ी आखिर इस 12:12 पर क्यों रुकी पड़ी है ?" संकेत उहापोह से जूझ रहा था । "माँ मुझे सुशान्त से मिलना है ।" संकेत अचानक से माँ से बोला ।
"मिल लेना बेटा, अभी वो भी कुछ ठीक हालात में है नहीं ।" माँ बोली ।
"ठीक हालात में नहीं है .....मतलब?" संकेत ने सवाल किया ।
"हाँ बेटा, कुछ मानसिक सी दिक्कत है उसको । भड़क जाता है । कभी बोलता है कुछ दिख रहा है कभी कहता है कुछ दिख नहीं रहा । अकेले में बड़बड़ाता रहता है । कुछ ठीक नहीं चल रहा बेटा । अच्छा होगा पहले तू ठीक हो जा फिर ही मिलना उससे ।" माँ ने जो कुछ बोला उससे चकरा गया संकेत । इन हालातों का सामना करने के लिए उसे सुशान्त के साथ की ज़रुरत थी पर शायद अभी ये मुमकिन न था ।
"डॉक्टर साब, क्या मैं बगल के वार्ड में जा सकता हूँ ।" संकेत ने डॉक्टर शर्मा से पूछा ।
"क्यों, वहां क्या काम है तुमको ? बस एक हफ्ते की बात और है उसके बाद जहाँ चाहो वहां जाना पर कुछ हिदायतें हैं उनका ध्यान रखना संकेत । नो बाइक राइडिंग, नो रनिंग, नो स्विमिग एंड नो आउटर स्पोर्ट्स टिल वन ईयर । ओके !" डॉक्टर ने कड़क शिक्षक सी सीख सुना दीं ।
"याह, ओके ।" संकेत भी अच्छे स्टूडेंट की तरह बोला ।
पर कसक तो रह रह कर उमड़ रही थी संकेत के मन में । माँ से तो कहने का कोई सवाल था नहीं और पापा कभी अकेले साथ होते नहीं थे । पापा से आम हर बच्चे की तरह एक दूरी सी थी संकेत की, घर में उनकी पदवी भी किसी पूजनीय देवता सरीखी थी जिनकी पूजा तो की जा सकती है, जिनसे आशिर्वाद तो लिया जा सकता है पर दोस्ती नहीं की जा सकती ।
पर आज सिचुएशन कुछ बदल सी गई थी । माँ बड़े दिनों बाद आज आराम करने घर पर थी और पापा अस्पताल में । बड़ी देर की खामोशी पापा ने खुद तोड़ी, " बेटा तेरे साथ गाडी़ में कोई बैठा था क्या उस रात?"
पापा का इतना सटीक असेस्मेन्ट सुनकर अचम्भित रह गया संकेत । सर घबराहट में हां में हिल गया और मुंह से न निकला ।
"बेटा, घबराने की कोई ज़रुरत नहीं है । मुझे पता है तुम यंग हो, इच्छाएं भी होंगी । जो कुछ भी है मुझे सच सच बताओ ।" पापा बोले ।
"पापा.........., वो ...एक ..चुड़ैल थी ।" संकेत हिचकिचाते हुए बोला ।
"व्हाट रब्बिश !" पापा के मुंह से बस इतना ही निकला ।
"पापा, मैं चुड़ैल वाले मोड़ पर था । एक बेसहारा सी लड़की ने मुझसे मदद मांगी मैंने उसे बैठा लिया और एक किलो मीटर के भीतर ही मेरा एक्सीडेंट हो गया । पापा वो चुड़ैल ही थी तभी तो गायब हो गई ।" संकेत बोलते बोलते चुप हुआ पर फिर कुछ सोचते हुए बोला ," पर आपको कैसे पता चला कि कोई बैठा था ।"
"बाप हूँ तेरा । तूने इतने दिन सस्पेन्स बनाया है, थोड़ा सा हक़ तो मेरा भी बनता है । तू घर आ तुझे तेरे केस की हर परत उतार के बताऊंगा ।" पापा किसी डिटेक्टिव की तरह बातें कर रहे थे ।
बाप बेटे की बातें ख़त्म ही हुईं थीं कि दरवाजे पर सुशान्त खड़ा था । पहले से थका, दुबला, आँख के नीचे काले घेरे पर होंठों पर वही शरारती मुस्कान ।
"क्या बे, मेरे एक्सीडेंट के गम में नस काट ली तूने । इधर आ....बैठ यहाँ, मुझे कुछ बातें करनी है तुझसे ।" संकेत सुशान्त को देखते ही बोला और सुशान्त चुपचाप सिरहाने पड़ी बेंच पर बैठ गया ।
"तुम लोग बात करो, मैं ज़रा हवा लेकर आया ।" पापा भॉंप गए थे कि संकेत सुशान्त से कुछ पर्सनल बातें करना चाहता है ।
पापा के जाते ही संकेत तैश से बोला, " अबे सूतिये, ऐसा क्या हो गया तेरे साथ कि सुसाइड अत्तेम्प्ट कर दाला तूने । क्या बात क्या है मुझे तो बता ।"
"वो मुझे छोड़ गई । हमेशा के लिए.....।" सुशान्त इतना बोल फफक के रो पड़ा ।
"कौन छोड़ गई ? तू पहेली मत बुझा पूरी बात बता ।" संकेत ने सुशान्त से पूछा ।
"रश्मि नाम था उसका, लास्ट ईयर मिली थी मुझसे कार्निवल के दौरान । बस मुलाकातें बढ़ी, बातें हुईं और हम प्यार कर बैठे । मासूम सी उसकी मुस्कराहट और समझदारी वाली बातें । मैं उसके प्यार में घिरता ही चला गया । पर पिछले दो महीनों से उसका कुछ पता नहीं है । मैं नहीं रह सकता उसके बिना संकेत, प्लीज मेरी रश्मि को ढून्ढ दो....प्लीज मेरी रश्मि......" और सुशान्त बिलख बिलख के रोने लगा ।
अब कहानी में एक नयी करैक्टर भी थी रश्मि, पर ये कौन थी और कहाँ थी ये जानना भी संकेत के लिए बहुत ज़रूरी हो गया था ।
PTO