Teer-A-Nimkash in Hindi Love Stories by Pritpal Kaur books and stories PDF | तीर-ए-नीमकश

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तीर-ए-नीमकश

तीर-ए-नीमकश

वह बाथरूम से नहा कर बाहर निकली और बेडरूम में ही रुक गयी. खड़ी हो कर सोचने लगी की यूँ ही सुइट के लिविंग रूम में चली जाए बाथ गाउन पहने हुए या कि पूरी तरह ड्रेस अप हो कर? खुद को कुछ मिनट बड़े से आईने में निहारती रही. गीले बाल और बिना किसी तरह के मेकअप के लम्बी ऊंची छरहरी नगमा खुद को देखती ही रह गयी. दिलकश व्यक्तित्व की मालकिन नगमा यूँ ही तो नहीं लोगों का दिल पल में ही जीत लेती है.

एक घंटा पहले ही नगमा और नरेश करीब छह घंटे लगातार ड्राइव करने के बाद जयपुर पहुंचे थे. इस आरामदेह पांच सितारा होटल में पहले से ही नरेश ने बुकिंग करवा रखी थी. रिसेप्शन पर नरेश ने अपना पहचान पत्र दिया और नगमा का अपनी पत्नी के तौर पर परिचय करवाया.

कमरे में चेक इन करते ही नरेश उतावली पर उतर आया तो नगमा ने चाय पीने की इच्छा ज़ाहिर की. अब चाय के आने तक इंतजार करना लाजमी था. चाय के आने तक नगमा नहाने चली गयी और दिन भर की ड्राइव की थकान उतारने की कोशिश में शावर के नीचे खडी सोचती रही.

बदन पर बॉडी वाश लगाते हुए उसकी खुशबु से आनंदित होते उसे याद आया नरेश उसे करीब आठ महीने पहले एक दोस्त के घर पार्टी में मिला था. ऊंचे क़द का सांवले रंग वाला तीखे नैन नक्श का नरेश उसे देखते ही भा गया था. साढ़े पांच फीट ऊंची गोरे रंग की खूबसूरत नगमा को जब से याद पड़ता है पुरुषों को उसने अपनी तरफ आकर्षित होते ही पाया है. ये और बात है कि वह बहुत कम ही पुरुषों को इस लायक पाती है जिनके साथ वह रोमांटिक या फिर दैहिक तौर पर आकर्षित महसूस करे.

अडतीस साल की उम्र तक उसने बिना पुरुष संसर्ग के जीवन बिताया हो ऐसा भी नहीं है. सत्रह साल की उम्र में उसका पहला इश्क हुआ अपने स्कूल में पढ़ने वाले अठारह साल के योगेश के साथ. छह महीने चले इस धुआधार रोमांस में नगमा ने बाली उम्र की कई सीडियां चढ़ीं. लेकिन जल्दी ही उस पर से योगेश का भूत उतर गया. उसे योगेश बेहद बचकाना लड़का लगा. हर वक़्त खाने-पीने की बातें करने वाला और हर वक़्त इस कोशिश में मशगूल कि किसी तरह नगमा को अपने साथ सेक्स के लिए राजी कर सके.

शावर के नीचे खड़े बदन से साबुन के झाग के बह-बह कर नीचे पैरों के पास गिरते और फिर उसे बाथ टब के आउटलेट से बहते देखती नगमा सोचती है तो याद पड़ता है उस उम्र में सेक्स का आकर्षण तो उस में भी बहुत था लेकिन उत्सुकता अभी अपने बाँध नहीं तोड़ पाई थी. अभी उसे सही व्यक्ति का इंतजार था. उससे भी ज्यादा दिक्कत थी उपयुक्त एकांत जगह के नहीं होने की. इसकी कमी में पकडे जाने का डर बहुत बड़ा था. साथ ही वेर्जिनिटी खोने का दर्दभरा डर भी था. और इन सब से ऊपर गर्भ ठहरने का डर.

यानी इन सभी तरह के डरों ने उसे दूषित होने से बचाए रखा. एक हल्की सी हंसी के साथ इस ख्याल को उड़ाते हुए नगमा ने बालों में शैम्पू की मालिश करना जारी रखी.

लम्बे समय तक वह इन्हीं कवचों के पीछे से अपने कई रोमांसों को अंजाम देती रही. इन सब की एक लम्बी फेहरिस्त उसके दिमाग में है. मुस्कुराते हुए पानी की धार के नीचे सर रखते हुए उसने सोचा.

योगेश, विक्रम सिंह, एडम डीसूजा, अनिल चपलानी, युसूफ खान…….. इन्हीं नामों के बीच उसे याद आया उसका अपना दूर का एक रिश्तेदार इकराम. परिवार की एक शादी में शामिल होने वह सब के साथ बंगलौर गयी थी. नगमा की माँ की ममेरी बहन की ननद का बेटा इकराम उसे वहीं मिला था. देखते ही दोनों में आकर्षण पैदा हुआ था और दूसरी ही शाम दोनों चुपके से शादी के हो-हंगामे के बीच में से किसी तरह नज़र बचा कर उस होटल से निकल भागे थे जहाँ सब लोग शादी के लिए ठहरे हुए थे.

सबसे पहले पास के थिएटर में एक फिल्म देखी, चिपक कर बैठे हुए. इकराम उसका हाथ कस कर पकडे रहा पूरी फिल्म के दौरान, यहाँ तक कि दोनों के हाथ पसीना पसीना हो गए. आज याद करती है तो हर बार एक ठहाका ज़रूर लगा लेती है. फिल्म के बाद पास के एक पार्क में टहलने लगे. बातें थी कि ख़त्म होने का नाम ही ना लें.

आखिर याद आया कि होटल में ढूंढ मची होगी तो फौरन वहां से भागे. लेकिन जब होटल पर पहुंचे तो पता लगा कि शादी की रेलम-पेल में किसी को एहसास ही नहीं था कि ये दोनों कई घंटों से गायब हैं.

पहुँचते ही नगमा को दुल्हन के कपड़ों की पैकिंग के काम में घसीट लिया गया और इकराम को मर्दानखाने में.

वैसे भी इन खानदानी शादियो में अक्सर बुज़ुर्गों की कोशिश भी रहती है कि जवान लड़के लड़कियां खानदान के अन्दर ही अपने अपने जोड़े तलाश लें ताकि उनका बोझ कम हो जाये. शायद इसीलिये इस दोनों का साथ होना किसी को खला नहीं बल्कि एक तरह से नज़र अंदाज़ कर के इसे बढ़ावा ही दिया गया.

लेकिन नगमा के लिए इकराम का आकर्षण एक फिल्म और एक शाम की मटरगश्ती के बाद पूरी तरह ख़त्म हो गया था. इलेक्ट्रॉनिक्स के शो रूम का मालिक इकराम पहली नज़र में सेक्सी लगा था लकिन सोचा तो पाया कि उसके साथ ज़िंदगी बिरियानी, कोरमा, हलीम, पाये और बच्चों के आगे नहीं बढ़ पायेगी.

दो दिन बाद वे लोग घर लौट आये. और इकराम एक शाम की भूली कहानी बन कर रह गया. उसके फ़ोन तक लेने की ज़हमत नगमा ने नहीं उठायी.

इसकी एक बड़ी वजह बिजोय से नगमा की मुलाकात भी रही. कॉलेज की ज़िंदगी शुरू हो चुकी थी. बिजोय कॉलेज में उसका सीनियर था. सांवले रंग का दरम्याने क़द का खूबसूरत आँखों और होठों वाला बिजोय बंगाली था. बहुत तीखी और मीठी बातें करता था. जोश से भरा जब सिस्टम पर भड़कता था तो देखते ही बनता था. उसका चेहरा लाल हो जाता, पूरा बदन फडकने लगता. नगमा देखते ही देखते उस पर फ़िदा हो गयी.

नगमा उस वक़्त उम्र और होर्मोनेस की क़ैद में थी. हर वो मर्द जो उसमें सेक्स की चाह जगाता उसे आकर्षित करता था. बिजोय ने इस मोर्चे पर बाज़ी मार ली. कॉलेज के कई संभावित लवर्स की सूची में से बिजोय उसकी सूची में पहले नंबर पर हो गया.

हालाँकि बिजोय पर मरने वाली बालाओं की भी कमी नहीं थी लेकिन कॉलेज की सब से हॉट और सेक्सी बाला की आँखों से इशारे की भनक मिलते ही नगमा का पहला सबसे गंभीर और लम्बा अफेयर परवान चढ़ा, बिजोय के साथ.

उन्नीस साल की उम्र में इसी बंगाली बाबु बिजोय ने उसका कौमार्य भंग किया था और वह खुशी से फूली नहीं समाती फिरती थी. हालाँकि दर्द तो उसे बहुत हुआ था लेकिन जल्दी ही दोनों अक्सर मिलने लगे थे.

बिजोय अपनी एक विधवा आंटी के साथ रहता था. माँ-बाप कोलकता में थे. बूढ़ी आंटी को पता भी नहीं लगता था कि कब नगमा घर में आती थी और घंटों बिजोय के साथ उसके कमरे में बिता कर कब चुपके से निकल जाती थी.

या शायद वे अनजान रह कर अपनी सुविधाओं को बनाये रखने में यकीन रखती थीं. बिजोय के उनके साथ रहने से उनके अकेलेपन के अलावा और कई मसलों के हल आसान हो जाते थे. जैसे घर का रोज़मर्रा का सामान लाना, बिजली फ़ोन आदि के बिल पे करना, डॉक्टर के यहाँ जाना, दवाई लाना वगैरह वगैरह.

लेकिन जैसा कि होना था एक साल तक चला यह लम्बा रोमांस भी धीरे धीरे नगमा को बोरिंग लगने लगा. अब बिजोय के तेवर देख कर उसे खासी कुढ़ होने लगती. कारण शायद यह कि उसके विचार बहुत लेफ्टिस्ट थे. और वो ज़िंदगी भी उसी तरह की जीना चाहता था.

नगमा अक्सर कॉलेज कार में आती जो बिजोय को नागवार गुजरता. उसका कहना था कि चूँकि नगमा कोई ऐसा काम नहीं करती जिसके बूते पर वह कार और उसमें डलने वाले पेट्रोल का खर्चा उठा सके सो उसे इस अय्याशी को भोगने का कोई हक नहीं है. शुरू में रोमांस की गर्माहट और प्रेम की गहनता में नगमा को उसकी इस तरह की बाते प्रभावित नहीं करती थी. वो सोचती धीरे धीरे बिजोय समझ जायेगा कि जिस परिवार से नगमा है वहां इस तरह का जीवन अय्याशी नहीं बल्कि एक सामान्य बात है.

लेकिन वक़्त के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. यहाँ तक कि कई बार फिल्म देखने जाने के वक़्त बिजोय ने कार में बैठने से मना कर दिया और नगमा को मजबूरन कार को कॉलेज में ही छोड़ कर बस में बिजोय के साथ जाना पड़ा. शुरू में उसे इन सबमें आनंद भी आता लेकिन वक़्त के साथ उस पर मौसम की तल्खी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र करने की परेशानी हावी होने लगी और एक दिन उसने साफ़ मना कर दिया बस में जाने से.

बात छोटी सी थी लेकिन मामला तूल पकड़ गया. दोनों ही तेज़ मिजाज़ के मज़बूत इरादों वाली शख्सियत के मालिक इंसान थे. कोई भी झुकने को तैयार नहीं. दोस्तों ने किसी तरह बीच बचाव करवाया और रोमांस की पटरी फिर से लाइन पर आ लगी. लेकिन गाँठ पड़ चुकी थी.

अगली बार ऐसा ही विस्फोटक झगडा हुआ विश्विद्यालय चुनाव से पहले. ज़ाहिर सी बात है लेफ्टिस्ट बिजोय ए.आई.एस.ए. का पक्षधर था.

अब तक थर्ड इयर में आ चुकी नगमा कॉलेज की बेहद पॉपुलर हस्ती थी. जिस भी पार्टी के साथ वह होती उसका पलड़ा चुनाव में भारी ही होता. नगमा के पिता के चाचा यानी नगमा के छोटे दादा बीजेपी के स्थानीय पदाधिकारी थे. विश्विद्यालय के एबवीपी के कार्यकर्त्ता चाहते थे कि नगमा को मैदान में उतारा जाए. खुद नगमा राजनीती से परोक्ष रूप से कुछ ज्यादा सरोकार नहीं रखती थी सो उसने प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया. लेकिन पार्टी के अध्यक्ष पद के दावेदार अनीश कोहली को उसमें बेहद मज़बूत प्रत्याशी नज़र आ रहा था. उसने नगमा के परिवार की जानकारी हासिल की और उसके छोटे दादा तक पहुँच गया.

हालांकि खुद छोटे दादा लड़कियों के राजनीति में आने के पक्षधर नहीं थे लेकिन अनीश के प्रस्ताव को सीधे सीधे नकार नहीं सके. इसके अलावा उंहें भरोसा भी दिलाया गया कि नगमा को तो बस नाम का ही चुनाव लड़ना है. सब काम पार्टी करेगी और चुनाव के बाद भी सारा काम अनीश ही देखेगा नगमा सिर्फ नाम की ही वाईस प्रेसिडेंट होगी. सो मामला जम गया और नगमा ने पर्चा भर दिया.

बिजोय को जब खबर मिली तो वह भौचक्का रह गया. उसने नगमा से सवाल जवाब तक करना गवारा नहीं किया. पहले से तय प्रोग्राम के अनुसार जब अगले रविवार को दिन में नगमा आंटी के घर पहुँची तो दरवाज़ा अन्दर से बंद मिला. जो हर बार उसके आने से पहले खुला होता था ताकि वह चुपचाप सीधे बिजोय के कमरे में पहुँच जाए. उसने बेल बजाई तो आंटी खुद बाहर आयी और उसे बताया कि बिजोय सुबह ही कोल्कता चला गया है. कोई वजह नहीं बताई गयी. मायूस नगमा घर लौट आयी.

उसे लगा शायद जल्दी में गया है कोई इमरजेंसी होगी. फ़ोन का इंतजार किया, नहीं आया और फिर जब खुद फ़ोन किया तो उधर से फ़ोन दो बार काट दिया गया. तीसरी बार बिजोय ने उठाया और कहा, " नगमा तुम्हें लगता है अब भी हमारे बीच कुछ बचा है? इसका जवाब खुद में ढूंढो. फिर मुझसे बात करना."

नगमा ने अपनी आज तक की ज़िन्दगी में कभी खुद को इतना अपमानित महसूस नहीं किया था. उसने इस अपमान को पीने के लिए खुद को चुनाव में झोंक किया. चुनाव जीता. खूब काम किया . अनीश कोहली और पार्टी को खुश किया. छोटे दादा कुछ नाराज़ हुए लेकिन फिर जब नगमा की वाहवाही सूनी तो उन्हें भी कोई गिला नहीं रहा. पापा माँ की तो हमेशा ही लाड़ली थी. सो ज़िंदगी अपने ढर्रे पर चलती रही.

बिजोय के साथ हुए इस तरह ब्रेकअप से नगमा का दिल टूटा तो ज़रूर लेकिन मज़बूत लडकी थी. जल्दी ही संभल गयी. दोस्तों की नगमा को कभी कमी नहीं रही. हर किस्म का दोस्त उसकी झोली में हमेशा रहता. फिल्म देखने जाने के लिए अलग, डिस्को जाने के लिए अलग, ड्राइव्स के लिए कुछ अलग किस्म के दोस्त और देर रात जामा मस्जिद के इलाके में मटरगश्ती के लिए अलग, हौजखास विलेज में दिन और लम्बी शामें बिताने के लिए अलग.

यानि एक पूरा हुजूम नगमा के दोस्तों की फेहरिस्त में शामिल था. लेकिन बिजोय के बाद उसे एक खास इंसान की कमी बेहद महसूस होती. ऐसा नहीं कि बिजोय को अपनी गलती का एहसास न हुआ हो. ब्रेकअप के बाद लगभग छह महीने वह उसे मनाने की कोशिश करता रहा. लेकिन नगमा समझ चुकी थी बिजोय का अंतर मन.

नगमा ने उसे कहा भी, " बिजोय, तुम कभी मेरी पर्सनालिटी को पूरी तरह इज्ज़त नहीं दे सकते. और मैं इज्ज़त के बिना प्यार की सम्भावना पर सोचना भी नहीं चाहती. हमने जितना भी वक़्त साथ बिताया, अच्छा था. मुझे उसके लिए खुशी है और मैं हमेशा तुम्हें उन पलों के लिए याद रखूंगी."

फिर एक दिन यूँ ही अचानक उसकी ज़िन्दगी में एकाएक हलचल हुयी मसूद के आने से. मसूद कही से भी उसका रिश्तेदार नहीं था और यही बात नगमा की उसमें दिलचस्पी की पहली चिंगारी के भड़कने में मददगार हुयी.

नगमा अब ज़िन्दगी को लेकर सीरियस होने लगी थी. अब उसे लगता कि जो भी रोमांटिक रिश्ता बने वो आगे तक चलने लायक हो. वह शादी के बारे गंभीर हो कर सोचने लगी थी. अपने खुद के बच्चों की चाह भी उसमें जागने लगी थी. लेकिन रिश्ते के किसी भाई से शादी करना उसकी किताब में नहीं था. और ये बात उसने साफ़ साफ़ अपने घर में कह दी थी. उस दिन जब पूरा परिवार उसके दादा के यहाँ ईद की दावत पर मौजूद था.

सुन कर सब सकते में आ गए थे. क्यूंकि अक्सर उसके चाचा के बेटे उस्मान को लेकर घर में चर्चा होती थी और बुजुर्गों ने एक तरफ से इस रिश्ते को हो चुका ही मान लिया था. काफी दिनों तक घर में हवा नगमा के पक्ष में नहीं रही लेकिन फिर धीरे धीरे स्थिति सामन्य हो गयी. और तभी एक दिन उसकी मुलाक़ात मसूद से हुयी. उसे मसूद पहली नज़र में भा गया. मसूद की तरफ से भी लगा कि बात कुछ बन गयी है.

धीरे धीरे मुलाकातें होने लगी और हर शाम दोनों साथ बिताने लगे. नगमा ने महसूस किया मसूद बेहद सुलझा हुआ परिपक्व सोच का और मज़बूत इरादों वाला आदमी है. एक और बात जिसने उसे मसूद की तरफ आकर्षित किया वह थी उसका रवैया नगमा के प्रति और आम तौर पर सभी औरतों के प्रति. वह औरतों की इज्ज़त करता था.

नगमा इन बातों का बेहद ख्याल रखती थी क्यूंकि उसने अक्सर पाया था कि उसके परिवार के और कॉलेज के भी ज्यादातर लड़के और यहाँ तक कि परिपक्व मर्द भी औरतों की गाहे-बगाहे बेईज्ज़ती कर देते थे. अपनी पत्नियों तक की. कई बार तो बिलावजह ही . सिर्फ अपनी मर्दानागी का एहसास दिलाने के लिए. और नगमा सोचती रह जाती कि इस तरह अपनी ही पत्नी या माँ या बहन को बेईज्ज़त करने से किस तरह से मर्दानगी बची रह सकती है.

उसके निकट तो यह मर्द के लिए डूब मरने वाली बात होती थी. लेकिन वह चुप रहती. जब जिस औरत की बेईज्ज़ती हो रही हो वही इसे समझ ना पाए और समझ पाए तो इसके खिलाफ बोले नहीं तो नगमा किसी झमेले में पड़ने से बचना चाहती थी.

वह अपनी ज़िंदगी से खुश थी. पापा माँ की तरफ से मिली आज़ादी और उसके अपने छोटे से परिवार से मिलने वाले प्यार और इज्ज़त से. और अब तो उसकी ज़िन्दगी में मसूद भी आ चुका था. वह भविष्य के बारे में सपने देखने लगी थी. एम्.ए. पूरी हो गयी थी, फर्स्ट क्लास में. आजकल पूरी तफरीह चल रही थी, अक्सर हर शाम मसूद के साथ.

मसूद और नगमा काफी नज़दीक आ चुके थे लेकिन कुछ दूरी अब भी बनी हुयी थी. एकांत में एक दूसरे को चूमते, जिस्मों को टटोलते और सहलाते जब एक दुसरे में खोये होते और नगमा अगले स्तर तक जाना चाहती तो मसूद रुक जाता और उसे भी रोक देता.

ये सब नगमा के लिए अनजाना था. वह अब वह तक जिन पुरुषों के करीब हुयी थी वे तो आखिरी मंजिल तक जाने के लिए बेहद उतावले रहते थे. उनकी इसी कमजोरी को नगमा अपनी ताक़त बना लेती और अपने मर्जी मुताबिक रिश्ते के पेंचों को कसती, ढीला छोडती. ठीक वैसे जैसे जूडो में प्रत्द्वंदी की ताक़त से ही शक्ति पा कर दांव चला जाता है.

नगमा के अब तक के अफेयर इसी तरह की खेल पर आधारित छोटी छोटी चाल बाजियों से भरे रहे थे. बिजोय को छोड़ कर. बिजोय के साथ वह पूरी इमानदारी से जुडी थी. लेकिन जब उसका दिल टूट गया तो उसने बिजोय के साथ भी यही रास्ता अपनाया. बिजोय दिल से दूर हो गया तो वह भी नगमा के खेल का एक मोहरा बन के रह गया. उसके साथ दिल नहीं जुड़ा उसके बाद. दोस्त बना लेकिन दोस्ती में एक दरार रही. उस दरार से कोई न कोई दंश वह बिजोय की तरफ धकेल ही देती और तकलीफ पहुंचाती. बिजोय समझ कर भी उससे खुद को पूरी तरह तोड़ नहीं सका. उसका अपराध बोध उसे इस दर्द को झेलने के लिए उकसाता रहता. वह बार बार नगमा के करीब आता, अपमानित होता. लेकिन पूरी तरह नगमा से आज़ाद नहीं हो पाता.

मसूद पेशे से बैंकर था और स्कॉटलैंड के एक बैंक में पोस्टेड. उसकी छुट्टी ख़त्म हुयी और वापिस काम पर जाने का वक़्त आया. अब दोनों सिर जोड़ कर बैठे तो नगमा ने ही उपाय सुझाया कि मंगनी कर ली जाये और फिर आगे का रास्ता तय किया जाये.

दोनों परिवारों में खुशी का मौक़ा आया. धूमधाम से मंगनी की रस्म हुयी. नगमा और उसके परिवार का मसूद के घर जाना हुआ. दिल्ली के पास ही हरयाणा के एक कस्बे में पांच सौ मीटर में बना हुआ दो मंजिला पुश्तैनी मकान. पास ही के गाँव में परिवार की खेती की ज़मीने भी एस.यू.वी. में पूरे परिवार को ले जा कर दिखाई गयी.

पापा माँ बेहद खुश थे. बेटी को मर्जी मुताबिक दूल्हा मिला वो भी इतने संपन्न परिवार से. नगमा की कजिन बहनों ने अपनी ईर्ष्या खुलेआम ज़ाहिर की और प्यार से उसे दुआएं दी. यानी कि कुल मिलाकर बेहद खुशनुमा माहौल में मसूद की विदाई हुई.

मसूद ग्लासगो पहुँच कर अपने काम में लग गया और नगमा अपनी ज़िन्दगी में लौट आयी. लेकिन अब खालीपन भारी पड़ने लगा था. शादी करने के लिए मसूद को छुट्टी का इंतजाम करना था और उसके लिए ग्लासगो में टिक कर काम करना था. सो वह कर रहा था. लेकिन अब नगमा क्या करे?

पहले सोचा ज़िन्दगी का मज़ा लिया जाये. लेकिन अब दोस्तों के साथ आवारागर्दी में वो मज़ा नहीं रहा. दिल मसूद में लग चुका था. फ़िल्में बोर लगने लगी. शॉपिंग तो उससे भी ज्यादा. डिस्को में दोस्तों की भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता. आखिर एक रात फ़ोन पर मसूद से बात करते हुए उसने फैसला किया ग्लासगो जाने का.

अगले दिन सुबह के नाश्ते पर अपना फैसला सुना डाला. पापा माँ परेशान.

माँ ने ही कहा, "शादी हुयी नहीं, ऐसे कैसे जा सकती है?"

"मॉम, टूरिस्ट वीसा पर." हंस कर उसने बात की गंभीरता को उड़ाना चाहा.

"बेटा, ये मज़ाक नहीं है. " पापा ने अपने गंभीर अधिकार भरे स्वर में कहा.

"जी पापा, मैं भी मज़ाक नहीं कर रही. मुझे लगता है कि ये मेरी ज़िन्दगी का बहुत बड़ा फैसला है. मसूद सारी ज़िन्दगी वही रहने वाला है. एक बार देख समझ लेना चाहती हूँ कि मैं उस देश में, उस माहौल में रह कर खुश रहुंगी कि नहीं."

कुछ देर चुप्पी छाई रही. माँ की नज़रें संशय से भरी थी. पापा सोच रहे थे. नगमा रात भर सोच चुकी थी. सो वहां फैसले का सुकून था साथ ही जवानी का जोश और एडवेंचर का रोमांच भी. भाई को इन फैसलों से कोई लेना देना नहीं. वो अपनी दुनिया में रहने वाला तेरह साल का नया नया किशोर.

आखिर नगमा ने ही चुप्पी तोडी.

"सारी बात हो गयी है. मैं वहां एक महीने के लिए जाउंगी. आप को तसल्ली रहे कि मैं शादी के बिना उसके साथ नहीं रह रही इसलिए मैं लन्दन में ही रहूंगी. अनुभा आंटी के यहाँ. ठीक है मम्मी? आप को मेरी सारी खबर मिलती रहेगी. मसूद वीकेंड में लन्दन आएगा. और हम वही मिलेंगे. हो सकता है मैं एकाध बार ग्लासगो भी जाऊं पर वहां उसके साथ नहीं रहूंगी, यकीन रखिये. "

अनुभा नगमा की माँ शगुफ्ता की बचपन की सहेली थीं जो कई साल से लन्दन में थी. अब इस इंतजाम के बाद पापा माँ कोई भी ऐतराज़ नहीं कर सका.

एक महीने बाद नगमा हीथ्रो एअरपोर्ट पर थी. और यहाँ लैंड करते ही पहला झटका उसे लग गया था. उसके कई बार इसरार करने के बावजूद मसूद उसे लेने एअरपोर्ट पर नहीं आया था. अनुभा आंटी ने कैब बुक कर दी थी. कैब का ड्राईवर उसके नाम का प्लेकार्ड लिए बाहर खड़ा था. नवम्बर की उदास, ठिठुरती और रात जैसी ग़मगीन शाम में लन्दन में दाखिल होते हुए सड़क की दाई तरफ चौकड़ी भरते घोड़े भी नगमा का दिल नहीं बहला सके.

पराये मुल्क में जब आदमी क़दम रखता है, उस वक़्त उसे किसी अपने का चेहरा नज़र न आये तो जो अकेलापन महसूस होता है उसका स्वाद नगमा ने ज़िंदगी में पहली बार चखा था. दिल उचाट हो गया. अपने फैसलों पर शक हुआ. यहाँ इतनी दूर अकेले आने का और मसूद से शादी करने के फैसले का. लगा अपनी ज़िंदगी जैसे हाथ से फिसल कर दूर खडी अनजानों की तरह देख रही है.

दो दिन बाद शनिवार था. जेटलैग अब नहीं था. सुबह से मसूद के इंतजार में बैठी नगमा बोरियत से थक कर लिविंग रूम के सोफे पर सो चुकी थी जब मसूद ने हलके से उसे छुया था. चौंक कर उठी और उससे कस कर लिपट गयी. हँसते हुए मसूद ने भी उसे गले लगाया, प्यार किया और इसी तरह दोनों बैठ गए. गिले शिकवे हुए, ज्यादा नगमा की तरफ से. मसूद ने बताया कि काम की वजह से उसका आना बिकुल असंभव था सो आंटी ने भी यही सलाह दी थी कि नगमा एअरपोर्ट से घर कैब से आ जायेगी. फ़ोन पर इसलिए नहीं बताया कि वो नाराज़ हो जाती और परेशान भी.

"चलो शुकर है अब तो आये हो मिलने." आवाज़ में खासी नाराज़गी भर के नगमा ने कहा तो ठहाका लगा कर मसूद ने फिर उसे बाहों में भर लिया.

वीकेंड लन्दन की ट्यूब और सड़कों पर घूमते कब गुज़र गया पता ही नहीं चला. मसूद चला गया. पूरा हफ्ता नगमा ने शॉपिंग में और आंटी के साथ उनके कामों में व्यस्त रह कर काटा. अगला वीकेंड आया और मसूद भी आया. इस बार शुक्रवार की देर रात को वह लन्दन पहुंचा.

आते ही उसे बाहर ले गया. रात भर वे सेंट्रल लन्दन की सड़कों की रंगीनियों में खोये रहे. सुबह उसे आंटी के घर छोड़ कर मसूद यह कह कर चला गया कि ज़रूरी काम है, निपटा कर शाम तक आ जायेगा.

नगमा को लगा भी कि बैंक का काम तो हो नहीं सकता. फिर भी चुप रही. इस उम्मीद में कि शाम को खुद ही बता देगा. लेकिन शाम आयी और चली गयी. मसूद नहीं आया. उसका फ़ोन बंद था. नगमा के लिए टूटा हुआ वादा आंटी के साउथ लन्दन के घर की खामोश उदासी से जुड़ कर और भी तकलीफ देह हो गया.

अगली सुबह वह आया. नख से शिख तक माफी से भरा. नगमा पिघल गयी. वजह न उसने बताई न नगमा को पूछने की फुर्सत हुयी.

उस शाम मसूद ने साउथ लन्दन के अर्ल्स कोर्ट इलाके के एक होटल में एक कमरा बुक कर रखा था. शाम से लेकर सुबह तक दोनों एक दूसरे को समझते, भांपते, प्यार करते रहे. लेकिन दिल को तसल्ली नहीं हुयी.

सुबह जब नगमा कैब से आंटी के घर के बाहर उतरी तो दिल उदास था. रात महबूब के साथ बिताने की खुशी के एहसास से बिलकुल अछूता. लगा जैसे सिर्फ जिस्म मिले, मन अछूता ही रहा. मानो बर्फ की इक बड़ी सी चट्टान है जो मसूद के दिल का रास्ता रोके खडी है. जिस्म की गर्मी उस बर्फ को नहीं पिघला पायेगी, ये वो जान गयी थी.

फिर अपनी बेबसी पर उसे झुझलाहट हुयी. वह जल्दी से घर के अन्दर गयी. हाल में कोई नहीं था. अहिस्ता अहिस्ता सीडियां चढ़ती अपने कमरे में पहुँची और बिस्तर पर गिर पडी. तेज़ रुलाई छूटी पड़ रही थी. जी भर कर रो लेने के बाद दिल किया मसूद को फ़ोन करे. उसकी आवाज़ सुन कर शायद दिल को सुकून मिले. लेकिन उसका फ़ोन बंद था.

क्या मसूद को इतना भी जानने की फ़िक्र नहीं थी कि वह घर ठीक से पहुँची कि नहीं? दिल ठिठक गया. एक बार फिर जोर से रुलाई छूट पडी. दिन भर वह अपने कमरे में क़ैद रही. शाम को आंटी ने वेस्ट एंड के फार्च्यून थिएटर में प्ले देखने का प्रोग्राम पहले से तय कर रखा था. दिल किया मना कर दे. लेकिन फिर ये सोच कर कि शायद इसी तरह मन कुछ हल्का हो जाये और फिर आंटी को भी तो नगमा की कंपनी चाहिए थी. मम्मी ने ख़ास हिदायत दे कर भेजा था. अनुभा आंटी के पति का दो साल पहले निधन हो गया था. तब से अकेली ही रहती थी. बेटा अमरीका में डॉक्टर था. कभी कभार ही माँ से मिलने आता था.

लेकिन सुस्पेंस से भरपूर 'वुमन इन ब्लैक' में भी नगमा मन नहीं लगा पाई. आस पास के लोग डर के चीखते रहे यहाँ तक कि आंटी भी कई बार चीखीं. लेकिन नगमा चुपचाप अपने में खोयी रही. उसका दिल अजीब से ख्यालों में घिरा था. प्ले देख कर बाहर निकले तो आंटी ने वहीं कोवेंट गार्डन के ही एक मशहूर ग्रीक रेस्तरां में खाना खाने की इच्छा ज़ाहिर की.

खाने में भी नगमा ज्यादा रूचि नहीं दिखा पाई. आंटी भी अब तक समझ गयी थी कि नगमा का मन ठीक नहीं है. एक दो बार पूछा भी उसकी तबियत के बारे में लेकिन वह टाल गयी तो फिर नहीं कुरेदा.

खाना खा कर दोनों बाहर निकले तो रात के ग्यारह बज चुके थे. आंटी ने सुझाव दिया कि इस वक़्त ट्यूब से न जा कर कैब से घर जाना चाहिए. ब्लैक टैक्सी के लिए उन्हें कुछ दूर चल कर जाना था. एक मोड़ पर जब नगमा मुडी तो सामने से आता मसूद उससे टकराता टकराता बचा. आंटी नगमा के बिलकुल साथ ही चल रही थी. अगले ही पल उन्होंने भी मसूद को देखा और ठिठक गयीं.

नगमा तो मसूस को देखते ही खुशी के मारे खिल पडी. खुशमिजाज़ आंटी भी मसूद को देखते ही खिलखिला कर हंस पडी और बोली, "व्हाट आर द ऑड्स? "

लेकिन मसूद का चेहरा बजाय पुलकने के एक ही पल में मुरझा गया. नगमा कुछ समझ नहीं पाई. वह मसूद का नाम लेती हुयी उसकी तरफ बढ़ ही रही थी उसे आलिंगन में लेने के लिए कि मसूद की बगल से आयी आवाज़ ने उसे चौंका दिया.

ठेठ ब्रिटिश अंग्रेज़ी में स्त्री आवाज़ में उसने सुना, " मसूद , डार्लिंग वी शुड हरी. इट्स गेटिंग लेट".

नगमा ठिठक गयी और उसकी नज़र मसूद की बगल में खडी एक युवती पर पड़ी. देखने में वह यूरोपीय मूल की लग रही थी. लम्बा क़द, दुबली-पतली, गहरे रंग के बाल, भूरी ऑंखें, चेहरे पर ताजगी लेकिन आँखों के आस-पास झुर्रियां. उसकी एक बांह मसूद की कमर में थी. मसूद की भी एक बाजू उसकी कमर को घेरे थी लेकिन अब वह अहिस्ता-अहिस्ता उस युवती को अपनी गिरफ्त से आज़ाद करता हुआ नज़र आया.

नगमा का दिल उछल कर उसके मुंह में आ गया और फिर एक दम से नीचे उसके अपने ही पेट की सबसे गहरी गुफा में जा गिरा.

कुछ पलों का मौत जैसा सन्नाटा चार लोगों को छू कर वहीं सेंट्रल लन्दन की उस खुशनुमा शाम को क़त्ल करता हुआ फुटपाथ की टाईलों पर पसर गया. नगमा ने अपने विशवास और फैसलों की लाश को देखने के लिए नज़रें मसूद के चेहरे की तरफ उठायीं, इस उम्मीद में कि शायद कोई सच अभी बचा हुआ हो जो झूठ को तार-तार कर दे और उसके दिल में भी सेंट्रल लन्दन की गुलज़ार सड़कों की तरह चहल-पहल फिर कायम हो जाये.

लेकिन वहां मसूद के चेहरे पर गहरा काला सन्नाटा था. आंटी ने बात सँभालने की गरज से कहा, "मसूद, प्लीज इंट्रोड्यूस अस टू द यंग लेडी."

मसूद ने लड़खड़ाते स्वरों में कहा, " मीट रेनीटा. एंड रेनिटा दिस इज़ आंटी अनुभा एंड हर नीस फ्रॉम इंडिया, नगमा. "

तीनों स्त्रियों ने एक दुसरे से हाथ मिलाये. रेनिटा ने कुछ शिष्टाचार की सामान्य बातें की और फिर मसूद की तरफ उन्मुख हो कर बोली,"वी आर गेटिंग लेट स्वीटहार्ट. वी शुड नौट मिस द बिगिनिंग ."

नगमा को कुछ याद नहीं कि रेनिटा ने क्या पूछा और उसने या आंटी ने क्या जवाब दिए. वह जैसे नींद में चलती हुयी आंटी के साथ टैक्सी में बैठी, घर आयी, ऊपर अपने कमरे में गयी और बिना कपडे बदले ही सो गयी.

सुबह जब उसे आंटी ने उठाया उस वक़्त घड़ी में नौ बज रहे थे.

"नगमा बेटा, नीचे मसूद बैठा है. तुमसे बात करना चाहता है."आंटी के स्वर में बहुत सारा प्यार था और बहुत सारी वेदना भी.

नगमा का दिल किया मसूद से मिलने से मना कर दे लकिन दिल ने उम्मीद की एक किरण फिर जगा दी. क्या मालूम जो देखा वो सच न हो. सच का तो पता लगाना ही था.

कपडे पहन कर जब तक नीचे आयी, मसूद चाय पी चूका था. लिविंग रूम की बाहर खुलने वाली खिड़की में खड़ा बाहर का नज़ारा देख रहा था. नगमा पहुँची तो मुडा और नगमा का दिल फिर बैठ गया. उसकी ऑंखें खाली थीं. उनमें पहचान तो थी, लेकिन लगाव और मोहब्बत की जगह ग्लानि और पछतावा नज़र आया तो दिल किया चुपचाप वापिस ऊपर चली जाये और जितनी जल्दी हो सके इस शहर और मुल्क से भी चली जाये.

लेकिन खुद को मज़बूत किया और सोफे पर जा कर बैठ गयी. एक सवालिया निगाह मसूद की तरफ उठाई तो उसने आगे बढ़ कर उसके पास बैठना चाहा. नगमा ने अपना चेहरा सख्त कर लिया. ठिठक कर वह वहीं खड़ा हो गया और थोडा पीछे जा कर सामने वाले सोफे में धंस गया.

उसके बाद मसूद ने जो कहानी सुनायी उसमें नया कुछ भी नहीं था. वही रेनिटा से पढ़ाई के दौरान मिलने और प्रेम हो जाने की पुरानी कहानी. भारत में माता-पिता के विदेशी युवती से विवाह की इजाज़त नहीं देने की बासी कहानी. मन मार कर नगमा से मंगनी करने की जानी-पहचानी कहानी. और यहाँ आने के बाद अपने प्यार से जुदा न हो पाने की मजबूरी की कमज़ोर कहानी.

नगमा चुपचाप सुनती रही. यानी मसूद को उसने यूँही अचानक नहीं देखा था. वह उसकी ज़िन्दगी में प्लांट किया गया था. उसके अपने परिवार के द्वारा. उसका दिल अब उसके पैरों में पड़ा सिसकियाँ ले रहा था. मसूद बार-बार उसे माफ़ कर देने की गुहार कर रहा था. उसके दिल लिया एक तेज़ थप्पड़ उसे रसीद करे और उससे पूछे कि दो रात पहले जो उन दोनों के बीच हुआ था उसमें किस का प्यार शामिल था? नगमा का या रेनिटा का? या फिर सिर्फ और सिर्फ मसूद का? सिर्फ अपने स्वार्थ से.

लेकिन क्या फायदा? उसकी ज़िन्दगी से खिलवाड़ हो चुका था. नगमा मसूद को चुप हो जाने और चले जाने को कह कर उठ खडी हुयी. वह बैठा ही रह गया तो नगमा ने बाहरी दरवाजे के पास रखा अपने बैग उठाया, जूते और ओवर कोट पहने और बाहर निकल गयी.

दिन भर लन्दन की सड़कों पर घूमती रही. टूयूब में लगभग पूरे लन्दन का नज़ारा देखा. याद आया बचपन में जब पापा माँ के साथ आती थी तो एक दिन पापा के साथ यही काम करती थी. उस दिन को ताज़ा किया. सर्दी के मौसम के छोटे से दिन की शाम होते-होते वेस्टमिन्स्टर ब्रिज के ऊपर जा पहुँची.

नीचे बहती थेम्स को देखते उस ने अपनी अब तक की ज़िन्दगी के बारे में सोचा तो खुद को बिलकुल अकेला पाया. बहते पानी की अकेली नदी की तरह. और उसी पल, उस शाम ठंडी हवा से खुद को बचाते कोट के बटन बंद करते उसने सोचा कि अब ज़िन्दगी इसी नदी की तरह ही बितानी है. बहते हुए, खुद के साथ. बेलाग.

एक के बजाय दो महीने बाद जब घर पहुँची तो पापा माँ के चेहरे देख कर दिल उदास हो आया. वहां भी वही ग्लानि और पछतावा नज़र आया जो मसूद की आँखों में था. एक भी लफ्ज़ मसूद के बारे में उन के बीच नहीं कहा गया. और फिर उसके बाद पापा ने तो कभी उसकी निजी ज़िदगी के बारे में कोई सवाल नहीं किया. माँ ने कभी कोशिश की तो नगमा ने टका सा जवाब दे दिया.

अगले छह महीनों में नगमा ने कड़ी मेहनत की और अपनी एक इवेंट मैनेज मेंट की कंपनी खडी कर ली. बिसनेस जमाने में कॉलेज के दिनों में कॉलेज यूनियन के लिए किया गया काम बहुत मददगार साबित हुआ. जहाँ जब किसी को उसने कहा दोस्तों ने खड़े हो कर उसकी मदद की. पहला असायिनमेंट मिला उसके दोस्त अनीश कोहली की शादी का. भव्य आयोजन किया नगमा ने और उसके बाद तो काम का अम्बार लग गया.

तीन साल के अंदर नगमा एक बेहद सफल बिज़नस वुमन बन चुकी थी. आज वह एक बहुत बड़ा नाम है. जम कर काम करती है. दो सौ से ज्यादा लोग उसकी कंपनी को चलाते हैं. साल में दो बार एक एक महीने के लिए हॉलिडे करती है. पासपोर्ट पर पैंतीस स्टाम्प लग चुके हैं. ज़िन्दगी में ठहरना नहीं है यह फैसला कर चुकी है.

पुरुष उसके साथ के लिए ललचाते हैं. लेकिन इस मामले में नगमा बेहद चूजी है. उसको पसंद आने वाले मर्द में कई सारी बातें होना आवश्यक है. इस बार यह सब उसे नरेश में नज़र आया है. हर बार की ही तरह उसने पहले ही कुछ बातें साफ़ कर दी है ताकि नरेश किसी भी तरह की गलतफहमी का शिकार न हो. और इस सम्बन्ध को लेकर गंभीर न हो जाये.

नगमा जानती है अधिकतर पुरुषों के लिए शारीरिक सम्बन्ध सतही ही होते हैं. उनमें भावनाएं शामिल नहीं होती. और यही बात उसे सूट भी करती है. कारण कि नगमा ने भावनाओं को एक बक्से में बंद कर के अपनी ज़िन्दगी की नदी में बहा दिया है. खुद पुल पर रखी बेंच पर बैठ कर नदी को बहते देखती है और ज़िन्दगी के बारे में सोचती है.

अब उसे किसी का इंतजार नहीं है. उसके दिल और जिस्म के पन्नों पर सिर्फ और सिर्फ ज़िन्दगी का नाम लिखा है. तब तक कि जब तक मौत उसे उतनी ही मोहब्बत से न बुलाये जितनी मोहब्बत वह खुद ज़िन्दगी से करती है.

नरेश की आवाज़ ने नगमा को चौंका दिया. अपने आप में गुम बाथ गाउन पहने सुइट के बेडरूम में वह पहुंची ही थी.

"यार, आओ चाय ठंडी हो रही है. तुम नहाने में कितना वक़्त लेती हो."

नगमा ने उसके स्वर को खंगालने की कोशिश की. वहां कुछ ख़ास नहीं मिला सिवाय हलके से चुहल के. उसके दिल को तसल्ली हुयी. लगा आने वाला वक़्त अच्छे संकेत दे रहा है. मुस्कुराती हुयी सीधे नरेश की वैसी ही मुस्कुराती आँखों में बरबस झांकती वह सोफे में उसकी बगल में धंस गयी.

केतली से कप में चाय ढालता नरेश का हाथ हिल गया. चाय कप से बाहर सॉसर में और फिर सॉसर से भी बाहर चारों तरफ छलक गयी.

प्रितपाल कौर.