लगभग 40 साल पुरानी है। उस समय फैन और कूलर का जमाना नहीं था। ए.सी. की बात तो दूर थी। मई के महीना था। ऐसा लग रहा था जैसे धरती आग उगल रही थी। चिलचिलाती धुप चल रही थी । लू की लहर से सारे परेशान थे । उस समय पेड़ और तालाब हीं शांति के स्रोत था। आदमी तो आदमी, जानवरों का भी बुरा हाल था। भैंसे दिन भर पोखर या तालाब में पड़ी रहती थी। पूर्णमासी प्रसाद जी हाथ का पँखा चला चला कर किसी तरह स्कूल में पढ़ाकर साईकिल से घर लौटे। पसीने से लथपथ, घर पे आकर थोड़ी देर आराम किए । फिर चप्पा नल से ठंडा पानी निकाल कर नहाने लगे । श्रीकांत जी घर के बाहर एक पेड़ के नीचे वो चप्पा नल लगा हुआ था । बदन पे खूब जोर जोर से सबुन मल मल कर नहा रहे थे । उसपर से कनैल के पेड़ के नीचे शीतल छाया।अद्भुत आनंद मिल रहा था। आँखों में भी साबुन की झाग लगी हुई थी । शायद पुरे बदन की थकान को मिटाना चाह रहे थे । अचानक उनके पीठ पे किसी ने जोर का मुक्का मारा।
धपाक।
पुरे बदन में सनसनी फैल गई । शरीर का रोआं रोआं कांप उठा। हड़बड़ा कर आँख खोए कि आँखों मे फैला हुआ साबुन मिर्ची की तरह काम कर रहा था।
इससे पहले कि आंखों में पानी डालकर साबुन धोते, मारने वाला उड़न छू हो गया। श्रीकांत जी पकड़ नही पाए उसको।
बहुत कोशिश की गई , पर मारने वाला पकड़ा नहीं गया । घर के सारे लोगों से, पड़ोसियों से पूछताछ की गई। सारे प्रयत्न व्यर्थ साबित हुए। पूर्णमासी प्रसाद की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी। काफी मीठे स्वभाव के व्यक्ति थे। फिर उनको आखिर मारा किसने? जमीन निगल गई कि आसमान खा गया, इस बात का पता चल हीं नहीं पाया।
तनाव के कारण पूर्णमासी प्रसाद को नींद आनी बंद हो गई। डॉक्टर के पास उनको ले जाया गया। कोई बीमारी नहीं निकली। घर की महिलाएँ खुसर फुसर करने लगीं। लगता है चुड़ैल का काम है। ओझा जी को बुलाया गया। ओझा जी आते हीं सूंघने लगे। अड़हुल के पेड़ के पास पहुँच गए। पहुंचते हीं चिल्ला उठे। इसपे तो चुड़ैल आकर बैठ गई है। पुरुष के नहाते हुए बदन को देखकर परेशान हो गई। उसी ने पूर्णमासी प्रसाद को मुक्का मारा। फिर क्या था चुड़ैल की आत्मा की शांति के लिए तंत्र साधना की गई। एक जोड़ी कपड़ा, एक गाय और 500 रुपये ओझा जी को दान में दिए गए। 5 ब्राह्मणों को भोज खिलाया गया। और।अंत मे यज्ञ की अग्नि में अड़हुल की कटी हुई साखों की।आहुति दी गई। चुड़ैल की आत्मा मुक्त हो गई। पूर्णमासी प्रसाद ने चैन की साँस ली। अब उनकी नींद नियमित हो गई। अड़हुल की चुड़ैल मुक्त जो हो गई थी।
इस घटना को हुए 6 महीने बित गए थे । गुड्डू की माँ गुडडू दूध पीने के लिए बार बार आग्रह कर रही थी। पर वो पीने को तैयार नहीं था। अंत में उसकी माँ ने धमकी दी, अगर वो दूध नहीं पियेगा, तो वो अड़हुल वाली चुड़ैल को बुला लेगी। पर इस बात का गुडडू हँसने लगा। वो बोला अड़हुल पर कोई चुड़ैल वुडैल नहीं है। फिर उसने शान से अपनी कहानी सुनाई।
लोग उस घटना को लगभग भूल हीं गए । पूर्णमासी प्रसाद जी एक हाई स्कूल में शिक्षक थे। उनका भतीजा गुडडूउन्हीं के स्कूल में पढ़ता था। लगभग एक साल पहले श्रीकांत जी ने गुडडूको सही जवाब नही देने पर छड़ी से मारा था। बहुत दिनों से से गुडडू बदले का इन्तेजार कर रहा था। उस दिन चाचाजी के नहाते वक्त मौका मिला था ।
गुडडू हीं उड़हुल वाला चुड़ैल था।