गुमशुदा की तलाश
(38)
सरवर खान ने अपना प्लान बहुत सोंच समझ कर बनाया। उन्होंने खाना लेकर आने वाले व्यक्ति के सामने इस तरह दिखाना आरंभ किया जैसे कमरे का अकेलापन उन पर असर कर रहा है। उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा रहा है।
वह जानते थे कि खाना लेकर आने वाला शख्स सारी खबरें रॉकी तक पहुँचाता है। यह सोंच कर कि जैसा वह चाहता था वैसा ही हो रहा है रॉकी निश्चिंत हो जाएगा।
सरवर खान के इस दिखावे का एक असर यह भी हुआ था कि खाना लेकर आने वाला व्यक्ति अब उतना सजग नहीं रहता था जितना पहले रहता था।
आज सरवर खान अपनी पूरी तैयारी में थे। जैसे ही उन्हें इस बात की आहट लगी कि दरवाज़ा खुल रहा है वह वॉशरूम में घुस गए। उन्होंने शावर चला दिया। वह व्यक्ति जब भीतर आया तो उसे लगा कि सरवर खान शावर ले रहे हैं। खाने की ट्रॉली रख कर वह अपना मोबाइल लेकर बैठ गया।
सरवर खान ने धीरे से दरवाज़ा खोला। वह व्यक्ति निश्चिंत था। अपने मोबाइल की स्क्रीन पर नज़र जमाए था। सरवर खान सावधानी से बाहर निकले। एल्यूमीनियम की फोल्डेड बैसाखी एक हथियार की तरह उनके हाथ में थी।
उस शख्स की पीठ सरवर खान की तरफ थी। सरवर खान सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। शावर की आवाज़ थोड़ी बहुत आहट को दबा दे रही थी।
उस व्यक्ति के पास पहुँच कर सरवर खान ने पूरी ताकत से वह बैसाखी उसके सर पर दे मारी। वह ज़मीन पर गिर गया। सरवर खान ने गर्दन की नस दबा कर उसे बेहोश कर दिया।
उन्होंने फौरन उस व्यक्ति की जेबें टटोलनी शुरू कर दीं। जैकेट की अंदरूनी पॉकेट में वह कार्ड था। सरवर खान ने कार्ड लिया और दरवाज़े की तरफ लपके। कार्ड स्वाइप करते ही क्लिक की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुल गया। सरवर खान बाहर निकल गए। दरवाज़ा फिर लॉक हो गया।
सरवर खान बाहर निकले तो वहाँ एक छोटा सा कॉरीडोर था। उन्होंने कॉरीडोर पर नज़र डाली। उनके कमरे के बगल में एक और कमरा था। वह सोंचने लगे। इस जगह केवल दो ही कमरे हैं। इस कमरे में भी क्या किसी को कैद करके रखा गया है। कहीं बिपिन तो नहीं है इस कमरे में। लेकिन यह पता करने का कोई उपाय नहीं था। वहाँ से जल्द से जल्द निकल जाने में ही समझदारी थी। बाहर जाकर वह पुलिस की मदद से यहाँ आ सकते हैं। यह सोंच कर वह आगे बढ़ गए।
कॉरीडोर के अंत में एक लिफ्ट थी। उसके बगल से ही नीचे जाने की सीढियां भी थीं। सरवर खान ने सीढ़ियों का चुनाव किया। वह सतर्कता बरतते हुए सीढ़ियां उतरने लगे। सीढ़ियों के अंत तक पहुँचने पर उन्होंने देखा कि यह एक स्टोर रूम था। यहाँ ग्रासरी रखी हुई थी। दीवार से लगी काँच की अलमारी में मंहगी क्राकरी सजी हुई थी। एक अलमारी वाइन ग्लासेज़ से भरी हुई थी। इस समय स्टोर में कोई नहीं था। वह नीचे उतर कर स्टोर रूम से बाहर जाने का रास्ता देखने लगे। लेकिन यहाँ भी सिर्फ एक दरवाज़ा था।
तभी उन्हें जानी पहचानी क्लिक की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह जल्दी से ग्रासरी की अलमारी के पीछे छिप गए। एक व्यक्ति मटन चॉपर के साथ स्टोर रूम में दाखिल हुआ। स्टोर में एक हॉरिजोंटल फ़्रिज रखा था। वह फ़्रिज खोल कर उसमें रखे मटन में से एक बड़ा टुकड़ा काटने लगा।
मटन का टुकड़ा काटने के बाद वह चॉपर को फ़्रिज के टॉप पर रख कर टुकड़े को सेलोफेन के बैग में डालने लगा। सरवर खान फुर्ती से बाहर आए। उन्होंने चॉपर उस आदमी की गर्दन पर लगा दिया।
कंट्रोल रूम में बैठा आदमी कुछ समय के लिए अपनी सीट से उठ कर गया था। वह जैसे ही वापस आकर बैठा रॉकी ने कंट्रोल रूम में प्रवेश किया। वह कुछ परेशान लग रहा था।
खाना लेकर जाने वाला व्यक्ति सरवर खान के पास जाता था तब कुछ देर बाद रॉकी को सब ठीक है ऐसा मैसेज करता था। पर इस बार उसका मैसेज नहीं आया था। रॉकी ने कंट्रोल रूम में बैठे आदमी से कहा कि वह फिफ्त फ्लोर के कॉरीडोर की फुटेज दिखाए।
स्क्रीन पर कॉरीडोर की तस्वीर उभरी। कॉरीडोर में कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था। रॉकी ने कुछ मिनटों पहले की फुटेज दिखाने को कहा।
खाना लेकर भीतर जाता व्यक्ति दिखाई पड़ा। कुछ देर कॉरीडोर में शांति रही। उसके बाद कमरे का दरवाज़ा खुला। सरवर खान बाहर निकलते दिखे। फिर लिफ्ट के बगल की सीढियों से नीचे उतर गए।
रॉकी ने फौरन सिक्योरिटी को अलर्ट किया कि कैदी भाग निकला है।
सरवर खान ने उस आदमी के गर्दन पर चॉपर रख कर कहा।
"मुझे फौरन कार्ड निकाल कर दो। ताकी मैं दरवाज़ा खोल सकूँ। होशियारी की तो एक झटके में गर्दन उड़ा दूँगा।"
वह आदमी घबरा गया। उसने फौरन कार्ड निकाल कर दे दिया।
"मुझे बताओ यह कौन सी जगह है ? यहाँ से बाहर कैसे निकल सकते हैं ?"
उस आदमी ने बताया कि यह ड्रीम मैंशन है। गोवा के आलीशान मैंशनों में से एक । यह राकेश तनवानी का घर। इस समय वह चौथी मंज़िल पर हैं।
सरवर खान ने उसकी गर्दन की नस दबा कर उसे भी बेहोश कर दिया। उन्होंने कार्ड से दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गए।
कुछ ही क्षणों बाद एक आदमी गन लेकर उन्हीं सीढ़ियों से उतरा जिससे सरवर खान आए थे। स्टोर रूम में केवल एक बेहोश व्यक्ति था। उसने हउस कीपिंग विभाग की यूनीफॉर्म पहनी हुई थी। वह फिर से सीढ़ियां चढ़ कर फिफ्त फ्लोर पर चला गया।
सरवर खान हाथ में चॉपर लिए हुए आगे बढ़ रहे थे। स्टोर रूम से निकले तो वह सीधे बड़े से किचन में आ गए। उन्हें चॉपर के साथ देख कर वहाँ अफरा तफरी मच गई।
"मैं किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। मुझे बस इस मैंशन से बाहर जाने का रास्ता चाहिए।"
कुछ लोगों ने लिफ्ट की तरफ इशारा किया। सरवर खान लिफ्ट के अंदर घुस गए। उन्होंने ग्राउंड फ्लोर का बटन दबा दिया।
लिफ्ट में सरवर खान सोंच रहे थे कि उनका इस तरह भागने की कोशिश करना खतरनाक है। रॉकी ने अब तक अपने आदमियों को सतर्क कर दिया होगा। पर उनके पास जोखिम उठाने के अलावा कोई चारा नहीं था। कमरे में कैद वह यह भी नहीं जानते थे कि वह हैं कहाँ। ऐसे में या तो खुद को भाग्य के भरोसे छोड़ देते या फिर जोखिम उठाते। उन्होंने जोखिम उठाया। हो सकता है वो निकलने में कामयाब हो जाएं। या फिर पकड़े जाएं। जो भी हो पर अब वह यह तो जानते हैं कि वह हैं कहाँ।
वह हर परिस्थिति के लिए तैयार थे। लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर रुकी जैसे ही वह बाहर आए चार गनें उनके ऊपर तनी हुई थीं। सिक्योरिटी के लोग उन्हें रॉकी के पास ले गए।
एक बड़ी सी लांज थी। चारों तरफ काँच की दीवारें थीं। बाहर दूर तक हरियाली दिखाई पड़ रही थी। नीचे ग्राउंड फ्लोर पर बना स्विमिंगपूल भी दिखाई दे रहा था।
रॉकी एक सफेद रैक्सीन के सोफे पर आराम से बैठा था। पर उसका रूप कुछ बदला हुआ था। बालों का स्टाइल बदला हुआ था। सामने गोल्डन कलर का गुच्छा नहीं था। शायद विग लगाई हुई थी। कान में कोई बाली भी नहीं थी। इस समय वह एक संभ्रांत व्यापारी लग रहा था।
उसे देख कर सरवर खान बोले।
"कितने रूप हैं तुम्हारे। इतना खौफ है मन में कि सही रूप भी दुनिया को नहीं दिखा सकते हो।"
रॉकी कुछ नहीं बोला। उसके चेहरे पर तनाव के कारण कठोरता उभर आई थी।
"खान साहब....बहादुरी और बेवकूफी दो अलग चीज़े हैं। आप ने जो किया वह बेवकूफी है।"
"पर मेरी बेवकूफी ने भी तुम्हें डरा दिया। समझ लो मुझे तोड़ना इतना आसान नहीं है।"
रॉकी उठ कर खड़ा हो गया। सरवर खान के सामने जाकर बोला।
"खान साहब मैं ज़िद्दी हूँ पर बेवकूफ नहीं। अब आपको और ज़िंदा रखने का कोई फायदा नहीं है। अब आप कब्र में आराम कीजिए।"
तभी उसके एक आदमी ने आकर कहा।
"सर आपको अपने होटल में शेख मोहम्मद अब्दुल रशीद का स्वागत करना है। वह गोवा पहुँचने ही वाले होंगे। आप भी होटल चलिए।"
"आता हूँ....."
रॉकी ने हाथ के इशारे से उसे जाने को कहा। उस आदमी के चले जाने के बाद रॉकी ने वहाँ खड़े अपने दो साथियों से कहा।
"खान साहब को जंगल में ले जाकर माथे के बीच में गोली मार दो। वहीं इन्हें दफना देना।"