गुमशुदा की तलाश
(29)
रंजन को ऐसा कोई उपाय नहीं सूझ रहा था जिससे वह बिना उस शख्स के सामने आए आंचल की मदद कर सके। वह जान रहा था कि किसी भी क्षण वह शख्स आंचल को लेकर वहाँ से चला जाएगा। कुछ ना सूझने पर उसने ईश्वर से प्रार्थना की।
वह शख्स आंचल को लेकर लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा था। रंजन को लगा कि अब वह कुछ नहीं कर पाएगा। तभी उसने देखा कि एक आदमी ने उस शख्स को आवाज़ दी जो आंचल के साथ था। उस शख्स ने आंचल को वहीं रुकने का इशारा किया और आवाज़ देने वाले व्यक्ति की तरफ बढ़ गया। दोनों बातें करने लगे।
रंजन को लगा कि ईश्वर ने उसे यह मौका दिया है। उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया। वह भाग कर आंचल के पास पहुँचा। उसे देख कर आंचल आश्चर्यचकित रह गई।
"अभी कुछ मत कहो। मुझे पता है कि तुम मुश्किल में हो। चुपचाप मेरे साथ चलो।"
यह दूसरा मौका था जब रंजन मददगार बन कर उसके सामने खड़ा था। वह भी उस शख्स से नज़रें बचाती हुई उसके साथ चली दी। दोनों तेज़ी से होटल के बाहर निकल गए।
दोनों होटल के बाहर खड़ी रंजन की कार में बैठ गए। रंजन ने कार होटल से कुछ दूर एक गली में ले जाकर खड़ी कर दी। उसने आंचल से कहा।
"तुमको देख कर लग रहा था कि तुम उसके साथ अपनी मर्ज़ी से नहीं थीं। किसी दबाव में आई थी।"
आंचल की आँखों में आंसू छलक आए। उन्हें छिपाने की कोशिश में वह मुंह घुमा कर बाहर की तरफ देखने लगी।
"अपनी कुछ नादानियों की सज़ा भुगत रही हूँ।"
रंजन का दिल उसे ऐसे दुखी देख कर पसीज गया। वह बोला।
"मुझे लगता है बिपिन के उलझे हुए केस से तुम्हारी उलझन भी जुड़ी हुई है। इससे निकलने का एक ही तरीका है कि तुम सब सच सच बताओ। जो तुमने पहले नहीं किया था।"
आंचल रंजन के चेहरे को देख रही थी।
"तुमने पहले मुझसे झूठ कहा था। तुमने छिपाया कि तुम्हारा एक नाम रिनी भी है। तुम ही बिपिन को नंदपुर गांव ले गई थी।"
आंचल ने नज़रें झुका लीं। रंजन ने उससे कहा।
"कम से कम अब सच बोल दो।"
आंचल कुछ कहने जा रही थी तभी उसका फोन बज उठा। रंजन ने स्क्रीन पर नाम देखा। उस शख्स का ही फोन था।
"आंचल....फोन रिसीव कर स्पीकर पर डाल दोऔर रिकॉर्डिंग ऑप्शन ऑन कर दो। तुम अधिक मत बोलना। उसे बोलने देना।"
आंचल ने कॉल रिसीव कर वैसा ही किया जैसा रंजन ने कहा था।
"कहाँ चली गई ? मैंने वहीं रहने को कहा था ना।"
आंचल कुछ नहीं बोली।
"चुप क्यों है ? क्या समझती है कि मुझसे भाग सकेगी। तू जानती है कि मैं क्या कर सकता हूँ।"
रंजन ने धीरे से आंचल के कंधे पर हाथ रख कर उसे हिम्मत दी।
"तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकोगे।"
"अच्छा.... बड़ी हिम्मत आ गई तुझमे। भूल गई तेरे दो वीडियो मेरे पास हैं। वो वायरल हो गए तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी।"
आंचल ने रंजन की तरफ देखते हुए जवाब दिया।
"हाँ हिम्मत आ गई है। मैंने अब सच का साथ देने की ठान ली है।"
कह कर आंचल ने फोन काट दिया।
"शाबाश.... तुमने सचमुच हिम्मत दिखाई।"
"वो मेरे वीडियो वायरल कर देगा। मेरे घरवालों पर क्या बीतेगी।"
"तुमने उसके साथ हुई बातचीत रिकॉर्ड की है। ऐसा करो कि वह रिकॉर्डिंग उसे वाट्सअप पर भेज दो। इस रिकॉर्डिंग को संभाल कर रखना।"
आंचल ने बातचीत की रिकॉर्डिंग उस शख्स को भेज दी। कुछ ही क्षणों में जवाब आया।
'यू बिच....मुझे ब्लैकमेल कर रही है। तुझे अभी पता नहीं कि मैं क्या कर सकता हूँ।'
आंचल ने रंजन को वह मैसेज दिखाया। रंजन ने कहा।
"मैंने कहा है ना कि तुम्हारी उलझन तभी सुलझेगी जब तुम बिपिन के केस में मदद करोगी। बोलो तैयार हो ?"
आंचल ने पूरे विश्वास से कहा।
"हाँ.... तैयार हूँ।"
रंजन ने वक्त देखा। रात के साढ़े बारह बज रहे थे।
"अभी तो देर हो गई है। मैं तुम्हें हॉस्टल छोड़ देता हूँ।"
"नहीं रंजन अब और देर नहीं करनी है। मैं अभी सब बताने को तैयार हूँ।"
"यहाँ सड़क पर कार में बैठ कर बात करना ठीक नहीं है। मेरे साथ मेरी लॉज में चलोगी।"
आंचल कुछ देर सोंच कर बोली।
"तुम जहाँ ले चलो।"
रंजन ने कार जगत लॉज की तरफ घुमा दी।
लॉज में रंजन और आंचल आमने सामने कुर्सियों पर बैठे थे। दोनों ही खामोश थे। रंजन ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा।
"मैं कभी सोंच नहीं सकता था कि इतने इज्ज़तदार पद पर बैठ कोई इतने नीचे गिर सकता है। जब होटल लॉबी में मैंने उसका चेहरा देखा तो मैं दंग रह गया। तुम उसके साथ असहज लग रही थीं। मैं समझ गया कि वह कुछ गलत कर रहा है।"
रंजन ने आंचल की तरफ देख कर पूँछा।
"प्रोफेसर दीपक बोहरा कब से तुम्हारे साथ इस तरह से पेश आ रहा है ?"
आंचल भी सब कुछ बताने को तैयार थी। उसने कहा।
"रंजन बचपन में मैं एक खिलौने से खेलती थी। साधारण सा खिलौना था। रबर के एक छोटे से गुड्डे के पांव में स्प्रिंग लगी भी। मैं उसे नीचे दबाती। मेरे ज़ोर से गुड्डा दब जाता। पर जब मैं दबाव हटाती तो वह बहुत तेजी से उछल जाता। ठीक उस गुड्डे की तरह मेरे घर में मुझ पर परंपराओं का दबाव था। मैं जब यहाँ पढ़ने आई तो मुझ पर से वह दबाव हट गया। मैं भी उस गुड्डे की तरह उछलने लगी। नई मिली आज़ादी का मैंने जी भर कर प्रयोग किया। सही भी गलत भी।"
"हाँ....उस सबसे मैं वाकिफ हूँ। तुम्हारे बारे में कुछ बातें पता की थीं मैने।"
"एक दिन डिस्को में मुझे कार्तिक मेहता मिल गया...."
यह नाम सुन कर रंजन चौंक गया।
"वही बिपिन का रूममेट..."
"हाँ....वही। वो भी हमारी तरह हॉस्टल से निकल कर रात भर घूमता रहता था।"
रंजन ध्यान से उसकी बात सुन रहा था।
कार्तिक और आंचल की दोस्ती दिन पर दिन बढ़ने लगी थी। लेकिन अपनी दोस्ती को उन्होंने कैंपस के बाहर तक ही रखा था। वह नहीं चाहते थे कि उनके रिश्ते के बारे में लोगों को पता चले। अतः कैंपस के अंदर एक दूसरे से दूरी बनाए रखते थे।
आंचल हॉस्टल से तो अपनी सहेलियों के साथ ही निकलती थी पर बाहर जाकर सारा समय कार्तिक के साथ बिताती थी। दोनों के बीच की दोस्ती में अब शारीरिक आकर्षण प्रबल था। लेकिन आंचल स्वयं पर नियंत्रण रखने की पूरी कोशिश करती थी।
लेकिन जब आकर्षण प्रबल हो और दोनों तरफ से हो तो नियंत्रण करना कठिन होता है। आंचल भले ही अपनी तरफ से पहल नहीं करती थी किंतु कार्तिक की चेष्ठाओं को बहुत दिनों तक नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकी।
एक दिन कार्तिक उसे अपने किसी दोस्त के फ्लैट पर ले गया। उसका दोस्त कहीं बाहर गया हुआ था। फ्लैट के एकांत में कार्तिक ने खुल कर आंचल को उकसाना शुरू किया। थोड़े बहुत ना नुकुर के बाद आंचल भी मान गई। उस रात पहली बार उनके बीच संबंध बना।
एक बार सीमा लांघ लेने के बाद आंचल का संकोच खत्म हो गया था। अब वह और कार्तिक अक्सर अकेले उस फ्लैट में अपमी मनमानी करते थे।
कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। आंचल जब अपना घर छोड़ कर यहाँ आई थी तब उसके भीतर एक विद्रोही ने जन्म लिया था। जैसे जैसे वह उन बंधनों को चुनौती दे रही थी जिनमें बंधे हुए उसका जीवन बीता था। वैसे वैसे उसके भीतर बैठी विद्रोही और मुखर होती जा रही थी।
अब कार्तिक के साथ संबंध बना कर उसने सबसे बड़ी मर्यादा को चुनौती दी थी। उसके भीतर की विद्रोही अपनी विजय के दर्प में फूली नहीं समा रही थी।