गुमशुदा की तलाश
(28)
रंजन का पेट तो नहीं भरा पर पेट में कुछ पड़ने से वह बेहतर महसूस कर रहा था। उसने वैद्य जी से घर के भीतर से पीने के लिए थोड़ा पानी मंगा देने को कहा। वैद्य जी का पोता उनके पास ही खड़ा था। उन्होंने उसे भीतर पानी लाने के लिए भेज दिया। वैद्य जी ने बातचीत आगे बढ़ाने की मंशा से कहा।
"भइया शहरी बाबू हो....यहाँ इस पिछड़े गांव में क्या करने आए हो ?"
रंजन को लगा कि जिस मकसद के लिए वह आया है उसकी शुरुआत करने का यह अच्छा मौका है।
"मैं यहाँ कुछ जानकारियां लेने आया हूँ।"
"जानकारियां....कैसी जानकारियां ?"
रंजन ने कुछ सोंच कर धीरे से कहा।
"चिंता हरण फूल के बारे में।"
चिंता हरण फूल का नाम सुन कर वैद्य जी को कुछ आश्चर्य हुआ।
"तुम इस फूल के बारे में कैसे जानते हो ?"
रंजन जवाब देता उससे पहले वैद्य जी का पोता एक लोटे में पीने के लिए पानी लेकर आ गया। रंजन ने एक तरफ जाकर चुल्लू से पानी पिया। उसके बाद वापस बेंच पर बैठते हुए बोला।
"मेरा एक दोस्त पहले यहाँ आया था। उसने बताया कि गांव में कोई चमत्कारी फूल है। उसका नाम चिंता हरण है।"
"तुम उन बाबूजी की बात कर रहे हो जो बहुत बड़े कालिज में ऊँची पढ़ाई पढ़ रहे थे। वो क्या कहते हैं पी..एच...'
" पीएचडी..."
"हाँ.... वही।"
रंजन ने मोबाइल पर बिपिन की तस्वीर दिखाते हुए पूँछा।
"यही था वह ?"
"हाँ यही थे वो बाबूजी...भला सा नाम था....बिपिन।"
"आपसे क्या जानना चाहता था बिपिन ?"
"हम वैद्य हैं। फूल पत्ती, जड़ी बूटी से दवा बनाते हैं।"
"चिंता हरण फूल से कौन सी दवा बनती है ?"
वैद्य जी कुछ रुक कर बोले।
"इससे दवा नहीं बनती है। इसका नशा किया जाता है। कई शताब्दियों से यह फूल इस गांव और आसपास के इलाके में पाया जाता है। फूल को तब तक उबालते हैं जब तक पानी उबल उबल कर तली तक ना पहुँच जाए। उसके बाद ठंडा होने पर बचे हुए फूल को मसल कर महीन कपड़े से पानी को छान लेते हैं। उसके बाद लोग इसकी कुछ बूंदें तम्बाकू में मिला कर हुक्का पीते हैं। एक कश में आदमी जन्नत की सैर करने लगता है।"
"ये नशा बनाता कौन है ?"
"घर घर में बनता है। लोग जंगल से फूल तोड़ लाते हैं। उबाल कर अर्क निकाल लेते हैं। नशे के कारण लोग अपना दुख दर्द भूल जाते हैं। इसलिए फूल को चिंता हरण कहते हैं।"
"बिपिन भी क्या ये फूल ले गया था।"
"हाँ....जंगल से कई सारे फूल तोड़ कर ले गए थे। कह रहे थे कि प्रयोगशाला में जाँच कर दवा बनाएंगे।"
रंजन समझ नहीं पा रहा था कि जो चीज़ नशे के काम आती है उससे बिपिन कौन सी दवा बनाने वाला था। लेकिन अभी इस बात पर गहराई से विचार करने का समय नहीं था। उसने वैद्य जी से पूँछा।
"एक बात बताइए। बिपिन यहाँ पर अकेला आया था या कोई उसके साथ था ?"
वैद्य जी ने सोंचते हुए कहा।
"नहीं एक लड़की भी थी साथ में।"
"आप उस लड़की का नाम जानते हैं।"
"याद नहीं पड़ रहा है। शहरी नाम था।"
"रिनी तो नहीं था ?"
"हाँ शायद यही था।"
"देखने में कैसी थी ? कद काठी कैसी थी ?"
वैद्य जी कुछ देर रुके। मन ही मन उस लड़की की तस्वीर बनाने लगे।
"भइया देखने में किसी अमीर घर की लगती थी। हमें तो लगा था कि राजस्थान की ही थी। मझोले कद की दुबली पतली लड़की थी।"
"और कोई बात जो खास हो ?"
"हाँ.....उसकी दोनों भौहों के बीच में तिल था।"
वैद्य जी की इस बात से रंजन को कुछ याद आया। जब वह आंचल से मिला था। तब बात करते हुए उसका ध्यान उसकी दोनों भौहों के बीच गया था। पहले उसे लगा कि छोटी सी काली बिंदी लगा रखी है। पर ध्यान से देखा तो वह तिल था।
तो आंचल का एक नाम रिनी भी है। बिपिन ने उसके लिए ही लिखा था कि वही है जो उसे समझ सकती है। पर आंचल ने यह बात क्यों छिपाई। एक साथ कई सवाल रंजन के मन में उठे। उन सबका जवाब आंचल से ही मिल सकता था।
रंजन ने वैद्य जी को मदद के लिए धन्यवाद दिया। अगली बस का समय पूँछ कर वह भीमापुर लौट गया।
लॉज में लौटते हुए रंजन को बहुत रात हो गई। उसने रास्ते में एक ढाबे पर पेट भर खाना खा लिया था। दिन भर सफर करने के बाद अब वह थका हुआ था। लेकिन उसे तसल्ली थी कि रिनी कौन है इस बात का पता चल गया है। अब वह सोंच रहा था कि आंचल से सारी सच्चाई कैसे पता की जाए। उससे सीधे सीधे पूँछताछ करे। या फिर उसके बारे में गुपचुप तरीके से कुछ और बातों का पता करे।
रंजन ने आंचल के बारे में कुछ और बातें पता करने का मन बनाया।
आंचल अपने हॉस्टल के रूम में परेशान सी बैठी थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। तभी मोबाइल पर एक मैसेज आया।
'जहाँ कहा है वहाँ सही समय पर पहुँच जाना....वरना तू जानती है....'
मैसेज पढ़ कर आंचल के पसीने छूट गए। वह डर कर रोने लगी। उसके आसपास कोई भी नहीं था जो उसे सांत्वना देता। उसने मन ही मन ईश्वर से गुहार लगाई।
'आखिर कब तक मैं अपनी उन नादानियों का खामियाज़ा भुगतूँगी। अब तो माफ कर दो।'
ईश्वर से अपनी बात कह कर वह और ज़ोर से रोने लगी। कुछ देर तक वह अपनी गलतियों पर पछताती रही। पर अब कोई लाभ नहीं था। वह मजबूर थी। उसे ना चाहते हुए भी उन लोगों की बात माननी पड़ेगी। यह सोंच कर वह उठी। उसने कबर्ड से एक निकाल कर पहनी। मेकअप लगाया। अपना पर्स और मोबाइल लेकर निकल गई।
रंजन गर्ल्स हॉस्टल के गेट पर खड़ा था। वह आंचल और उसकी सहेलियों के निकलने का इंतज़ार कर रहा था। उसने मन बनाया था कि वह फिर से आंचल की गतिविधियों पर नज़र रखेगा। उससे शायद कुछ ऐसा पता चल जाए कि वह उसे घेर कर सारी सच्चाई निकलवा सके।
हॉस्टल के गेट से कुछ दूर रंजन कार में बैठा नज़रें जमाए हुए था। कुछ देर बाद उसने आंचल को बाहर आते देखा। वह अकेली थी। उसने गेट से बाहर निकल कर हाथ से इशारा किया। एक लाल रंग की कार उसके पास आकर रुकी। आंचल उसमें बैठ गई। कार उसे लेकर आगे बढ़ गई। रंजन भी एक निश्चित दूरी बना कर कार का पीछा करने लगा।
कुछ ही देर में कार विशाखा पैलेस नाम के होटल के पार्किंग लॉट में घुस गई। रंजन ने अपनी कार होटल से कुछ ही दूरी पर पार्क कर दी। वह भागता हुआ पार्किंग लॉट में घुस गया। उसने इधर उधर देखा। वह लाल रंग की कार उसे दिखाई पड़ गई। पर आंचल शायद होटल के अंदर जा चुकी थी।
रंजन होटल के भीतर चला गया। होटल लॉबी में पहुँच कर वह सोंच रहा था कि आंचल का पता कैसे किया जाए। तभी वह किसी से बातें करते हुए दिखाई पड़ी। जिससे वह बात कर रही थी उसकी पीठ रंजन की तरफ थी। आंचल को देख कर लग रहा था कि वह परेशान है। रंजन पूरी एहतियात बरत रहा था कि आंचल की नज़र में ना आए।
बात करते हुए वह शख्स अचानक मुड़ा। रंजन उसका चेहरा साफ देख सकता था। उसे देख कर रंजन के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। आंचल और उस शख्स का भी कोई संबंध हो सकता है यह उसने कभी सोंचा भी नहीं था।
लेकिन यहाँ इस शख्स के सामने रंजन आंचल से कुछ नहीं पूँछ सकता था। वह जानता था कि यह शख्स बड़ी चालाकी से बात को अपने पक्ष में मोड़ लेगा। उसके बाद शायद वह सच को सामने ही ना आने दे।
आंचल उसके साथ असहज लग रही थी। उसकी शक्ल से साफ समझा जा सकता था कि वह उस शख्स के साथ किसी मजबूरी में खड़ी है। वह किसी मुसीबत में है।
रंजन के सामने एक मुश्किल थी। वह आंचल को ऐसे मुसीबत में छोड़ कर भी नहीं जा सकता था। ना ही वह अभी उनके सामने आ सकता था। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।
समय भी अधिक नहीं था। जो करना था बस कुछ ही क्षणों में करना था।