डॉमनिक की वापसी
(16)
पार्टी के दूसरे दिन सुबह ही सेतिया ने आसरा श्री के प्रोडक्शन हाउस से अपनी फ़िल्म की घोषणा कर दी थी। यह बात उसने विश्वमोहन, रमाकांत या दीपांश से भी पहले शिमोर्ग को फोन करके बताई थी। शिमोर्ग तब तक दीपांश के कमरे पर ही थी. वह दीपांश से पहले ही उठकर शावर ले चुकी थी. दीपांश के उठते ही उसने उसे फ़िल्म की घोषणा की खबर सुनाई थी. वह चहक रही थी, ‘मैंने कहा था न, कुछ बड़ा होने वाला है, ये सुबह, ये जगह और ख़ासतौर से तुम मेरे लिए कितने लकी हो, सच ये सुबह सबकी ज़िन्दगियाँ बदल देने वाली सुबह है.’
दीपांश जैसे अभी नींद में ही था. अभी एक सपना ख़त्म नहीं हुआ था कि दूसरा शुरू हुआ चाहता था.
शिमोर्ग ने उसे बाहों में भरकर हिलाते हुए कहा, ‘क्या सोच रहे हो उठो, लेट्स सेलिब्रेट’
दीपांश शिमोर्ग की ख़ुशी देखकर मुस्करा दिया. उसने फ़िल्म के बारे में विश्वमोहन और रमाकांत के बीच होने वाली कुछ बातें सुनी थीं पर खुद अभी इस बारे में कुछ सोचा नहीं था. हाँ थिएटर की दुनिया में अब मन कुछ रमने लगा था. जल्दी ही नाटक का पचासवां शो होने जा रहा था जिसमें दीपांश ने विश्वमोहन और रमाकांत से बात करके बहुत सारे बदलाव किए थे, वह अभी उसी के बारे में सोचना चाहता था. और फिर अभी फ़िल्म की स्टोरी, कास्ट, डायरेक्टर कुछ भी तो फाइनल नहीं था. पर शिमोर्ग के चहरे पर उस खबर से आई ख़ुशी को वह यह सब कहकर जाने नहीं देना चाहता था. इसलिए चुप ही रहा.
फ़िल्म की घोषणा को दो चार दिन बीत चुके थे पर दीपांश से किसी ने किसी भूमिका के लिए सीधे बात नहीं की थी पर मंडली में उड़ती-उड़ती ख़बर थी कि दीपांश और शिमोर्ग को सेतिया की फिल्म में ब्रेक मिलना लगभग तय है। यह भी बात चल रही थी कि विश्वमोहन चाहते हैं कि फ़िल्म का काम शुरू हो उससे पहले प्ले के पचासवें शो की तैयारियां पूरी कर ली जाएं, शायद इसीलिए उन्होंने ग्रुप दो भागों में बाँट दिया था- एक वो जो प्ले के पचासवें शो की तैयारियों में रमाकांत और दीपांश के साथ लगा था और दूसरा वो जो फ़िल्म की स्क्रिप्ट को फाइनल रूप देने और मेन लीड को छोड़कर अन्य कुछ भूमिकाओं के लिए ऑडिशन में लग गया था।
हमेशा की तरह इस बार भी ऑडिशन की जिम्मेदारी इति की थी। जैसा कि उसका स्वभाव था, काम मिलते ही वह उसमें जी-जान से जुट गई थी। लोगों के प्रोफाइल छांटने से लेकर, उनके ऑडिशन के विडियो बनाकर उनकी फाइल तैयार करने तक का जिम्मा उसी का था। वह अक्सर इस काम में लेट हो जाया करती थी। कहानी, पटकथा और निर्देशन की जिम्मेदारी विश्वमोहन की थी और इसी वज़ह से वह अक्सर ऑडिशन के लिए अपना समय नहीं दे पाते थे। पर सेतिया जो फिल्म की घोषणा के बाद से इतना उत्साहित था कि वह हमेशा ऑडिटोरियम में ही जमा रहता और कास्टिंग टीम और इति की हर बात में टांग अड़ाता। इति उसकी इन हरक़तो से झुंझला जाती। सेतिया उन दिनों हर जवान और सुंदर लड़की में एक अभिनेत्री बनने की संभावनाएं देखता। गाहे-बगाहे वह इति को भी अभिनय करने की सलाह देता रहता पर इति अपनी तरह की एक अलग ही लड़की थी जो जानती थी उसे क्या करना है। वह सेतिया की तमाम हरक़तों को नज़रअंदाज़ करके अपने काम में लगी रहती। पर एक दिन जब पानी सिर से ऊपर हो गया तो उसने सेतिया को उसकी हरकतों पर जमकर लताड़ लगाईं और वहाँ से चली गई। वहाँ मौजूद और लोगों ने भी बताया कि इति के वहाँ से जाने से पहले उसकी सेतिया से बहुत कहा-सुनी हुई. पर यह ख़बर प्ले की तैयाईयों में लगे लोगों तक उस दिन नहीं पहुंची थी.
इस बात को दबाने के लिए या सचमुच ही ऑडिशन को फाइनल करने के लिए सेतिया ने उसी दिन शाम को मुख्य भुमिकाओं के लिए दीपांश और शिमोर्ग के नामों की भी घोषणा कर दी थी. फ़िल्म में दीपांश और शिमोर्ग का रोल तय होते ही भूपेन्द्र, अशोक, संजू ने दीपांश के फ्लैट पर पार्टी करने का मन बना लिया था. भूपेन्द्र और संजू तो शाम होने से पहले ही बीयर खोल के बैठ गए थे. अँधेरा होते-होते अशोक, अजीत और दीपांश भी जम गए. अब शिमोर्ग, इति, रमाकांत और विश्वमोहन का इंतज़ार था. इन चारों में से कुछ देर बाद रमाकांत अकेले ही पहुंचे थे. उन्हें अकेला देखके सभी को थोड़ा आश्चर्य हुआ था उनके साथ विश्वमोहन और इति को भी होना चाहिए था. शिमोर्ग तो अपने आप ही सीधी वहाँ पहुँचने वाली थी. रमाकांत ख़ुश नहीं लग रहे थे. पर सबके बहुत पूछने पर भी उन्होंने कुछ बताया नहीं. दीपांश के कहने पर एक गिलास बीयर ख़त्म की और चलने के लिए उठ खड़े हुए. दीपांश उन्हें छोड़ने के लिए बिना कुछ कहे ही उनके साथ फ्लैट की सीढियां उतर आया.
रमाकांत जानते थे दीपांश बिना उनके मन की बात जाने उन्हें जाने नहीं देगा और शायद वह उससे कहना भी चाहते थे इसलिए नीचे आकर एक पल रुके फिर फ्लैट के सामने पार्क की ओर बढ़कर सिगरेट सुलगा ली फिर दीपांश की तरफ मुड़ते हुए बोले, ‘सेतिया को इति से कुछ प्रॉब्लम है जिसकी वजह से वह उसे हटाना चाहता है’
‘हटाना चाहता है! क्यूँ?’ दीपांश की आवाज़ में झुंझलाहट थी.
रमाकांत ने सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए कहा, ‘वो इति के बारे में जो कुछ भी कह रहा है वो सब बकवास है, ये मैं जानता हूँ. पर इति ने मुझे बताया कि उसके कई बार वार्न करने पर भी सेतिया ने आडिशन के लिए आने वाली कई लड़कियों से बदतमीजी की. उस दिन इति कुछ देर के लिए किसी काम से ऑडिटोरियम से बाहर गई हुई थी तब इसने नोएडा से आई एक लड़की के साथ कुछ ऐसी हरकत की कि जब इति लौटी तो उसे वह फूटफूट कर रोती हुई मिली, बहुत पूछने पर उस लड़की ने तो कुछ नहीं बताया पर इति के शाम को कैमरे की रिकॉर्डिंग चेक करने पर जो सामने आया वो चौंकाने वाला था, सेतिया की उस लड़की के साथ की गई सारी हरकतें उसमें रिकॉर्ड हैं. उसके बाद दोनों की बहुत बहस हुई और फिर इति वहाँ से चली गई.’ उन्होंने यह सब इस तरह बताया था जैसे वह बार-बार एक ही समय की पुनरावृत्ति देखकर ऊब चुके हों और अब इससे पार पाना चाहते हों.
‘मैं शुरू से ही जानता था, ये सेतिया कुछ ठीक आदमी नहीं है. बेहूदगी ये करे और सजा मिले इति को?’ दीपांश गुस्से से बोला.
‘हाँ पर इस समय प्ले का सिल्वर जुबली शो है और फ़िल्म का भी लगभग सब कुछ फाइनल हो चुका है, सभी का भविष्य दाव पर लगा है.’ भविष्य की बात कहते हुए अतीत के किसी क्षण ने रमाकांत का गला पकड़ लिया था.
‘तो इसका मतलब है वो किसी के साथ भी, कुछ भी करेगा?’ दीपांश रमाकांत के बात को बहुत उदासीन ढंग से कहे जाने से आश्चर्य से भर गया था.
‘मैंने और विश्वमोहन ने जब सेतिया से बात की तो अपनी गलती मानने की बजाए वह इति को हटाने के पीछे पड़ गया.’ रमाकांत ने जैसे न चाहते हुए भी सफ़ाई दी.
‘इति ने जो किया वो सही था, सेतिया किसी को मौका दे रहा है, इसका मतलब यह नहीं कि वह अपनी मनमानी करेगा.’ दीपांश जैसे भीतर ही भीतर कुछ तय करता हुआ बोला.
‘मैंने अभी यहाँ आने से पहले विश्वमोहन से बात की, वह उल्टा मुझ पर ही बरस पड़े, बोले ‘ज़िन्दगी में मौके बार-बार नहीं आते, तुम इति को समझाओ कि वह सेतिया की वह वीडयो रिकॉर्डिंग उसे लौटा दे और उससे सॉरी बोले.’ रमाकांत ने अपनी पुरानी बेबसी को ओढ़ते हुए कहा जिसमें शायद बेबसी से ज्यादा बीते समय की थकान थी.
तभी रमाकांत का फोन बजा उनके घर से फोन था. उन्होंने फोन काटा और वहां से चलने की मुद्रा में आ गए. ठीक तभी उनके चेहरे से लग रहा था वह इस सबसे बहुत आहत हैं और दीपांश के साथ रूककर कुछ देर और बात करना चाहते हैं, अपने खोए हुए आक्रोश को अपने भीतर से खोजकर बाहर लाना चाहते हैं. पर वह रुके नहीं. दीपांश ने कई सवाल अपने में जब्त किए और उन्हें छोड़कर ऊपर पहुँचा. वहाँ इस सबसे बेखबर ढपली हाथ में लिए भूपेन्द्र किसी लोकगीत की तान छेड़े हुए था. संजू और अशोक उसके सुर में सुर मिलाते हुए गाने की कोशिश कर रहे थे. उसे देखते ही भूपेन्द्र ने उससे वॉयलिन बजाने की फ़रमाइश की, बाकी का भी यही मन था, उसने बड़े बेमन से वॉयलिन उठा ली. मन अच्छा न हो तो सुर भी बिखर जाते हैं, वह उन्हें साधता समेटता धीरे-धीरे वॉयलिन बजाने लगा.
कुछ देर में शिमोर्ग भी वहाँ पहुँच गई. उसने आते ही फ्लैट की सारी लाइट्स ऑन कर दीं. उसके बाद बैड पर बैठते हुए बोली, ‘यहाँ तो पार्टी होने वाली थी पर तुम लोग अँधेरे में बैठ के मातम क्यूँ मना रहे हो?’
सब चुप ही रहे. पर भूपेन्द्र चहका, ‘हम पुराने दिनो को विदा कर रहे हैं’
उसकी बात पर सभी मुस्करा दिए.
दीपांश ने कुछ ही देर में वॉयलिन रख दी. थोड़ी देर इधर-उधर की बातों के बाद. शिमोर्ग के अलावा सभी चले गए. उनके जाते ही उसने दीपांश को खींच कर अपने पास बिठाया और उसके कंधे पर अपना सर रखते हुए बोली, ‘मैंने कहा था न कुछ बड़ा होने वाला है.’
जब दीपांश इसपर चुप ही रहा तो शिमोर्ग ने उसकी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फसाते हुए कहा, ‘मैं जानती हूँ तुम क्यों परेशान हो, ये समय इन सब बातों को इग्नोर करके आगे बढ़ने का है.,
‘पर सेतिया.. जैसे लोग..’
शिमोर्ग ने दीपांश की बात के बीच में ही अपनी बात शुरू की, ‘वो हमारे ग्रुप का स्पौंसर है, उसने हमारे ग्रुप से ही मेजर कास्ट लेकर फ़िल्म अनाउंस की है, इति को समझना चाहिए..’
‘तुम्हारे हिसाब से इति को उसका साथ देना चाहिए?’ बोलते हुए दीपांश को लगा जैसे यकायक वह कमरे में अकेला हो गया है.
‘नहीं उसे अपनी लिमिट में रहना चाहिए, सेतिया बहुत बड़ा आदमी है, प्रोड्युसर है.’ इस बार शिमोर्ग अपनी माँ की तरह गर्दन सीधी करते हुए बोली.
‘पर इति ने यह सब अपने लिए नहीं किया. इससे उसे क्या मिलेगा, वो सिर्फ अपना काम कर रही है.’ दीपांश ने बैड से अपने पाँव उतारकर ज़मीन पर रखते हुए कहा.
‘मैं जानती हूँ वो लड़की जो शिकायत कर रही है और इति जो उसका साथ दे रही है क्या चाहती है..’ शिमोर्ग की आवाज़ में अचानक ही अभिजात्य का दर्प भर गया था.
‘क्या चाहती है?’ दीपांश ने एक स्त्री को दूसरी स्त्री के लिए उसके स्वर में सहज सहानुभूति न पाते हुए आश्चर्य से पूछा.
‘वे भी अपने आपको बड़े पर्दे पर देखना चाहती हैं, स्टार बनना चाहती हैं, जब उन्हें अपनी दाल गलती नहीं दिखाई देती तो ये सब शुरू कर देती हैं.’ शिमोर्ग ने किसी बड़े सच से पर्दा उठाए जाने वाले अंदाज़ में, बड़े विशवास से कहा.
इस बार शिमोर्ग द्वारा इति को किसी भी ऐसी काल्पनिक लड़की जो अपनी महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी कर सकती थी, से जोड़ा जाना दीपांश को आहत कर गया था. वह पहले से कुछ भारी आवाज़ में बोला ‘मैं और लड़कियों के बारे में तो नहीं जानता पर इति के साथ ऐसा नहीं है.’
‘बहुत भरोसा है उसपर?’ शिमोर्ग ने दीपांश के चेहरे पर उतरे आए धुंधलके को लक्ष्य करते हुए पूछा.
‘हमें कला कुछ और दे या न दे, आदमी को पहचानने की तमीज़ देती है. कोई किसी को काम करने का मौका दे रहा है इसका मतलब यह नहीं की वह कुछ भी करे. फिर फ़िल्म किसी एक आदमी की महत्वाकांक्षा हो सकती है, सबकी नहीं.’ दीपांश ने अपनी रीढ़ सीधी करके बैठते हुए कहा.
इस बार शिमोर्ग को बात कुछ पटरी से उतरती लगी इसलिए उसने सीधा सवाल किया, ‘क्या मतलब?’
‘मतलब मैं नाटकों में अपने काम से ख़ुश हूँ, यहीं रहकर कुछ और सीखना चाहता हूँ, यह सब बातें शुरू होने से पहले ही मैं मना कर देता पर विश्वमोहन और रमाकांत ने यहाँ तक पहुँचने में बहुत मेहनत की है, हम एक टीम की तरह काम कर रहे थे इसीलिए कुछ कह नहीं सका.’ दीपांश ने शिमोर्ग की उँगलियों से अपनी उँगलियाँ अलग करते हुए कहा.
‘तुम इस फ़िल्म में काम करोगे या नहीं साफ़-साफ़ बताओ?’ शिमोर्ग बैड से उठते हुए बोली.
‘जरूर करूँगा पर ऐसी बातें बार-बार होती रहीं... तो शायद नहीं.’ दीपांश की आवाज़ में निर्णय की दृढ़ता थी जिसने शिमोर्ग को अनिश्चय में धकेल दिया था.
उस दिन असहमति की ही स्थिति में कुछ अन्यमनस्क होकर दोनों ने एक दूसरे से विदा ली.
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