Alakh Niranjan in Hindi Comedy stories by राजीव तनेजा books and stories PDF | अलख निरंजन

Featured Books
Categories
Share

अलख निरंजन

“अलख निरंजन”
"अलख निरंजन!…बोल. ..बम...चिकी बम बम….अलख निरंजन....टूट जाएँ तेरे सारे बंधन" कहकर बाबा ने हुंकारा लगाया और इधर-उधर देखने के बाद मेरे साथ वाली खाली सीट पर आकर बैठ गया|
“पूरी ट्रेन खाली पड़ी है लेकिन नहीं…सबको इसी डिब्बे में आकर मरना है”बाबा के फटेहाल कपड़ों को देखते हुए मैं बड़बड़ाया|
“सबको, मेरे पास ही खाली सीट नज़र आती है। कहीं और नहीं बैठ सकता था क्या?” मैं परे हटता हुआ मन ही मन बोला |
“कहाँ जा रहे हो बच्चा?” मेरी तरफ देखते हुए बाबा का सवाल |
“पानीपत”मेरा अनमना सा संक्षिप्त जवाब था |
“डेली पैसैंजर हो?”…
“जी!…..(मेरा बात करने का मन नहीं हो रहा था)
जानता जो था कि सब एक नम्बर के ढोंगी हैं…पाखंडी हैं, इसलिए दूसरी तरफ मुँह करके खिड़की से बाहर ताकने लगा |
“काम क्या करते हो?”…
“रेडीमेड दरवाजे-खिड़कियों का छोटा सा काम है”ना चाहते हुए भी मैंने जवाब दिया |
“कहाँ इस कबाड़ के धन्धे में फँसा बैठा है वत्स?…तेरा चेहरा तो कोई और ही कहानी कह रहा है”मेरी दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश थी यह |
“तेरे माथे की लकीरें बता रही हैं कि…राज योग लिखा है तेरे भाग्य में। राज करेगा तू…राज”…
राज वाली बात सुनकर आस-पास बैठे यात्रियों का ध्यान भी बाबा की तरफ हो लिया।
मैं मन ही मन हँसा कि “सही ड्रामा है पब्लिक को बेवकूफ बनाने का… किसी एक को लपेट लो, बाकी अपने आप खिंचे चले आएंगे”…
“हुँह!…यहाँ खाने-कमाने के लाले पड़े हैं और ये राज योग बता रहा है”…
“वही घिसे-पिटे पुराने डायलॉग…कोई नई बात है तो बताओ बाबा”मैं बोला….
ना जाने क्यों मेरे ललाट की तरफ गौर से बाबा देख मंद-मंद मुस्काने लगा|
ऐसे एकटक उसे अपनी तरफ घूरता पा मैं मन ही मन बड़बड़ाया “हुँह!…राज योग…पता नहीं कब आएगा ये राजा वाला योग”….
“अपना हाथ तो दिखाओ ज़रा बच्चा"…
मैंने अनमने ढंग से अपना हाथ आगे बढ़ा दिया…
“ये वाला नहीं बच्चा…दाहिना…दाहिना हाथ आगे बढ़ा"….
मैंने भी पता नहीं क्या सोचकर अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ा दिया…
“तेरे हाथ की रेखाएं बता रही हैं कि तेरी आयु बडी लंबी है…पूरे सौ साल जिएगा तू”…
“यह तो मुझे भी मालुम है बाबा…सभी यही कहते हैं कि… शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर"मैं माखौल सा उड़ाता हुआ बोला…
“यहाँ स्साला…मन करता है कि अभी के अभी इस ट्रेन से कूद पडूँ और ये मुझे मुझे लम्बी उम्र का झुनझुना थमाने की जुगत में है”मैं मन ही मन विचरता हुआ बोला|
मेरे चेहरे के आते-जाते भावों को देख बाबा बोला “परेशान ना हो बच्चा…जहाँ इतना सब्र किया है वहां दो-चार साल और ठंड रख…राम जी भला करेंगे”…
“जी!…(ना जाने क्यों मेरा स्वर नम्र होने को आया)
“चिंता ना कर…तेरा अच्छा समय बस…अब आने ही वाला है”…
“सही झुनझुना थमा रहे हो बाबा…यहाँ खाने-कमाने को है नहीं और आप हो कि दो चार साल बाद का लॉलीपॉप थमा रहे हो ताकि ना रुकते बने और ना ही चूसते बने”बिना बोले मुझसे रहा न गया |
“यहाँ स्साली…चिंता इतनी है कि सीधे चिता की तैयारी चल रही है और ये बाबा….
“प्यासा….प्यास से ना मर जाए कहीं…..इसलिए…मुँह में पानी आने का जुगाड़ बना दिया कि बेटा..तू इंतज़ार कर”…
“अभी तक अच्छा समय आने का इंतज़ार ही तो कर रहा हूँ…और क्या कर रहा हूँ"मैं मन ही मन बुदबुदाया…
“ना जाने कब आएगा अच्छा समय?”मैंने उदास मन से सोचा |
“आज ये बाबा कह रहा है कि दो-चार साल इंतज़ार कर। कल को कोई दूसरा बाबा भी यही डायलॉग मार देगा….फिर दो-चार साल और सही”मैं बड़बड़ाया…
“बस…यूँ ही कटते-कटते कट जाएगी ज़िन्दगी”मैं अन्दर ही अन्दर ठण्डी आह भरता हुआ बोला |
मेरी देखादेखी और लोग भी हाथ दिखाने जुट गए कि… “बाबा!…मेरा हाथ देखो बाबा”…. “पहले मेरा देखो बाबा"…
“हाँ!…देख बाबा…देख….जी भर कर देख…इसका--उसका…सबका…आँखें फाड़-फाड़ के देख..सर्च लाईट मार मार के देख। सभी को लॉलीपॉप चाहिए, थमा दे…तेरे बाप का क्या जाता है” मै मुँह फेर आहिस्ता से हँसता हुआ बोला |
“ शश्श!…टी.टी आ रहा है”जिलानी साहब पे नज़र पड़ते ही मैंने कहा….
टी.टी का नाम सुनते ही मजमा लगाई भीड़ कब छंट गई…पता भी नहीं चला। जिलानी साहब जो अपने दल बल के साथ आ पहुँचे थे|
“टिकट!….टिकट?….दिखाइए”…
“म्म..मैं?” मेरे साथ बैठा बन्दा सकपका गया….
“हाँ!…तुम….तुम्हीं से बातें कर रहा हूँ"…
“स्स…सर!…. ‘एम.एस.टी’”….
“सुपर चढ़ा है?”…
“ज्ज...जी!…सर…य्य…ये देखिये"….
“हम्म!…यहाँ साईन कौन करेगा?….निकालो पूरे तीन सौ बीस रूपए"…
“ग्ग..गलती से रह गया सर साईन करना….अभी कर देता हूँ"…
“पहले तीन सौ बीस रूपए निकालो, बाद में आराम से करते रहना साईन-वाईन”…
“प्प..प्लीज़ सर!….इस बार छोड़ दीजिए….आईन्दा से ध्यान रहेगा"….
“हम्म!….देख लो…इस बार तो छोड़ देता हूँ लेकिन अगली बार अगर सुपर चढ़ा नहीं मिला तो पूरे तीन सौ बीस रुपये तैयार रखना”…
“ज्ज...जी!…सर"…
“बहुत दिन हो गए तुमसे भी इंट्रोडक्शन किए हुए”मेरी तरफ ताकते हुए जिलानी साहब बोले
“ज्ज…जी!…सर...जब भी आप कहें"…
“अरे!..अनुराग..मेरे उस काम का क्या हुआ?” जिलानी साहब पलटकर पीछे आते हुए शख्स से मुखातिब होते हुए बोले…
“जी!…वो कैंटीन बन्द थी ना सर…26 जनवरी के चक्कर में….एक दो दिन में ला दूंगा”….
“हम्म!…ध्यान रखना अपने आप, मेरी आदत नहीं है बार-बार टोकने की”…
“ज्ज...जी सर"….
“आपका टिकट?” जिलानी साहब 'मलंग बाबा' की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, पर कोई जवाब नहीं….
“आपसे पूछ रहा हूँ जनाब, टिकट दिखाइए”…
“हम?….हम बाबा हैं”…
“तो फिर मैं क्या करूँ?”जिलानी साहब ने तल्खी भरे स्वर में कहा…
“हम इस मोह-माया के बन्धनों से आज़ाद हैं बच्चा”….
“अच्छा?” जिलानी साहब भी तुक मिलाते हुए बोले
“ये फालतू की बातें छोड़ो और सीधे-सीधे टिकट दिखाओ”…
बाबा एकदम चुप…
“मैंने कहा ना टिकट दिखाइए?” जिलानी साहब तेज़ आवाज़ में बोले
“किससे?….किससे टिकट माँग रहे हो बच्चा?”….
“आपसे..आपसे माँग रहा हूँ जनाबऔर किससे माँग रहा हूँ?”…
“जानते नहीं, हम कौन हैं?”….
“आप जो कोई भी हैं, मुझे इससे मतलब नहीं….आप बस टिकट दिखाएँ….फालतू बात नहीं”…
“अगर है?….तो दिखाते क्यों नहीं?”मैं भी भड़क उठा |
“नहीं है, तो तीन सौ बीस रुपए निकालें”जिलानी साहब रसीद बुक सँभालते हुए बोले |
“हाँ!…टिकट तो नहीं है हमारे पास”…
“कभी लेने की ज़रूरत ही नहीं समझी होगी ना?” मैं बोल पड़ा|
“किसी ने कभी रोका ही नहीं हमें”…
“आज तो रोक लिया ना?”
“आप सीधी तरह से पैसे निकालें, इतना वक्त नहीं है मेरे पास कि….
“वक्त तो बच्चा, सचमुच तेरे पास नहीं है”बाबा जिलानी साहब के माथे को गौर से देखते हुए शांत स्वर में बोले- “शनि तेरे सर पर मंडरा रहा है। राहू…बिना किसी जतन के केतु पर उलटा सवार हो..सीधा चला आ रहा है। जल्दी से कुछ उपाय कर ले, वर्ना पछताएगा”…
“मेरा तो जो होगा देखा जाएगा, आप बस…जल्दी से पैसे निकालो। पूरी गाड़ी चेक करनी है मुझे"जिलानी साहब की आवाज़ सख्त हो चली थी…
अपने टी.टी साहब तो अड़कर खड़े हो गए कि इस बाबा से पैसे वसूल कर ही रहेंगे और बाबा था कि पैसे का नाम आते ही इधर-उधर की उल-जलूल हांकने लगता ।बहस खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। ना बाबा मानने को तैयार, ना जिलानी साहब झुकने को तैयार और आग लगाने के लिए तो मैं ही काफी था ही…मज़ा जो आता था इन सब में। तमाशा देखने वालों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। एक टिकट में दो-दो मज़े जो मिल रहे थे। सफर का सफर और एंटरटेन्मेंट का एंटरटेन्मेंट।बहस चल ही रही थी कि सोनीपत आ गया…
“अगर आप पैसे नहीं देंगे तो मुझे जबरन आपको यहीं उतारना पड़ेगा”कोई और चारा ना देख जिलानी साहब गुस्से से बोल पड़े|
“तू?… तू उतारेगा मुझे?”…
“जी!….जी हाँ…मैं ही उतारूँगा आपको”जिलानी साहब अपनी बेल्ट कसते हुए दृढ़ आवाज़ में बोले…
“ठीक है!…तो फिर उतार के दिखा….एक-एक बात का…एक-एक शब्द का…एक-एक अपमान का हिसाब देना पड़ेगा तुझे यहीं…इसी दरबार में”बाबा मजमा लगाई भीड़ की तरफ देख गुस्से से हुंकारता हुआ बोला…
“तूने मलंग बाबा का अपमान किया है….अब तेरा सर्वनाश…जा लिख दिया मैंने अपनी दिव्य जोत कलम से”बाबा की नशेड़ी आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थी… “चला जा…चला जा यहाँ से चुपचाप वर्ना….घोर अनर्थ हो जाएगा। तूने ईश्वर का अपमान किया है…मेरा अपमान किया है"….
“तो?”…
“मुझसे?…मुझसे टिकट माँगता है?…तेरी तो औकात ही क्या है?” बाबा गुस्से से थर-थर कांपते हुए बोला….
“देखिये!…औकात तो मैं आपको अपनी अच्छी तरह से दिखा सकता हूँ लेकिन भलाई इसी में है कि आप चुपचाप से मुझे अपना टिकट दिखाएँ या फिर जुर्माना भरने को तैयार रहे"…
“अरे!…जा-जा…तेरे जैसे तो छत्तीस मेरे आगे-पीछे दियासलाई ले..धूप-बत्ती करते घूमते फिरते हैं हमेशा”बाबा आसपास इकट्ठे हुए मजमे को गौर से देखते हुए बोले|
“मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि आपके आगे-पीछे कितने लोग घूमते हैं और कितने नहीं…आप बस मुझे अपना टिकट दिखाइए"…
“देख!…मुझे गुस्सा ना दिला वर्ना कहे देता हूँ….बहुत पछ्ताएगा”….
“मेरा तोजो होगा…देखा जाएगा…आप बस टिकट दिखाइए"…
“टिकट?…..वो भी मुझसे?…य्य्य!…ये तू ठीक नहीं कर रहा है”….
“देखिये!…मेरा काम है आप जैसे मुफ्तखोरों को पकड़ना और ये मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि मैं अपनी ड्यूटी ठीक से बजा रहा हूँ"जिलानी साहब गुस्से से चिल्लाए|
“अच्छा!…तो फिर ठीक है…देख तमाशा ……देख…मैं तुझे कैसे श्राप देता हूँ फिर ना कहना कि बाबा ने पहले चेताया नहीं था"ये कहते हुए बाबा ने आवेशित होकर अपने झोले में हाथ डाला और ‘जय काली कलकत्ते वाली’ का जाप करते हुए पता नहीं क्या मंत्र पढ़ा और अपनी बन्द मुट्ठी को जिलानी साहब के चेहरे की तरफ कर फूँक मारते हुए खोल दिया…कुछ राख-सी उड़ी और अपने टी.टी साहब का मुँह धूल से अटा पड़ा था।
“उतारो!…उतारो स्साले….इस पाखंडी बाबा को” उनका गुस्सा भड़क उठा|
“हमको उतार सके, ये तुझमें दम नहीं… तू हमारे से है, हम तुमसे नहीं”बाबा गुस्से में भी तुकबंदी टाईप शायरी सी करता हुआ नज़र आया|
“तेरी इतनी औकात नहीं कि तू मुझे उतार सके”…
“अच्छा?…अभी दिखाता हूँ” जिलानी साहब के चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित उपहास उड़ाने वाले भाव थे|
“देखता हूँ…मुझे लिए बिना ये गाड़ी यहाँ से हिलती भी कैसे है?”कहते हुए बाबा गाड़ी से उतरा और तेज़ी से इंजन की तरफ लपका। वो आगे-आगे और मुझ समेत सारी पब्लिक पीछे पीछे। पब्लिक को तो बस मसाला मिलना चाहिए, चाहे जैसे भी मिले….पूरा इंजॉय करती है, सो मैं भी कर रहा था। इंजन तक पहुँचते ही बाबा सीधा छलांग लगाकर ड्राइवर के केबिन में जा घुसा और झोले से वही राख मंत्र पढ़कर फूँकना शुरू हो गया।
“य्य…ये?…. ये क्या कर रहा है बेवकूफ?” केबिन से बाहर निकालता हुआ ड्राईवर चिल्लाया|
“शश्श!....चुप, एकदम चुप”बाबा का मंत्र पढ़ना जारी था|
तब तक बाहर भक्तजनों का रेला हाथ जोड़ बाबा की जय-जयकार करना शुरू कर चुका था|
“अंधविश्वासी कहीं के….कुछ नहीं होने वाला है।सब टिकट न लेने से बचने का ड्रामा भर है”मैं सबको कहता फिर रहा था लेकिन कोई मेरी सुनने को तैयार ही नहीं। देखते ही देखते उस अधनंगे से मलंग बाबा को पता नहीं क्या सूझा कि सीधा छलांग मारकर पटरी पर आया और इंजन के सामने आकर खड़ा हो गया।
“अब देखता हूँ कि कैसे तनिक सी भी हिलती है गाड़ी?….है हिम्मत तो चला गाड़ी”वह जिलानी साहब को चैलेंज करता हुआ बोला “तूने बाबा का प्यार देखा है…गुस्सा नहीं"टी.टी की तरफ आँखें तरेरते हुए बाबा बोला|
“ईश्वर से?ईश्वर के बन्दों से टिकट माँगता है?….इस सबका तुझे हिसाब देना होगा…आज ही और यहीं….इसी जगह”कहकर बाबा ने फिर वही राख इंजन की तरफ फूँकनी शुरू कर दी|
“कोई समझाओ यार इसे, बेमौत मारा जाएगा” टी.टी साहब भीड़ की तरफ मुखातिब होते हुए बोले|
सब चुप, कोई टी.टी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था|
“ग्रीन सिग्नल दिखाई नहीं दे रहा क्या?” जिलानी साहब ड्राईवर पर बरसे|
“ज्ज..जी!…जनाब"….
“तो फिर चलाता क्यों नहीं जी के बच्चे?”टी.टी. साहब तिलमिलाते हुए बोले|
“य्य…ये बाबा"….
“बाबा गया तेल लेने, तू गाड़ी चला” टी.टी की भाषा भी अभद्र हो चली थी|
“चढ़ा दे स्साले पे गाड़ी….लिख देंगे कि आत्महत्या करने चला था…आ गया अपने आप नीचे। हम क्या करें?”…
“ल्ल…लेकिन…
“चिंता ना कर, गवाही मैं दूंगा। तू चला गाड़ी”….
“साहब!…पता नहीं क्या खराबी आ गई है इसमें, स्टार्ट ही नहीं हो रहा है इंजन”…
“तो स्साले…बन्द ही क्यों किया था?”जिलानी साहब भड़कते हुए बोले….
“म्म…मैंने कहाँ बन्द किया?”….
“तो फिर क्या कोई भूत-प्रेत आकर इसे बन्द कर गया?”…
“जी!….ये तो पता नहीं….कई बार कोशिश कर ली लेकिन पता नहीं क्या बीमारी लग गई है इसे”ड्राईवर इंजन को लात मार बड़बड़ाता हुआ बोला…”घूं घूं की आवाज़ सी आती है और फिर ठुस्स।अभी तक तो अच्छा-भला चलता आया है, दिल्ली से”ड्राईवर की आवाज़ में असमंजस भरा था”पता नहीं क्या चक्कर है?”…
भीड़ के बढ़ते हुजूम के साथ-साथ बाबा का ड्रामा भी बढ़ता जा रहा था। कभी इधर भभूती फूंके तो कभी उधर।जब ग्रीन सिग्नल होने के बावजूद ट्रेन अपनी जगह से नहीं हिली तो स्टेशन मास्टर साहब दौड़े-दौड़े तुरंत आ पहुँचे|
“अरे!…चला ना इसे, चलाता क्यों नहीं? कब से ग्रीन सिग्नल हुआ पड़ा है, दिखाई नहीं दे रहा है क्या? अपनी नौकरी की तो तुझे चिंता है नहीं, मेरी भी खतरे में डलवाएगा? पीछे शताब्दी आ रही है, निकाल इसे फटाफट”….
“अपने बस का नहीं है, आप खुद ही कोशिश कर लो”ड्राईवर तैश में गाड़ी से उतरता हुआ बोला|
“आखिर, हुआ क्या है इसे?”…
“पता नहीं, आप खुद ही चैक कर लो…चलते-चलते इंजन अपने आप बन्द हो गया”…
“देख!…कोई वायरिंग-शायरिंग ना हिल गई हो”स्टेशन मास्टर की आवाज़ नरम पड़ चुकी थी|
“सब देख लिया साहब, कहीं कोई खराबी नहीं दिख रही”ड्राईवर का वही रटा-रटाया सा जवाब|
इतने में खबर पूरे सोनीपत स्टेशन पर फैल गई और ‘बाबा की जय हो'….’बाबा की जय हो' के नारे लगाते अन्दर बाहर...हर तरफ से लोग उसी प्लैटफॉर्म पर इकट्ठा होने शुरू हो गए|
“हाँ!…इस बाबा ने केबिन के अन्दर जाकर कुछ फूंका और इंजन अपने आप बन्द हो गया”ड्राईवर बाबा की तरफ इशारा करता हुआ बोला|
“आखिर!…चक्कर क्या है?”..
“पता नहीं साहब…किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है”…
“सब इसी टी.टी. का किया धरा है। ना ये टिकट माँगता और ना ही ये लफड़ा होता”एक बोल पड़ा|
“तो क्या, अपनी ड्यूटी करना छोड़ दें?” मैं भड़क उठा|
“तो अब करवा ले ना आराम से ड्यूटी। हुँह!…बड़ा तरफदारी करने चला है”वह चिल्लाया|
“उफ्फ़!…एक तो पहले से ही ट्रेन सवा दो घंटे लेट है, ऊपर से ये ड्रामा। पता नहीं, कब चंडीगढ़ पहुंचेगी?”एक सरदार जी परेशान हो घड़ी देखते हुए बोले|
“कोर्ट में तारीख है आज की। नहीं पहुँचा टाइम पे तो समझो प्लॉट गया हाथ से”एक अन्य सज्जन रुआंसे होते हुए बोले…
“बड़ा पहुँचा हुआ महात्मा है”एक और बोल पड़ा|
“एक झटके में ही ट्रेन रोक दी, कमाल है”दूसरे ने भी हाँ में हाँ मिलाई|
“अरे!…महात्मा नहीं….अवतार कहो अवतार”किसी तीसरे की स्वर सुनाई दिया…..
“कोई पहुँचा हुआ फकीर मालूम होता है”एक और चहक उठा|
“अगर ऐसा है तो टिकट नहीं ले सकता था क्या?” मैं फिर बोल पड़ा….
“चुप हो जा एकदम से"परेशान सरदार जी मुझे गुस्से से घूरते हुए बोले “इतना ठुकेगा कि ज़िन्दगी भर याद रखेगा। एक पंगा खत्म होने को नहीं है और तू दूसरे की तैयारी किए बैठा है”…
सबको अपने खिलाफ देखकर, मन मसोस कर मुझे चुप हो जाना पड़ा|
“जब तक ये टी.टी. माफी नहीं माँगेगा, तबतक ये बाबा गाड़ी नहीं चलने देगा”एक आवाज़ सुनाई दी|
“सही है!…बड़ा अड़ियल बाबा है”….
“अपने टी.टी. साहब भी कौन-सा कम हैं? एक बार अड़ गए सो अड़ गए”मेरा इतना कहना था कि सबकी गुस्से भरी आँखें मुझे तरेरने लगी|
“एक काम करो यार….तुम ही माँग लो माफी"स्टेशन मास्टर टी.टी. से निवेदन सा करते हुए बोले|
“म्म…मैं भला क्यों माफी माँगूँ?…मैं तो अपनी ड्यूटी कर रहा था”टी.टी साहब उखड़ने को हुए|
“अरे!…यार…देख तो लिया करो कम से कम कि किस से पंगा लेना है और किस से नहीं। ये क्या कि गधे-घोड़े सभी एक ही फीते से नाप दो”स्टेशन मास्टर साहब बोले
“देख नहीं रहे कि सब कितने परेशान हो रहे हैं सब के सब?”
“आखिर!…क्या गलत किया है मैंने?” जिलानी साहब तैश भरे स्वर में बोले|
“अरे!…बाबा, कुछ गलत नहीं किया…बस खुश?” टी.टी. की बात काटते हुए स्टेशन मास्टर साहब बोले….”अब किसी भी तरह से चलता करो यार…इस मुसीबत को”स्टेशन मास्टर की आवाज़ में मिमियाहट थी|
“कैसे?”…
“जो मर्ज़ी, जैसे मर्ज़ी करो लेकिन ये गाड़ी यहाँ से निकल जानी चाहिए अभी के अभी वर्ना….समझ लो अपने साथ-साथ कईयों की नौकरी भी ले बैठोगे” स्टेशन मास्टर साहब गुस्से से तिलिमालते हुए बोले|
“समझा कर यार….अगले महीने रिटायर हो रहा हूँ और कोई पंगा नहीं चाहिए मुझे। इनक्वायरी बैठ गई तो समझो लटक गया मेरा फंड, मेरी पेन्शन”स्टेशन मास्टर साहब सहमे-सहमे से बोले। पता नहीं कैसे मैनैज करूँगा सब। बेटी की शादी करनी है, डेट फाईनल हो चुकी है। कार्ड तक बँट चुके हैं। अपनी अड़ी के चक्कर में मेरा जुलूस ना निकलवा देना, प्लीज़”|
“अच्छा!….आप ही बताइए, क्या करूँ मैं?….पाँव पडूँ क्या उसके?”
“हाँ!…हाँ ये ठीक रहेगा"कोई बोल पड़ा|
“मना लो यार, किसी भी तरीके से”…स्टेशन मास्टर बोले|
ना चाहते हुए भी जिलानी साहब को बाबा से माफी मांगनी पड़ी|
“अब तो मैं क्या मेरे बाप की तौबा, जो आईन्दा कभी किसी साधू या मलंग के मत्थे भी लगा”जिलानी साहब खुद से ही बातें करते हुए आगे निकल गए|“मुझे किसी पागल कुत्ते ने नहीं काटा है जो मैं नाहक पंगा मोल लेता फिरूं"उनका बड़बड़ाना जारी था|
माफी माँगने से बाबा का गुस्सा शांत हो चुका था। मंत्र बुदबुदाते हुए उन्होंने अपने थैले से कुछ निकाल फिर इंजन की तरफ फूँक दिया”हाँ!…तो भईय्या ड्राईवर, अब तुम खुशी से ले जा सकते हो अपना छकड़ा लेकिन हाँ!..मुझे ले जाना मत भूल जाना कहीं”..
हा...हा...हा मुझ समेत, सभी की हँसी छूट गई। ड्राईवर ने खटका दबाया और कमाल ये कि बिना कोई ना नुकुर किए इंजन एक ही झटके में स्टार्ट। अवाक से सबके मुँह खुले के खुले रह गए। हर कोई हक्का-बक्का। आश्चर्यमिश्रित भाव सभी के चेहरे पर तैर रहे थे|
“बाबा की जय हो”…. “मलंग बाबा की जय हो”…. इन आवाज़ों से पूरा माहौल गूंज उठा।आँखें देख रही थीं, कान सुन रहे थे लेकिन दिमाग को मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था और होता भी कैसे?…कोई विश्वास करने लायक बात हो तब तो लेकिन आँखों देखी को कैसे झुठला दे ये राजीव? असमंजस भरी सोच में डूबा मैं चुपचाप अपनी सीट पर आ गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब हुआ तो हुआ कैसे? सारे तर्क-वितर्क फेल होते नज़र आ रहे थे…
‘ये जादू-वादू कुछ नहीं होता है…सब हाथ की सफाई है हाथ की सफाई….महज़ आँखों का धोखा है’ जैसी बचपन में सीखी-सुनी बातें मुझे बेमानी-सी लगने लगी थी। ‘कहीं हिप्नोटाईज़ ना कर दिया हो बाबा ने पूरी पब्लिक को?’….
‘शायद’ मैं खुद ही सवाल पूछ रहा था और खुद ही जवाब दे रहा था…
‘शायद!…कोई सुपर नैचुरल पावर हो बाबा के पास या फिर कहीं सचमुच में कोई देवता, कोई अवतार तो नहीं है ये बाबा?’ इन जैसे सैंकड़ो सवाल बिना किसी वाजिब जवाब के मेरे दिमागी भंवर में गोते लगाने लगे थे।ये सारा चक्कर मुझे घनचक्कर किए जा रहा था।
‘इतनी शक्ति?…इतनी पावर?…एक आम इंसान में?’….
‘हो ही नहीं सकता’….
‘क्या आज भी इतनी ताकत, इतना दम है मंत्रोचार में?’…
कभी सोचा ना था। ऐसे किस्से तो ‘मानो या न मानो’ सरीखे टीवी-सीरियलों में ही देखे थे आज से पहले।
‘सब फ्रॉड है, सब धोखा है’दिमाग मुझे इस सारे वाकय पे विश्वास करने से मना कर रहा था|
‘लेकिन अगर सब फ्रॉड है…सब धोखा है…छलावा मात्र है तो यकीनन बाबा की दाद देनी होगी कि कैसे उसने सबकी आँख फाड़ती नज़रों के सामने खुली आँखों से काजल चुरा लिया’
‘जरूर कुछ ना कुछ चमत्कार, कुछ ना कुछ कशिश तो है ही बाबा में’मेरा मन बाबा की तारीफ करने लगा था। मैं हक्का-बक्का सा बाबा को ही टुकुर-टुकुर निहारे चला जा रहा था। उनके चेहरे पर तेजस्वी ओज सा चमकने लगा था।
‘उफ!…मैं नादान समझ ही नहीं पाया उनको। अनजाने में भूल से पता नहीं कैसा-कैसा मज़ाक उड़ाता रहा’
अब अपने किए पर पछतावा होने लगा था मुझे…
‘ये ज़बान कट के क्यों ना गिर गई, उनके बारे में अपशब्द कहने से पहले?’…
“बाबा!…मुझ अज्ञानी को…मुझ पापी को क्षमा कर दो…माफ कर दो । मैं नास्तिक आपको पहचान नहीं पाया”कहते हुए मैंने बाबा के पाँव पकड़ लिए|
आँखों से कब अविरल आँसुओं की धारा बह चली, पता भी न चला। मेरे चेहरे पर पश्चाताप के आँसू देख बाबा ने उठकर मुझे गले से लगा लिया|
“कोई बात नहीं बच्चा…ये सब तो चलता ही रहता है…अपने आँसू पोंछ ले"…
“बाबा की जय….बाबा की जय हो”इन आवाज़ों में मेरी आवाज़ भी अब शामिल हो घुल चुकी थी|
“क्या सोच रहा है बच्चा?”मुझे गहरे सोच में डूबा देखकर बाबा ने पूछ लिया…
“जी!…कुछ खास नहीं, बस…ऐसे ही”…
“कोई ना कोई बात तो ज़रूर है बच्चा जो तुझे अन्दर ही अन्दर खाए चली जा रही है"बाब मेरे चेहरे को गौर से देखते हुए बोला…
“जी!…दरअसल मैंने तो सुना था कि ये जादू-शादू कुछ नहीं होता लेकिन वो ट्रेन...(मेरे चेहरे पर असमंजस का भाव था)
“सब ईश्वर की माया है बच्चा”…
“लेकिन बाबा, ऐसा…कैसे हो सकता है?” मेरे चेहरे पर हैरत का भाव था|
“आँखों देखी पर विश्वास नहीं है तुझे तो अब कानों सुनी पर कैसे विश्वास करेगा बच्चा?”….
“जी!…लेकिन….
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं….अभी कहा ना कि सब ईश्वर की माया है”…
“बाबा…मुझे अपनी शरण में ले लो, अपना दास बना लो”कहते हुए मैंने हाथ से अपनी अँगूठी उतार बाबा के चरणों में अर्पित कर दी|
“हमें कुछ नहीं चाहिए बच्चा। बरसों पहले ही हम इन मोह-माया के बन्धनों से मुक्त हो चुके हैं, आज़ाद हो चुके हैं”…
“बाबा…ये तो कुछ भी नहीं, बस…ऐसे ही एक छोटी सी तुच्छ भेंट समझ कर रख लें…मुझे तो बस आपका सानिध्य, आपका आर्शीवाद चाहिए…इसके आलावा मेरे लायक कोई और सेवा हो तो बताएँ?”…
“लगता है तुम नहीं मानोगे, जैसी तुम्हारी इच्छा लेकिन इस छोटी-मोटी फुटकर सेवा से हमारा अभिप्राय पूरा नहीं होने वाला”कहते हुए उन्होंने अँगूठी उठाकर अपने कुर्ते की जेब में रख ली। मेरे चेहरे पर प्रश्न सवार देखकर वह बोले…. “मैं तो मलंग आदमी हूँ बच्चा। अपने लिए कुछ नहीं चाहिए मुझे।दो जून खाने को और तन ढकने को एक जोड़ी कपड़ा मिल जाए तो बहुत है मेरे लिए”….
“जी!…
“एक छोटी-सी गौशाला बनवा रहा हूँ , यही कोई पाँच सौ गायों की। साथ में आठ-दस कमरे भी बनवा रहा हूँ धर्मशाला के लिए, आने-जाने वालों के काम आएंगे”…
“जी!…ये तो बहुत पुण्य का काम है|
“हाँ!...ये तो है”...
“जी!...
“यही कोई पन्द्रह से बीस लाख तकका खर्चा बताया है आर्कीटेक्ट ने"…
”जी!…
“वैसे तो ऊपरवाले की कृपा से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन फिर भी ऐसे नेक कामों के लिए पैसे की तंगी तो रहती ही है हमेशा”…
शायद!…इशारा था ये उनकी तरफ से…
“बाबा!…दान-दक्षिणा की तो आप चिंता न करें। जो बन पड़ेगा…जितना बन पड़ेगा….जरूर मदद करूँगा..आखिर!…गौ माता की सेवा का सवाल जो ठहरा। हम मदद नहीं करेंगे तो कोई बाहर से तो आने से रहा”मैंने कहा “लेकिन बाबा….एक जिज्ञासा है….
“बोलो ना वत्स”बाबा ने सौम्य स्वर में पूछा…
“एक सवाल बार बार मेरे मन को खाए जा रहा है कि...”मेरा कौतुहल मुझे चैन से बैठने नहीं दे रहा था…
“यही कि वो ट्रेन कैसे….(बाबा ने बात अधूरी छोड़ दी)
“जी!…
“अच्छा!…सुन…पानीपत जाना है ना तुझे?”बाबा मुस्कुराते हुए बोले…
“जी!….
“ठीक है….स्टेशन आ जाने दे, तेरी सब शंकाओं का निवारण कर दूँगा…अब खुश?”…
“जी!…बहुत"मैं प्रसन्न होकर बोला…
“वो बेटा…मैंने तुम्हें बताया था ना कि गौशाला के लिए....
“जी!…आप बताएँ कि कितने से आपका काम चल जाएगा?”….
“दान माँगा नहीं जाता वत्स …जो तुम्हारी श्रद्धा हो…दे दो"…
“दो हज़ार ठीक रहेंगे?”मैं जेब से पर्स निकालता हुआ बोला…
“तुम्हारी मर्ज़ी…अपने आप देख लो, पुण्य का काम है”…
“ठीक है बाबा…पाँच हज़ार दे देता हूँ…ये लीजिए”…
“हमें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए बच्चा, सब गौ माता की सेवा के काम आएगा”बाबा पैसे सँभाल...जेब के हवाले करते हुए बोले….
मोक्ष क्या है?….नाम-दान से क्या अभिप्राय है?…जैसी ज्ञान-ध्यान की बातों में पता ही नहीं चला कब पानीपत आ गया…
“बाबा!…मैं चलता हूँ…पानीपत आ गया”…
“ठीक है बच्चा…पहुँचो अपनी मंज़िल पे" बाबा मुझसे विदा लेते हुए बोले..
“जी!…
”अपना ध्यान रखना”…
“जी!…लेकिन बाबा…पहले बताओ ना कैसे रोक दिया था आपने इस ट्रेन को?” मेरे चेहरे पर बच्चों जैसी उत्सुकता देखकर बाबा मुस्कुराए
“सब ईश्वर की माया है बच्चा। ये मेरा विज़िटिंग कार्ड रख लो, दर्शन देने कभी-कभार आ जाया करना हमारे आश्रम में”…
“जी!…ज़रूर"…
“ईश्वर चन्द मेरा नाम है। ध्यान रहेगा ना?”…
“जी!…बिलकुल"मैं विज़िटिंग कार्ड को जेब में रखते हुए बोला
“वैसे भी बच्चा जो कोई मुझे एक बार जान लेता है ताउम्र नहीं भूलता”बाबा के चेहरे की मुस्कान रहस्यमयी हो..गहरी हो चली थी….
“आपकी महिमा अपरम्पार है प्रभु….लेकिन वो ट्रेन कैसे….
“लगता है तुम जाने बिना नहीं मानोगे…अच्छा…अपना कान इधर लाओ”….
उसके बाद उन्होंने जो कुछ भी मेरे कान में कहा, वह सुनकर मैं हक्का-बक्का सा रह गया। बोलने को शब्द नहीं मिल रहे थे। कानों को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब कैसे हो गया? विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई मुझे दिनदहाड़े पाँच हज़ार रुपए नकद और दहेज में मिली सोने की अँगूठी का फटका लगा चुका था।
दरअसल…हुआ क्या कि जब बाबा, इंजन में ड्राईवर के पास गया तो उसने चुपके से ड्राईवर को पाँच सौ का नोट देकर कहा था कि ‘जब तक मैं इशारा ना करूँ..तब तक गाड़ी रोककर रखनी है’
इतनी सिम्पल सी बात, मैं बेवकूफ समझ नहीं पाया। खुद अपनी ही नज़रों से शर्मसार हो जब मैं कुछ सोचने-समझने लायक हुआ तो पाया कि बाबा आस-पास कहीं न था। अब मैं कभी अपने खाली पर्स को देखता, कभी अँगूठी विहीन अपने हाथ को। सच!…वो ईश्वर चन्द का बच्चा अपनी ईश्वरी माया दिखा वहाँ से चम्पत हो चुका था। सही कह गया था वो ठग मुझे कि उसे एक बार जान लेने के बाद कोई भी उसे अपनी पूरी जिंदगी नहीं भूलता है…मैं भी कभी नहीं भूल पाऊँगा उस #$%^&*&^%$ को

****राजीव तनेजा ***