व्यंग्य
धंधा धरम का
यशवंत कोठारी
आजकल मैं धरम-करम के धंधे में व्यस्त हूँ.इस धंधे में बड़ी बरकत है,बाकी के सब धंधे इस धंधे के सामने फेल हैं.लागत भी ज्यादा नहीं,बस एक लंगोटी,एक कमंडल,कुछ रटे रटाये श्लोक ,कबीर ,तुलसी के कुछ दोहे.बस काम शुरू.हो सके तो एक चेली पाल लो बाद में तो सब दोडी चली आएगी.जिस गाँव में असफल रहे हैं वहीं उसी गाँव के बाहर जंगल में धुनी ,अखाडा,आश्रम.डेरा खोल्दो.काम शुरू.लेकिन डर भी लग रहा है.इन दिनों बाबाओं की जो हालत हो रही है वो किसी से छिपी हुई नहीं हैं.कई बाबा जेल में है कई जेल जाने की तय्यारी कर रहे हैं ,कई बाबाओं की चेलियाँ भी जेल में हैं.कई कथा वाचकों के पास ट्रस्ट है ,ये ट्रस्ट इन के घर परिवार के लोग चलाते हैं,बाबा अपने आप को पाक दामन बताते हुए साफ कहते हैं मेरे नाम पर कुछ नहीं है एक इंच जमीं भी नहीं,कई बाबा तो मोका देख कर उद्योगपति बन गए,कम्पनी खोल लिए ,बड़े बड़े शोरूम बना लिए.लेकिन बाबाओं कि शांति धरम,अध्यात्म की खोज पूरी नहीं हो रही है.
साधू ,संत सन्यासी में कोई फरक नहीं होता है,ऋषि मुनि भी जब जरूरत होती तो राज्य के पास जाकर अनुदान मांगते ,मगर आजकल के साधू संत सन्यासी खुद ही राजा बन गए हैं,कुछ सन्यासी तो मठ से निकल कर राजभवन में घुस गए हैं.
धरम के धंधे में कभी भी घाटा नहीं हो सकता हैं.यह व्यवसाय पूरे नफे का है.
दुखी और परम दुखी आत्माएं आती हैं ,बाबा लोग इन दुखी आत्माओं के दुःख दूर करने के वादे करते हैं,सपने दिखाते हैं,इन सपनों को पूरा करने के रस्ते दिखाते हैं जो इन बाबाओं की गुफाओं से होकर गुजरते हैं.
एक बाबा कृपा बरसाते हैं इस कृपा के लिए भक्तों को बाबा के खाते में बड़ी रकमे डालनी पड़ती हैं.बाबा दवाईयां भी बेचते हैं,बाबा की पत्रिकाएं किताबें भी खरीदनी पड़ती है.फिर भी यदि कृपा नहीं बरसती तो भक्तों का भाग्य ही ख़राब है.भाग्य हीन का बाबा भी क्या करे.एक गुरु ने नदियों पर रेली निकाली,दुसरे बाबा ने यमुना पर आश्रम लगाया पांच करोड़ का जुरमाना दिया ,मगर बाबा पद्म पुरस्कार पा गाये.एक बाबा नदियों को जोड़ना चाहते हैं तो दुसरे बाबा गंगा की सफाई के नाम पर बजट की सफाई कर रहे हैं.बाबाओं का समां कुभ में देखते ही बनता है,पहाड़ो ,गुफाओं से सत्ता का सफ़र बाबाओं को रास आने लगा हैं लेकिन अभी भी कुछ सच्चे गुरु,मुनी हैं जिन पर संसार टिका हुआ है.
एक मठ वाले ने नारा दिया –दिव्य व् भव्य पुत्र के लिए सम्पर्क करे.दूसरा क्यों पीछे रहता उसने कन्याओं को बुला कर ब्लैक मेल करना शुरू किया.बाबा जी जेल में है.
भारत में भग्वानों कोई कमी नहि है हर तरफ भगवन ही भगवान ,आप कही भी जाकर मिल ले. महिलएं अकेली आये तो तुरंत फायदे की गारंटी .ये भगवान सर्कार सत्ता के पास रहते है,राजनितिक दल इनको की वोटर मानते है ,जो इनको वोट दिलाते हैं.कई बाबाओं ने सर्कार सत्ता से बड़े बड़े लाभ ले लिए ,अपने स्कूल कालेज अस्पताल खोल लिए.करोडो अरबों की सम्पत्ति कर ली.रामायण गीता पुराण लिखने वाले गरीबी में मर गए मगर बाबा सब के सब अमीर है.
जब पुरे कुएं में ही भाग घुली हुई हो तो आम दुखिया क्या करेगा.बीमार,अपाहिज,लाचार,बेरोजगार शादी बच्चों की आस वाला हर तरफ से निराश होकर बाबा ,साधू,ओझा ,फ़क़ीर,की शरण में जाता है,और अपने मन को शांत करता है.बाबा बलात्कार के भी विशेषज्ञ हो जाते है.कभी भी कहीं भी इनकी सेवाएँ उपलब्ध हो जाती हैं.
धरम अध्यात्म शांति,सुकून ,ज्ञान विज्ञान की बाते इन बाबाओं को पसंद नहीं आती .बाबाओं के माफिया बन गए हैं जो भोली भालि जनता को अपने जल में फंसा लेते है.
एक बाबा के निजी सचिव ने बताया –हम जनता को नहिं बुलाते जनता खुद ही अपने दुःख दर्द के लिए हमारे पास आती है.हम तो जनता ,भक्तों के दुःख दूर कर रहे हैं.झाडा डलवाना,उपर कि हवा से बचाव ,भुत प्रेत चुडेल डाकन आदि से बचाव के नाम पर बाबा लम्बा मॉल खींचते हैं.शराब,शबाब के शोकीन बाबा को सब कुछ मुफ्त और श्रद्धा के साथ मिलता है.चेलियों का तो क्या कहना एक से बढ़ कर एक सिर्फ इशारा ही काफी है.
अत:मेने भी तय किया है की बाबा बनूँगा क्या रखा है इस कविता ,कहानी व्यंग्य में .
बाबा बनो सुख से जिओ.
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यशवंत कोठारी ८६, लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बहार जयपुर -३०२००२
मो-९४१४४६१२०७