Meri tuti futi gazale in Hindi Poems by Parmar Bhavesh books and stories PDF | मेरी तूटी फूटी ग़ज़लें..!

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मेरी तूटी फूटी ग़ज़लें..!

1. प्यार कब था..!

आप के लिए प्यारके अलावा ही! सब था !
हमारे लिए प्यारके अलावा कुछ कब था ?

खुदा भी तुम और भगवान भी तुम ही थे !
तुमको ही माना, ऊपर वाला कहाँ रब था ?

क्या बताऊँ तुमको तुम क्या हो मेरे लिए
बस यह जानो, जब तुम नहीं थे में शब था !

जब न संसार था या न तो कोई इंसान था !
कुछ नहीं था फिरभी तुं मेरे दिलमें तब था !

अब ये जहाँ बन गया दुश्मन तेरा ओर मेरा !
हैरान होना लाजमी है कहाँ कोई गजब था !

*****

2. क्या यही वो नशा है..!

क्या यही वो नशा है जो सर चढ़के बोल रहा है ?
लगता तो यही है जिसमें सबकुछ डोल रहा है

किसके इशारों पे दिल कमबख्त नाच रहा है !
यूँही हाल-ए-दिल सबके सामने ये ख़ोल रहा है

रंगीन ख्वाब सुहाने सफ़रके मिलके देखे दिखाए
मेरे उन हसीं सपनोँ को दो आँखों से तोल रहा है

रंगीन हो गया आसमान भी नीला अब रहा नही
चुराके प्यारके रंग, सारे जहाँ में कोई घोल रहा है

उससे मिलन का दीन अब लग रहा नजदीक है
दिल तो शोरमें भी शहेनाइ के सूर टटोल रहा है

*****

3. दोस्तों के नाम ..!

अब क्या बताएं कि क्या है तन्हाई !
वही तो एक है हमनें जो है पाई

सब को पीछे छोड़ने के चक्करमें,
हमने खुद ही से आंख है फ़िरोई

जब दोस्तों ने भी हमारे शेर पढ़े
बस उसने भी तो की वाहवाही

सन्नाटे के शोरमें ही ग़ुम हुए हम
और अब तो मौतने ली अंगड़ाई

फिर भी खुशकिस्मत तो है हम,
दोस्तोंने आके ताबूद तो चमकाई

आये फ़रिश्ते ले गए मुज़े खींच के,
जन्नत के दरवाजेपे हूर भी शरमाई

कौन था वह जो बुला रहा वापस ?
वह तेरी ही थी जो आवाज आयी ?

पता चला दोस्तने भेजा था बुलावा,
दिल रो पड़ा और आँख भर आयी

*****

4. हो ना सके..!


तुमसे जुदा हो कर भी जुदा हो ना सके,
क्या करें! चाह कर भी हम रो ना सके

तकिया ही गवाह है इन आँसुओ का
क्या करें! रातमें भी हम सो ना सके

भूलने की कोशिश भी करते रहे तुम्हें,
क्या करें! तुम्हारी यादों को खो ना सके

ऐसा नहीं कि कोई न मिला तुम्हारे बाद
क्या करें! ओर किसीके हम हो ना सके

पेड़ है शिकायतों से हराभरा इस दिलमें
क्या करें! पर तेरे दिलमें उसे बो ना सके

*****

5. जिंदगी..!

जिंदगी से कोई सिकवा भी नहीं कर सकता,
उसने कहाँ कभी मुज़से कोई वादा किया था..!

मैने ही अपनी मर्जीसे दोस्त बना लिया उसे,
उसने तो कहाँ कभी अपना हाथ बढ़ाया था..!

सोचता रहा मेरे साथसाथ चल रही है हमेंशा,
उसने कहाँ हमसफर होने का दावा किया था..!

हमारी कटी पतंगका वोह तो बस एक मांजा था,
उसने कहाँ इतना ऊपर जाने को कहा ही था..!

रोज नया खेल देखता दिखाता रहा 'सर्कसमें' मै,
उसने तो "सूत्रधार" होने का फ़र्ज निभाया था..!

****

6. दिल खो कर..!

सोचा न था दिल खोकर ही क़िस्मत मिलती है!
दिलबर के हाथसे ही तो सब रेहमत मिलती है!

जानना और समझना क्या रहा बाकी जो समझे!
दिलबर के पाससे ही तो सब हिकमत मिलती है!

कहना और पूछना क्या रहा बाकी जो पूछेंगे!
दिलबर की ना में भी तो सब सहमत मिलती है!

ढूंढता रहता हर वह जगह जहा गूँजाइश रही!
दिलबर के दीदार को तो बस जेहमत मिलती है!

सोच नही सकते उससे दूर रहना, रहें भी कैसे!
दिलबर की जुदाई से तो बस कयामत मिलती है!

*****

BHAVESH PARMAR. "આર્યમ્"

ખરેખર ગઝલ ને ગઝલ ત્યારે જ કહી શકાય જ્યારે તે ગઝલના છંદમાં લાખાઈ હોય, મારી બધી ગઝલ અછાંદસ્થ છે.

આભાર..