Aastha Parichay in Hindi Motivational Stories by Sohail Saifi books and stories PDF | आस्था परिचय

Featured Books
Categories
Share

आस्था परिचय

परिचय
महाशय सोम एक नैतिक और सामाजिक व्यक्ति हैं
ज्ञान का सागर उनके मस्तिष्क मे भरा पड़ा था किन्तु थे वो नास्तिक

समाज की धार्मिक नीतियाँ उनको लुभाती तो थी मगर धार्मिकता के उपासक की अंध भक्ति उनके समक्ष केवल मूर्खता थी
लोगो को तर्क भरे सामाजिक उपदेश देते
जिसके आगे बड़े बड़े विद्वान निरस्त हो कर कट लेते


उनका कहना था के ईश्वर केवल मनुष्य की कल्पना उपज हैं और यदि ये सत्य भी हो तो आदमी अपने जीवन के कर्तव्य के प्रति ये कह कर विमुख नहीं हो सकता के ईश्वर की इच्छा या प्रभु ने भाग्य मे जो लिखा हैं वही होगा
भाग्य भी उनका ही साथ देता हैं जो स्वयं का साथ दे अपने कर्तव्यो का पूर्ण निष्ठां से पालन करें
बारहाल
पड़े लिखें उन्नत समाज के बुद्धजीवी थे श्रीमान सोम

मगर उनकी धर्म पत्नी कठोर तपस्वी थी उनकी भक्ति और श्रद्धा का धार्मिक जन उदहारण देते
यूँ तो यशोदा देवी सामाजिक रूप से आशिक्षित थी कभी विद्यालय का मुँह तक ना देखा परन्तु धार्मिक शिक्षा विरासत मे मिली थी
अब सोचने का विषय हैं ये बिन सिर पैर की जोड़ी कैसे अस्तित्व मे आई एक आकाश था तो दूसरी भूमि थी
तो ये असम्भव विवहा कैसे हो गया

असल मे सोम बाबू माँ भक्त थे उनकी ये भक्ति सामाजिक तानो या मृत्यु पश्चात् मिलने वाले धार्मिक दंड जैसे भय के कारण कतई ना थी
बल्कि पिता की मृत्यु पश्चात् माँ के द्वारा किये संघर्ष के साथ उनका पालन होता देख कर उभरी थी एक अबला नारी जिसकी आर्थिक स्थित गंभीर हो उसके लिए समाज मे जीना ही बड़ा कठिन होता हैं बस इसलिए माँ के प्रति पुत्र मे अपार प्रेम, सम्मान,और आज्ञा की भावनाओं का पहाड़ था

सोम के युवा होने पर माता का स्वस्थ डगमगा ने लगा पुत्र की नास्तिकता माता के लिए चिंता का विषय बन गई तो माता ने पुत्र से एक वचन लिया के उनकी मृत्यु से पहले उनके द्वारा चुनी कन्या से निःसंकोच विवाह करेगा
पुत्र का हा बोलना माता के लिए जैसे अमृत हो गया माता ने कन्या का चुनाव पहले ही कर लिया था तो झट मंगनी पट विवाह हो गया
कन्या सेवा और धार्मिक गुणों से भरी पड़ी थी जिससे माता को एक आशा बनी की पुत्र एक दिन आस्था अर्पण जरूर कर लेगा किन्तु आशा आशा ही रह गई विवहा के तीन वर्ष पश्चात् भी पुत्र मे कोई अंतर ना आया और इसी अधूरी आस मे विधवा माँ संसार को त्याग कर चली गई

मानव को समय की गति का कोई अनुमान नहीं होता वो तो केवल भाग्य के अनुकूल ही गति का आभास कर पाता हैं यदि दुर्भाग्य का कठिन समय हो तो बड़ा ही धीमा प्रतीत होता हैं
वही सौभाग्य और सुख का समय गतिमान लगता हैं

और आज कल तो सुख भोगने की ऐसी ऐसी वस्तुओ का अविष्कार हो चूका है के दिन घंटे भर समान कट जाता है

खेर माँ की मृत्यु का समय सोम बाबू के लिए कठिन और दुखत था किन्तु थोड़ी ही अवधि पश्चात् उनका भाग्य चमका अर्थात समय पूर्ण वेग से गतिमान सिद्ध हुआ
इस समय विवहा को सम्पन्न हुए आठ वर्ष बीत गए थे सोम की दो संतान हो गई थी बड़ी पुत्री 6 वर्ष की छोटा पुत्र 2 वर्ष का पुत्री अंग्रेजी विद्यालय मे शिक्षा प्राप्त कर रही थी